January 31, 2025

मशहूर शायर ओमप्रकाश 'नदीम' जी द्वारा भेजी गई मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ कुछ खारा' की समीक्षा



सहज संवेदनाओं की ग़ज़लें

************************ 

                -- ओम प्रकाश 'नदीम'

ओंकार सिंह 'विवेक' जी से मैरी मुलाक़ात वर्ष 1989-90 के दौरान हुई थी जब मैं उरई से स्थानांतरित होकर रामपुर गया था। वह इब्तिदाई दौर था। 'विवेक' साहब में सीखने की शुरु से ही ज़बरदस्त लगन थी। छोटी-छोटी गोष्ठियों में भी हम लोग शरीक होते थे। साहित्यिक कार्यक्रमों में कई बार हम लोगों का आना- जाना साथ ही होता था। बेहद सरल,विनम्र और सद्भावपूर्ण   शख़्सियत के मालिक हैं 'विवेक' साहब। पहली ही मुलाक़ात में प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। इनके बारे मुख़्तसर- सी टिप्पणी मैंने इसलिए की है ताकि उनकी शायरी की कहन को आसानी से समझा जा सके। मैं उर्दू और हिन्दी ग़ज़ल में ख़ास फ़र्क़ नहीं देखता। बहुत सी हिन्दी ग़ज़लें ऐसी हैं कि अगर उन्हें उर्दू भाषा में लिख दिया जाए तो वे उर्दू की लगने लगेंगी। कई उर्दू की ग़ज़लों के साथ भी ऐसा ही है। ऐसा इसलिए है कि तकनीकी नज़रिए से देखें तो हिन्दी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएँ नहीं हैं क्योंकि दोनों भाषाओं का व्याकरण लगभग एक जैसा ही है। दोनों में केवल लिपि और शब्दावली का अंतर है बल्कि अब तो दोनों की शब्दावली भी हिन्दुस्तानी है। ओंकार सिंह 'विवेक', भले ही ख़ुद को हिन्दी का ग़ज़लकार कहते हों लेकिन उनकी ग़ज़लों में उर्दू के बहुत स्तरीय और शुद्ध साहित्यिक शब्दों का काफ़ी इस्तेमाल हुआ है। भाषा को लेकर वो किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं और शायद इसीलिए उनकी ग़ज़लें हिन्दी-उर्दू के विवाद से परे हिन्दुस्तानी ग़ज़लें कही जा सकती हैं।हिन्दी के बहुत से ग़ज़लकार पूर्वाग्रह या ला-इल्मी की वज्ह से ग़ज़ल के व्याकरण पक्ष के प्रति बहुत गंभीर नज़र नहीं आते।


 ओंकार सिंह 'विवेक' साहब ने पूरी कोशिश की है कि ग़ज़ल का शिल्प/व्याकरण पक्ष कहीं से कमज़ोर न पड़ने पाए। इसमें वो सफल भी रहे हैं। 'विवेक' जी की ग़ज़लों में कथ्य पक्ष का फ़लक काफ़ी विस्तृत है।जीवन ,घर-परिवार और समाज के सरोकार उनकी ग़ज़लों को वो धरातल मुहैया कराते हैं जिस पर कलात्मक सौंदर्य के माध्यम से 'विवेक' साहब अपनी सुंदर रंगोली बनाते हैं। इनके चिंतन के दायरे में सामाजिक समस्याओं से जुड़े हुए प्रश्न सघन अनुभूति के साथ प्रकट होते हैं। जिन्हें वो ग़ज़ल के माध्यम से  ख़ूबसूरती के साथ अभिव्यक्त करते हैं।जब कोई विचार कलात्मक सौंदर्य के साथ अभिव्यक्त होता है तो निश्चित रूप से अभिभूत करता है।इस दृष्टि से 'विवेक' साहब की ग़ज़लें ध्यान आकृष्ट करती हैं।सहज आदर्शवादी और मानवीय संवेदनाओं से लबरेज़ चिन्तन ओंकार सिंह 'विवेक' जी की ग़ज़लों का मुख्य आधार है जो कहीं- कहीं नसीहत का रूप भी इख़्तियार कर लेता है।


 'विवेक' साहब जब समस्याओं की बात करते हैं तो उनके लहजे में तल्ख़ सच्चाई नज़र आती है। वास्तव में साहित्यकार का धर्म भी यही है कि वो समाज को सच्चाई से रूबरू कराए।यह 'विवेक' साहब का दूसरा शे'री मजमूआ' है।उनका पहला शे'री मजमूआ' "दर्द का एहसास" के नाम से वर्ष-2021 में मंज़र- ए-आम पर आ चुका है। मुझे उम्मीद है कि उनके लहजे में दिन ब दिन आने वाला निखार उनके सफ़र को इंफ़िरादियत की तरफ़ ले जाएगा।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित!


                                    --ओम प्रकाश 'नदीम' 

                                  5-D/25, वृन्दावन कॉलोनी 

                                   तेली बाग़, लखनऊ - 226029

                                        (उत्तर प्रदेश)


       धमाकेदार ग़ज़ल 🌹🌹👈👈

January 30, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की गणतंत्र दिवस पर काव्य गोष्ठी संपन्न


उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की कवि गोष्ठी संपन्न
*******************************************

76 वें गणतंत्र दिवस(26/01/2025) के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई के संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी के निवास पर एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी सुंदर रचनाएँ सुनाकर देर शाम तक समाँ बाँधे रखा।गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार जावेद रहीम द्वारा की गई।
गोष्ठी में रचना पाठ करते हुए सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने संवेदना शून्य होते जा रहे मानव को लक्ष्य करते हुए यह मार्मिक शेर पढ़ा :

