हाल ही में मुरादाबाद-उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' जी (मेरे ही हम नाम हैं बस उपनाम/तख़ल्लुस का अंतर है वो ओंकार उपनाम लिखते हैं और मैं विवेक लिखता हूं)ने अपना ग़ज़ल संग्रह 'आओ ख़ुशी तलाश करें' भेंट किया था।आजकल उसे ही पढ़ रहा हूं।मर्म को छूती हुई बहुत ही पुष्ट गज़लें कही हैं आदरणीय ओंकार जी ने।अभी उनकी ग़ज़लों के कथ्य को रहस्य ही रहने देता हूं।जल्दी ही उनकी पुस्तक की समीक्षा का वीडियो अपने चैनल पर अपलोड करूंगा और उस समीक्षा को आप लोगों के साथ ब्लॉग पर भी साझा करूंगा।
इस बीच कई नई गजलें भी कही हैं और रस परिवर्तन के लिए कुछ दोहे और कुंडलिया भी।फिलहाल एक कुंडलिया छंद और दो दोहे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं:
कुंडलिया
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--- ओंकार सिंह विवेक
क्या होगा इससे अधिक,मूल्यों का अवसान।
बेच रहे हैं आजकल,लोग दीन-ईमान।।
लोग दीन-ईमान, गई मति उनकी मारी।
करते हैं जो नित्य,पाप की गठरी भारी।।
दुष्कर्मों का दंड, यहाँ है सबने भोगा।
सोचें पापी काश,अंत उनका क्या होगा।।
--- ओंकार सिंह विवेक
दो दोहे कुछ यों भी
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पत्नी के शृंगार का,ले आए सामान।
माँ के चश्मे का उन्हें,रहा नहीं कुछ ध्यान।।
खाना खाकर सेठ जी, गए चैन से लेट।
नौकर धोता ही रहा, बर्तन ख़ाली पेट।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
जनता की आवाज़ दबाने वालो इतना ध्यान रहे,
कल पैदल भी हो सकते हो आज अगर सुल्तानी है।
--- ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
प्रभावशाली लेखन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
DeleteSundar kundli ya doha aur sher,vah
ReplyDeleteजी शुक्रिया
DeleteBahuta-bahut sundar
Deleteआभार आपका
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