February 23, 2024

शुचिता

शुचिता
*****
शुचिता एक भाव हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है पवित्रता,शुद्धता, निष्कपटता या स्वच्छता। जीवन के हर क्षेत्र में शुचिता पूर्ण आचरण अपरिहार्य है।घर,परिवार,समाज या अन्य कहीं हमारा कार्य ,व्यवहार और आचरण शुचिता पूर्ण होना चाहिए।इसी में जीवन की सार्थकता है।
आज सबसे अधिक कमी शुचिता की यदि कहीं दिखाई देती है तो वह है राजनीति का क्षेत्र।बात चाहे राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति की हो या फिर अंतरराष्ट्रीय धरातल पर हो रही राजनैतिक गतिविधियों की।हर जगह राजनीति से  सिद्धांत और नीतियां तो ऐसे  ग़ायब हो गए हैं जैसे गधे के सिर से सींग।झूठ,भ्रष्टाचार या कदाचार चाहे जिस का भी सहारा लेना पड़े राजनैतिक पार्टियों /नेताओं का एक मात्र लक्ष्य कुर्सी --- कुर्सी और बस कुर्सी ही रह गया है। आज सियासत में नीतियों,सिद्धांतों के लिए स्थान या समाज सेवा का भाव तो रह ही नहीं गया है। जो भी राजनीति की राह पकड़ता है उसका लक्ष्य होता है
 छल,फरेब, दल-बदल से अतिशीघ्र सत्ता पर पकड़ बनाकर अपना हित साधन करना।
कोई ज़माना था जब लोग विशुद्ध समाज और देश सेवा के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश करते थे।सियासत को कभी व्यापार की दृष्टि से नहीं देखा जाता था।
यदि हम भारतीय राजनीति में शुचिता की बात करें तो बरबस हमें स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी और अटल बिहारी वाजपेई जी की याद आ जाती है। शास्त्री जी की सादगी को कौन नहीं जानता।उन्होंने सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए प्रधानमंत्री के पद को बड़ी गरिमा प्रदान की थी। इसी प्रकार‘भारत रत्न’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में शुचिता के जो मानदंड स्थापित किए उन्हें कौन भूल सकता है।सरकार में सुशासन और संसद में सर्वमान्य सांसद के साथ ही संवेदनशील साहित्यकार, महान राष्ट्रभक्त और अजातशत्रु पूर्व प्रधानमन्त्री ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी जी का राजनीति में उनके विरोधी भी लोहा मानते थे। काश ! आज के नेता शुचिता और सिद्धांतों के मामले में ऐसे विराट व्यक्तियों के व्यक्तित्व से कुछ प्रेरणा ले पाएं।

आज स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है।यह अवसरवादिता और धूर्तता की हद ही तो है कि लोग कपड़ों से भी अधिक तेज़ी से दल और पार्टियां बदलते हैं। घड़ी-घड़ी अपने बयान बदलते हैं और वोटों के लालच में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले बयान देते हैं।
हाल ही में हमारे एक पड़ोसी देश में हुए चुनाव में शुचिता की जो धज्जियाँ उड़ीं वे दुनिया ने देखीं।
काश ! ये स्थितियां बदलें और राजनीति में शुचिता और सिद्धांतों का महत्व बढ़े।अच्छी विचारधारा और सच्चे अर्थों में समाज सेवा का भाव रखने वाले लोग इस क्षेत्र में आएं। समाज ,देश और दुनिया में खुशहाली लाने का यही एक रास्ता है।
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर मेरे दो कुंडलिया छंद का आनंद लीजिए :
@