  ज़ुल्म करके भी काँपता ही नहीं,
   आदमी, आदमी  रहा ही  नहीं।

सुधाकर सिंह परिहार ने अपनी सामयिक पंक्तियाँ पढ़ते हुए कहा --
मैं  तिरंगा  हूँ  कभी  कभी  व्यथित  होता  हूँ,
जब शहीद के पार्थिव शरीर पर लिपटकर रोता हूँ।

कवि पतराम सिंह ने जागरूकता का संदेश देते हुए कहा --


जागो भारत जागो,यह समय नहीं है सोने का,
दर्पण सा मुखड़ा चमका दो इस भारत देश सलोने का।

सभा के मंत्री राजवीर सिंह राज़ ने तरन्नुम में अपनी  रचना पढ़ी--
    गर्म रखते हो तुम मिज़ाज अपना,
     प्यार  से  हम  हैं  गुफ़्तगू  करते।
     
प्रदीप राजपूत माहिर ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी --

कभी झगड़ा करे है और कभी सट्टा लगाता है,
पिता की शान में बिगड़ैल इक बट्टा लगाता है।
सभा के संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने कहा  --

     एक उलझन नहीं रुख़सत होती,
        दूसरी   हाथ   पकड़  लेती   है।
        ज़ीस्त कहते हैं सभी लोग उसे,
        हमको लगता है इक पहेली है।
कवि सोहन लाल भारती ने कहा --
जगते राम सोते राम, मिलते राम हरदम राम।
पर मन में कोई नहीं समा पाया राम।
वरिष्ठ कवि शिव कुमार चन्दन ने कहा --
जन जन की ख़ुशहाली को महका रहता चन्दन वन है,
वीर शहीदों की धरती का कण कण लगता चन्दन है।
गोष्ठी में अलीगढ़ से एक अच्छे शायर इफ़राहीम अहमद हाशमी भी ऑनलाइन जुड़े। उन्होंने अपना कलाम कुछ यूं पेश किया --
मेरा इक दिल का सिक्का है जिसे मसरफ़ में लाता हूँ,
और अब इसके सिवा कश्कोल में सामाँ नहीं यारो।


गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जावेद रहीम ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यूं दी :
यह धुआं कहां से उठ रहा है,किसी चिंगारी से या फ़ितने से,
कुछ तो इसकी वजह होगी,ज़हरीली हवा से या ज़हर घुलने से।
गोष्ठी का संचालन राजवीर सिंह राज़ ने किया। अंत में संयोजक सुरेन्द्र अश्क  ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की।
प्रस्तुति : Onkar Singh 'Vivek' 


January 28, 2025

प्रख्यात ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र द्विज जी द्वारा ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा ' की समीक्षा

                                                  

आदरणीय द्विजेन्द्र द्विज जी द्वारा भेजी गई मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' की समीक्षा   

*********************************************

सार्थक चिंतन के विभिन्न रंगों की प्रस्तुति:

                    -- द्विजेंद्र द्विज 

ग़ज़ल के शे’र सड़क से संसद तक दोहे और चौपाई की तरह उद्धृत किए जाते हैं। यह तथ्य  ग़ज़ल विधा की अप्रतिम संप्रेषण संपन्नता और मारक क्षमता का परिचायक है।ग़ज़ल विधा के विस्तृत कैनवस पर हमारे समस्त जीवनानुभव उभर आते हैं।शायर अपनी अनुभूतियों को शे’र के दो मिसरों में अविस्मरणीय,उद्धरणीय और अपने  अलग अंदाज़ में  प्रस्तुत करता है।यह ख़ूबी ओंकार सिंह विवेक के प्रस्तुत संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' में भी है।'कुछ मीठा कुछ खारा' उनकी ग़ज़ल यात्रा का दूसरा पड़ाव है जबकि उनका पहला ग़ज़ल संग्रह 'दर्द का अहसास' वर्ष 2021 में प्रकाशित हो चुका है। 

श्री ओंकार सिंह विवेक को ग़ज़ल विधा के भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों की समझबूझ है,उनके शे’रों की कहन का एक अपना ही अंदाज़ है।यही नहीं ग़ज़ल के परिष्कार को लेकर उनका विद्यार्थी भाव भी सराहनीय है। 

प्रस्तुत  संकलन की तमाम ग़ज़लों को पढ़ लेने के बाद ओंकार जी का यह शे’र  बार-बार याद आएगा—

ज़ह्न में इक अजीब हलचल है,

शे’र  ऐसे   सुना   गया  कोई।

निःसंदेह इन ग़ज़लों को पढ़कर मन मस्तिष्क में मचने वाली अजीब हलचल और बेचैनी, इस संजीदा शायर के चिंतन की व्यापकता का  पता देती है। ओंकार सिंह विवेक अपने समय की चिंताओं और चुनौतियों को, जीवन के मीठे और खारेपन को उसकी समग्रता में अपने सजग चिंतन के विभिन्न रंगों में प्रस्तुत करते हैं।वे अपने जागृत विवेक,अनुभव और भाव सम्पन्नता के साथ,सहज,सरल और आमफ़हम भाषा में शे’र कहते हैं।

चुप्पियाँ अगर महत्वपूर्ण संदेश हैं तो साथ ही समय की माँग पर मुखर हो जाना भी अत्यंत आवश्यक है। शे’र–

ध्यान सभी का देखा ख़ुद पर तो जाना,

चुप रह कर भी कितना बोला जाता है।

हरदम तो ख़ामोशी ओढ़ नहीं  सकते,

यार कभी तो मुँह भी खोला जाता है।

उनके मुखर होने की यही आकस्मिकता,विवशता और 

आवश्यकता उनके शे’रों की प्रभावशाली और प्रशंसनीय प्रश्नवाचकता में ढलती है —

इंसानियत  का  दर्स  ही  जब  सबका अस्ल है,      

फिर क्यों  किसी भी धर्म को आख़िर बुरा कहें?

