August 27, 2019
August 25, 2019
मेरा मुक़द्दर
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'
August 23, 2019
August 20, 2019
पहचान
दोहे
अलग बनाने के लिए , औरों से पहचान।
कथनी करनी कीजिए, अपनी एक समान।।
यह जीवन भगवान का, है सुन्दर उपहार।
अरे गँवाता क्यों इसे, मानव तू बेकार।।
सोचेगा संसार क्या, मत करिए परवाह।
लेकर ख़ुद ही फ़ैसले , चुनिए अपनी राह।।
मन को भी संतोष हो, रहे सुखद परिणाम।
पूरी क्षमता से अगर, करें सतत हम काम।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अलग बनाने के लिए , औरों से पहचान।
कथनी करनी कीजिए, अपनी एक समान।।
यह जीवन भगवान का, है सुन्दर उपहार।
अरे गँवाता क्यों इसे, मानव तू बेकार।।
सोचेगा संसार क्या, मत करिए परवाह।
लेकर ख़ुद ही फ़ैसले , चुनिए अपनी राह।।
मन को भी संतोष हो, रहे सुखद परिणाम।
पूरी क्षमता से अगर, करें सतत हम काम।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र:गूगल से साभार
August 19, 2019
दिल धोते हुए
ग़ज़ल - ओंकार सिंह विवेक
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
August 18, 2019
ज़िन्दगी का सफ़र
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
August 15, 2019
रक्षा बंधन
💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
बहिना को कब चाहिए, दूूूजा कुछ उपहार।
वह तो हर पल चाहती, बस भाई का प्यार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
भाई-बहिनों की यही, है असली पहचान।
एक दूसरे पर सदा, छिड़कें अपनी जान।।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-----------------ओंकार सिंह विवेक
बहिना को कब चाहिए, दूूूजा कुछ उपहार।
वह तो हर पल चाहती, बस भाई का प्यार।।
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भाई-बहिनों की यही, है असली पहचान।
एक दूसरे पर सदा, छिड़कें अपनी जान।।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-----------------ओंकार सिंह विवेक
August 14, 2019
घाटी की तस्वीर
दोहे:बड़ा फ़ैसला
बहुत पुरानी भूल में , आख़िर किया सुधार ।
धन्यवाद की पात्र है , यह मोदी सरकार।।
मिटी आज अलगाव की , जड़ से ही पहचान ।
हुआ प्रभावी देश में , एक विधान-निशान।।
अब बदलेगी देखना , घाटी की तस्वीर ।
फिर विकास की राह पर , लौटेगा कश्मीर।।
जिन लोगों नें ख़ौफ़ में , छोड़ा था कश्मीर ।
बदलेगा यह फ़ैसला , उनकी भी तक़दीर।।
लोगों में कश्मीर के , हो विश्वास बहाल ।
इसी मिशन पर आजकल , हैं अजीत डोभाल।।
---------ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत पुरानी भूल में , आख़िर किया सुधार ।
धन्यवाद की पात्र है , यह मोदी सरकार।।
मिटी आज अलगाव की , जड़ से ही पहचान ।
हुआ प्रभावी देश में , एक विधान-निशान।।
अब बदलेगी देखना , घाटी की तस्वीर ।
फिर विकास की राह पर , लौटेगा कश्मीर।।
जिन लोगों नें ख़ौफ़ में , छोड़ा था कश्मीर ।
बदलेगा यह फ़ैसला , उनकी भी तक़दीर।।
लोगों में कश्मीर के , हो विश्वास बहाल ।
इसी मिशन पर आजकल , हैं अजीत डोभाल।।
---------ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)
August 13, 2019
रौशनी
ग़ज़ल- ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
August 6, 2019
सीधी सच्ची बात
दोहे
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
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जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
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बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
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गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
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इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
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धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
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-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
August 5, 2019
दिये जलाना
ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'
आँधियों में दिये जलाना है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।
बात क्या कीजिये उसूलों की,
जोड़ औ तोड़ का ज़माना है।
फिर से पसरा है इतना सन्नाटा,
फिर से तूफ़ान कोई आना है।
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
इस क़दर बेहिसी के आलम में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
बज़्म में और भी तो बैठे हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह 'विवेक'
आँधियों में दिये जलाना है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।
बात क्या कीजिये उसूलों की,
जोड़ औ तोड़ का ज़माना है।
फिर से पसरा है इतना सन्नाटा,
फिर से तूफ़ान कोई आना है।
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
इस क़दर बेहिसी के आलम में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
बज़्म में और भी तो बैठे हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह 'विवेक'
August 4, 2019
August 3, 2019
उपकार कर
हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख दर्द बन्दे हर किसी से प्यार कर।
छल,कपट और द्वेष ही करते हैं मन को स्वारथी,
हो तनिक यदि इनकी आहट बंद मन के द्वार कर।
जिसको सुनते ही ख़ुशी से सब के तन-मन खिल उठें,
ऐसी वाणी से सदा व्यक्तित्व का शृंगार कर।
चीर कर पत्थर का सीना बह रही जो शान से,
प्रेरणा ले उस नदी से संकटों को पार कर।
विश्व के कल्याण की जिनसे प्रबल हो भावना,
उन विचारों का ही तू मष्तिष्क में संचार कर।
नफरतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िन्दगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
@सर्वाधिकार सुरक्षित ----ओंकार सिंह'विवेक'
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