May 27, 2024
चिंता में घुलने लगे, बाबू जी दिन-रात
May 16, 2024
नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!
May 9, 2024
बात ग़ज़लों और दोहों की
May 7, 2024
आज फिर एक नई ग़ज़ल
May 1, 2024
मज़दूर दिवस
April 28, 2024
ग़ज़ल/कविता/काव्य के बहाने
सभी साहित्य मनीषियों को सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏*******************************************
आज फिर विधा विशेष (ग़ज़ल) के बहाने आपसे से संवाद की इच्छा हुई।ग़ज़ल को सिंफ़-ए-नाज़ुक यों ही नहीं कहा जाता है।
दरअस्ल यह शब्दों का बहुत नाज़ुक बर्ताव चाहती है।कथ्य को दो मिसरों में पिरोने के लिए शब्दों का बहुत कोमलता से चयन करना पड़ता है। ग़ज़ल सपाट बयानी से बचने और कहन में चमत्कार पैदा करने के लिए बहुत मेहनत चाहती है।प्रसिद्ध ग़ज़लकार आदरणीय अशोक रावत जी के शब्दों में " व्यक्ति को यदि बहर और क़ाफ़िया-रदीफ़ की जानकारी हो भी जाए तो भी ग़ज़ल की कहन को दुरुस्त करने में जीवन निकल जाता है।"
अत: ग़ज़ल कहने वाले नए साथियो से अनुरोध है कि ग़ज़ल के शिल्प आदि को लेकर किताबों अथवा नेट पर उपलब्ध सामग्री का पहले गंभीरता से अध्ययन करें।विधा विशेष के basics को समझें।वरिष्ठ और मंझे हुए साहित्यकारों के सृजन को पढ़ें उस पर मनन करें और फिर ग़ज़ल या अपनी पसंद की किसी भी विधा में सृजन का प्रयास/अभ्यास करें,निश्चित ही सफल होंगे।
अच्छे शे'र/अशआर कहना कितना मुश्किल(असंभव नहीं)काम है ---,आजकल मंचों पर शा'यरी के नाम पर कुछ लोगों द्वारा (सबके द्वारा नहीं) क्या परोसा जा रहा है आदि विषयों पर अक्सर मन- मस्तिष्क में मंथन चलता रहता है।
इन्हीं बातों को लेकर अलग-अलग समय पर अलग-अलग ग़ज़लों में मुझसे कई शे'र (मुतफ़र्रिक़ अशआर)हुए हैं जो प्रसंगवश आपके साथ साझा कर रहा हूं :
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ख़ूँ जिगर का जलाए बिना कुछ,
रंग शे'रों में आना नहीं है।
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शे'र नहीं होते हफ़्तों तक,
ऐसा भी अक्सर होता है।
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जारी रक्खो मश्क़ 'विवेक',
रंग सुख़न में आएगा।
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दोस्त!कभी तो बरसों भी लग जाते हैं,
दो मिसरों को सच्चा शे'र बनाने में।
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ज़ेहन में इक अजीब हलचल है,
शे'र ऐसे सुना गया कोई।
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ख़ुश हैं लोग लतीफों से,
अब क्या शे'र सुनाने हैं।
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मंच पर चुटकुले और पैरोडियाँ,
आजकल बस यही शा'यरी रह गई।
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सुनाते रहे मंच से बस लतीफ़े,
न आए वो आख़िर तलक शा'यरी पर।©
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
April 23, 2024
साहित्यिक सरगर्मियां
April 11, 2024
बात सोहार्द और सद्भावना की
April 8, 2024
नव संवत्सर
March 29, 2024
सत्याविहार,फेज -2 रामपुर (उoप्रo) में शानदार होली-उत्सव
March 23, 2024
होली के नव रंग : कुछ दोहों के संग
होली : कुछ दोहे
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महँगाई की मार से, टूट गई हर आस।
निर्धन की इस बार भी, होली रही उदास।।
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आओ मिलकर आज तो,कर लें कुछ हुडदंग।
मुस्काकर कहने लगे, हमसे सारे रंग।।
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जाने उनके नाम पर, होती है क्यों जंग।
उजला केसरिया हरा ,हैं सब प्यारे रंग।।
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बच्चे आँगन में खड़े, रंग रहे हैं घोल।
बजा रहे हैं भागमल, ढम-ढम अपना ढोल।।
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कर में पिचकारी लिए, पीकर थोड़ी भंग।
देवर जी डारन चले, भौजाई पर रंग।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
March 18, 2024
होली है भाई होली है!!!(उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की होली के अवसर पर काव्य गोष्ठी/निशस्त )
होली के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई की शानदार कवि गोष्ठी/निशस्त
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मन फाग गाने को आतुर है,रंगों की धनक सबको आकर्षित कर रही है।गुजियों और ऐसे ही तमाम पकवानों की सुगंध आनी प्रारंभ हो गई है।आशय यह है कि होली का ख़ुमार सर चढ़ने लगा है।होली की इस बढ़ती ख़ुमारी के चलते कल दिनांक 17 मार्च,2024 को रामपुर के होटल कॉफी कॉर्नर में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई द्वारा एक शानदार काव्य गोष्ठी/निशस्त का आयोजन किया गया।
गोष्ठी के अध्यक्ष(स्थानीय सभा के संरक्षक)अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर ताहिर फ़राज़ साहब ने तग़ज़्ज़ुल से भरपूर कलाम पेश करते हुए कहा :
