November 17, 2022

जनता में क्यों अब इतनी बेदारी है

मशहूर शायर मुहतरम ओमप्रकाश नूर साहब की मेहरबानी से प्रतिष्ठित पत्रिका/अख़बार सदीनामा में प्रकाशित हुई अपनी एक और ग़ज़ल आप सब के साथ साझा कर रहा हूं :

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक: 14.11.2022
   ©️
🗯️
 इसको  लेकर   ही   उनको   दुश्वारी   है,
 जनता  में  क्यों  अब  इतनी  बेदारी  है।
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 समझेंगे    क्या    दर्द   किराएदारों   का,
 पास  रहा जिनके   बँगला  सरकारी  है।
 🗯️
कोई  सुधार  हुआ कब उसकी हालत में ,
 जनता   तो    बेचारी    थी ,  बेचारी   है।
 🗯️
 शकुनि  बिछाए  बैठा  है   चौसर  देखो,
 आज  महाभारत   की  फिर  तैयारी है।
 🗯️
  नाम   कमाएँगे   भरपूर   सियासत   में,
  नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
  🗯️
  औरों-सा बनकर  पहचान  कहाँ  होती,
  अपने -से   हैं   तो   पहचान  हमारी है।
  🗯️
  दुख का ही अधिकार नहीं केवल इस पर,
  जीवन  में   सुख   की  भी  हिस्सेदारी  है।
                 ---- ©️ओंकार सिंह विवेक

  (वर्ष २०१९ में स्वर्ण मंदिर अमृतसर में परिवार के साथ)

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-11-2022) को   "माता जी का द्वार"   (चर्चा अंक-4615)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. जी हार्दिक आभार आपका 🙏🙏

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  2. सामायिक परिस्थितियों पर सीधा प्रहार करती रचना।
    सुंदर।

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  3. Bahut sundar, vah vah.Madhur smirtiyaan

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