February 10, 2023

मुरादाबाद मंडल की साहित्यिक विरासत को संरक्षित करते पत्रकार, शोधकर्ता तथा साहित्यकार भाई(डॉo) मनोज रस्तौगी जी

मुरादाबाद मंडल की साहित्यिक विरासत को संरक्षित करते पत्रकार और साहित्यकार भाई(डॉo) मनोज रस्तौगी जी
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बुधवार दिनांक 8 फरवरी,2023 को मुरादाबाद के साहित्यकार/साहित्यिक शोधकर्ता/पत्रकार भाई (डॉo)मनोज रस्तौगी जी का मेरे निवास पर आना हुआ।चाय पर परिवार और बच्चों के कैरियर आदि को लेकर हुई चर्चा के बाद विमर्श साहित्यिक विषयों पर केंद्रित हो गया। उनसे मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों के योगदान और उनकी कृतियों के संरक्षण को लेकर भी व्यापक चर्चा हुई। मुरादाबाद मंडल में ऐसे कई साहित्यकार गुज़रे हैं जिनका समाज के लिए बहुत बड़ा साहित्यिक योगदान रहा है परंतु किन्हीं कारणों वश उनके योगदान का यथोचित मूल्यांकन नहीं हो पाया।इस कारण साहित्य जगत में ऐसे लोगों को वह स्थान नहीं मिल पाया जिसके वे अधिकारी रहे हैं। श्री मनोज जी मंडल के ऐसे गुमनाम साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान को सामने लाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं।मनोज जी को ऐसे साहित्यकारों और उनके परिवारों के बारे में जहां से भी जानकारी उपलब्ध हो जाती है वे परिजनों/साहित्यकारों से भेंट करने पहुंच जाते हैं। साहित्यकारों/परिजनों से साक्षात्कार करते हैं तथा उनके साहित्यिक सृजन को अपने साहित्यिक ब्लॉग और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से सबके सामने लाते हैं। मनोज रस्तौगी जी के  इस जज़्बे और जुनून की जितनी भी तारीफ़ की जाए वह कम है।
साहित्यिक चर्चा के दौरान उन्होंने अपने मिशन की इस कड़ी में मुझसे रामपुर के साहित्यकार स्मृतिशेष लाल किरण जी के बारे में जानकारी की और उनके घर चलने का आग्रह किया।
कुछ ही देर में हम लोग स्मृतिशेष किरण जी के परिजनों के बीच थे।मैंने स्मृतिशेष किरण जी के परिजनों से मनोज जी का परिचय कराया और उनके मिशन के बारे में बताया।परिजन उनसे मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए।मनोज जी ने परिजनों को बताया कि श्री हीरालाल जी ने उन्हें टैगोर शिशु निकेतन रामपुर में पढ़ाया था। जब किरण जी मुरादाबाद जाया करते थे तो साहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी के साथ उनके घर ही ठहरा करते थे।यह सुनकर  स्मृतिशेष हीरा लाल किरण जी के परिजनों के ह्रदय उनके प्रति श्रद्धा से भर उठे।
बताता चलूं कि स्मृतिशेष किरण जी से  से मेरा भी बहुत आत्मीय रिश्ता रहा।उनके द्वारा संचालित साहित्यिक मंच गुंजन की गोष्ठियों में मेरा बहुत जाना हुआ करता था।किरण जी नए साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने वाले बहुत ही विनम्र इंसान थे। 
मनोज जी ने काफ़ी देर तक किरण जी के परिजनों से बातचीत की और अपने संस्मरण साझा किए। परिजनों ने उन्हें स्मृतिशेष किरण जी द्वारा रचित पुस्तकें भेंट करते हुए उनका आभार प्रकट किया।
मैनें भी अपने हिंदी देवनागरी में प्रकाशित हुए पहले ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की कुछ प्रतियां उनके पुस्तकालय/शोधालय हेतु भेंट कीं।
 --- ओंकार सिंह विवेक 

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