August 22, 2021

क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
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क्या  बतलाएँ दिल को कैसा  लगता  है,
बदला-सा जब उनका लहजा लगता है।

रोज़  पुलाव  पकाओ आप ख़यालों के,
इसमे   कोई    पाई - पैसा   लगता   है।

मजबूरी  है  बेघर  की, वरना  किसको-
फुटपाथों  पर  सोना  अच्छा  लगता है।
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तरही   मिसरे   पर  इतनी  आसानी  से,
तुम ही बतलाओ क्या मिसरा लगता है।

आज  किसी ने की है  शान में गुस्ताख़ी,
मूड  हुज़ूर  का उखड़ा-उखड़ा लगता है।

चहरे   पर   मायूसी , आँखों   मे  दरिया,
तू भी मुझ-सा वक़्त का मारा लगता है।

बाल  भले  ही  पक जाएँ उसके,लेकिन-
माँ - बापू   को   बेटा  बच्चा  लगता  है।
             ----©️ओंकार सिंह विवेक

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