कुंडलिया-1

खाया  जिस  घर  रात-दिन,नेता जी ने  माल,

नहीं  भा  रही  अब  वहाँ, उनको  रोटी-दाल।

उनको  रोटी-दाल , बही   नव   चिंतन  धारा,

छोड़   पुराने   मित्र , तलाशा   और   सहारा।

कहते  सत्य  विवेक,नया  फिर  ठौर  बनाया,

भूले  उसको  आज ,जहाँ  वर्षों  तक खाया।        

@

कुंडलिया-2

जिसकी  बनती  हो  बने, सूबे  में  सरकार,

हर  दल   में  हैं  एक-दो, उनके  रिश्तेदार।

उनके   रिश्तेदार, रोब   है   सचमुच  भारी,

सब   साधन  हैं  पास,नहीं  कोई  लाचारी।

अब उनकी दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,

बन जाए सरकार,यहाँ हो  जिसकी बनती।

      @ओंकार सिंह विवेक 


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 👈👈


February 21, 2024

अपनी बात

मित्रो सुप्रभात🌹🌹🙏🙏
 
कुछ अपने बारे में
**************
लिखने का शौक़ मुझे विद्यार्थी जीवन से ही रहा है। हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट में मेरी कई रचनाएँ कॉलेज मैगजीन में प्रकाशित हुईं।प्रारंभ में कुछ कहानियां,लेख तथा क्षणिकाएं और अतुकांत रचनाएँ लिखीं। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरी प्रारंभिक रचनाएँ भी नवभारत टाइम्स और सरिता/मुक्ता जैसे राष्ट्रीय स्तर की पत्र तथा पत्रिकाओं में छपींं। 
स्थानीय अख़बारों में भी दर्जनों रचनाएँ छपती रहीं हैं। धीरे-धीरे वरिष्ठ साहित्यकारों के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के चलते मंचों पर भी काव्य पाठ करने लगा। जैसे-जैसे चिंतन में परिपक्वता आई, मुझे महसूस हुआ कि मैं ग़ज़ल विधा में अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली ढंग से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता हूं। तब से इस विधा की ओर गंभीरता से ध्यान देना प्रारंभ किया।ग़ज़ल की बारीकियां समझने और उच्चारण की शुद्धता के लिए उर्दू भाषा का बेसिक ज्ञान भी प्राप्त किया।यह बात ठीक है कि ग़ज़ल विधा अरबी, फ़ारसी तथा उर्दू से होती हुई हिंदी में आई है परंतु आज इसकी लोकप्रियता किसी से छुपी हुई नहीं है। हिन्दी देवनागरी में निरंतर छप रहे ग़ज़ल-संग्रह इस बात का प्रमाण हैं कि ग़ज़ल शिद्दत से पाठकों/श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है।ग़ज़ल का शेर यदि ढंग से समझ में आ जाए तो आदमी चिंतन के समुंदर में उतर जाता है।प्रसंगवश ग़ज़ल की ताक़त को लेकर मुझे यह शेर याद आ गया :
            मैं तो ग़ज़ल सुनाके अकेला खड़ा रहा,
            सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए।
                   स्वर्गीय कृष्ण बिहारी नूर
अपनी ग़ज़ल यात्रा के क्रम में कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए।कई साहित्यिक मित्रों ने कहा कि तुम ग़ज़ल पर इतना ज़ोर क्यों दे रहे हो हिंदी काव्य की विधाओं में सृजन करो। मुझे साथियों की यह दलील कुछ ख़ास जमी नहीं।जिस विधा में व्यक्ति सहज महसूस करता हो उसमें ही श्रेष्ठ सृजन कर सकता है, ऐसा मेरा मानना है।
हिन्दी मेरी मातृ भाषा है और हिन्दी काव्य की अधिकांश विधाओं यथा गीत,नवगीत,मुक्तक, दोहा और कुंडलिया आदि में भी मैं अक्सर सृजन करता हूं परंतु मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल ही है। आपके आशीर्वाद से वर्ष 2021में "दर्द का अहसास" के नाम से मेरा पहला ग़ज़ल-संग्रह आ चुका है।उसके बारे में काफ़ी विस्तार से मैं अपनी पिछली कई ब्लॉग पोस्ट्स में लिख चुका हूं।
अपनी साहित्यिक अभिरुचि के चलते मुझे सेवाकाल में अपने बैंक की गृह पत्रिका बुलंदियों का संपादन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
आप जैसे शुभचिंतकों के प्रोत्साहन और आशीर्वाद से पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के साथ-साथ साहित्यिक/ग़ज़ल यात्रा बदस्तूर जारी है।यदि कोई विशेष अड़चन नहीं आई तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" आपके मुबारक हाथों में होगा।इस पर निरंतर काम चल रहा है।
अपनी साहित्यिक गतिविधियों /पुस्तक समीक्षाओं और यात्रा/भ्रमण आदि से संबंधित सामग्री मैं अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता रहता हूं जिसे आपका भरपूर स्नेह प्राप्त हो रहा है। इसके लिए ह्रदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूं।अब तक पांच सौ से अधिक पोस्ट्स ब्लॉग पर लिख चुका हूं।अपने बेटे के आग्रह साहित्यिक तथा अन्य गतिविधियों को लेकर Onkar Singh Vivek के नाम से एक यूट्यूब चैनल भी बना लिया है। जिस पर जाकर आप मेरी ग़ज़लों/कवि सम्मेलनों तथा अन्य रोचक सामग्री का आनंद ले सकते हैं।यदि यूट्यूब चैनल को subscribe बटन दबाकर नि:शुल्क सब्सक्राइब करके मेरा उत्साहवर्धन करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी 
🌹🌹🙏🙏
चलते-चलते अपनी एक ग़ज़ल का मतला हाज़िर करता हूं :
      मसर्रत  के गुलों  से घर मेरा  गुलज़ार  होता है,
      इकट्ठा जब किसी त्योहार पर परिवार होता है।
                 @ओंकार सिंह विवेक 
विनीत
ओंकार सिंह विवेक


