September 7, 2024

सुख़न के रंग


दोस्तो लीजिए हाज़िर है मेरी एक ग़ज़ल 🌷🌷🙏🙏
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                  ©️ 

               अलग जीवन  की रंगत  हो  गई  है,

               भलों की जब से सोहबत हो गई है।


                कहा है  जब  से  उसने  साथ हूँ मैं,

                हमारी   दूनी   ताक़त  हो   गई  है।


                तलब करने लगी अब हक़ रि'आया, 

                चलो  इतनी  तो  हिम्मत  हो गई है।


               शिकायत कुछ नहीं  हमको ग़मों से,

               ग़मों  को  ये  शिकायत  हो  गई  है।

 

               गुज़र  कैसे  करें  तनख़्वाह  में फिर,

               उन्हें  रिश्वत  की  जो  लत हो गई है।


              है जस की तस ही,लेकिन फ़ाइलों में,

              ग़रीबी  कब  की  रुख़सत  हो गई है।


             हमें   भाये   भी   कैसे  सिन्फ़   दूजी,

             ग़ज़ल  से   जो   मुहब्बत  हो  गई  है।

                            ©️ ओंकार सिंह विवेक 


पेश है ताज़ा कलाम 🌷🌷👈👈






       






              

August 31, 2024

उनका हर 'ऐब छुप ही जाना है



दोस्तो नमस्कार 🌷🌷🙏🙏
मेरा नया ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" आप लोगों के आशीर्वाद से अब छपने के लिए प्रकाशक के पास जा चुका है। आशा है दो से तीन माह के अंदर पुस्तक आ जाएगी।
लीजिए प्रस्तुत है उसी प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह से एक ग़ज़ल :

              रौशनी    का    यही   निशाना   है,

              तीरगी    को    मज़ा  चखाना   है।


             आस   टूटे  न   क्यों  युवाओं   की,

             शहर  में   मिल  न  कारख़ाना  है।


             भा   गई    है   नगर   की    रंगीनी, 

             अब  कहाँ  उनको  गाँव  आना  है।


             लोग   हैं    वो   बड़े    घराने    के, 

             उनका हर 'ऐब  छुप  ही  जाना है।


             वो सियासत  में आ  गए  जब  से,

             मालो-ज़र  का  कहाँ  ठिकाना  है।


            हमको  हर  ना-उमीद  के  मन  में,

            आस  का  इक  दिया  जलाना  है।


           और    उम्मीद   क्या   करें   उनसे,

            हम  पे   इल्ज़ाम  ही   लगाना  है।

                     ©️ ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)



August 26, 2024

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की रंगारंग काव्यगोष्ठी



छेड़ो वह धुन आज फिर, हे ! गिरधर गोपाल

(श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर रंगारग काव्यगोष्ठी) 

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भगवान विष्णु के आठवें अवतार योगीराज श्री कृष्ण के जन्म की अष्टमी का उत्साह इस समय पूरे देश में है।आम तौर से लोग दो दिन तक इस उत्सव को मनाते हैं।इस अवसर पर लोग व्रत- उपवास रखते हैं, श्री कृष्ण की लीलाओं की सुंदर झांकिया सजाते हैं।भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों तथा लोगों के द्वारा घरों में में भव्य सजावट और पूजा के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या(25अगस्त,2024)पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई की एक कवि गोष्ठी सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक के आवास

  सत्याविहार फेज-2 पर आयोजित की गई। काव्य गोष्ठी में अनेक उदीयमान तथा वरिष्ठ कवियों ने अवसर के अनुकूल भावपूर्ण रचनाएँ सुनाकर देर रात तक समां बांधे रखा।

कार्यक्रम राजवीर सिंह राज़ की सुंदर सस्वर सरस्वती वंदना से प्रारंभ हुआ। उसके पश्चात कवि पतराम सिंह ने देश प्रेम से ओतप्रोत अपनी सुंदर रचना प्रस्तुत की । उन्हें अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति पर भरपूर प्रशंसा और प्रोत्साहन मिला : 

