August 5, 2024

करें साथियो आज कुछ, दोहों में संवाद

स्नेही मित्रो असीम सुप्रभात 🌷🌷🙏🙏
चूंकि ग़ज़ल मेरी लोकप्रिय विद्या है इसलिए मैं अक्सर आपसे अपनी ग़ज़लों के माध्यम से संवाद करता रहता हूं।यह संवाद कभी अपने इस ब्लॉग पर तो कभी Onkar Singh Vivek नाम से बनाए गए अपने ytube channel पर करता रहता हूं। मुझे इस बात का गर्व है कि दोनों ही platforms पर मुझे आपका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है।
हिंदी काव्य में दोहा विधा से हम सब भली भांति परिचित हैं।दोहे की मारक क्षमता ग़ज़ब की होती है।१३ और ११ मात्राओं के तोड़ के साथ दोहे की दो पंक्तियों में रचनाकार जैसे गागर में सागर ही भर देता है। 
मैंने भी आज सोचा कि अपने कुछ दोहे आपकी अदालत में रखूँ।
आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ लीजिए प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे :

कुछ दोहे समीक्षार्थ 
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©️ 
हमने  दिन  को  दिन कहा,कहा रात को रात। 
बुरी  लगी  सरकार  को,बस इतनी सी बात।।

मन में उनके किस क़दर,भरा  हुआ  है खोट।
धर्म-जाति  के   नाम  पर,माँग  रहे  हैं  वोट।।

घर   में   जो   होने  लगी, बँटवारे   की  बात। 
चिंता  में   घुलने   लगे,बाबू   जी  दिन-रात।।

कर   में   पिचकारी  लिए,पीकर  थोड़ी  भंग। 
देवर   जी   डारन   चले,भौजाई   पर    रंग।।

महँगाई  की    मार   से, टूट   गई  हर  आस।
हल्कू की  इस  बार भी, होली  रही  उदास।।

लागत   भी    देते    नहीं, वापस   गेहूं- धान।
आख़िर किस उम्मीद पर,खेती करे किसान।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित) 





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