विशेष
******
1.मेरी ग़ज़लें आप ओंकार सिंह विवेक नाम सर्च करके rekhta.org पर भी पढ़ सकते हैं।
2.इसी प्रकार kavitakosh.org पर भी मेरा नाम सर्च करके ग़ज़लों का आनंद ले सकते हैं।

February 19, 2024

कविता के दो रंग


दोस्तो नमस्कार 🙏🙏
आज समय की मांग के अनुरूप ग़ज़ल का फ़लक भी विराट हो चुका है। ग़ज़लकार अब परंपरागत कथ्यों से हटकर अपने समय, समाज और संस्कृति को पूरी संवेदना के साथ ग़ज़लों के कथ्य में पिरो रहे हैं।आज हिंदी में भी ग़ज़लकारों की एक पूरी श्रृंखला है जो अपनी ग़ज़लों के जदीद कथ्यों से ग़ज़ल विधा को नई ऊंचाईयां दे रही है। हरेराम समीप, द्विजेंद्र द्विज, राजमूर्ति सौरभ, अशोक रावत और के पी अनमोल जैसे तमाम नाम आज हिन्दी देवनागरी में ग़ज़ल विधा को नए आयाम दे रहे हैं। हां,यह बात ठीक है कि अभी भाषाई स्तर पर कुछ शब्दों के नुक्ते सहित उच्चारण, वज़्न तथा लिंग आदि को लेकर हिन्दी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओं के विद्वानों के अपने-अपने आग्रह हैं। ऐसा हर भाषा के अपने मानक स्वरूप की माँग के कारण स्वाभाविक भी है।परंतु इन मुद्दों पर सामंजस्य हेतु निरंतर सार्थक चर्चाओं का दौर जारी है जो अच्छी बात है। आखि़र किसी भी लोकप्रिय काव्य विधा की राह के अवरोध दूर होने ही चाहिए।
आज मेरे ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" से दो ग़ज़लें आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत हैं :
******************************************

       (१)
सच को मन  में बसा  लिया हमने,
अपना जीवन सजा लिया  हमने।

साफ़गोई   से   ये   हुआ  हासिल,
सबको दुश्मन बना  लिया  हमने।

दी  नहीं उनको कोई  भी ज़हमत,
ख़ुद ही ख़ुद को मना लिया हमने।

मुश्किलें   क्या    बिगाड़   पाएंगी,
हौसला  जब  जगा  लिया  हमने।

झूठ और छल-कपट की दुनिया में,
अपना   ईमां   बचा   लिया  हमने।

             (२)
हाथों   में   चाक़ू-ओ-पत्थर  अच्छे  लगते   हैं,
कुछ  लोगों   को  ऐसे  मंज़र  अच्छे  लगते हैं।

झूठ यहां  जब लोगों  के  सिर  चढ़कर  बोले है,
हमको  सच्चे  बोल  लबों  पर  अच्छे  लगते हैं।

यूं  तो  हर  मीठे  का  है  मख्सूस  मज़ा लेकिन,
सावन   में    फैनी-ओ-घेवर  अच्छे   लगते  हैं।

चांद-सितारे  कौन  कभी  ला  पाया  है  नभ से,
फिर  भी  उनके  वादे अक्सर  अच्छे  लगते  हैं।

हर मुश्किल से आंख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें   भी   हों  ऐसे   तेवर  अच्छे   लगते  हैं।
           @ओंकार सिंह विवेक








        (२ )

February 14, 2024

वसंत पंचमी/शारदे प्रादुर्भाव दिवस

मित्रो प्रणाम 🌷🌷🙏🙏
कुहरेे से लड़ने के बाद सूरज फिर से अपनी वही चमक पाने लगा है।अब तापमान भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है।खेतों में सरसों और उद्यानों में खिलते फूल मस्ती में आकर झूम रहे हैं यानी वसंत का आगमन हो चुका है।
आज वसंत पंचमी है और विद्या की देवी सरस्वती का प्रादुर्भाव दिवस भी।इसके साथ ही छायावाद के चार स्तंभों (महादेवी वर्मा , सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद तथा पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला) में से एक निराला जी का जन्म दिवस भी है। कुल मिलाकर बहुत ही शुभ है आज का दिन।
 वसंत पंचमी तथा सरस्वती जी के प्रादुर्भाव दिवस के पावन अवसर पर एक मुक्तक आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है :
     @
     सप्त सुर लय ताल का  उपहार दो,
     ज्ञान का अनुपम अतुल भंडार दो।
     अनवरत  नूतन  सृजन  करती रहे,
     लेखनी  को  शारदे  वह  धार  दो।
             @ओंकार सिंह विवेक

Featured Post

सर्दी वाले दोहे 🪨🪨

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏 आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ...