कि जिन से मिलिए तो तन्हाई ख़त्म होती है।
---- इफ़्तिख़ार शफी
(ग़ाज़ियाबाद निवासी आदरणीय मान सिंह बघेल साहब और उनके परिजनों के साथ सपत्नीक कुछ सुखद क्षण बिताने का अवसर मिला)
ऊपर कोट किया गया शेर जिन लोगों के बारे में सिर्फ़ "सुना है" कहता है हम तो ऐसे लोगों से साक्षात मिलकर आए। उन लोगों से मिलकर जब हमारी तन्हाई ख़त्म हुई तो इस शेर की गहराई समझ में आई।
जी हां, मैं बात कर रहा हूं आदरणीय मान सिंह बघेल साहब और उनके परिजनों की।उन लोगों से यों तो पहली बार मिलना हुआ परंतु जिस आत्मीयता और सादा-दिली से वे लोग मिले उससे लगा ही नहीं कि हम उनसे पहली बार मिल रहें हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री बघेल साहब से मेरा परिचय साहित्यिक व्हाट्सएप ग्रुप पल्लव काव्य मंच रामपुर, उत्तर प्रदेश के माध्यम से हुआ।बघेल साहब यदा कदा वहां अपनी रचनाएँ पोस्ट करते हैं और दूसरे लोगों की रचनाओं पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त करते रहते हैं।मां शारदे ने आपको बहुत ही मधुर कंठ प्रदान किया है।आप अक्सर ही मेरी तथा अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ पसंद आने पर कभी-कभी रचनाओं के ऑडियो तथा वीडियो बनाकर साहित्यिक समूहों में पोस्ट करते रहते हैं तथा मुझे व्यक्तिगत व्हाट्सएप पर भी भेजते रहते हैं। मैं बघेल साहब की सदाशयता को नमन करता हूं।बघेल साहब से प्रायः फ़ोन पर ही बात होती थी परंतु कल दिल्ली से रामपुर लौटते हुए ग़ाज़ियाबाद चिरंजीव विहार में उनसे उनके दौलत ख़ाने पर मिलने का संयोग बना।
बातचीत के बीच ही परिजन चाय-नाश्ता तैयार करके ले आए।सबने प्रेमपूर्वक बातचीत करते हुए नाश्ता किया। श्री बघेल साहब की धर्मपत्नी,पुत्र वधु,बेटे तथा एक प्यारे से पोते से काफ़ी देर तक आत्मीय वार्तालाप हुआ।जब हमने उनसे रुख़सती लेनी चाही तो बघेल साहब बोले कि आप बिना खाना खाए भला कैसे जा सकते हैं।हम पति-पत्नी ने उन्हें काफ़ी समझाया कि हम लोग खाना खाकर आए हैं और अब शाम को घर जाकर ही खाना खाएँगे पर वे कहां मानने वाले थे।उन्होंने कहा कि ठीक है खाना न सही कुछ हल्का-फुल्का तो ज़रूर खाकर जाएंगे और उन्होंने अपनी धर्मपत्नी तथा पुत्रवधू से कहा कि आप लोग डोसा बनाइए। हमने बघेल साहब के ड्राइंग रूम में बैठकर गरमा-गरम डोसा खाया और दशहरी आमों का लुत्फ़ लिया।इस परिवार की मेहमान नवाज़ी और अपनेपन ने हमें बहुत प्रभावित किया।
बघेल साहब के पुत्र, जो टेक महिंद्रा कंपनी में कार्यरत है,ने हमारी कुछ तस्वीरें लीं और उसमें अपने तकनीकी हुनर का तड़का भी लगाया। वे सभी तस्वीरें आपके अवलोकनार्थ यहां साझा की गई हैं।इस परिवार के साथ समय बिताकर बहुत आनंद की अनुभूति हुई।घंटों उन लोगों के साथ अच्छा समय बिताकर घर की राह ली।
मेरी ईश्वर से यही कामना है कि बघेल साहब का परिवार यों ही हंसता-मुस्कुराता रहे।इस शेर के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूं
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी,
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी।
----- शाइर बशीर बद्र
(प्रस्तुति:ओंकार सिंह विवेक)
आoबघेल साहब द्वारा गाई गई मेरी एक ग़ज़ल 👈👈
ईश्वर की कृपा से मेरा और मेरे परिवार को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि आज गजल की दुनिया की एक महान हस्ती व मशहूर गजलकार आदरणीय श्री ओंकार सिंह विवेक जी ने भाभीजी के साथ आकर मेरे गरीबखाने को सुशोभित किया तथा मेरे परिवार को सुखद पल मुहैया कराये। मैं और मेरा परिवार इस खुशी के लिए हृदय की गहराइयों से आपका आभार व्यक्त करता है🙏🙏💐💐💐
ReplyDeleteमानसिंह बघेल गाजियाबाद
आदरणीय आपकी विनम्रता और मिलनसारिता को सादर वंदन🌹
DeleteVah, sundar sansmaran
ReplyDeleteHardik aabhaar
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