है  रहज़नों   से   उनका   यहाँ  राबिता-रसूख़,

तुम  फिर भी  कह  रहे  हो  उन्हें रहनुमा कहें?

ओंकार सिंह ‘विवेक’ मानते हैं कि सियासत और शराफ़त परस्पर विरोधी शब्द हैं। वे कहते हैं–

लुत्फ़  क्या  आएगा  शराफ़त  में,

आप  अब  आ  गए सियासत में।

जनापेक्षाओं को धत्ता बता कर  सियासतदाँ अपने हित में चोला और पाला बदलना जानता है।सियासत के पास  ख़रीदो-फ़रोख़्त का हथकंडा है, ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ राजनीतिक विवशता है—

बदला    रातों - रात   उन्होंने  पाला है ,

शायद  जल्द  इलेक्शन  आने  वाला है।

आप  सियासत-दाँ हैं, ख़ूब समझते  हैं,

बदला  कैसे  हर   दिन  चोला जाता है।

सियासत आम आदमी को विवेक शून्य बनाने पर तुली रहती है। सियासत की ज़मीन को उपजाऊ रहने के लिए घृणा और नफ़रत का उर्वरक चाहिए। यह पीड़ा ओंकार सिंह विवेक के शे’रों में इस तरह ढलती है —

इंसाँ  ही प्यासा हो  गया इंसाँ  के   ख़ून   का,

वहशत  नहीं   कहें  तो  इसे  और  क्या  कहें।

अम्नो-अमां  की  बातें  करने वालों  के,

हाथों   में   कैसे   ये   बरछी-भाले   हैं।

फलें-फूलें न क्यों नफ़रत  की  बेलें,

सियासत  खाद-पानी  दे  रही   है।

पूर्वाग्रहों के  अँधेरों के पक्षधर मानसिक रोगी ही तो हैं—

हिमायत वो  ही  करता है  त'अस्सुब के अँधेरों  की,

हमेशा  ज़ह्न   से    जो  आदमी   बीमार   होता  है।

सियासी हठधर्मिता,प्यार की धरती पर नफ़रत की बेलें उगाने  और नफ़रत के टीले फैलाने पर तुली हुई है। ये विष बेलें और घृणा के टीले आपसी सद्भाव और सौहार्द से ही ध्वस्त हो सकते हैं—-

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,

ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।

वन-संपदा को निरंतर निगलते जा रहे शहरीकरण के अजगर के आतंक पर ओंकार सिंह विवेक का मर्मस्पर्शी शेर -- 

          बारहा रोता है दिल ये सोचकर,

          वन कटेगा शहर के विस्तार में।

विवेक जी के शेरों में गेहूँ के दाने में घुन जैसी मन के तहख़ाने में बैठी चिंताएं हैं,दिल के वीराने में यादों के डेरे की रौनक़ भी है, झील सी नीली आँखों में चाहत के संसार की झलक भी है। सौदाई के स्वप्न जैसी ज़िंदगी में आस की सुनहरी धूप है तो मायूसी की धुंध भी है,स्वार्थी रिश्तों में मिली कड़वाहट है तो सुहानी यादों की मिठास भी है -- 

          उनकी याद ने दिल में क्या डेरा डाला,

           रौनक़ ही  रौनक़  है इस  वीराने  में।

            हमें झील-सी नीली आँखों में उनकी,

            लगा अच्छा चाहत का संसार पढ़ना।

'प्राण जाएँ पर वचन न जाई' की रीति अब पुरानी होती जा रही है,ऐसे में यह शेर -- 

          शुक्र समझो कि इस ज़माने में,

           क़ौल अपना निभा गया कोई।

आभासी दुनिया को,आज के समाज को अपने अंतर्मन को सजाने की चिंता कम और बाहरी दिखावे की धुन अधिक है -- 

           फ़िक्र नहीं है आज किसी को रूह सजाने की,

            सबको एक ही धुन है, जिस्म सजीले करने हैं।

औरों में मीन-मेख निकालने वालों के पास अपने चरित्र को पढ़ने की चिंता नहीं है -- 

    सदा करते रहते हो तनक़ीद सब पर,

    कभी आप अपना भी किरदार पढ़ना।

अपने श्रम से,अपने ख़ून पसीने से इतिहास रचने वाले श्रमिक की व्यथा  और  किसान की  पीड़ा, सदियों के अंतराल के के बाद भी जस की तस  है। श्री ओंकार सिंह विवेक का यह मार्मिक शे’र —

उसे करना ही पड़ता है हर इक दिन काम हफ़्ते में,

किसी मज़दूर की क़िस्मत में  कब इतवार होता है?

और अन्नदाता किसान की व्यथा—

दे  जो  सबको  अन्न  उगाकर,

उसकी  ही   रीती   थाली है।

आजकल भ्रष्टाचार  भी अपवाद नहीं रह गया है, नियम बन चुका है। नैतिक मूल्यों के विघटन की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है कि दूधिया पिता इस बात से खुश है कि बेटे ने भी दूध में पानी मिलाना सीख लिया है।ओंकार सिंह विवेक का शे’र—

दूधिया ख़ुश  है कि बेटे को भी अब, 

दूध  में   पानी  मिलाना  आ   गया।

आत्म सम्मान अथवा ख़ुद्दारी जैसी चीज़ को ताक़ पर रखकर जी हुज़ूरी करने वाले लोग दरबारों की शोभा बढ़ाते हैं, श्रेष्ठ पद पाते हैं जबकि सच्चे लोग निर्वासन का दंश झेलने को विवश हो जाते हैं। 

    झूठे   मंसब   पाते   हैं   दरबारों   में,

    सच्चों की क़िस्मत में देश निकाला है।

विवेक ‘जी -हुज़ूर’ दरबारियों को यूँ चेताते  हैं—

पड़ेगा  हाथ  बाँधे  ही   खड़े  होना   वहाँ  तुमको,

मेरे   भाई  सुनो!  दरबार   तो   दरबार   होता  है।  

सियासत का काम जुमले और नारे उछालना है ।असली समस्याओं को तो सियासत टालती भर है—

जुमले  और  नारे  ही  सिर्फ़ उछाले हैं,

मुद्दे   तो   हर   बार  उन्होंने  टाले   हैं।

जो समस्या अस्तित्व में ही नहीं है उसे काल्पनिक अस्तित्व देकर प्रस्तुत करना सियासत का आचरण है।जबकि शायर का आचरण सियासत के  इस आचरण से असहमति है,ओंकार सिंह विवेक पूछते हैं—

हम   कैसे  ठीक  आपका   ये   मशवरा  कहें,

जो   मुद्दआ  नहीं   है    उसे   मुद्दआ    कहें?