     जागो  भारत  वीरो जागो यह  समय नहीं  है सोने का,

     दर्पण-सा मुखड़ा चमका दो इस भारत देश सलोने का।


अपनी भावपूर्ण छंद मुक्त रचनाओं के लिए जाने जाने वाले साहित्यकार जावेद रहीम ने अपनी रचना में आसमान का सुन्दर चित्रण करते हुए कहा :

            चाँद  ने पहन ली ओढ़नी  सितारों  की,

            बारात सजी है टिमटिमाते सितारों की।


सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने श्रीमद भगवतगीता के उपदेशों की महत्ता पर अपना यह शे'र प्रस्तुत किया :

           गीता के  उपदेशों  ने वो  संशय  दूर  किया,

            रोक रहा था जो अर्जुन को वाण चलाने से।


 उन्होंने श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में अपना एक दोहा भी सुनाया जिसे काफ़ी पसंद किया गया :

             जिसको सुनकर मुग्ध थे, गाय गोपियाँ ग्वाल।

             छेड़ो वह धुन आज फिर, हे!गिरधर गोपाल।।

सभा के ऊर्जावान और उत्साही सचिव राजवीर सिंह राज़ ने अपने दमदार तरन्नुम में एक ग़ज़ल पेश की :

                 तुम  गए  तो  सोचते  ही रह गए,

                 दरमियां क्यों फा़सले ही रह गए।

अच्छी शायरी से अपनी पहचान बनाने वाले सभा के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने अपनी कई ग़ज़लें सुनाईं। उनका यह मार्मिक शे'र देखिए :

             रोयी किसी की बेटी तो हम भी थे रोए ख़ूब,

             हमसे तो  उसकी रुख़सती  देखी  नहीं गई।

अपने दोहों से पहचान बनाने वाले गोष्ठी के मुख्य अतिथि राम किशोर वर्मा ने कहा :

          'ठाकुर' जी का द्वार हो,या ठाकुर का द्वार।

           दोनों दर तब पहुँचता, हो जाता लाचार।।


गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन ने कन्हैया से कुछ इस प्रकार विनती की

              जग की कुटिलता से चंदन व्यथित आज,

              द्वार पे हो ठाड़ो कान्हा, आय के बचाय दे।

सूक्ष्म जलपान के बाद कार्यक्रम के समापन पर संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी द्वारा सभी का आभार प्रकट किया गया।


गोष्ठी का संचालन स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक तथा सचिव राजवीर सिंह राज़ ने संयुक्त रूप से किया।

--- ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक 

अध्यक्ष उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई 

कार्यक्रम की दैनिक जागरण,शाह टाइम्स समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज के लिए हार्दिक आभार 🙏🙏 👇👇



August 23, 2024

जनसरोकार



नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏 आज फिर मेरे प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" से एक ग़ज़ल प्रस्तुत है।
ग़ज़ल  ("कुछ मीठा कुछ खारा से") 
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            अब  कहाँ  इसमें  पाकीज़गी  रह गई,
            मस्लहत  की  फ़क़त  दोस्ती  रह गई।
             
            दे   रही   हैं   गवाही   ये    नाकामियाँ,
            कुछ न कुछ कोशिशों में कमी रह गई।

            ठंड   तेवर   भला    कैसे   ढीले    करे,
            दोस्त! आधी  अभी  जनवरी  रह  गई।

           लोग  ज़ुल्मत  की  जयकार करने लगे,
           रौशनी   ये   ग़ज़ब   देखती  रह    गई।
                 
           कब  किसी की हुईं पूरी सब ख़्वाहिशें,
           एक    पूरी    हुई     दूसरी    रह   गई।

           मंच   पर    चुटकुले   और    पैरोडियाँ,
           आजकल  बस  यही शा'इरी  रह  गई।

           ज़ख़्म  पर  ज़ख़्म   इंसान   देता  रहा,
           अधमरी  होके   गंगा  नदी    रह   गई।
                     ©️ ओंकार सिंह विवेक 
           (सर्वाधिकार सुरक्षित) 


August 19, 2024

रूखी-सूखी खानी है



लीजिए मेरे प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" से एक और ग़ज़ल पेश है आपकी ख़िदमत में :
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          उनके  हिस्से   चुपड़ी  रोटी  बिसलेरी  का पानी है,
          और हमारी क़िस्मत,हमको रूखी-सूखी खानी है।

