February 1, 2022

जो मुददआ नहीं है उसे -----

सादर प्रणाम मित्रो🙏🙏
आज साहित्यिक संस्था विद्योत्तमा फाउंडेशन नाशिक,महाराष्ट्र से साहित्यिक सेवाओं हेतु सम्मान पत्र प्राप्त हुआ जो आप सब के साथ साझा करते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।इस तरह के प्रोत्साहन प्रतिसाद पाकर सृजन अभिरुचि को नई ऊर्जा मिलती है।आज फिर से एक नई जदीद ग़ज़ल आप सब की ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ।
आनंद लें और बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ--

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हम   कैसे  ठीक  आपका   ये   मशवरा  कहें,
जो   मुददआ  नहीं   है   उसे   मुददआ  कहें।

मालूम   है    कि   होगा  हवाओं   से  सामना,
फिर  किस  लिए  चराग़  इसे  मसअला कहें।

इंसां  को  प्यास  हो  गई   इंसां  के  ख़ून  की,
वहशत  नहीं   कहें  तो  इसे  और  क्या  कहें।
©️
है  रहज़नों   से   उनका   यहाँ  राबिता-रसूख़,
तुम  फिर भी  कह  रहे  हो  उन्हें रहनुमा कहें।

वो  सुब्ह  तक  इधर  थे मगर  शाम  को उधर,
ऐसे   अमल   को   सोचिए  कैसे  वफ़ा   कहें।

इंसानियत  का  दर्स  ही  जब सबका अस्ल है,     
फिर क्यों किसी भी धर्म को आख़िर बुरा कहें।

मिलती  है  दाद भी  उन्हें  फिर  सामिईन  की,
शेरो-सुख़न  में  अपने  जो  अक्सर  नया कहें।
               ----©️ओंकार सिंह विवेक


January 31, 2022

संविधान का मान

कुंडलिया : 
********
         ---ओंकार सिंह विवेक
--------------------------------------------------
जागे  सबकी  चेतना,रखें  सभी यह ध्यान,
संविधान का हो नहीं,किंचित भी अपमान।
किंचित भी अपमान,करें सब इसकी पूजा,
इसके  जैसा   श्रेष्ठ, नहीं  दुनिया  में दूजा।
रखना  हमें   सदैव,राष्ट्र के  हित को आगे,
सबके  मन  में  काश!भावना  ऐसी जागे।
-------------------------------------------------
                      --ओंकार सिंह विवेक
चित्र---गूगल से साभार

January 28, 2022

जिसकी बनती हो बने----

कुंडलिया---ओंकार सिंह विवेक
         सर्वाधिकार सुरक्षित
🌷
जिसकी  बनती  हो  बने, सूबे  में  सरकार,
हर  दल   में  हैं  एक-दो, उनके  रिश्तेदार।
उनके   रिश्तेदार, रोब   है   सचमुच  भारी,
सब   साधन  हैं  पास,नहीं  कोई  लाचारी।
अब उनकी  दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,
बन जाए सरकार,यहाँ  हो  जिसकी बनती।
🌷       --ओंकार सिंह विवेक
          सर्वाधिकार सुरक्षित

January 26, 2022

लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर

ग़ज़ल--ग़ज़ल-ग़ज़ल   बस यही एक जुनून है मुझे ।अपने
भावों को काव्य रूप में अभिव्यक्त करने के लिए मेरी पसंदीदा विधा यही है।यद्यपि रस परिवर्तन के लिए मैं अक्सर दोहे,मुक्तक,नवगीत और कुंडलिया आदि भी कह लेता हूँ पर सहज भावाभिव्यक्ति मैं ग़ज़ल विधा में ही कर पाता हूँ।आपका निरंतर प्रोत्साहन भी मिल रहा है।मैं इसके लिए सबका ह्रदय से आभारी हूँ।आप मेरे ब्लॉग पर आते हैं,चर्चा करते हैं और बहुमूल्य प्रतिक्रिया भी देते हैं जो मेरी सृजनात्मकता को संजीवनी प्रदान करता है।आपका प्यार यूँ ही मिलता रहे।
आज फिर से एक नई ग़ज़ल आप सब के बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं हेतु ----
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
©️
यक-ब-यक  अपने  लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
लग  रहा  है  डर  हमें  उनकी  इनायत  देखकर।

एक-दो  की  बात  हो  तो  हम  बताएँ  भी  तुम्हें,
जाने  कितनो  के  डिगे  ईमान   दौलत  देखकर।

हुक्मरां  का  क्या अमल  है और है कैसा निज़ाम,
ख़ुद समझ लें आम जन की आप हालत देखकर।
©️
आप चाहे  कुछ भी कहिए ,हो नहीं सकता कभी,
जो न खाए  ख़ौफ़  झूठा,सच की ताक़त देखकर।

दरमियां  काँटों  के भी  खिलना  नहीं  जो छोड़ते,
सीख तो मिलती है उन फूलों की हिम्मत देखकर।

खेत भी होरी  का  गिरवी,काम  भी  मिलता नहीं,
आ  रहा मुँह को कलेजा  उस पे आफ़त देखकर।
  
धर्म   का   नश्शा   सुँघाकर   माँगते  हैं  वोट  वो,
कैसे  दिल तड़पे  न  ये  सस्ती सियासत देखकर।
             ---©️ ओंकार सिंह विवक



 

January 23, 2022

फ़िक्र फूली-फली नहीं होती----तो

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
©️
फ़िक्र   फूली-फली    नहीं  होती,
तो    हसीं   शायरी   नहीं  होती।

ख़ास लोगों से ही है दिल मिलता,
सबसे   तो   दोस्ती   नहीं  होती।

हौसला   हो   अगर   बुलंदी  पर,
कोई  मुश्किल  बड़ी  नहीं  होती।
©️
तर्क   मज़बूत   उसके   हैं  इतने,   
हमसे कुछ  काट  ही  नहीं  होती।

चंद  लोगों   के  साफ़   मन  होते,
तो   यूँ   बस्ती  जली  नहीं  होती।

सब जतन  कर लिए,मगर उनकी,
दूर     नाराज़गी     नहीं     होती।

हद तो  यह है कि बात अब उनसे,
ख़्वाब तक  में  कभी  नहीं  होती।
      ---©️ओंकार सिंह विवेक

January 22, 2022

झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया

बार-बार चिंतन को विवश करती और ह्रदय को झकझोरने
वाली कड़वी सच्चाइयां सृजन का आधार बनती ही हैं।और फिर बने भीं क्यों नहीं,यह भाव ही तो अहसास कराता है कि हमारे अंदर की संवेदनशीलता जीवित है।
तो लीजिए साथियो ऐसे ही कुछ भावों के सुमन  पिरोकर फिर ग़ज़ल की माला में आपके सम्मुख रख रहा हूँ प्रतिक्रिया की उम्मीद के साथ🙏🙏

ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक

©️
झूठ  पर   झूठ  वो   बोलता  रह  गया,
देखकर  मैं   ये   हैरान-सा   रह   गया।  
   
अर्ज़  हाकिम  ने लेकिन  सुनी  ही नहीं,
एक  मज़लूम   हक़  माँगता  रह  गया।
      
जीते  जी  उसके, बेटों  ने  बाँटा  मकां,
बाप अफ़सोस करता हुआ  रह   गया।
©️
जाने  वाले  ने  मुड़कर  न  देखा  ज़रा,
दुख  हमें  बस इसी बात का  रह गया।

नाम  से  उनके चिट्ठी  तो  इरसाल  की,
पर लिफ़ाफ़े  पे  लिखना पता रह गया।

हाल  यूँ  तो  कहा  उनसे दिल  का बहुत,
क्या करें फिर भी कुछ अनकहा रह गया।
©️
वो   हिक़ारत   दिखाता   रहा, और  मैं,
"शब्द  ही  प्यार  के  बोलता  रह  गया"

देखकर  हाथ  में  उनके  आरी 'विवेक',
डर  के  मारे  शजर  काँपता  रह गया।
            --- ©️ओंकार सिंह विवेक

💕💝💕💝💕💝💕💝💕💝💕💝

🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️🥀☘️

January 21, 2022

चुनावी मौसम : एक नवगीत


चित्र-गूगल से साभार
आज एक नवगीत चुनावी मौसम के नाम
********************************
    --©️ओंकार सिंह विवेक

राजनीति के कुशल मछेरे,
फेंक रहे हैं जाल।

जिस घर में थी रखी बिछाकर,
वर्षों अपनी खाट।
उस घर से अब नेता जी का,
मन हो गया उचाट।
देखो यह चुनाव का मौसम,
क्या-क्या करे कमाल।                   

घूम रहे हैं गली-गली में,
करते वे आखेट।
लेकिन सबसे कहते सुन लो,
देंगे हम भरपेट।
काश!समझ ले भोली जनता,
उनकी गहरी चाल।

कुछ लोगों के मन में कितना,
भरा हुआ है खोट।
धर्म-जाति का नशा सुँघाकर,     
माँग रहे हैं वोट।
ऊँचा कैसे रहे बताओ,
लोकतंत्र का भाल।

नैतिक मूल्यों, आदर्शों को,
कौन पूछता आज,
जोड़-तोड़ वालों के सिर ही,
सजता देखा ताज।
जाने कब अच्छे दिन आएँ,
कब सुधरे यह हाल।
    --- ©️ ओंकार सिंह विवेक

चित्र : गूगल से साभार

Featured Post

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!

असीम सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏 🌷🌱🍀🌴🍁🌸🪷🌺🌹🥀🌿🌼🌻🌾☘️💐 मेरी ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए आज फिर "सदीनामा" अख़बार के संपादक मं...