July 31, 2020
July 24, 2020
कुछ दोहे पावस पर
"
साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' मुरादाबाद की ऑनलाइन पावस(वर्षा ऋतु)-गोष्ठी
*****************************************
२२ जुलाई,2020 को 'हस्ताक्षर' संस्था द्वारा यशभारती सम्मान प्राप्त नवगीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी के ८१ वें जन्म दिवस पर पावस-गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया।
इस गोष्ठी में रचनाकारों द्वारा डॉ. माहेश्वर तिवारी को उनके ८१ वें जन्मदिन पर बधाई देते हुए विषय विशेष (वर्षा ऋतु )पर अपनी प्रभावशाली रचनाएँ प्रस्तुत कीं। गोष्ठी में निम्न रचनाकारों द्वारा सहभागिता की गई--
1.डॉ. माहेश्वर तिवारी
2.श्री शचींद्र भटनागर
3. डॉ.अजय 'अनुपम'
4. डॉ.मक्खन 'मुरादाबादी'
5.डॉ. मीना नक़वी
6.श्रीमती विशाखा तिवारी
7.डॉ0प्रेमवती उपाध्याय
8.श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
9. डॉ.मीना कौल
10..डॉ.मनोज रस्तोगी
11.श्री राजीव 'प्रखर'
12.डॉ.पूनम बंसल
13.आदरणीया सरिता लाल
14. शायर ज़िया ज़मीर
15.श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल
16.श्री मनोज 'मनु'
17.डॉ.अर्चना गुप्ता
18.ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' (रामपुर)
19.श्रीमती हेमा तिवारी भट्ट
20.श्रीमती मोनिका 'मासूम'
21.डॉ.ममता सिंह
22.आ0 निवेदिता सक्सैना
23.डॉ.रीता सिंह
कार्यक्रम में मेरे द्वारा पावस ऋतु पर प्रस्तुत कुछ दोहे निम्नवत हैं---
🌷दोहे--पावस ऋतु🌷
----ओंकार सिंह विवेक
🌷. @CR
पुरवाई के साथ में , आई जब बरसात।
फसलें मुस्कानें लगीं , हँसे पेड़ के पात।।
🌷
मेंढक टर- टर बोलते , भरे तलैया- कूप।
सबके मन को भा रहा,पावस का यह रूप।।
🌷
खेतों में जल देखकर , छोटे-बड़े किसान।
चर्चा यह करने लगे , चलो लगाएँ धान।।
🌷
फिर इतराएँ क्यों नहीं , पोखर-नदिया-ताल।
जब सावन ने कर दिया,इनको माला माल।।
🌷
अच्छे लगते हैं तभी , गीत और संगीत।
जब सावन में साथ हों , अपने मन के मीत।।
🌷
जब से है आकाश में,घिरी घटा घनघोर।
निर्धन देखे एकटक , टूटी छत की ओर।।
🌷
कभी कभी वर्षा धरे , रूप बहुत विकराल।
कोप दिखाकर बाढ़ का ,जीना करे मुहाल।।
🌷
-------//ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उ0प्र0
@CR
विशेष--गोष्ठी में सहभागिता का अवसर प्रदान करने हेतु संस्था के पदाधिकारियों प्रिय राजीव प्रखर एवं आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी का अतिशय आभार
July 15, 2020
July 13, 2020
July 7, 2020
July 3, 2020
June 30, 2020
June 24, 2020
June 22, 2020
June 21, 2020
June 14, 2020
अगर माँ साथ होती है
साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी
------------------------------------
मुरादाबाद, १३ जून। साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से आज संस्था के व्हाट्सएप समूह पर एक ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें रचनाकारों ने मुक्तकों के माध्यम से अनेक सामाजिक, राजनैतिक एवं मानवीय विषयों को अभिव्यक्त किया। मुक्तक-गोष्ठी में माँ को समर्पित मेरा एक मुक्तक यहाँ प्रस्तुत है--
"डगर का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।
-----ओंकार सिंह विवेक
मुक्तक-गोष्ठी में सुप्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी, सुप्रसिद्ध शायरा डॉ. मीना नक़वी, कवि शिशुपाल 'मधुकर', शायर ज़िया ज़मीर, कवि राहुल शर्मा आदि लोकप्रिय रचनाकार भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
-------ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उ0प्र0