        जनता की  आवाज़  दबाने वालो इतना  ध्यान रहे,
       कल पैदल भी हो सकते हो आज अगर सुल्तानी है।

       प्यार लुटाया है मौसम ने जी भरकर उस पर अपना,
       ऐसे   ही   थोड़ी  धरती   की  चूनर  धानी-धानी  है।

       फ़स्ल हुई चौपट बारिश से और धेला भी पास नहीं,
       कैसे क़र्ज़  चुके बनिये  का  मुश्किल में रमज़ानी है।

       खिलने को घर के गमलों में चाहे जितने फूल खिलें,
       जंगल  के फूलों-सी  लेकिन  बात न उनमें आनी है।
 
       एक झलक पाना भी अब तो सूरज की दुश्वार हुआ,
      जाने  ज़ालिम  कुहरे  ने   ये  कैसी  चादर  तानी  है।

       बात न सोची जाए किसी की राह में  काँटे बोने की,
       ये  सोचें  फूलों  से   कैसे  सबकी  राह  सजानी  है।
                                           ©️ ओंकार सिंह विवेक

                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित) 


August 11, 2024

चिंतन के बहु रंग

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏
हाज़िर है मेरे प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" से आज एक और ग़ज़ल 
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 एक   तो     मंदा    ये    कारोबार   का,
 और  उस    पर   क़र्ज़   साहूकार  का।

मान  लो   हज़रत ! तवाज़ुन  के  बिना,
है   नहीं   कुछ   फ़ाइदा   रफ़्तार  का।

आजकल  देता  हो  जो  सच्ची  ख़बर,
नाम   बतलाएँ   किसी   अख़बार का।

 जंग   क्या   जीतेंगे  सोचो , वो जिन्हें-
 जंग  से  पहले  ही  डर  हो  हार  का।

 फिर   किनारे   तोड़ने  पर   तुल  गई,
 क्या 'अमल  है  ये  नदी  की धार का?

तोड़ दी इसने तो मुफ़लिस  की  कमर,
कुछ   करें   महँगाई   की  रफ़्तार का।

 ऋण चुका सकता नहीं  कोई 'विवेक',
 उम्र  भर  माँ - बाप  के   उपकार का।
         --- ©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित) 

    
   

August 5, 2024

करें साथियो आज कुछ, दोहों में संवाद

स्नेही मित्रो असीम सुप्रभात 🌷🌷🙏🙏
चूंकि ग़ज़ल मेरी लोकप्रिय विद्या है इसलिए मैं अक्सर आपसे अपनी ग़ज़लों के माध्यम से संवाद करता रहता हूं।यह संवाद कभी अपने इस ब्लॉग पर तो कभी Onkar Singh Vivek नाम से बनाए गए अपने ytube channel पर करता रहता हूं। मुझे इस बात का गर्व है कि दोनों ही platforms पर मुझे आपका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है।
हिंदी काव्य में दोहा विधा से हम सब भली भांति परिचित हैं।दोहे की मारक क्षमता ग़ज़ब की होती है।१३ और ११ मात्राओं के तोड़ के साथ दोहे की दो पंक्तियों में रचनाकार जैसे गागर में सागर ही भर देता है। 
मैंने भी आज सोचा कि अपने कुछ दोहे आपकी अदालत में रखूँ।
आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ लीजिए प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे :

कुछ दोहे समीक्षार्थ 
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हमने  दिन  को  दिन कहा,कहा रात को रात। 
बुरी  लगी  सरकार  को,बस इतनी सी बात।।

मन में उनके किस क़दर,भरा  हुआ  है खोट।
धर्म-जाति  के   नाम  पर,माँग  रहे  हैं  वोट।।

घर   में   जो   होने  लगी, बँटवारे   की  बात। 
चिंता  में   घुलने   लगे,बाबू   जी  दिन-रात।।

कर   में   पिचकारी  लिए,पीकर  थोड़ी  भंग। 
देवर   जी   डारन   चले,भौजाई   पर    रंग।।

महँगाई  की    मार   से, टूट   गई  हर  आस।
हल्कू की  इस  बार भी, होली  रही  उदास।।

