उत्तर भारत में इस समय भयंकर गर्मी और लू का प्रकोप है। पारा आधे सैकड़े की ओर बढ़ रहा है।सभी साथियों से अनुरोध है कि अपना ध्यान रखें और बहुत अधिक आवश्यकता होने पर ही घर से बाहर निकलें। पिछले कुछ सालों से देखने में आ रहा है कि हर बार बहुत अधिक सर्दी और बहुत अधिक गर्मी के सभी रिकॉर्ड टूट जाते हैं। इसके पीछे पर्यावरण असंतुलन और प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ जैसे तमाम कारण हैं जिन पर कभी बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे फिलहाल मेरे कुछ दोहों और एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए :
आज कुछ दोहे यों भी
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घर में होती देखकर,बँटवारे की बात।
चिंता में घुलने लगे,बाबू जी दिन-रात।।
लागत भी देते नहीं,वापस गेहूँ-धान।
आख़िर किस उम्मीद पर,खेती करे किसान।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
सदीनामा अख़बार में संपादक मंडल की मेहरबानी से फिर मेरी एक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है☝️☝️ उसका भी आनंद लीजिए।मेरे साथ ही श्री विकास सोलंकी साहब की भी शानदार ग़ज़ल छपी है।सोलंकी साहब को भी उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद।
विशेष -- (सबसे ऊपर जो छायाचित्र आप देख रहे हैं वह पल्लव काव्य मंच रामपुर के एक आयोजन के अवसर पर लिया गया था।उस शानदार कार्यक्रम पर शीघ्र ही एक ब्लॉग पोस्ट लिखूंगा। कृपया ब्लॉग को विजिट करते रहें🙏🙏)
Wow! Nice poetry
ReplyDeleteDhanywaad
DeleteBahut sundar, badhai
ReplyDeleteHardik aabhaar
Deleteबेहतरीन शायरी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
DeleteBehatreen
ReplyDeleteThanks
Deleteलाजवाब सृजन!
ReplyDeleteThanks a lot
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