December 11, 2024

ज्ञान 'गीता' का


अगर व्यक्ति को हताशा, निराशा और आत्मबल में कमी का आभास हो तो पवित्र ग्रंथ 'गीता' का पाठ अवश्य करना चाहिए। गीता में जीवन में आने वाली तमाम परेशानियों और दुविधाओं का हल बहुत ही व्यवहारिक ढंग से समझाया गया है। इसमें सत्य मार्ग पर चलते हुए बिना फल की इच्छा किए कर्म करते रहने की शिक्षा दी गई है। सांसारिक बंधनों में जकड़ा व्यक्ति जब दुविधाओं के भंवर में फंसता है तो यह पवित्र ग्रंथ उसे रास्ता दिखाता है।गीता हमें अधर्म और अनीति छोड़कर सत्य के साथ नीति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।हम सब जानते हैं कि कुरुक्षेत्र के मैदान में अपनों को सामने देखकर अर्जुन को युद्ध से विरक्ति उत्पन्न हुई थी तो योगेश्वर श्री कृष्ण के गीता में दिए गए दिव्य ज्ञान ने ही उन्हें कर्तव्य का बोध कराया था। प्रसंगवश मुझे अपनी एक ग़ज़ल का यह शेर याद आ गया :
   'गीता'  के उपदेशों  ने वो  संशय  दूर किया,
   रोक रहा था जो अर्जुन को वाण चलाने से।
                           ©️ ओंकार सिंह विवेक 
हाल ही में मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार 'सदीनामा' में छपी।आप भी उसका आनंद लीजिए।मेरे साथ ही आदरणीय गिरीश अश्क साहब की भी उम्दा ग़ज़ल छपी है। मैं उनको भी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद देता हूं।

December 7, 2024

हाज़िरी नई ग़ज़ल के साथ

मित्रो ! सादर प्रणाम 🙏🙏 

आज काफ़ी दिनों बाद आप सुधी साथियों के साथ अपनी ताज़ा ग़ज़ल साझा कर रहा हूं।उम्मीद है अपना स्नेह यथावत बनाए रखेंगे तथा मेरे ब्लॉग को follow करके उत्साहवर्धन भी करेंगे --

(यह छाया चित्र हमारी पुत्री के हाल ही में संपन्न हुए विवाह संस्कार के उपरांत आयोजित अभिनंदन समारोह का है)

पुत्री कोआशीर्वाद देने हेतु रामपुर नगर (उत्तर प्रदेश) के कई प्रसिद्ध कविगण तथा शा'इर उपस्थित हुए।सभी का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं 🌹🌹🙏🙏


लीजिए पेश है मेरी नई ग़ज़ल 

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 जो मुखौटा     कहीं   उतर   जाए,

आज का शख़्स ख़ुद  से डर जाए।


उसका  जीना  भी  कोई  जीना  है,

जिस  बशर  का ज़मीर  मर  जाए।


पाए   मोहन  भी    रोज़गार   यहाँ,

और  अहमद भी  काम  पर  जाए।


ये जो  मुझ पर है शा'इरी का नशा,

कोई    सूरत    नहीं, उतर    जाए।


सब  में  कमियाँ   निकालने   वाले,

तेरी  ख़ुद पर  भी  तो  नज़र जाए।


कितनों की आज भी ये ख़्वाहिश है,

तीरगी    से     चराग़    डर    जाए।


भीड़    हर   सू   है  चालबाज़ों  की,

साफ़-दिल   आदमी   किधर  जाए।

              ©️ ओंकार सिंह विवेक 


लड़ेगा हवा से दिया जानते हैं 🌹🌹👈👈


December 5, 2024

अपनों के बहाने !

शुभ संध्या मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏

आज अपनों के मध्य जिस तरह कटुता बढ़ रही है, उसे देखकर मन बहुत दुखी होता है।पहले संयुक्त परिवारों में कैसे लोग मिल-जुलकर रहते थे।परिवार की एकता की शक्ति सामने वाले पर बहुत भारी पड़ती थी। परंतु आज स्थिति भिन्न हो गई है।संयुक्त परिवारों की अवधारणा ही जैसे समाप्त सी हो गई है। सगे भाइयों के बीच भी झूठे अहम, ईगो और स्वार्थ के कारण मन मुटाव देखने को मिल रहे हैं। अपने ही अपनों पर व्यंग्य वाण चलाने से नहीं चूकते।

   (रामपुर के विश्व विख्यात शायर ताहिर फ़राज़ तथा नईम नज्मी जी के साथ)
 
यह देखकर मन में जो विचार उमड़े उसे कुंडलिया छंद के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।आप अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो हार्दिक प्रसन्नता होगी! 🙏🙏

कुंडलिया छंद 

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©️ 

आहत   कैसे    हो   नहीं, यह   दिल   बारंबार।

अपने ही  जब  नित करें,घातक  शब्द-प्रहार।।

घातक  शब्द-प्रहार, हुआ  है  मुश्किल  जीना।

जीवन  का  सुख-चैन,आज अपनों  ने  छीना।  

करो  कृपा  हे  ईश! तनिक  हो   जाए   राहत।

अपनों के कटु शब्द,करें अब और न आहत।।

     ©️ ओंकार सिंह विवेक 


Foundation year celebration of Rampur Raza Library and Museum 👈👈

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