July 25, 2024

नवोदय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था(पंजीo)लखनऊ की काव्य गोष्ठी

मित्रो सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏
दिनांक 23 जुलाई,2024 को वरिष्ठ शाइर और बेहतरीन इंसान श्री ओमप्रकाश नदीम साहब से मिलने लखनऊ जाना हुआ। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार श्री अष्ठाना महेश "प्रकाश बरेलवी" साहब भी निवास करते हैं।आदरणीय अष्ठाना जी से अभी लगभग दो माह पूर्व पल्लव काव्य मंच रामपुर के कार्यक्रम में मुलाक़ात हुई थी।श्री अष्ठाना जी एक वरिष्ठ साहित्यकार और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं।पहली ही मुलाक़ात में अपने-अपने ढंग से लोगों को प्रभावित कर लेने की कला आदरणीय नदीम साहब और आदरणीय अष्ठाना जी दोनों में ही विद्यमान है।
मेरे लखनऊ पहुंचने पर अष्ठाना जी ने अगले दिन अपने निवास पर अपनी साहित्यिक संस्था "नवोदय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच" के बैनर तले एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया।
मैं शुक्रगुज़ार हूं आदरणीय नदीम साहब तथा आदरणीय अष्ठाना जी का कि आप दोनों ने मुझे लखनऊ के कई अच्छे साहित्यकारों से मिलने का अवसर प्रदान। आदरणीय अष्ठाना जी ने मुझे अपने काव्य संग्रह "मेरी पहचान" की प्रति भी भेंट की।
इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ आदरणीया विभा प्रकाश जी की सरस्वती वंदना से हुआ :
मातु वीणा वादिनी वरदान दे,
हर तरफ़ छाया तमस घनघोर है,
ज्ञान दीपक हो रहा कमज़ोर है।
संस्था के संस्थापक आदरणीय अष्ठाना जी ने काव्य पाठ करते हुए अपने कुछ मार्मिक दोहे प्रस्तुत किए :
   मात पिता व्याकुल खड़े, लेकर पिचका पेट।
   डोगी को बिस्कुट मिलें, मिलती उनको हेट।।

  मौज उड़ाता क़र्ज़ ले,समझ  मुफ़्त  का माल।
  रोना अब क्यों आ रहा,खिंचती है जब खाल।।
गोष्ठी में मशहूर जनवादी शायर आदरणीय ओमप्रकाश नदीम साहब अपना कलाम पेश करते हुए :
 वो कैसे अव्वल आ जाते हैं वो मंतर नहीं आते,
 पढ़ाई हम भी करते हैं मगर नंबर नहीं आते।

कोई बादल बरसकर चाहे अपनी जान भी दे दे,
मगर पोखर कभी ठहराव से बाहर नहीं आते।
 आदरणीय बी आर विप्लवी जी अपने धारदार अशआर से महफ़िल को गुलज़ार करते हुए :
परिंदे चुग गए सब खेत कुछ बाक़ी नहीं है,
खड़ा है मुल्क ख़ाली पेट कुछ बाक़ी नहीं है।

चुराकर ले गया ये कौन सीपी-शंख सारे,
पड़ी है आज गीली रेत कुछ बाक़ी नहीं है।
 संस्था के अध्यक्ष श्री सरवर लखनवी साहब अपना कलाम पेश करते हुए :
मज़हब की सियासी बातों को ईमान समझकर बैठे हैं,
का'बे में कभी बुतख़ाने में भगवान समझकर बैठे हैं।

संस्था उपाध्यक्ष श्री राम शंकर वर्मा जी ने बहुत ही भावपूर्ण दोहे प्रस्तुत किए :
 सारंगी गूंगी हुई,टूट गए सब तार।
जब से हुआ मुंडेर पर, कौओं का अधिकार।।

हरे-भरे फूले-फले,फिर-फिर वृक्ष कुलीन।
हम तो पत्ते ढाक के,रहे तीन के तीन।।

संस्था की मंत्री शीला वर्मा मीरा जी अपना कलाम पेश करते हुए :
लोग करते हैं वफ़ा कोई नहीं,
है मुहब्बत का सिला कोई नहीं।

ज़िंदगी तो मौत का है फलसफा,
वक्त से पहले गया कोई नहीं।
 संस्था के सदस्य श्री अमर विश्वकर्मा जी अपना प्रभावशाली कलाम पेश करते हुए :
अना से इसलिए यारी बहुत है,
मेरे लहजे में  ख़ुद्दारी बहुत है।

मुझ ख़ाकसार(ओंकार सिंह विवेक) ने भी अपना कलाम पेश किया :
   मुंह पर तो कितना रस घोला जाता है,,
   पीछे जाने क्या क्या बोला जाता है।

   होता था पहले मे'यार कभी उनका,
   अब रिश्तों को धन से तोला जाता है।
अंत में मंच के उपाध्यक्ष श्री राम शंकर वर्मा जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की।
         (प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक) 




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