लागत   भी    देते    नहीं, वापस   गेहूं- धान।
आख़िर किस उम्मीद पर,खेती करे किसान।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित) 





August 4, 2024

लीजिए पेश है फिर एक ------

सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏

पेश है आज एक और ग़ज़ल प्रस्तावित
"कुछ मीठा कुछ खारा" ग़ज़ल-संग्रह से
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जब  से मुजरिम  पकड़के  लाए हैं,
फोन   थाने     के    घनघनाए   हैं।

ये  ही सिन्फ़-ए-ग़ज़ल का जादू है,
अच्छे-अच्छे  ग़ज़ल  पे  आए   हैं।  

फिर अँधेरों  से  यह  गिला  कैसा,
जब   दिये   ही   नहीं  जलाए  हैं।

उफ़ नहीं  की  मगर  कभी  हमने,
ज़ख़्म पर ज़ख़्म दिल ने खाए हैं।

देख   ली  उनके   हाथ   में आरी,
पेड़    यूँ   ही    न    थरथराए  हैं।

ग़म ही दर-पेश हैं  यूँ तो  कब  से,
फिर भी लब पर  हँसी सजाए हैं।

और   कुछ   देर   बैठिए  साहिब,
एक  मुद्दत   के   बाद   आए   हैं।
     ---©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित) 

July 30, 2024

"कुछ मीठा कुछ खारा" से

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

आप सबके स्नेह और आशीर्वाद के चलते मेरे दूसरे ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" की पांडुलिपि तैयार हो गई है। शीघ्र ही एक प्रकाशक को भेजने भेजने की तैयारी है।यदि कोई अन्य अपरिहार्यता आड़े नहीं आई तो इस वर्ष के अंत तक अथवा नव वर्ष के शुरू में मेरा यह ग़ज़ल-संग्रह प्रतिक्रिया हेतु आपके हाथों में होगा।
फ़िलहाल मेरे इस ग़ज़ल-संग्रह में छपने वाली एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए :👇👇
एक ग़ज़ल मेरे शीघ्र प्रकाश्य ग़ज़ल-संग्रह
 "कुछ मीठा कुछ खारा से"
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ख़ुद को समझूँ,जग की भी पहचान करूँ,
जीवन  की  राहों 
को  कुछ आसान करूँ।


मेरे   बाद   भी  काम  किसी  के  आएँगी,
बेहतर  होगा, इन आँखों  को  दान करूँ।

तिश्नालब  ही  साहिल  पर   बैठे   रहकर,
सोच  रहा   हूँ  दरिया   को   हैरान  करूँ।

कथनी-करनी   में  रखते  हैं वर   फ़र्क़  सदा,
और  कहते  हैं  मैं उनका   सम्मान करूँ।

उनकी  मीठी  यादों  को  रुख़सत  करके,
अपने दिल की  बस्ती क्यों  वीरान  करूँ।

इतनी क्षमता  और  समझ  देना  भगवन,
पूरा  माँ-बापू   का   हर   अरमान  करूँ।

कोशिश यह  रहती है, अपनी  ग़ज़लों  में,
शोषित-वंचित का दुख-दर्द  बयान करूँ।
             --- ©️ ओंकार सिंह विवेक

July 25, 2024

नवोदय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था(पंजीo)लखनऊ की काव्य गोष्ठी

