August 23, 2021

सभी को हमसे दिक़्क़त हो गई है

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
  ©️
हमें   सच  से  क्या  रग़बत  हो गई  है,
सभी  को  हमसे  दिक़्क़त  हो  गई है।

कभी होती  थी  जन सेवा का साधन ,
सियासत  अब   तिजारत  हो  गई  है।

हमें  लगता  है  कुछ  लोगों  की  जैसे,
उसूलों    से    अदावत    हो   गई   है।
©️
सहे   हैं    ज़ुल्म    इतने   आदमी   के,
नदी    की   पीर   पर्वत   हो   गई   है।

निकाला करते  हो  बस नुक़्स सब में,
तुम्हारी   कैसी   आदत   हो   गई   है।

हसद   रखते   हैं   जो   हमसे  हमेशा,
हमें   उनसे  भी  उल्फ़त   हो  गई  है।

हुए   क्या   हम   रिटायर   नौकरी  से,
मियाँ  फ़ुरसत  ही  फ़ुरसत  हो गई है।
           ---   ©️ओंकार सिंह विवेक

14 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच   "विज्ञापन में नारी?"  (चर्चा अंक 4167)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. वाह
    फुरसत ही फुरसत हो गयी
    सुन्दर रचना

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  3. सामायिक,सटीक भाव रचना।
    बेहतरीन।

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  4. वाह! उम्दा ग़ज़ल

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  5. वाह!बहुत सुंदर।
    सादर

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    1. आदरणीया बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपका

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  6. वाह! बहुत सुंदर।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपका

      Delete
  7. सामायिक,सटीक रचना।

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