लोकतंत्र के अत्यंत महत्वपूर्ण स्तम्भ ‘अख़बार’ की ख़बरों पर उनका यह शेर भी समीचीन है–

कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते,

भरा  ऐसी  ही   ख़बरों  से   सदा अख़बार  होता  है।

सियासत की ज़हरीली मकड़ी  एक अदृश्य भय बुनती है ; परिणामस्वरूप—

रात को कह रहा है  दिन देखो,

ख़ौफ़ इतना दिखा गया कोई।

अम्न   कैसे   न  आए  दहशत  में,

हर   तरफ़  जंग  की  अलामत  है।

मुजरिमों  को   नहीं  है   डर  कोई,

ख़ौफ़  में  अब  फ़क़त अदालत है।

आँधियों की चुनौती के सामने दिए के जलते रहने के अज़्म के और भी बुलन्द होने’ का सुखद मंज़र—

और भी जलने  का उसमें  हौसला कुछ  बढ़ गया,

इक  दिये को आँधियों की  धमकियाँ अच्छी लगीं।

‘हवाओं से सामना’ एक अटल सत्य है, इस लिए चराग़ इस सत्य को कोई समस्या ही नहीं मानते—

मालूम   है    कि   होगा  हवाओं   से  सामना,

फिर  किस  लिए  चराग़  इसे  मसअला  कहें।

आसमाँ  का दंभ तोड़ने के लिए निरंतर पर तौले हुए  परिंदों का हौसला— 

गुमाँ   तोड़ेंगे  जल्दी    आसमाँ  का,

परिंदे     हौसला     हारे     नहीं    हैं।

पागल मौजों का  ग़ुरूर तोड़ कर साहिलों की ओर लौटती कश्तियों के सुहाने दृश्य  भी ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़लों में हैं—

तोड़कर  सारा  गुमां मग़रूर मौजों का 'विवेक',

साहिलों पर लौटती सब कश्तियां अच्छी लगीं।

जीवन पथ को चुनौतियों से भरपूर देखकर विवेक जी कहते हैं—

हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने  हैं,

हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।


अगर  कुछ   सरगिरानी  दे  रही है,

ख़ुशी   भी  ज़िंदगानी  दे  रही  है।


चलो  मस्ती   करें, ख़ुशियाँ  मनाएँ,

सदा  ये   ऋतु   सुहानी  दे  रही है।


एक और उद्धरणीय   शे’र –        

हो   गया    गुफ़्तगू   से   अंदाज़ा,

कौन  रहता  है  कैसी  सुहबत में।

ख़यालों की ऐसी उड़ान विवेक जी की ग़ज़लों को यूँ ही रवानी देती रहे! 

एक और ग़ज़ल संग्रह के लिए  शुभकामनाओं सहित,

–द्विजेन्द्र द्विज

13/160, 

निकट गवर्नमेंट आई. टी.आई. घर्मशाला,

लोअर बड़ोल ,दाड़ी-176057, हिमाचल प्रदेश 

(प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक)


शानदार कवि सम्मेलन 🌹🌹👈👈








          


        










     






       




       







    




                                                 










    



                                                         










     






       




       







        





     






        





     





January 25, 2025

ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार,2025 में हुआ 'कुछ मीठा कुछ खारा' का विमोचन

सादर प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

भारत भर के ग़ज़ल प्रेमियों का पसंदीदा कार्यक्रम 'ग़ज़ल कुंभ' 18-19 जनवरी,2025 को उत्तराखंड राज्य के पावन धाम हरिद्वार में अपनी पूरी भव्यता के साथ संपन्न हुआ।ग़ज़ल साधक दीक्षित दनकौरी तथा मोईन अख़्तर अंसारी साहब की उमदा काविशों के चलते ‘अंजुमन फ़रोगे उर्दू' दिल्ली द्वारा बसंत चौधरी फ़ाउंडेशन (नेपाल) के सौजन्य से आयोजित कराए गए इस 16 वें ग़ज़ल कुंभ में लगभग 200 ग़ज़लकारों द्वारा ग़ज़ल पाठ किया गया।

ग़ज़ल कुंभ कार्यक्रम में मुझे चौथी बार ग़ज़ल पाठ करने का अवसर मिला।इससे पहले दिल्ली,हरिद्वार,तथा मुंबई में आयोजित ग़ज़ल कुंभ कार्यक्रमों में गत वर्षों में मेरी उपस्थिति हो चुकी है।मेरे साहित्यकार साथियों राजवीर सिंह राज़,सुधाकर सिंह तथा प्रदीप माहिर जी ने भी इस कार्यक्रम में ग़ज़ल पाठ करके अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।ये लोग भी(सुधाकर सिंह जी को छोड़कर) पहले ग़ज़ल कुंभ में सहभागिता कर चुके हैं।
ग़ज़ल कुंभ के प्रतिष्ठित मंच पर आसीन वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा कई साहित्यकारों की काव्य पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' का विमोचन मशहूर शो'अरा दीक्षित दनकौरी जी,अम्बर खरबंदा जी,इरशाद अहमद शरर साहब,भूपेन्द्र सिंह होश साहब,एन मीम कौसर साहब,अशोक मिज़ाज बद्र साहब तथा अली अब्बास नौगांवी जी द्वारा किया गया।



