January 30, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की गणतंत्र दिवस पर काव्य गोष्ठी संपन्न


उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की कवि गोष्ठी संपन्न
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76 वें गणतंत्र दिवस(26/01/2025) के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई के संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी के निवास पर एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी सुंदर रचनाएँ सुनाकर देर शाम तक समाँ बाँधे रखा।गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार जावेद रहीम द्वारा की गई।
गोष्ठी में रचना पाठ करते हुए सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने संवेदना शून्य होते जा रहे मानव को लक्ष्य करते हुए यह मार्मिक शेर पढ़ा :

  ज़ुल्म करके भी काँपता ही नहीं,
   आदमी, आदमी  रहा ही  नहीं।

सुधाकर सिंह परिहार ने अपनी सामयिक पंक्तियाँ पढ़ते हुए कहा --
मैं  तिरंगा  हूँ  कभी  कभी  व्यथित  होता  हूँ,
जब शहीद के पार्थिव शरीर पर लिपटकर रोता हूँ।

कवि पतराम सिंह ने जागरूकता का संदेश देते हुए कहा --


जागो भारत जागो,यह समय नहीं है सोने का,
दर्पण सा मुखड़ा चमका दो इस भारत देश सलोने का।

सभा के मंत्री राजवीर सिंह राज़ ने तरन्नुम में अपनी  रचना पढ़ी--
    गर्म रखते हो तुम मिज़ाज अपना,
     प्यार  से  हम  हैं  गुफ़्तगू  करते।
     
प्रदीप राजपूत माहिर ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी --

कभी झगड़ा करे है और कभी सट्टा लगाता है,
पिता की शान में बिगड़ैल इक बट्टा लगाता है।
सभा के संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने कहा  --

     एक उलझन नहीं रुख़सत होती,
        दूसरी   हाथ   पकड़  लेती   है।
        ज़ीस्त कहते हैं सभी लोग उसे,
        हमको लगता है इक पहेली है।
कवि सोहन लाल भारती ने कहा --
जगते राम सोते राम, मिलते राम हरदम राम।
पर मन में कोई नहीं समा पाया राम।
वरिष्ठ कवि शिव कुमार चन्दन ने कहा --
जन जन की ख़ुशहाली को महका रहता चन्दन वन है,
वीर शहीदों की धरती का कण कण लगता चन्दन है।
गोष्ठी में अलीगढ़ से एक अच्छे शायर इफ़राहीम अहमद हाशमी भी ऑनलाइन जुड़े। उन्होंने अपना कलाम कुछ यूं पेश किया --
मेरा इक दिल का सिक्का है जिसे मसरफ़ में लाता हूँ,
और अब इसके सिवा कश्कोल में सामाँ नहीं यारो।


गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जावेद रहीम ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यूं दी :
यह धुआं कहां से उठ रहा है,किसी चिंगारी से या फ़ितने से,
कुछ तो इसकी वजह होगी,ज़हरीली हवा से या ज़हर घुलने से।
गोष्ठी का संचालन राजवीर सिंह राज़ ने किया। अंत में संयोजक सुरेन्द्र अश्क  ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की।
प्रस्तुति : Onkar Singh 'Vivek' 


2 comments:

  1. ज़ुल्म करके भी काँपता ही नहीं,
    आदमी, आदमी रहा ही नहीं।
    उम्दा शायरी !

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    Replies
    1. अतिशय आभार आदरणीया।

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