सहज संवेदनाओं की ग़ज़लें
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-- ओम प्रकाश 'नदीम'
ओंकार सिंह 'विवेक' जी से मैरी मुलाक़ात वर्ष 1989-90 के दौरान हुई थी जब मैं उरई से स्थानांतरित होकर रामपुर गया था। वह इब्तिदाई दौर था। 'विवेक' साहब में सीखने की शुरु से ही ज़बरदस्त लगन थी। छोटी-छोटी गोष्ठियों में भी हम लोग शरीक होते थे। साहित्यिक कार्यक्रमों में कई बार हम लोगों का आना- जाना साथ ही होता था। बेहद सरल,विनम्र और सद्भावपूर्ण शख़्सियत के मालिक हैं 'विवेक' साहब। पहली ही मुलाक़ात में प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। इनके बारे मुख़्तसर- सी टिप्पणी मैंने इसलिए की है ताकि उनकी शायरी की कहन को आसानी से समझा जा सके। मैं उर्दू और हिन्दी ग़ज़ल में ख़ास फ़र्क़ नहीं देखता। बहुत सी हिन्दी ग़ज़लें ऐसी हैं कि अगर उन्हें उर्दू भाषा में लिख दिया जाए तो वे उर्दू की लगने लगेंगी। कई उर्दू की ग़ज़लों के साथ भी ऐसा ही है। ऐसा इसलिए है कि तकनीकी नज़रिए से देखें तो हिन्दी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएँ नहीं हैं क्योंकि दोनों भाषाओं का व्याकरण लगभग एक जैसा ही है। दोनों में केवल लिपि और शब्दावली का अंतर है बल्कि अब तो दोनों की शब्दावली भी हिन्दुस्तानी है। ओंकार सिंह 'विवेक', भले ही ख़ुद को हिन्दी का ग़ज़लकार कहते हों लेकिन उनकी ग़ज़लों में उर्दू के बहुत स्तरीय और शुद्ध साहित्यिक शब्दों का काफ़ी इस्तेमाल हुआ है। भाषा को लेकर वो किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं और शायद इसीलिए उनकी ग़ज़लें हिन्दी-उर्दू के विवाद से परे हिन्दुस्तानी ग़ज़लें कही जा सकती हैं।हिन्दी के बहुत से ग़ज़लकार पूर्वाग्रह या ला-इल्मी की वज्ह से ग़ज़ल के व्याकरण पक्ष के प्रति बहुत गंभीर नज़र नहीं आते।
ओंकार सिंह 'विवेक' साहब ने पूरी कोशिश की है कि ग़ज़ल का शिल्प/व्याकरण पक्ष कहीं से कमज़ोर न पड़ने पाए। इसमें वो सफल भी रहे हैं। 'विवेक' जी की ग़ज़लों में कथ्य पक्ष का फ़लक काफ़ी विस्तृत है।जीवन ,घर-परिवार और समाज के सरोकार उनकी ग़ज़लों को वो धरातल मुहैया कराते हैं जिस पर कलात्मक सौंदर्य के माध्यम से 'विवेक' साहब अपनी सुंदर रंगोली बनाते हैं। इनके चिंतन के दायरे में सामाजिक समस्याओं से जुड़े हुए प्रश्न सघन अनुभूति के साथ प्रकट होते हैं। जिन्हें वो ग़ज़ल के माध्यम से ख़ूबसूरती के साथ अभिव्यक्त करते हैं।जब कोई विचार कलात्मक सौंदर्य के साथ अभिव्यक्त होता है तो निश्चित रूप से अभिभूत करता है।इस दृष्टि से 'विवेक' साहब की ग़ज़लें ध्यान आकृष्ट करती हैं।सहज आदर्शवादी और मानवीय संवेदनाओं से लबरेज़ चिन्तन ओंकार सिंह 'विवेक' जी की ग़ज़लों का मुख्य आधार है जो कहीं- कहीं नसीहत का रूप भी इख़्तियार कर लेता है।
'विवेक' साहब जब समस्याओं की बात करते हैं तो उनके लहजे में तल्ख़ सच्चाई नज़र आती है। वास्तव में साहित्यकार का धर्म भी यही है कि वो समाज को सच्चाई से रूबरू कराए।यह 'विवेक' साहब का दूसरा शे'री मजमूआ' है।उनका पहला शे'री मजमूआ' "दर्द का एहसास" के नाम से वर्ष-2021 में मंज़र- ए-आम पर आ चुका है। मुझे उम्मीद है कि उनके लहजे में दिन ब दिन आने वाला निखार उनके सफ़र को इंफ़िरादियत की तरफ़ ले जाएगा।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित!
--ओम प्रकाश 'नदीम'
5-D/25, वृन्दावन कॉलोनी
तेली बाग़, लखनऊ - 226029
(उत्तर प्रदेश)
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