मेरे ग़ज़लकार साथी राजवीर सिंह राज़ तथा प्रदीप माहिर जी भी इस विमोचन अवसर के साक्षी रहे।


इस बार रामपुर से दो और साथी जावेद रहीम तथा अशफ़ाक़ जैदी भी पहली बार ग़ज़ल कुंभ में सहभागिता करने पहुँचे।ये लोग भी ग़ज़ल कुंभ के आयोजन की शानदार व्यवस्था देखकर गदगद हो गए।
ग़ज़ल कुंभ में प्रतिवर्ष हिस्सेदारी का मक़सद इस प्रतिष्ठित मंच से ग़ज़ल पाठ करना ही नहीं होता बल्कि दूर-दराज़ से आए अन्य साहित्यकारों और शुभचिंतकों से मिलकर उनकी शख़्सियत से प्रेरणा लेकर अपना विकास करना भी होता है।इस बार भी कई अच्छे साहित्यकारों से ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में मिलना हुआ उनमें से एक हर दिल अज़ीज़ साहित्यकार मोहतरम ख़ुर्रम नूर साहब के साथ तस्वीर नीचे आप देख रहे हैं।

विगत 16 वर्षों से लगातार आयोजित होता आ रहा ग़ज़ल कुंभ अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला साहित्यिक उत्सव हो चुका है। हर ग़ज़लकार इसमें सम्मिलित होना चाहता है।यह इस आयोजन की सफलता और लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
ग़ज़ल कुंभ में ही फगवाड़ा,पंजाब के वरिष्ठ साहित्यकार साथी मनोज फगवाड़वी जी से बहुत आत्मीय मुलाक़ात रही।मनोज जी बहुत ही मस्त और मिलनसार व्यक्ति हैं।जब भी मिलते हैं ज़िंदादिली के साथ मिलते हैं।अक्सर ही साहित्यिक यात्राओं में रहते हैं।उन्होंने मुझे स्वयं द्वारा संपादित काव्य संग्रह 'डाल-डाल के पंछी' की प्रति भी भेंट की।
ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में सहभागिता के उपरांत ऋषिकेश भ्रमण पर
**********👇👇

   (ऋषिकेश में साथियों राजवीर सिंह राज़ तथा प्रदीप माहिर जी के साथ) 
ग़ज़ल कुंभ की मीठी यादें लेकर हम तीनों साथी ऋषिकेश की तरफ़ निकल गए।चौथे साथी सुधाकर सिंह जी को किसी अपरिहार्यता के कारण दिल्ली जाना पड़ा इसलिए वह हमारे साथ ऋषिकेश नहीं जा पाए।पूरे ऋषिकेश भ्रमण में उनकी कमी बहुत खली।ऋषिकेश के छोटे से सुंदर मार्केट में घूमे। हर हर गंगे कहते हुए माँ गंगा में डुबकी लगाई।एक दुकान में उत्तराखंडी टोपियाँ मन को भा गईं सो तीनों ने खरीदकर पहन लीं और लगे हाथों दुकानदार से फोटो भी खिंचवा ली।दोपहर हो चुका था।घूमते-घूमते भूख लग आना स्वाभाविक था।एक साफ़ सुथरा भोजनालय दिखाई दिया जहाँ आनंद के साथ भरपेट भोजन किया और वापस अपने शहर रामपुर की राह पकड़ी।
एक शायर के बहुत ही मशहूर शेर की सिर्फ़ पहली पंक्ति उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं :
       सैर कर दुनिया की ग़फ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
प्रस्तुति : Onkar Singh 'Vivek' 
 Poet,Content writer,Text blogger

मेरे ग़ज़ल संग्रह के विमोचन की ख़बर को स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा भरपूर स्थान दिया गया। इसके लिए मैं सम्मानित अख़बारों का हृदय से आभारी हूं।


January 16, 2025

मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी संपन्न



भारतीय संस्कृति तथा हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति को पुण्यकारी दिन के रूप में जाना जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तथा उनकी गति उत्तर दिशा की ओर हो जाती है और मौसम में परिवर्तन का आभास होने लगता है।हिंदू धर्म में इस दिन को पुण्य प्राप्ति, स्नान और दान का दिन माना जाता है।

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई द्वारा मकर संक्रांति के अवसर पर सभा के मंत्री राजवीर सिंह राज़ के निवास पर एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी सुंदर रचनाएँ सुनाकर देर रात तक समाँ बाँधे रखा।गोष्ठी की अध्यक्षता रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार शिवकुमार चंदन द्वारा की गई।

गोष्ठी में रचना पाठ करते हुए सभा की स्थानीय इकाई के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने अपना कलाम कुछ इस तरह पेश किया -- 


   दूर  से   देखो  पास  मत  आना,

   मुझको क़स्दन जता के बैठ गए।

सुधाकर सिंह ने अपनी मार्मिक अभिव्यक्ति में कहा -- 


    हम काश यह दीवार हटा पाते,

     जो कहा सुनी थी आपस की

     उसका सब रंज मिटा पाते।

सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने आज के इंसान के दोहरे चरित्र पर कटाक्ष करते हुए यह शेर पढ़ा -- 


     जो   मुखौटा   कहीं   उतर  जाए,

     आज का शख़्स ख़ुद से डर जाए।

उन्होंने मकर संक्रांति पर यह दोहा भी पढ़ा -- 

    समरसता  है बांटता, खिचड़ी  का  यह  पर्व।

    करें न क्यों संक्रांति पर,हम सब इतना गर्व।।

सभा के मंत्री राजवीर सिंह राज़ ने आसमान में घुमड़ती बदलियों का चित्रण कुछ इस तरह किया -- 