उतरता है जो आँखों से तुम्हारे ग़म का पैराहन,
सहर को गुल पहनते हैँ,वही शबनम का पैराहन।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध शायर नईम नज्मी जी ने अपनी फ़िक्र के गुलशन के नायाब फूल/शेर पेश करते हुए कहा :
जब भी हम फ़िक्र के गुलज़ार में आ जाते हैं,
लफ़्ज़ महके हुए अशआर में आ जाते हैं।
साहित्य सभा के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी ने आज भी हरियाली को बचाए हुए गांवों का सुंदर चित्र अपनी रचना में प्रस्तुत किया--
तुम्हारे शहर में हरसू हैं बेशक कोठियां ऊंची,
महकता फूलों से आंगन हमारे गांव में है।
ये माना है सुकूं इन ए सी औं में कूलरों में,
मगर सुख चैन तो उन पीपलों की छांव में है।
कार्यक्रम में सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने अपने इस दोहे के माध्यम से होली खेलने एक का शानदार चित्र प्रस्तुत किया --
कर में पिचकारी लिए, पीकर थोड़ी भंग।
देवर जी डारन चले, भौजाई पर रंग।।
वरिष्ठ शायर डॉक्टर जावेद नसीमी साहब के इस मार्मिक शेर ने सभी के दिलों को छू लिया
हाय!वो लोग जो तस्कीने-दिलो-जां थे कभी,
क्या बिगड़ जाता जो वो लोग भी जीते रहते।
सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष फ़ैसल मुमताज़ ने अपने सुख़न के रिवायती अंदाज़ से रूबरू कराते हुए कहा --
मस्त पवन के झोके में जो लहरा दे वो आंचल को,
पानी-पानी कर डालेगा आवारा से बादल को।
शायर अशफ़ाक़ ज़ैदी ने अपने तरन्नुम का कमाल दिखाते हुए पढ़ा --
दीवानगी-ए-इश्क़ बड़ा काम कर गई,
कच्चे घड़े पे बैठ के दरिया उतर गई।
कवि/लेखक सुधाकर सिंह जी ने इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर तरह से आम जन के ही ठगे जाने की व्यथा कुछ इस तरह अभिव्यक्त की--
कोई हारा कहीं अगर तो,
समझो जनता ही हारी है।
नेता कब नेता से हारा,
दल भी दल से नहीं हारते।
सभा के सह सचिव सुमित सिंह मीत का यह आशावादी शेर बहुत पसंद किया गया --
नए बहुत से दरवाज़े खुल जाते हैं,
बंद अगर कोई दरवाज़ा होता है।
कोषाध्यक्ष अनमोल रागिनी चुनमुन ने अपनी सामयिक काव्य प्रस्तुति में कहा --
यत्र तत्र सर्वत्र हैं,ख़ुशियाँ अपरम्पार।
बसंत लेकर आ गया, होली का त्योहार।।
सभा के मंत्री भाई राजवीर सिंह राज़ ने गोष्ठी का संचालन करते हुए ज़ुल्म के पैरोकारों को लेकर तरन्नुम में अपना कलाम पेश करते हुए कहा --
क्यों सुकूं की वो आरज़ू करते,
जिनके ख़ंजर लहू-लहू करते।
कार्यक्रम में संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब ने नए रचनाकारों को उच्चारण तथा काव्य में शिल्प और कलात्मकता को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि इस तरह की अदबी सरगर्मियां जारी रखने से नए रचनाकारों में मश्क़ करने का जज़्बा बना रहता है।
सभा के स्थानीय अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक द्वारा सभी सदस्यों से आपसी सहयोग तथा समन्वय द्वारा नियमित अंतराल पर संस्था की गोष्ठियों के आयोजन को सक्रियता से जारी रखने का अनुरोध किया गया।
उत्साह और उमंग के बीच सबने एक दूसरे को आपसी सौहार्द के प्रतीक रंगोत्सव होली की शुभकामनाएं दीं।अंत में सभा के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी द्वारा सभी का आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की गई।
---- ओंकार सिंह विवेक,अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर)
होली है!!!होली है!!! होली है !!!🌹🌹👈👈
सम्मानित अख़बारों द्वारा कार्यक्रम की शानदार कवरेज करने के लिए हम ह्रदय से आभारी हैं 🙏🙏 👇👇
March 16, 2024
स्मृतिशेष शिशुपाल सिंह मधुकर जी की स्मृतियों को नमन 🌹🌹🙏🙏
कोई सच छुप सकता कैसे झूठ की झीनी चादर से, बार-बार छलकेगा पानी मित्रों अधजल गागर से।
इतना तो हैं सभी जानते ज्ञानी भी अज्ञानी भी, कैसे तुलना कर सकती है कोई नदिया सागर से।
(2)
जीने का अब नया बहाना सीख लिया,
बीच ग़मों के भी मुस्काना सीख लिया।
रोते-रोते कैसे हँसना है हमको,
हमने भी जज़्बात दबाना सीख लिया।
मधुकर जी की ग़ज़ल के ये दो शेर उनके चिंतन की धार और तेवर जानने के लिए काफ़ी हैं :
दुष्टों से टकराने वाले, लोग अभी तक ज़िंदा हैं।
गीत न्याय के गाने वाले, लोग अभी तक ज़िंदा हैं।।
हमें नींद की गोली देकर, कब तक आप सुलाएंगे,
सबको रोज़ जगाने वाले, लोग अभी तक ज़िन्दा हैं।।
उनके काव्य सृजन में समाज के निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की ज़बरदस्त पैरवी देखने को मिलती है।अपनी रचनाओं में मधुकर जी ने सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर बड़ी गहरी चोट की है।बहुमुखी प्रतिभा के धनी मधुकर जी ने कुछ लघु फिल्मों में काम किया तथा लघु फिल्मों के लिए कहानियां और डायलॉग आदि भी लिखे।
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शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...