मित्रो सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏
दिनांक 23 जुलाई,2024 को वरिष्ठ शाइर और बेहतरीन इंसान श्री ओमप्रकाश नदीम साहब से मिलने लखनऊ जाना हुआ। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार श्री अष्ठाना महेश "प्रकाश बरेलवी" साहब भी निवास करते हैं।आदरणीय अष्ठाना जी से अभी लगभग दो माह पूर्व पल्लव काव्य मंच रामपुर के कार्यक्रम में मुलाक़ात हुई थी।श्री अष्ठाना जी एक वरिष्ठ साहित्यकार और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं।पहली ही मुलाक़ात में अपने-अपने ढंग से लोगों को प्रभावित कर लेने की कला आदरणीय नदीम साहब और आदरणीय अष्ठाना जी दोनों में ही विद्यमान है।
मेरे लखनऊ पहुंचने पर अष्ठाना जी ने अगले दिन अपने निवास पर अपनी साहित्यिक संस्था "नवोदय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच" के बैनर तले एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया।
मैं शुक्रगुज़ार हूं आदरणीय नदीम साहब तथा आदरणीय अष्ठाना जी का कि आप दोनों ने मुझे लखनऊ के कई अच्छे साहित्यकारों से मिलने का अवसर प्रदान। आदरणीय अष्ठाना जी ने मुझे अपने काव्य संग्रह "मेरी पहचान" की प्रति भी भेंट की।
इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ आदरणीया विभा प्रकाश जी की सरस्वती वंदना से हुआ :
मातु वीणा वादिनी वरदान दे,
हर तरफ़ छाया तमस घनघोर है,
ज्ञान दीपक हो रहा कमज़ोर है।
संस्था के संस्थापक आदरणीय अष्ठाना जी ने काव्य पाठ करते हुए अपने कुछ मार्मिक दोहे प्रस्तुत किए :
   मात पिता व्याकुल खड़े, लेकर पिचका पेट।
   डोगी को बिस्कुट मिलें, मिलती उनको हेट।।

  मौज उड़ाता क़र्ज़ ले,समझ  मुफ़्त  का माल।
  रोना अब क्यों आ रहा,खिंचती है जब खाल।।
गोष्ठी में मशहूर जनवादी शायर आदरणीय ओमप्रकाश नदीम साहब अपना कलाम पेश करते हुए :
 वो कैसे अव्वल आ जाते हैं वो मंतर नहीं आते,
 पढ़ाई हम भी करते हैं मगर नंबर नहीं आते।

कोई बादल बरसकर चाहे अपनी जान भी दे दे,
मगर पोखर कभी ठहराव से बाहर नहीं आते।
 आदरणीय बी आर विप्लवी जी अपने धारदार अशआर से महफ़िल को गुलज़ार करते हुए :
परिंदे चुग गए सब खेत कुछ बाक़ी नहीं है,
खड़ा है मुल्क ख़ाली पेट कुछ बाक़ी नहीं है।

चुराकर ले गया ये कौन सीपी-शंख सारे,
पड़ी है आज गीली रेत कुछ बाक़ी नहीं है।
 संस्था के अध्यक्ष श्री सरवर लखनवी साहब अपना कलाम पेश करते हुए :
मज़हब की सियासी बातों को ईमान समझकर बैठे हैं,
का'बे में कभी बुतख़ाने में भगवान समझकर बैठे हैं।

संस्था उपाध्यक्ष श्री राम शंकर वर्मा जी ने बहुत ही भावपूर्ण दोहे प्रस्तुत किए :
 सारंगी गूंगी हुई,टूट गए सब तार।
जब से हुआ मुंडेर पर, कौओं का अधिकार।।

हरे-भरे फूले-फले,फिर-फिर वृक्ष कुलीन।
हम तो पत्ते ढाक के,रहे तीन के तीन।।

संस्था की मंत्री शीला वर्मा मीरा जी अपना कलाम पेश करते हुए :
लोग करते हैं वफ़ा कोई नहीं,
है मुहब्बत का सिला कोई नहीं।

ज़िंदगी तो मौत का है फलसफा,
वक्त से पहले गया कोई नहीं।
 संस्था के सदस्य श्री अमर विश्वकर्मा जी अपना प्रभावशाली कलाम पेश करते हुए :
अना से इसलिए यारी बहुत है,
मेरे लहजे में  ख़ुद्दारी बहुत है।

मुझ ख़ाकसार(ओंकार सिंह विवेक) ने भी अपना कलाम पेश किया :
   मुंह पर तो कितना रस घोला जाता है,,
   पीछे जाने क्या क्या बोला जाता है।

   होता था पहले मे'यार कभी उनका,
   अब रिश्तों को धन से तोला जाता है।
अंत में मंच के उपाध्यक्ष श्री राम शंकर वर्मा जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की।
         (प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक) 




July 21, 2024

मुलाक़ात हसीन लोगों से (कड़ी--2)

इस ब्लॉग पोस्ट को लिखते हुए यह शेर याद आ रहा है :

