हिंदी सेवी संस्थाओं में साहित्य मंडल,नाथद्वारा ज़िला राजसमंद, राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना सन् 1937 ई. में की गयी थी। इस संस्था ने हिन्दी के उन्नयन तथा हिंदी सेवियों को जोड़ने का स्तुत्य प्रयास किया है।त्रैमासिक पत्रिका 'हरसिंगार' के माध्यम से यह संस्था हिंदी की अभूतपूर्व सेवा कर रही है।प्रसिद्ध साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद देवपुरा जी की स्मृति में उनके सुपुत्र श्री श्याम प्रकाश देवपुरा जी हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन और उन्नयन का बहुत ही सार्थक प्रयत्न कर रहे हैं।उनके सदप्रयासों को सादर नमन।
संस्था द्वारा 14 फरवरी,2023 को श्री नाथद्वारा में आयोजित एक भव्य साहित्यिक कार्यक्रम में मुझे हिंदी देवनागरी में प्रकाशित हुए मेरे पहले ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" के लिए श्री रणछोडलाल ठक्कर स्मृति सम्मान,2023 तथा हिंदी साहित्य मनीषी की मानद उपाधि से विभूषित किया गया।सम्मान स्वरूप मुझे उपाधि पत्र,शॉल,उत्तरी,मेवाड़ी पगड़ी,श्री नाथजी का प्रसाद एवम् छवि,नारियल,कंठ हार तथा नक़द धनराशि प्रदान की गई। इसके लिए मैं संस्था तथा इसके प्रधानमंत्री श्री श्याम प्रकाश देवपुरा जी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं।
पूज्य पिता का कर रहे,जग में ऊंचा नाम।
श्रीमन साधक श्याम जी,शत-शत तुम्हें प्रणाम।।
ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
श्री श्याम प्रकाश देवपुरा जी के साहित्य के प्रति अनुराग और उनके आतिथ्य भाव को देखकर दिल उनके प्रति श्रद्धा से भर गया।कार्यक्रम के एक सत्र में ब्रज भाषा कवि सम्मेलन में विद्वान साहित्यकारों की कथ्य और शिल्प की दृष्टि से सशक्त प्रस्तुतियां देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ।वहां हो रहे साहित्यिक विमर्श को देखकर अच्छा लगा कि ब्रज भाषा के संवर्धन को लेकर धरातल पर बहुत ही ठोस कार्य हो रहा है। ऐसे पावन कार्य हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के प्रति आश्वस्त करते हैं।
इस साहित्यिक यात्रा के बहाने मुझे विश्व प्रसिद्ध श्री नाथद्वारा मंदिर में श्री नाथ जी के दर्शन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
उल्लेखनीय है कि नाथद्वारा पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय की प्रधान (प्रमुख) पीठ है। यहाँ नंदनंदन आनंदकंद श्रीनाथजी का लगभग 337 वर्ष पुराना भव्य मन्दिर है जो करोड़ों वैष्णवों की आस्था का प्रमुख स्थल है। प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश से लाखों वैष्णव श्रद्धालु आते हैं।
इस साहित्यिक आयोजन में सहभागिता हेतु हमने जब अपने गृह नगर रामपुर से यात्रा प्रारंभ की तो रास्ते में कई सुखद अनुभव हुए जिन्हें आपके साथ साझा करना तो बनता ही है।
( ट्रेन की प्रतीक्षा में हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन दिल्ली पर)
इस यात्रा में मेरे साथ रामपुर उत्तर प्रदेश से रचनाकर अनमोल रागिनी चुनमुन और उत्तराखंड से गीता मिश्रा गीत और पुष्पा जोशी प्राकाम्य भी रहीं।रागिनी जी की सुपुत्री दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में अध्ययनरत हैं।वह हमारे लिए राजमा-चावल लेकर हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंची।सब ने बड़े प्रेम से भोजन ग्रहण किया और बिटिया से बहुत देर तक उसकी पढ़ाई और भविष्य की योजनाओं को लेकर वार्तालाप किया।
शाम को हम सब लोग लगभग 12 घंटे के सफ़र के लिए मेवाड़ एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुए जिससे हमें मावली,राजस्थान पहुंचना था।
ट्रेन में हमें बहुत ही मिलनसार भाई श्री राहुल जी और कोटा के बहुत ही हंसमुख स्वभाव के भाई श्री अशोक जैन जी मिले।इन लोगों के साथ बहुत ही आत्मीयता पूर्ण बातें करते हुए सफ़र कब समाप्त हो गया कुछ पता ही नहीं चला।
उन लोगों ने हमसे रचनापाठ का भी अनुरोध किया जिसे कोई भी टाल नहीं सका। दोनों ही सज्जनों ने हम सब की रचनाओं को बहुत सराहा जिससे बहुत उत्साहवर्धन हुआ।उन लोगों से विदा लेते वक्त किसी मशहूर शायर का यह शेर अनायास ही होठों पर आ गया
कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
आंखों में जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
अज्ञात
(दिल्ली से मावली तक ट्रेन यात्रा के दौरान मिले मस्तमौला स्वभाव के धनी कोटा के भाई अशोक जैन जी)
मावली जंक्शन पहुंचने पर हमें साहित्य मंडल श्री नाथद्वारा, जो वहां से लगभग 28 किलोमीटर दूर है,ले जाने के लिए मंडल की बस तैयार खड़ी मिली।बस में देश के कई प्रांतों से आए साहित्यकार मौजूद थे।सभी साहित्यिक विचार-विमर्श करते हुए लगभग आधे घंटे में श्री नाथद्वारा पहुंच गए।
कार्यक्रम स्थल पर शानदार तैयारियां और अनुशासित संचालन देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ।श्री श्याम प्रकाश देवपुरा जी और उनकी टीम का तालमेल और समर्पित सेवा भाव देखते ही बनता था।यों तो मैंने राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से साहित्यिक आयोजनों में सहभागिता की है परंतु यहां का प्रबंधन बेजोड़ कहा जा सकता है।
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Bahut sundar aayojan vah vah
ReplyDeleteधन्यवाद
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