November 13, 2022

आज कुछ यों भी

नमस्कार दोस्तो 🙏🙏🌹🌹

यों तो मैं मूलत: ग़ज़लकार हूं परंतु रस परिवर्तन के लिए 
यदा-कदा मुक्तक,दोहे, नवगीत और कुंडलिया आदि भी कह लेता हूं तो सोचा आप सुधी जनों के साथ ये दो कुंडलिया साझा करूं।अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं:

कुंडलिया-१

देते   हैं   सबको  यहाँ,प्राणवायु   का    दान,
फिर भी वृक्षों  की मनुज,लेता है नित  जान।
लेता  है नित जान, गई  मति  उसकी   मारी,
जो  वृक्षों  पर आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते  सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं  कब कुछ  लेते,
वे  तो  छाया-वायु,,फूल-फल  सबको   देते।    

 कुंडलिया-२

खाया  जिस  घर  रात-दिन,नेता जी ने  माल,
नहीं  भा  रही  अब  वहाँ, उनको  रोटी-दाल।
उनको  रोटी-दाल , बही   नव   चिंतन  धारा,
छोड़   पुराने   मित्र , तलाशा   और   सहारा।
कहते  सत्य  विवेक,नया  फिर  ठौर  बनाया,
भूले  उसको  आज ,जहाँ  वर्षों  तक  खाया।
          ---ओंकार सिंह विवेक
        (श्रीमती जी के साथ फ़ुरसत  के पल)




14 comments:

  1. Bahut sundar abhivyakti,vah vah.

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. आभार आदरणीया। ज़रूर हाज़िर रहूंगा।

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक कुंडलियां

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  4. बेहद रोचक कुंडलिया।

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  5. वाह!!!
    लाजवाब कुण्डलियां ।

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  6. सुंदर कुण्डलियाँ !! भाव उत्तम।

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