June 13, 2020
June 12, 2020
June 8, 2020
May 28, 2020
May 22, 2020
May 19, 2020
May 17, 2020
May 14, 2020
May 13, 2020
May 12, 2020
साहित्य का नया दौर
कोरोना काल के बाद सामाजिक व्यवहार के साथ साथ साहित्यिक व्यवहार भी अप्रत्याशित रूप से बदलेंगे।कुछ दिन तक भौतिक रूप से आयोजित किए जाने वाले काव्य सम्मेलनों और मुशायरों में कमी आएगी और ऑन लाइन काव्य सम्मेलनों और पुस्तकों के विमोचन आदि की परम्पराएं प्रभावी रहेंगी।लॉकडाउन के दिनों में हम लगातार कवियों और शायरों को लाइव आता देख रहे हैं।यह अलग बात है कि ऑनलाइन श्रोताओं या दर्शकों का जुड़ाव साहित्यकारों के साथ अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है परंतु निकट भविष्य में यह भी अवश्य ही देखने में आयेगा।
आज एक प्रमुख साहित्यिक संस्था "तूलिका बहुविधा मंच,एटा "( संस्थापक-डॉक्टर राकेश सक्सैना,पूर्व हिंदी विभाग अध्यक्ष,जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय एटा) की इलैक्ट्रोनिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका तूलिका के कोरोना विशेषांक का ई विमोचन सम्पन्न हुआ।हम साहित्यकार भी ऑनलाइन इस कार्यक्रम के साक्षी बने। कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के इस आपदा काल में साहित्यकारों ने भी अपने सामयिक सृजन के माध्यम से लोक को साहस और संबल देने का यथोचित प्रयास किया है।साहित्यकारों के इस प्रयास को ही पत्रिका के संपादक द्वय दिलीप पाठक सरस् और ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी द्वारा अपने सदप्रयासों के माध्यम से सुंदर साहित्यिक पत्रिका का रूप दिया गया है।
इस पत्रिका में मुझ अकिंचन की रचना को भी स्थान दिया गया है जिसके लिए में संस्था के संस्थापक डॉक्टर राकेश सक्सैना एवं पत्रिका के संपादक मंडल का अतिशय आभार प्रकट करता हूँ।
May 9, 2020
May 7, 2020
May 6, 2020
May 5, 2020
May 4, 2020
May 3, 2020
May 1, 2020
April 30, 2020
खोज अभी बाक़ी है
खोज अभी बाक़ी है
कल ही की तो बात है जब भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक बोलती आँखों वाले नेचुरल एक्टर इरफ़ान ख़ान की न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर(एक प्रकार का दुर्लभ कैंसर जो एक लाख लोगों में से किसी एक को होता है)नामक बीमारी से असामयिक मृत्यु की ख़बर ने सबके दिल को गहरा सदमा पहुँचाया था।अभी लोग इस सदमे से उबरे भी न थे कि आज फिर अलसुब्ह वैसी ही दिल को बैठाने वाली ख़बर आई कि फ़िल्म इंडस्ट्री के एक और बेहतरीन एक्टर ऋषि कपूर की ल्यूकेमिया(एक प्रकार का कैंसर) से मौत हो गई।इस ख़बर से फिर वही रंज और ग़म का आलम हो गया।
यद्यपि कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से लोगों के मरने की यह कोई नई घटनाएं नहीं हैं परन्तु ये या ऐसी और अनेक बातें मनुष्य के अस्तित्व, प्रकृति की शक्ति और उसके रहस्यों से जुड़े तमाम विषयों पर बार बार बात करने के रास्ते खोलती हैं।
मनुष्य ने विज्ञान के बल पर प्रकृति के तमाम रहस्यों को खोल कर रखा है।तमाम बीमारियों पर विजय पा ली है।दुनिया में पहले की तुलना में मृत्यु दर बहुत कम रह गई है।बहुत सी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में भी आदमी सक्षम हुआ है।ज़मीन के तमाम रहस्य उजागर करने के साथ ही आज आदमी आसमान में चाँद तक पहुँच गया है और उससे भी आगे की यात्रा जारी हैं।तमाम ऐसी बीमारियाँ जिन्हें दैवीय प्रकोप मान लिया जाता था,चिकित्सा विज्ञान ने उनका इलाज खोजकर आदमी को मौत के मुँह से बचा लिया है।