       सुना है ऐसे भी होते हैं लोग दुनिया में,

        कि जिन से मिलिए तो तन्हाई ख़त्म होती है।

                                   ---- इफ़्तिख़ार शफी

    (ग़ाज़ियाबाद निवासी आदरणीय मान सिंह बघेल साहब और उनके परिजनों के साथ सपत्नीक कुछ सुखद क्षण बिताने का अवसर मिला)

ऊपर कोट किया गया शेर जिन लोगों के बारे में सिर्फ़ "सुना है" कहता है हम तो ऐसे लोगों से साक्षात मिलकर आए। उन लोगों से मिलकर जब हमारी तन्हाई ख़त्म हुई तो इस शेर की गहराई समझ में आई।

जी हां, मैं बात कर रहा हूं आदरणीय मान सिंह बघेल साहब और उनके परिजनों की।उन लोगों से यों तो पहली बार मिलना हुआ परंतु जिस आत्मीयता और सादा-दिली से वे लोग मिले उससे लगा ही नहीं कि हम उनसे पहली बार मिल रहें हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री बघेल साहब से मेरा परिचय साहित्यिक व्हाट्सएप ग्रुप पल्लव काव्य मंच रामपुर, उत्तर प्रदेश के माध्यम से हुआ।बघेल साहब यदा कदा वहां अपनी रचनाएँ पोस्ट करते हैं और दूसरे लोगों की रचनाओं पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त करते रहते हैं।मां शारदे ने आपको बहुत ही मधुर कंठ प्रदान किया है।आप अक्सर ही मेरी तथा अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ पसंद आने पर कभी-कभी रचनाओं के ऑडियो तथा वीडियो बनाकर साहित्यिक समूहों में पोस्ट करते रहते हैं तथा मुझे व्यक्तिगत व्हाट्सएप पर भी भेजते रहते हैं। मैं बघेल साहब की सदाशयता को नमन करता हूं।बघेल साहब से प्रायः फ़ोन पर ही बात होती थी परंतु कल दिल्ली से रामपुर लौटते हुए ग़ाज़ियाबाद चिरंजीव विहार में उनसे उनके दौलत ख़ाने पर मिलने का संयोग बना।

बघेल साहब ने बड़ी गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया। प्रदेश के मत्स्य विभाग के सीनियर ओहदे से रिटायर होने के बाद बघेल साहब अपने भरे पूरे परिवार के साथ अच्छी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।मेरी उनसे उनकी दिनचर्या और साहित्यिक गतिविधियों को लेकर काफ़ी देर तक बात हुई। उन्होंने बताया कि उनका अधिकांश समय घर-परिवार के कामों में सहयोग करने के साथ-साथ साहित्य सृजन में आनंद से व्यतीत हो रहा है।कॉलोनी के सीनियर सिटीजंस ने मिलकर एक ग्रुप बना रखा है जो नियमित मॉर्निंग और इवनिंग वॉक के बाद कुछ देर पार्क में बैठकर एक दूसरे के सुख-दुख की जानकारी लेते हैं और देश-दुनिया के घटनाक्रम आदि पर सार्थक चर्चा भी करते हैं।चूंकि बघेल साहब का सुर बहुत ही मधुर है अत: लोग उनसे तरन्नुम में अक्सर साहित्यिक रचनाएँ सुनकर आनंदित होते हैं। जैसा मैंने पहले भी ज़िक्र किया,मुझे इस बात का फ़ख़्र है कि बघेल साहब और उनके साथियों को मेरी ग़ज़लें पसंद आती हैं।उन्होंने अब तक मेरी कई ग़ज़लें गाकर उनके वीडियोज़ मुझे भेजे हैं। कई वीडियोज़ मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किए हैं जिन्हें आप लोगों द्वारा काफ़ी पसंद किया गया है।


