February 12, 2023

एक साहित्यिक विमर्श

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


कल दिनांक 11फरवरी,2023 को रामपुर के एक अच्छे ग़ज़लकार भाई सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी का फोन आया कि आज भाई राजवीर सिंह राज़ (उदीयमान ग़ज़लकार) के यहां चलकर बैठते हैं।कुछ साहित्यिक विमर्श और एक काव्य गोष्ठी/शेरी नशिस्त का विचार है।इस नेक और अपनी रुचि के कार्यक्रम के लिए भला मैं कैसे मना कर सकता था। कुछ ही देर में हम लोग राजवीर सिंह जी के यहां पहुंच गए। काफ़ी देर तक एक दूसरे के घर-परिवार की कुशल क्षेम पूछने के बाद बात साहित्यिक गतिविधियों पर आकर टिक गई।
हम तीनों ही लोग इस बात पर सहमत नज़र आए कि साहित्य भी समाज सेवा का एक माध्यम है अत: इस तरह के क्रियाकलापों  में आपसी गुटबाज़ी या तंग नज़रिए का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। एक ही शहर में कई साहित्यिक मंच हो सकते हैं परंतु उनमें आपसी वैमनस्य बिल्कुल नहीं होना चाहिए।शहर में साहित्यिक गतिविधियों में पारदर्शिता का पालन करते हुए एक दूसरे के मंचों के कार्यक्रम में खुले दिल से हिस्सेदारी करनी चाहिए और साल में एक बार सभी को सामूहिक रूप से भी कोई बड़ा साहित्यिक आयोजन करना चाहिए।ऐसा करने से इस क्षेत्र में इन मंचों से जुड़े हर साहित्यकार को बड़े स्तर पर अपनी  पहचान बनाने के अधिक अवसर मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस महत्पूर्ण विषय पर आम राय से यह तय हुआ कि शहर के सभी साहित्यिक मंचों के पदाधिकारियों से इस विषय पर वार्तालाप किया जाना चाहिए। मानना या न मानना लोगों पर निर्भर करता है परंतु पहल तो की ही जा सकती है।इससे सही अर्थों में साहित्यिक गतिविधियों को विस्तार मिलेगा।
इस बीच मेज़बान राजवीर सिंह जी के परिजनों द्वारा उत्तम जलपान की व्यवस्था भी कर दी गई।जलपान के पश्चात एक सुंदर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया ।
गोष्ठी में सरस्वती वंदना के पश्चात काव्य पाठ करते हुए भाई राजवीर सिंह राज़ ने कहा :
कल मरा मुखिया बड़ा घर में रुदन था,
आज पंचायत बिठाई जा रही है।

है तो जस की तस ही लेकिन आंकड़ों में,
खूब महंगाई घटाई जा रही है।

अपने जदीद शेरों के लिए पहचाने जाने वाले भाई सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी ने अपना कलाम कुछ यूं पेश किया :
मौत हक़ है सभी को आएगी,
ज़िंदगी कब तलक बचाएगी।
मौत के साथ चैन आएगा,
ज़िंदगी उम्र भर सताएगी।

कार्यक्रम के अंत में मैंने भी अपने कुछ अशआर पेश किए :
 कैसे कहें कुसूर हवा का नहीं रहा,
अब एक भी दरख़्त पे पत्ता नहीं रहा।

इक दूसरे पे जान छिड़कते थे रात-दिन,
अब भाइयों के बीच में रिश्ता नहीं रहा।

कार्यक्रम के अंत में मेज़बान भाई राजवीर सिंह राज़ ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शीघ्र ही अगले आयोजन में मिलने की बात कहते हुए सभा-विसर्जन की ।
प्रतुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

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