ग़रज़ यह कि आदमी निरंतर प्रकृति के रहस्यों पर से पर्दा उठाता जा रहा है और मनुष्य की शारीरिक संरचना को लेकर भी रोज़ नवीन शोध प्रस्तुत कर रहा है।परन्तु अभी भी प्रकृति में बहुत कुछ अनसुलझे रहस्य हैं जिन तक विज्ञान को पहुँचना है। मनुष्य के शरीर और उस पर बाह्य वातावरण और परिवेश का प्रभाव और उनके साथ अनुकूलन जैसे अभी बहुत से अति आवश्यक विषयों पर विज्ञान की ठोस उपलब्धियाँ दरकार हैं।कैंसर जैसी बीमारी को ही ले लीजिए चिकिसा विज्ञान इसे किसी हद तक नियंत्रित ज़रूर कर पाया है परन्तु पूरी तरह उन्मूलन नहीं कर पाया है।इस प्रकार की बीमारियाँ लोगों में बार बार पनप रही हैं और अंततः मृत्यु का कारण बन रही हैं।अभी विज्ञान/चिकित्सा विज्ञानको इस दिशा में बहुत दूर तक जाना है।अगर इन बीमारियों का कोई मुकम्मल इलाज चिकित्सा विज्ञान द्वारा खोज लिया गया होता तो फिर चाहे वह कितना भी महँगा क्यों न होता कम से कम अमीर आदमी तो इन बीमारियों से कभी न मरते।आज 'कोरोना' जैसी घातक बीमारी पूरे विश्व में अनगिनत लोगों की मृत्यु का कारण बनी हुई है।चिकित्सा विज्ञान के पास फ़िलहाल इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।जब तक इस बीमारी की कोई दवा खोजी जाएगी न जाने कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके होंगे।
यह क्रम आदि काल से चल रहा है और आगे भी सृष्टि का यह चक्र यूँ ही चलता रहेगा।इस तरह की घटनाएं मनुष्य में दो तरह के विचारों और भावों को बार बार प्रबल करती हैं। पहले तो यह की मनुष्य विज्ञान के प्रति और सजग होकर अपने अनुसंधान और अन्वेषण को गति देता है और दूसरे यह की परिस्थितियों के आगे असहाय हो कर व्यक्ति किसी अज्ञात शक्ति के प्रति आस्थावान होने लगता है।उस अज्ञात शक्ति के अस्तित्व को लेकर विज्ञान और आस्था में हमेशा बहस चलती रही है और चलती रहेगी रहेगी।
------ओंकार सिंह विवेक
कल ही की तो बात है जब भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक बोलती आँखों वाले नेचुरल एक्टर इरफ़ान ख़ान की न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर(एक प्रकार का दुर्लभ कैंसर जो एक लाख लोगों में से किसी एक को होता है)नामक बीमारी से असामयिक मृत्यु की ख़बर ने सबके दिल को गहरा सदमा पहुँचाया था।अभी लोग इस सदमे से उबरे भी न थे कि आज फिर अलसुब्ह वैसी ही दिल को बैठाने वाली ख़बर आई कि फ़िल्म इंडस्ट्री के एक और बेहतरीन एक्टर ऋषि कपूर की ल्यूकेमिया(एक प्रकार का कैंसर) से मौत हो गई।इस ख़बर से फिर वही रंज और ग़म का आलम हो गया।
यद्यपि कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से लोगों के मरने की यह कोई नई घटनाएं नहीं हैं परन्तु ये या ऐसी और अनेक बातें मनुष्य के अस्तित्व, प्रकृति की शक्ति और उसके रहस्यों से जुड़े तमाम विषयों पर बार बार बात करने के रास्ते खोलती हैं।
मनुष्य ने विज्ञान के बल पर प्रकृति के तमाम रहस्यों को खोल कर रखा है।तमाम बीमारियों पर विजय पा ली है।दुनिया में पहले की तुलना में मृत्यु दर बहुत कम रह गई है।बहुत सी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में भी आदमी सक्षम हुआ है।ज़मीन के तमाम रहस्य उजागर करने के साथ ही आज आदमी आसमान में चाँद तक पहुँच गया है और उससे भी आगे की यात्रा जारी हैं।तमाम ऐसी बीमारियाँ जिन्हें दैवीय प्रकोप मान लिया जाता था,चिकित्सा विज्ञान ने उनका इलाज खोजकर आदमी को मौत के मुँह से बचा लिया है।ग़रज़ यह कि आदमी निरंतर प्रकृति के रहस्यों पर से पर्दा उठाता जा रहा है और मनुष्य की शारीरिक संरचना को लेकर भी रोज़ नवीन शोध प्रस्तुत कर रहा है।