बातचीत के बीच ही परिजन चाय-नाश्ता तैयार करके ले आए।सबने प्रेमपूर्वक बातचीत करते हुए नाश्ता किया। श्री बघेल साहब की धर्मपत्नी,पुत्र वधु,बेटे तथा एक प्यारे से पोते से काफ़ी देर तक आत्मीय वार्तालाप हुआ।जब हमने उनसे रुख़सती लेनी चाही तो बघेल साहब बोले कि आप बिना खाना खाए भला कैसे जा सकते हैं।हम पति-पत्नी ने उन्हें काफ़ी समझाया कि हम लोग खाना खाकर आए हैं और अब शाम को घर जाकर ही खाना खाएँगे पर वे कहां मानने वाले थे।उन्होंने कहा कि ठीक है खाना न सही कुछ हल्का-फुल्का तो ज़रूर खाकर जाएंगे और उन्होंने अपनी धर्मपत्नी तथा पुत्रवधू से कहा कि आप लोग डोसा बनाइए। हमने बघेल साहब के ड्राइंग रूम में बैठकर गरमा-गरम डोसा खाया और दशहरी आमों का लुत्फ़ लिया।
इस परिवार की मेहमान नवाज़ी और अपनेपन ने हमें बहुत प्रभावित किया।
श्री बघेल साहब ने बताया कि उनके शुभचिंतक आदरणीय मास्टर महेश जी ने बघेल साहब के साथ हमारी भेंट के समय की यह 👇 सुंदर तस्वीर गुड मॉर्निंग मैसेज के साथ उन्हें भेजी। ऐसे अच्छे लोगों की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। मैं आदरणीय महेश जी का भी हृदय से आभार प्रकट करता हूं।

बघेल साहब के पुत्र, जो टेक महिंद्रा कंपनी में कार्यरत है,ने हमारी कुछ तस्वीरें लीं और उसमें अपने तकनीकी हुनर का तड़का भी लगाया। वे सभी तस्वीरें आपके अवलोकनार्थ यहां साझा की गई हैं।इस परिवार के साथ समय बिताकर बहुत आनंद की अनुभूति हुई।घंटों उन लोगों के साथ अच्छा समय बिताकर घर की राह ली।

मेरी ईश्वर से यही कामना है कि बघेल साहब का परिवार यों ही हंसता-मुस्कुराता रहे।इस शेर के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूं 

     मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी,

      किसी  मोड़  पर  फिर  मुलाक़ात होगी।

              ----- शाइर बशीर बद्र 

      (प्रस्तुति:ओंकार सिंह विवेक) 


