कल अपने नगर में ही अखिल भारतीय काव्यधारा के एक साहित्यिक आयोजन में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ।बहुत अच्छा कार्यक्रम रहा। स्थानीय कवियों के अतिरिक्त बाहर से आए कवियों ने भी रंगों के पर्व होली तथा अन्य विविध विषयों पर अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ सुनाकर आमंत्रित श्रोताओं को आनंदित किया।कार्यक्रम में कुछ साहित्यकारों को उनके साहित्यिक अवदान के लिए सम्मानित भी किया गया।
ऐसे आयोजनों में अपना काव्य पाठ करने का ही अवसर प्राप्त नहीं होता अपितु दूसरे श्रेष्ठ साहित्यकारों को सुनने का भी अवसर प्राप्त होता है जिससे चिंतन की उड़ान तीव्र होती है और सृजन कौशल का विकास होता है।नए साहित्यकारों के लिए भी ऐसे आयोजन निरंतर श्रेष्ठ सृजन की प्रेरणा का कारण बनते हैं।
कविता और जीवन का बहुत गहरा अंतर्संबंध है।कविता और जीवन दोनों में ही एक लय होती है।कविता भाषा के पल्लव और पोषण का भी बड़ा काम करती है।अत: जीवन को प्रवाहमान बनाए रखने के लिए ऐसे काव्य आयोजन होते रहने चाहिए।
हाल ही में कुछ नए दोहे कहे हैं जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं :
कुछ नए दोहे
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धूर्त-छली चलते रहे, प्रतिदिन अपनी चाल।
सच्चों के सम्मुख कभी,गली नहीं पर दाल।।
उजियारे की सौंप दी,रक्षा जिनके हाथ।
उनके भी दिल हो गए,अँधियारे के साथ।।
हमने दिन को दिन कहा,और रात को रात।
बुरी लगी सरकार को,बस इतनी सी बात।।
कैसे कह दें है नहीं, उनके मन में खोट।
धर्म-जाति के नाम पर,माँग रहे हैं वोट।।
छीन रही है वृक्ष से, जीने का अधिकार।
आँधी अपने कृत्य पर,कर तो तनिक विचार।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
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प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक