कुंडलिया : चुनावी मौसम
--ओंकार सिंह विवेक
खाया जिस घर रात-दिन,नेता जी ने माल,
नहीं भा रही अब वहाँ, उनको रोटी-दाल।
उनको रोटी-दाल , बही नव चिंतन धारा,
छोड़ पुराने मित्र , तलाशा और सहारा।
कहते सत्य विवेक,नया फिर ठौर बनाया,
भूले उसको आज ,जहाँ वर्षों तक खाया।
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र : गूगल से साभार
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