परन्तु अभी भी प्रकृति में बहुत कुछ अनसुलझे रहस्य हैं जिन तक विज्ञान को पहुँचना है। मनुष्य के शरीर और उस पर बाह्य वातावरण और परिवेश का प्रभाव और उनके साथ अनुकूलन जैसे अभी बहुत से अति आवश्यक विषयों पर विज्ञान की ठोस उपलब्धियाँ दरकार हैं।कैंसर जैसी बीमारी को ही ले लीजिए चिकिसा विज्ञान इसे किसी हद तक नियंत्रित ज़रूर कर पाया है परन्तु पूरी तरह उन्मूलन नहीं कर पाया है।इस प्रकार की बीमारियाँ लोगों में बार बार पनप रही हैं और अंततः मृत्यु का कारण बन रही हैं।अभी विज्ञान/चिकित्सा विज्ञानको इस दिशा में बहुत दूर तक जाना है।अगर इन बीमारियों का कोई मुकम्मल इलाज चिकित्सा विज्ञान द्वारा खोज लिया गया होता तो फिर चाहे वह कितना भी महँगा क्यों न होता कम से कम अमीर आदमी तो इन बीमारियों से कभी न मरते।आज 'कोरोना' जैसी घातक बीमारी पूरे विश्व में अनगिनत लोगों की मृत्यु का कारण बनी हुई है।चिकित्सा विज्ञान के पास फ़िलहाल इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।जब तक इस बीमारी की कोई दवा खोजी जाएगी न जाने कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके होंगे।
यह क्रम आदि काल से चल रहा है और आगे भी सृष्टि का यह चक्र यूँ ही चलता रहेगा।इस तरह की घटनाएं मनुष्य में दो तरह के विचारों और भावों को बार बार प्रबल करती हैं। पहले तो यह की मनुष्य विज्ञान के प्रति और सजग होकर अपने अनुसंधान और अन्वेषण को गति देता है और दूसरे यह की परिस्थितियों के आगे असहाय हो कर व्यक्ति किसी अज्ञात शक्ति के प्रति आस्थावान होने लगता है।उस अज्ञात शक्ति के अस्तित्व को लेकर विज्ञान और आस्था में हमेशा बहस चलती रही है और चलती रहेगी रहेगी।
------ओंकार सिंह विवेक
April 29, 2020
इरफ़ान ख़ान
💐इरफ़ान ख़ान-विनम्र श्रद्धांजलि💐
Born Actor इरफ़ान ख़ान की असामयिक मृत्यु पर ह्रदय बहुत व्यथित है।इरफ़ान ख़ान एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने एक छोटी सी जगह से आकर एक्टिंग में रुचि के कारण एन एस डी से पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बूते पर मुम्बई जैसी मायानगरी में जाकर अपनी जगह बनाई।उनके पास किसी फिल्मी घराने से जुड़े होने का कोई प्रमाणपत्र या तमग़ा नहीं था। अपने आप को वहां प्रूव करने के लिए अगर उनके पास कुछ था तो बस एक साधरण क़द काठी और रोम रोम में बसी नेचुरल एक्टिंग की ख़ुदादाद सलाहियत।राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म इंडस्ट्री में इरफ़ान की मक़बूलियत इस बात का जीता जागता सुबूत है कि अगर आप में प्रतिभा है तो कामयाबी आपके क़दम एक दिन ज़रूर चूमेगी।इरफ़ान ख़ान नई नस्ल के उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जो बहुत कमज़ोर बैकग्राउंड से आते हैं और अपनी प्रतिभा के दम पर किसी फील्ड में ज़ोर आज़माइश करना चाहते हैं।
आप इरफान ख़ान की किसी भी फ़िल्म को देख लीजिए लगता ही नहीं कि उन्होंने एक्टिंग के लिए अलग से कोई तैयारी की हो।वह बिल्कुल नेचुरल एक्टिंग करते और किरदार के साथ रचे बसे नज़र आते हैं।मैंने कभी भी किसी भी फ़िल्म में उनकी एक्टिंग में रत्ती भर बनावट नहीं देखी।जबकि कई बड़े बड़े कलाकारों को भी मैंने बाज़ मौक़ों पर ओवरएक्टिंग का शिकार होते देखा है।
इरफ़ान का कैंसर जैसी घातक बीमारी से जूझते हुए अभी चंद दिन पहले तक भी फ़िल्म की शूटिंग करते रहना उनके जीवट को दर्शाता है।आज प्रसंगवश मुझे अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आता है-
सदा बढ़ते रहे मंज़िल की धुन में,
न जाना पाँव ने कैसी थकन है।
-----विवेक
