July 30, 2024

"कुछ मीठा कुछ खारा" से

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

आप सबके स्नेह और आशीर्वाद के चलते मेरे दूसरे ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" की पांडुलिपि तैयार हो गई है। शीघ्र ही एक प्रकाशक को भेजने भेजने की तैयारी है।यदि कोई अन्य अपरिहार्यता आड़े नहीं आई तो इस वर्ष के अंत तक अथवा नव वर्ष के शुरू में मेरा यह ग़ज़ल-संग्रह प्रतिक्रिया हेतु आपके हाथों में होगा।
फ़िलहाल मेरे इस ग़ज़ल-संग्रह में छपने वाली एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए :👇👇
एक ग़ज़ल मेरे शीघ्र प्रकाश्य ग़ज़ल-संग्रह
 "कुछ मीठा कुछ खारा से"
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©️ 
ख़ुद को समझूँ,जग की भी पहचान करूँ,
जीवन  की  राहों 
को  कुछ आसान करूँ।


मेरे   बाद   भी  काम  किसी  के  आएँगी,
बेहतर  होगा, इन आँखों  को  दान करूँ।

तिश्नालब  ही  साहिल  पर   बैठे   रहकर,
सोच  रहा   हूँ  दरिया   को   हैरान  करूँ।

कथनी-करनी   में  रखते  हैं वर   फ़र्क़  सदा,
और  कहते  हैं  मैं उनका   सम्मान करूँ।

उनकी  मीठी  यादों  को  रुख़सत  करके,
अपने दिल की  बस्ती क्यों  वीरान  करूँ।

इतनी क्षमता  और  समझ  देना  भगवन,
पूरा  माँ-बापू   का   हर   अरमान  करूँ।

कोशिश यह  रहती है, अपनी  ग़ज़लों  में,
शोषित-वंचित का दुख-दर्द  बयान करूँ।
             --- ©️ ओंकार सिंह विवेक

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