August 31, 2023

लाल को खाना-कमाना आ गया

कई दिन बाद एक मुकम्मल ग़ज़ल दोस्तों की नज़्र
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झुग्गियों  का  हक़ दबाना आ  गया,
कोठियों को  ज़ुल्म ढाना  आ गया।

लग  रहा  है  खेत  की  मुस्कान  से, 
धान  की  बाली में  दाना  आ गया।

दूधिया ख़ुश  है कि बेटे को भी अब, 
दूध  में   पानी  मिलाना  आ   गया।

साफ़गोई   की   इलाही   ख़ैर    हो, 
चापलूसों  का   ज़माना  आ   गया।

चाहिए अब और  क्या  माँ-बाप को,    
लाल को  खाना-कमाना  आ  गया।

वो   सभी  रौनक   हुए  दरबार   की,   
हाँ में  जिनको सर हिलाना आ गया।

रोज़   रोगी   सांस   के    बढ़ने  लगे,               
गाँव  में   क्या  कारखाना आ  गया।

करते-करते मश्क़,मिसरे पर 'विवेक',
हमको भी मिसरा  लगाना  आ गया।
          @ओंकार सिंह विवेक 

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