August 31, 2024

उनका हर 'ऐब छुप ही जाना है



दोस्तो नमस्कार 🌷🌷🙏🙏
मेरा नया ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" आप लोगों के आशीर्वाद से अब छपने के लिए प्रकाशक के पास जा चुका है। आशा है दो से तीन माह के अंदर पुस्तक आ जाएगी।
लीजिए प्रस्तुत है उसी प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह से एक ग़ज़ल :

              रौशनी    का    यही   निशाना   है,

              तीरगी    को    मज़ा  चखाना   है।


             आस   टूटे  न   क्यों  युवाओं   की,

             शहर  में   मिल  न  कारख़ाना  है।


             भा   गई    है   नगर   की    रंगीनी, 

             अब  कहाँ  उनको  गाँव  आना  है।


             लोग   हैं    वो   बड़े    घराने    के, 

             उनका हर 'ऐब  छुप  ही  जाना है।


             वो सियासत  में आ  गए  जब  से,

             मालो-ज़र  का  कहाँ  ठिकाना  है।


            हमको  हर  ना-उमीद  के  मन  में,

            आस  का  इक  दिया  जलाना  है।


           और    उम्मीद   क्या   करें   उनसे,

            हम  पे   इल्ज़ाम  ही   लगाना  है।

                     ©️ ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)



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