November 16, 2022

टैगोर काव्य गोष्ठी के आयोजन की दूसरी कड़ी

मित्रो नमस्कार 🙏🙏

मैंने कुछ माह पूर्व अपनी एक ब्लॉग पोस्ट में रामपुर के व्यवसाई और वरिष्ठ साहित्यकार श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी द्वारा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय पीपल टोला रामपुर - उoप्र० में टैगोर काव्य गोष्ठियां प्रारंभ किए जाने का चर्चा किया था।
उस योजना को मूर्त रूप देते हुए आज दिनांक १५ नवंबर,२०२२ को इस कड़ी में श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी द्वारा एक शानदार कवि गोष्ठी का आयोजन कराया गया।बहुत ही अनुशासित ढंग से सीमित समयावधि में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन जी द्वारा प्रस्तुत 'सरस्वती-वंदना' से हुआ।  इसके पश्चात चंदन जी ने अपना सुप्रसिद्ध गीत पढ़ा :
जैसी छवि होगी दीखेगी, 
दर्पण का कुछ दोष नहीं है। 

   (ऊपर के चित्र में बाएं से काव्य पाठ करते हुए वरिष्ठ कवि श्री चंदन जी तथा मंच पर मेज़बान श्री रवि प्रकाश जी, मैं तथा कार्यक्रम की सह अध्यक्ष श्रीमती नीलम गुप्ता जी)

        (काव्य पाठ करते हुए मैं ओंकार सिंह विवेक)
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मेरे द्वारा किए गए काव्य पाठ की कुछ पंक्तियाँ भी यहां प्रस्तुत हैं :
 झूठ को इस दौर में क्या झूठ बतलाने लगे,
हम तो कितनों के निशाने पर यहां आने लगे।

 घोर ॳंधियारों में से ही फूटती है रौशनी,
 आप क्यों नाकामियों से इतना घबराने लगे।

 कार्यक्रम में मेरे द्वारा प्रस्तुत दूसरी ग़ज़ल का मतला भी देखें :
 उनके हिस्से चुपड़ी रोटी, बिसलेरी का पानी है,
 और हमारी क़िस्मत,हमको रूखी-सूखी खानी है।
          
  (काव्य पाठ करते हुए मेज़बान श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी)
कार्यक्रम के मेज़बान और संचालक श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी ने समय और अनुशासन की महत्ता का बखान करते हुए यह मुक्तक प्रस्तुत किया :
समय है एक अनुशासन जिसे सूरज निभाता है,
समय पर रोज़ उगता है, समय पर डूब जाता है।
समय पर ही युवावस्था, बुढ़ापा देह में आते,
समय के साथ ही मंगल मरण लिखता विधाता है।

  (कार्यक्रम की सह अध्यक्ष श्रीमती नीलम गुप्ता जी का संबोधन)
कार्यक्रम की सह अध्यक्ष नगर पालिका परिषद रामपुर की पूर्व सदस्य श्रीमती नीलम गुप्ता जी  ने एक सुंदर कविता के माध्यम से हृदय के सुकोमल भावों को अभिव्यक्त करते हुए ऐसे कार्यक्रमों के निरंतर जारी रहने पर बल दिया।

     (काव्य पाठ करते हुए श्री सुरेन्द्र अश्क रामपुरी जी)
काव्य पाठ करते हुए श्री सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से राजनीति के वर्तमान परिवेश को चित्रित करने का सार्थक और प्रभावशाली प्रयास किया :-
तु ही रहबर तु ही रहज़न तु ही मुंसिफ तु ही क़ातिल,
 सियासत तेरे चेहरे पर कई चेहरे नजर आए।
अंत में मेज़बान श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए अगले मंगलवार को  गोष्ठी में मिलने की बात के साथ कार्यक्रम समापन की घोषणा की।सभी ने जलपान के बाद मेज़बान रवि प्रकाश जी का आभार व्यक्त करते हुए विदा ली।

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

              
                



7 comments:

  1. टैगोर काव्य गोष्ठी की बढ़िया रिपोर्ट के लिए बधाई ओंकार सिंह विवेक जी

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  2. वाक़ई सुंदर आयोजन

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  3. आपके साहित्यिक लेखन से रामपुर ही नहीं अपितु प्रत्येक साहित्य प्रेमी लाभान्वित हो रहा है
    आपको हार्दिक बधाई , साधुवाद ।
    प्रिय ओंकार सिंह विवेक जी । आपको अशेष सुभकामनाएँ □¤□¤ चंदन ।

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  4. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

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