इरफ़ान ख़ान जैसे बेहतरीन कलाकार का असमय चले जाना हिंदुस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री को ही नहीं वरन पूरी दुनिया के कला जगत को एक भारी क्षति है।पर क़ुदरत के सामने हम सब लाचार हैं।एक न एक दिन सब को ही यह दिन देखना है।
ज़िंदगी दाइमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
--- विवेक
अंत में इरफान खान की यादों को शत शत नमन करते हुए मैं उन्हें ख़िराजे अकीदत पेश करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ।
------ओंकार सिंह विवेक
#RestInPeace💐💐💐
चित्र:गूगल से साभार
Born Actor इरफ़ान ख़ान की असामयिक मृत्यु पर ह्रदय बहुत व्यथित है।इरफ़ान ख़ान एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने एक छोटी सी जगह से आकर एक्टिंग में रुचि के कारण एन एस डी से पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बूते पर मुम्बई जैसी मायानगरी में जाकर अपनी जगह बनाई।उनके पास किसी फिल्मी घराने से जुड़े होने का कोई प्रमाणपत्र या तमग़ा नहीं था। अपने आप को वहां प्रूव करने के लिए अगर उनके पास कुछ था तो बस एक साधरण क़द काठी और रोम रोम में बसी नेचुरल एक्टिंग की ख़ुदादाद सलाहियत।राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म इंडस्ट्री में इरफ़ान की मक़बूलियत इस बात का जीता जागता सुबूत है कि अगर आप में प्रतिभा है तो कामयाबी आपके क़दम एक दिन ज़रूर चूमेगी।इरफ़ान ख़ान नई नस्ल के उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जो बहुत कमज़ोर बैकग्राउंड से आते हैं और अपनी प्रतिभा के दम पर किसी फील्ड में ज़ोर आज़माइश करना चाहते हैं।
आप इरफान ख़ान की किसी भी फ़िल्म को देख लीजिए लगता ही नहीं कि उन्होंने एक्टिंग के लिए अलग से कोई तैयारी की हो।वह बिल्कुल नेचुरल एक्टिंग करते और किरदार के साथ रचे बसे नज़र आते हैं।मैंने कभी भी किसी भी फ़िल्म में उनकी एक्टिंग में रत्ती भर बनावट नहीं देखी।जबकि कई बड़े बड़े कलाकारों को भी मैंने बाज़ मौक़ों पर ओवरएक्टिंग का शिकार होते देखा है।
इरफ़ान का कैंसर जैसी घातक बीमारी से जूझते हुए अभी चंद दिन पहले तक भी फ़िल्म की शूटिंग करते रहना उनके जीवट को दर्शाता है।आज प्रसंगवश मुझे अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आता है-
सदा बढ़ते रहे मंज़िल की धुन में,
न जाना पाँव ने कैसी थकन है।
-----विवेक
इरफ़ान ख़ान जैसे बेहतरीन कलाकार का असमय चले जाना हिंदुस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री को ही नहीं वरन पूरी दुनिया के कला जगत को एक भारी क्षति है।पर क़ुदरत के सामने हम सब लाचार हैं।एक न एक दिन सब को ही यह दिन देखना है।
ज़िंदगी दाइमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
--- विवेक
अंत में इरफान खान की यादों को शत शत नमन करते हुए मैं उन्हें ख़िराजे अकीदत पेश करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ।
------ओंकार सिंह विवेक
#RestInPeace💐💐💐
चित्र:गूगल से साभार
April 27, 2020
April 23, 2020
April 22, 2020
April 21, 2020
April 20, 2020
April 19, 2020
April 18, 2020
Subscribe to:
Posts (Atom)
Featured Post
सामाजिक सरोकारों की शायरी
कवि/शायर अपने आसपास जो देखता और महसूस करता है उसे ही अपने चिंतन की उड़ान और शिल्प कौशल के माध्यम से कविता या शायरी में ढालकर प्र...
-
(प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री अनिल कुमार तोमर जी एवं महासचिव श्री इरफ़ान आलम जी) मित्रो संग...
-
बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते...
-
शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...