      नीर भरकर जब घुमड़ती हैं गगन में बदलियाँ,

      खेलती हैं बादलों में रक़्स करती बिजलियाँ।

सभा के उपाध्यक्ष प्रदीप राजपूत ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी -- 


       बेचैनी  साँसों   में  पल  पल ठीक  नहीं,

       इतनी भी इस दिल में हलचल ठीक नहीं।

काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे शिव कुमार चन्दन ने अपना   दोहा पढ़ा -- 


         गुड़ तिल के लड्डू रखें,घी खिचड़ी का दान।

          सत्य सनातन संस्कृति,करती पुण्य महान।।

गोष्ठी का संचालन प्रदीप माहिर ने किया। साहित्य सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने अंत में सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की।


उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी 👈👈


January 15, 2025

मकर संक्रांति के अवसर ब्राह्मण परिवार मिलन रामपुर का कार्यक्रम



कल दिनांक 14 जनवरी,2025 को अखिल भारतीय ब्राह्मण परिवार मिलन रामपुर द्वारा मकर संक्रांति के पावन पर्व पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। माया देवी धर्मशाला में आयोजित इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम हवन कारज संपन्न हुआ। सभा के पदाधिकारियों प्रवीण भांडा तथा सीताराम शर्मा सहित अनेक श्रद्धालुओं द्वारा हवन में आहुतियां डाली गईं।


हवन कराते समय पंडित श्री अतुल मिश्रा जी ने बताया कि मकर संक्रांति से सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करके उत्तरायण हो जाते हैं। धीरे- धीरे सूर्य का ताप बढ़ने लगता है तथा दिन बड़े एवं रातें छोटी होने लगती हैं।इस अवसर पर गुड- तिल के दान तथा खिचड़ी भोज के आयोजन से बहुत पुण्य प्राप्त होता है।


ब्राह्मण परिवार मिलन द्वारा इस अवसर पर एक सूक्ष्म कवि गोष्ठी का भी आयोजन कराया गया जिसमें स्थानीय कवियों ने अपनी समसामयिक रचनाएँ सुनाकर आमंत्रित श्रोताओं की ख़ूब तालियाँ बटोरीं।

मेरे द्वारा कार्यक्रम में प्रस्तुत कुछ दोहे --

      समरसता  है  बांटता, खिचड़ी का  यह पर्व।

      करें न क्यों संक्रांति पर,हम सब इतना गर्व।।

        माह जनवरी आ गया, ठंड हुई विकराल।

        ऊपर से करने लगा, सूरज भी हड़ताल।।

                      ©️ ओंकार सिंह विवेक 


कवि सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने कहा --

   दूर  से   देखो  पास  मत  आना,

   मुझको क़स्दन जता के बैठ गए।

विनोद कुमार शर्मा ने अपनी मार्मिक अभिव्यक्ति में कहा --

     नहीं बुझ पाएंगे ये आग के वन,

     बुझाना हो तो चिंगारी बुझा लो।   

राजवीर सिंह राज़ ने आसमान में घुमड़ती बदलियों का चित्रण कुछ इस तरह किया -- 

      नीर भरकर जब घुमड़ती हैं गगन में बदलियाँ,

      खेलती हैं बादलों में रक़्स करती बिजलियाँ।

प्रदीप राजपूत ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी --

       बेचैनी  साँसों   में  पल  पल ठीक  नहीं,

       इतनी भी इस दिल में हलचल ठीक नहीं।

काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे शिव कुमार चन्दन ने अपना   दोहा पढ़ा -- 

         गुड़ तिल के लड्डू रखें,घी खिचड़ी का दान।

          सत्य सनातन संस्कृति,करती पुण्य महान।।


कार्यक्रम में ब्राह्मण परिवार मिलन परिवार द्वारा निर्धन व्यक्तियों को कंबल वितरण भी किया गया। अंत में सभी ने खिचड़ी भोज का आनंद लिया।सभा के सचिव प्रवीण भांडा द्वारा सबका आभार व्यक्त किया गया।

    प्रस्तुति : Poet Onkar Singh 'Vivek' 



January 13, 2025

ग़ज़ल कुंभ,2025 -- प्रस्थान से पूर्व

सादर प्रणाम मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏

ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी जी के संयोजन में 16 वाँ ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में 18-19 जनवरी,2025 को आयोजित होने जा रहा है।पता ही नहीं चला कि कब साल गुज़र गया और ग़ज़ल कुंभ का अगला आयोजन आ पहुँचा।लगता है जैसे चंद दिनों पहले की ही बात हो जब हम तीन साथी ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई में शिरकत करने गए थे जबकि इस बात को एक साल गुज़र चुका है।

इस आयोजन की लोकप्रियता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल भर ग़ज़लकार/ग़ज़ल प्रेमी इस आयोजन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। श्री दीक्षित दनकौरी जी अपनी समर्पित टीम के साथ मिलकर प्रतिवर्ष बहुत ही व्यवस्थित/अनुशासित ढंग से भव्य ग़ज़ल कुंभ का आयोजन कराते हैं।इस कार्यक्रम में बहुत से प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों के साथ-साथ ऐसे उभरते हुए रचनाकार भी सहभागिता करते हैं जिन्हें अपने सृजन को निखारने और अच्छा मंच पाने की ललक होती है।

इस बार हरिद्वार में आयोजित ग़ज़ल कुंभ के मुख्य अतिथि नेपाल के वरिष्ठ कवि,लेखक तथा समाज सेवी श्री बसंत चौधरी जी होंगे। विशिष्ट आतिथ्य प्रोफेसर (डॉ) उषा उपाध्याय, वरिष्ठ कवयित्री, लेखिका, शिक्षाविद गुजरात का रहेगा। इनके अतिरिक्त निम्न साहित्य मनीषियों का सानिध्य भी रहेगा :