आoबघेल साहब द्वारा गाई गई मेरी एक ग़ज़ल 👈👈



July 19, 2024

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई की बैठक सम्पन्न

अपने सृजनात्मक साहित्य के द्वारा कवि/लेखकगण निरंतर समाज में जागरण का कार्य कर रहे हैं ।साहित्यकार अपने मौलिक चिंतन/सृजन द्वारा ऐसी बात कह देते हैं जो पाठक/श्रोता के मन में गहरे तक उतर जाती है।कभी-कभी उस बात के प्रभाव से किसी व्यक्ति का जीवन तक बदल जाता है।ऐसी तमाम साहित्यिक संस्थाएँ सक्रिय हैं जो अपनी साहित्यिक गतिविधियों से समाज में परिवर्तन की अलख जगा रही हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख साहित्यिक संस्था "उत्तर प्रदेश साहित्य सभा (लखनऊ)" भी है।प्रदेश स्तर पर इस संस्था की स्थापना संचालन और प्रचार-प्रसार के साथ डॉo विष्णु सक्सैना, श्री सर्वेश अस्थाना, डॉo सोनरूपा विशाल श्री बलराम श्रीवास्तव तथा श्री गिरधर खरे जी आदि जैसे बड़े नाम जुड़े हुए हैं।
इस संस्था की ज़िला स्तर की इकाईयों के गठन के क्रम में दिनांक 8जुलाई,2023 को सभा के ज़िला रामपुर के संयोजक/प्रधान वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र अश्क रामपुरी के संयोजकत्व में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की स्थानीय इकाई का निम्नानुसार विधिवत गठन किया गया :
संरक्षक                       ताहिर फ़राज़ साहब
संयोजक /प्रधान           सुरेन्द्र अश्क रामपुरी जी
अध्यक्ष                        ओंकार सिंह विवेक जी
वरिष्ठ उपाध्यक्ष              फैसल मुमताज़ जी
उपाध्यक्ष                       प्रदीप राजपूत माहिर जी 
मंत्री/सचिव                    राजवीर सिंह राज़ जी
कोषाध्यक्ष                    अनमोल रागिनी चुनमुन जी
सह सचिव                     सुमित मीत जी
प्रचार सचिव                   नवीन पांडे जी
संगठन सचिव                 बलवीर सिंह जी
कार्यकारिणी सदस्य         रश्मि चौधरी जी तथा गौरव नायक जी
सभा के गठन के बाद एक साहित्यिक गोष्ठी पूर्व में होली के अवसर पर भी आयोजित की जा चुकी है जिसकी विस्तृत रिपोर्ट भी ब्लॉग पर पोस्ट की गई थी। अब दिनांक 17 जुलाई,2024 को सभा की एक अनौपचारिक सूक्ष्म बैठक मंत्री/सचिव श्री राजवीर सिंह राज़ जी के निवास पर आयोजित की गई।इस बैठक में साहित्यिक विमर्श तथा सूक्ष्म काव्य गोष्ठी के अतिरिक्त भविष्य की योजनाओं को लेकर निम्न प्रस्तावों पर सहमति बनी :
1. साहित्यकार डॉक्टर प्रीति अग्रवाल को सर्व सहमति से उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया।
2.सभा की केंद्रीय कार्यकारिणी द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रारूप के अनुसार स्थानीय इकाई का लेटर हैड पैड बनवाने पर सहमति हुई।
3. स्वंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सभा के बैनर तले एक काव्य गोष्ठी/निशस्त कराने तथा निकट भविष्य में सामाजिक कार्यों (वृक्षारोपण आदि) में सहभागिता आदि पर भी सभी ने एक सुर में सहमति व्यक्त की।
 कुछ सदस्यों(अनमोल रागिनी चुनमुन,कोषाध्यक्ष तथा डॉक्टर प्रीति अग्रवाल, सदस्य) को उल्लिखित बिंदुओं पर सहमति व्यक्त करके के उपरांत अपनी अपरिहार्य पारिवारिक व्यस्तता के चलते सभा समापन से पूर्व ही जाना पड़ा।बाद में शेष साथियों द्वारा गोष्ठी/सभा में काव्य पाठ भी किया गया।
वरिष्ठ साथी श्री सुधाकर सिंह जी ने भोले शंकर के काशी नगरी से अकाट्य संबंध को उकेरती हुई अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी :
 वो तो भोला भंडारी हैं, 
असुरों पर भी रिझ जाते हैं।
भस्मासुर जैसे छल-कपटी,
वरदान वहां पा जाते थे।
सभा के प्रचार सचिव श्री नवीन पांडे ने आज के मशीनी युग में लोगों के किताबों से दूर होते जाने को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया : 
लाइब्रेरी में रखी किताबें,
अपने हालात से कितनी मायूस हैं अब।
अलमारियों से देखती हैं वो इस उम्मीद के साथ,
कभी तो पड़ेगी उन पर किसी की नज़र।
 सभा के मंत्री/सचिव और गोष्ठी के मेज़बान श्री राजवीर सिंह ने अपनी सस्वर प्रस्तुति से समां बांध दिया :
 राह किनारे लगे वृक्ष पर नई आस के फूल,
पीत वर्ण के सुंदर-सुंदर अमलतास के फूल।
           तपते-तपते अब उकताया है सूरज का रूप,
           छितराए पुष्पों से छनकर झीनी लगती धूप।

स्थानीय सभा के सूत्राधार संयोजक श्री अश्क रामपुरी ने अपनी रिवायती ग़ज़ल बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में पेश की :
 अभी तुम न जाओ ग़ज़ल हो रही है,
 कली खिल रही है,कंवल हो रही है।

  वो ग़म दे रहे हैं ख़ुशी मुझसे लेकर,
    मुहब्बत में रद्दो-बदल हो रही है।
स्थानीय सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने भी अपनी ताज़ा जदीद ग़ज़ल के चंद अशआर पेश किए :
           कहीं उम्मीद से कम हो रही है,
            कहीं बारिश झमाझम हो रही है।

            नहीं है मुद्द'आ जो बहस लाइक़,
            उसी पर बहस हरदम हो रही है।
                  --- ओंकार सिंह विवेक 
अंत में जलपान के बाद सचिव श्री राजवीर सिंह राज़ द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की गई।
       (प्रस्तुति ओंकार : सिंह विवेक) 




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