भारत भर के ग़ज़ल प्रेमियों का पसंदीदा कार्यक्रम 'ग़ज़ल कुंभ' 18-19 जनवरी,2025 को उत्तराखंड राज्य के पावन धाम हरिद्वार में अपनी पूरी भव्यता के साथ संपन्न हुआ।ग़ज़ल साधक दीक्षित दनकौरी तथा मोईन अख़्तर अंसारी साहब की उमदा काविशों के चलते ‘अंजुमन फ़रोगे उर्दू' दिल्ली द्वारा बसंत चौधरी फ़ाउंडेशन (नेपाल) के सौजन्य से आयोजित कराए गए इस 16 वें ग़ज़ल कुंभ में लगभग 200 ग़ज़लकारों द्वारा ग़ज़ल पाठ किया गया।
ग़ज़ल कुंभ कार्यक्रम में मुझे चौथी बार ग़ज़ल पाठ करने का अवसर मिला।इससे पहले दिल्ली,हरिद्वार,तथा मुंबई में आयोजित ग़ज़ल कुंभ कार्यक्रमों में गत वर्षों में मेरी उपस्थिति हो चुकी है।मेरे साहित्यकार साथियों राजवीर सिंह राज़,सुधाकर सिंह तथा प्रदीप माहिर जी ने भी इस कार्यक्रम में ग़ज़ल पाठ करके अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।ये लोग भी(सुधाकर सिंह जी को छोड़कर) पहले ग़ज़ल कुंभ में सहभागिता कर चुके हैं।
ग़ज़ल कुंभ के प्रतिष्ठित मंच पर आसीन वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा कई साहित्यकारों की काव्य पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' का विमोचन मशहूर शो'अरा दीक्षित दनकौरी जी,अम्बर खरबंदा जी,इरशाद अहमद शरर साहब,भूपेन्द्र सिंह होश साहब,एन मीम कौसर साहब,अशोक मिज़ाज बद्र साहब तथा अली अब्बास नौगांवी जी द्वारा किया गया।
इस बार रामपुर से दो और साथी जावेद रहीम तथा अशफ़ाक़ जैदी भी पहली बार ग़ज़ल कुंभ में सहभागिता करने पहुँचे।ये लोग भी ग़ज़ल कुंभ के आयोजन की शानदार व्यवस्था देखकर गदगद हो गए।
ग़ज़ल कुंभ में प्रतिवर्ष हिस्सेदारी का मक़सद इस प्रतिष्ठित मंच से ग़ज़ल पाठ करना ही नहीं होता बल्कि दूर-दराज़ से आए अन्य साहित्यकारों और शुभचिंतकों से मिलकर उनकी शख़्सियत से प्रेरणा लेकर अपना विकास करना भी होता है।इस बार भी कई अच्छे साहित्यकारों से ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में मिलना हुआ उनमें से एक हर दिल अज़ीज़ साहित्यकार मोहतरम ख़ुर्रम नूर साहब के साथ तस्वीर नीचे आप देख रहे हैं।विगत 16 वर्षों से लगातार आयोजित होता आ रहा ग़ज़ल कुंभ अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला साहित्यिक उत्सव हो चुका है। हर ग़ज़लकार इसमें सम्मिलित होना चाहता है।यह इस आयोजन की सफलता और लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
ग़ज़ल कुंभ में ही फगवाड़ा,पंजाब के वरिष्ठ साहित्यकार साथी मनोज फगवाड़वी जी से बहुत आत्मीय मुलाक़ात रही।मनोज जी बहुत ही मस्त और मिलनसार व्यक्ति हैं।जब भी मिलते हैं ज़िंदादिली के साथ मिलते हैं।अक्सर ही साहित्यिक यात्राओं में रहते हैं।उन्होंने मुझे स्वयं द्वारा संपादित काव्य संग्रह 'डाल-डाल के पंछी' की प्रति भी भेंट की।
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ग़ज़ल कुंभ की मीठी यादें लेकर हम तीनों साथी ऋषिकेश की तरफ़ निकल गए।चौथे साथी सुधाकर सिंह जी को किसी अपरिहार्यता के कारण दिल्ली जाना पड़ा इसलिए वह हमारे साथ ऋषिकेश नहीं जा पाए।पूरे ऋषिकेश भ्रमण में उनकी कमी बहुत खली।ऋषिकेश के छोटे से सुंदर मार्केट में घूमे। हर हर गंगे कहते हुए माँ गंगा में डुबकी लगाई।एक दुकान में उत्तराखंडी टोपियाँ मन को भा गईं सो तीनों ने खरीदकर पहन लीं और लगे हाथों दुकानदार से फोटो भी खिंचवा ली।दोपहर हो चुका था।घूमते-घूमते भूख लग आना स्वाभाविक था।एक साफ़ सुथरा भोजनालय दिखाई दिया जहाँ आनंद के साथ भरपेट भोजन किया और वापस अपने शहर रामपुर की राह पकड़ी।
एक शायर के बहुत ही मशहूर शेर की सिर्फ़ पहली पंक्ति उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं :
सैर कर दुनिया की ग़फ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
प्रस्तुति : Onkar Singh 'Vivek'
Poet,Content writer,Text blogger
मेरे ग़ज़ल संग्रह के विमोचन की ख़बर को स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा भरपूर स्थान दिया गया। इसके लिए मैं सम्मानित अख़बारों का हृदय से आभारी हूं।
बहुत बहुत बधाई इस अनुपम उपलब्धि हेतु
ReplyDeleteअतिशय आभार आदरणीया 🙏
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteThanks
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