      डॉक्टर मधुप मेहता IFS

 जनाब इम्तियाज़ वफ़ा,अध्यक्ष उर्दू अकादमी,काठमांडू 

 श्री शैलेन्द्र जैन अप्रिय, सह संपादक,अमर भारती

      श्री राजेन्द्र शलभ,सुकवि,नेपाल

      डॉक्टर श्वेता दीप्ति, सुकवयित्री,नेपाल    

मैंने वर्ष 2017 के ग़ज़ल कुंभ दिल्ली में पहली बार शिरकत की थी। इसके बाद वर्ष,2023 में ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में तथा वर्ष,2024 में ग़ज़ल कुंभ मुंबई में भी सहभागिता की थी।इस बार पुनः ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में अपने साथियो सुरेंद्र अश्क रामपुरी, राजवीर सिंह राज़, प्रदीप माहिर तथा सुधाकर सिंह के साथ सहभागिता का अवसर प्राप्त हो रहा है।इस बार का अवसर मेरे लिए और ख़ास हो जाता है क्योंकि इस बार वहाँ मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' का विमोचन भी प्रस्तावित है।

रामपुर से से इस बार दो और साहित्यकार अशफ़ाक़ रामपुरी तथा जावेद रहीम भी इस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले हैं।

श्री दनकौरी जी के पास ऐसे बडे़ साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न कराने का लंबा अनुभव है। उनके पास समर्पित साहित्यकारों और व्यवस्था देखने वालों की एक पूरी टीम होती है जो बहुत मुस्तैदी के साथ अपने काम को अंजाम देती हैं।इस बार की उनकी टीम के कुछ प्रमुख नाम हैं सीमा सिकंदर जी, महव जबलपुरी जी,शैलेश अग्रवाल जी, अलका शरर जी तथा अली अब्बास नौगांवी जी आदि।धन्य हैं वे लोग जो इस साहित्यिक अनुष्ठान में सम्मिलित होते हैं और अनुशासित ढंग से इस दो दिवसीय कार्यक्रम को गरिमा के साथ पूर्ण कराने में अपना सहयोग प्रदान करते हैं।ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ़ रचना पाठ करना ही साहित्यकारों का मक़सद नहीं होता बल्कि ऐसे अवसरों पर दूसरे लोगों से मिलकर उनका हालचाल जानना तथा विभिन्न विषयों पर अनौपचारिक परिवेश में वार्तालाप/संवाद करके अपने चिंतन को निखारना भी एक उद्देश्य होता है। 

मैं दीक्षित दनकौरी जी को मुझे ग़ज़ल कुंभ में आमंत्रित करने हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूं और कामना करता हूं कि वे स्वस्थ्य और मस्त रहते हुए प्रति वर्ष यों ही इस प्रकार के साहित्यक यज्ञों का आयोजन कराते रहें।

प्रस्तुतकर्ता : ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक 


      ग़ज़ल कुंभ की पुरानी यादें 🌹🌹👈👈





January 10, 2025

विश्व हिन्दी दिवस पर

मित्रो सादर प्रणाम 🙏 
आज प्रस्तुत है विश्व हिन्दी दिवस पर मेरा यह गीत 

गीत : अपनी हिन्दी 
***************

   ---- @ओंकार सिंह विवेक                

🌷

दुनिया में  भारत  के  गौरव,मान और सम्मान की,

आओ बात करें हम अपनी, हिन्दी के यशगान की।

जय अपनी हिन्दी ,जय प्यारी हिन्दी ------------

🌷

राष्ट्र संघ-से  बड़े  मंच  पर,अपना सीना तानकर,

हिन्दी  में भाषण देना  है ,ऐसा  मन में ठानकर।

रक्षा अटल बिहारी जी ने, की हिन्दी के मान की

आओ बात करें---------------

जय अपनी हिन्दी,जय प्यारी हिन्दी-----------

🌷

परिचित  होने इस अलबेले,अनुपम हिन्दुस्तान से,

आज  विदेशी सीख रहे हैं, हिन्दी भाषा  शान से।

बात हमारे लिए साथियो, है कितने अभिमान की

आओ बात करें-----------------

जय अपनी हिन्दी ,जय प्यारी हिन्दी -----------

🌷

आज नहीं  हिन्दी  का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,

अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।

सोचो क्या यह बात नहीं है , हिन्दी के अपमान की

आओ बात करें-------------------

जय अपनी हिन्दी ,जय प्यारी हिन्दी ------------

🌷

अपने   घर  में  हिन्दी भाषा, कभी  नहीं  लाचार हो,

इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।

बच  पाएगी  तभी  विरासत, सूर  और रसखान की

आओ बात करें---------------------

जय अपनी हिन्दी,जय प्यारी हिन्दी ---- ------

🌷 @------ओंकार सिंह विवेक


विश्व हिन्दी दिवस विशेष 🌹🌹👈👈





January 9, 2025

दोस्तो नई ग़ज़ल के साथ हाज़िरी

लीजिए पेश है दोस्तो ताज़ा ग़ज़ल 
***************************

                                          

          ख़ूब   देकर   ख़बर  गया   मौसम,

           ख़ौफ़ ज़हनों  में भर  गया मौसम।


          लोग मिलते थे बिन ग़रज़  के यहाँ,

          वो तो  कब का गुज़र  गया मौसम।


          मेह  बरसाके   ख़ुश्क  फ़सलों  पर,

          मोतियों-सा   बिखर  गया   मौसम।


          आह   निकली    है   अन्नदाता  की,

          हाय ! क्या ज़ुल्म  कर गया  मौसम।


         की    गई    छेड़-छाड़    क़ुदरत   से,

         यूँ   ही  थोड़ी   बिफर   गया  मौसम।


         खिल उठा दिल, जब उनकी यादों का,

         सहने-दिल   में   उतर   गया  मौसम।


         देखिए     तो    'विवेक' !  घाटी    के,

         हुस्न  पर   जादू  कर   गया   मौसम।

              ©️ ओंकार सिंह विवेक 



January 8, 2025

मानव-स्वास्थ्य


             मानव-स्वास्थ्य 

             *************

जब हम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो मन में प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य का भाव ही उत्पन्न होता है।स्वास्थ्य शब्द का प्रसंग आने या चर्चा होने पर हम किसी व्यक्ति के शरीर की संरचना या उसके मोटे अथवा पतले होने की दशा तक ही सीमित हो जाते हैं।वास्तव में स्वास्थ्य शब्द अपने आप में बहुत व्यापकता लिए हुए है।व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के दो पहलू होते हैं-- पहला शारीरिक स्वास्थ्य और दूसरा मानसिक तथा आत्मिक स्वास्थ्य।किसी व्यक्ति को स्वस्थ तभी कहा जा सकता है जब वह व्यक्ति भौतिक शरीर से स्वस्थ होने के साथ ही मानसिक और आत्मिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ हो। यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ है परन्तु मानसिक रूप से बीमार है तो हम उसे स्वस्थ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रख सकते।इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति मानसिक स्तर पर सक्षम हो परन्तु  शारीरिक दृष्टि से कमज़ोर हो  तो भी हम उसे पूरी तरह  स्वस्थ नहीं कह सकते |

व्यक्ति को अपने स्थूल शरीर को स्वस्थ  रखने के लिए अच्छे  खान-पान ,व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका  शरीर दुर्बल हो जायेगा और उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी शिथिल पड़ जाएगी।परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्त होकर अनेक व्याधियों का शिकार हो जाएगा।इस अवस्था से बचने के लिए उसे अपने शरीर को चलाने के लिए अपनी डाइट पर ध्यान देना होगा।शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सभी मौसमी फल, सब्ज़ियां, दूध,घी या जो भी प्रकृति ने  हमें सुपाच्य  खाद्य  उपलब्ध  कराया है उसका सेवन करना चाहिए एवं किसी भी रोग से ग्रस्त होने की दशा में चिकित्सीय  परामर्श लेना चाहिए।


व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिए स्थूल शरीर के साथ-साथ अपने आत्मिक स्वास्थ्य की चिंता करना भी परम आवश्यक है।यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से बलशाली है परन्तु उसकी आत्मा और मन बीमार और कमज़ोर हैं तो भी व्यक्ति का समग्र विकास संभव नहीं है। अत :व्यक्ति के लिए अपने  तन के स्वास्थ्य के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य  की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है। जिस तरह स्थूल  शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे  स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना और अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है।जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की ख़ुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की ख़ुराक है।


मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सदैव सकारात्मक सोच,सत्संग् और अच्छे साहित्य को पढ़ते रहना अति आवश्यक है।अत: यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होगा तभी उसका चारित्रिक विकास संभव है :

            तन  तेरा  मज़बूत  हो, मन भी  हो  बलवान।

           अपने इस व्यक्तित्व को,सफल तभी तू मान।।

                                   ©️ ओंकार सिंह विवेक 



दो पहलू सेहत के 🌹🌹🌺🌺👈👈

January 6, 2025

हाय रे सर्दी !!!

मित्रो प्रणाम 🙏🙏 


इस हाड़ कंपाती ठंड में लीजिए प्रस्तुत है एक कुंडलिया छंद :

कुंडलिया

*******

        ----ओंकार सिंह विवेक

सर्दी  से  यह  ज़िंदगी , जंग  रही   है   हार।

हे भगवन!अब धूप का,खोलो थोड़ा  द्वार।।

खोलो   थोड़ा   द्वार, ठिठुरते   हैं  नर-नारी।

जाने  कैसी   ठंड , जमी  हैं  नदियाँ   सारी।

बैठे  हैं  सब   लोग ,पहन  कर   ऊनी  वर्दी।

फिर भी रही न छोड़,बदन को निष्ठुर सर्दी।।

           ---ओंकार सिंह विवेक


   (चित्र : गूगल से साभार) 


धमाका ग़ज़ल का 🌺🌺👈👈


January 2, 2025

कुछ दोहे घातक सर्दी के नाम!!!

देर से ही सही, कड़क सर्दी का एहसास शुरू हो गया है। जिसे ख़ून जमा देने वाली ठंड कहते हैं वह उत्तर भारत में धीरे-धीरे अपना रौद्र रूप दिखा रही है। अपना और अपनों का ख़ास ख़याल रखते हुए मौसम का आनंद लेते रहें।
लीजिए प्रस्तुत हैं मौसम के अनुसार मेरे कुछ दोहे :

सर्दी वाले दोहे 
***********

माह जनवरी आ   गया,ठंड  हुई   विकराल।

ऊपर  से  करने  लगा,सूरज  भी  हड़ताल।।

🌹🌹

बोला आँख तरेरकर, सुलगा  हुआ  अलाव।

और  कहीं  ऐ ठंड तू, दिखलाना  यह ताव।।

🌹🌹

खाँसी और ज़ुकाम  का,करके काम तमाम।

अदरक वाली  चाय  ने, ख़ूब कमाया नाम।।

🌹🌹

कल कुहरे का देखकर,दिन-भर  घातक  रूप।

कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।

🌹🌹

                            ©️ ओंकार सिंह विवेक 



Featured Post

सामाजिक सरोकारों की शायरी

कवि/शायर अपने आसपास जो देखता और महसूस करता है उसे ही अपने चिंतन की उड़ान और शिल्प कौशल के माध्यम से कविता या शायरी में ढालकर प्र...