November 29, 2020

सर्दियाँ कैसे होंगी पार


दोहे सर्दी के
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                   ----ओंकार सिंह विवेक
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  मचा  दिया   कैसा  यहाँ , कुहरे  ने  कुहराम,
  दिन  निकले ही लग रहा,घिर आई हो शाम।
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   हर पल बढ़ता देखकर ,शीत लहर का ताव,
   गली-सड़क के मोड़ पर,जलने लगे अलाव।
  💥
   गर्म  सूट  में  सेठ  का , जीना  हुआ  मुहाल,
   पर  नौकर  ने  शर्ट  में, जाड़े  दिए  निकाल।
  💥
   सोचें  जैकब -हाशमी , नानक -रामस्वरूप,
   सूरज निकले तो तनिक,सेकें  हम  भी धूप।
  💥
   तिल  के  लड्डू -रेवड़ी ,  मूँगफली -बादाम,
   तन   को  देते   हैं  बहुत ,  सर्दी  में  आराम।
  💥
   तन  पर  लिपटे  चीथड़े, और शीत की मार,
   निर्धन   सोचे   सर्दियाँ  ,  कैसे   होंगी  पार।
  💥
   जब  कुहरे  ने  रात-दिन,खेला शातिर खेल,
   पड़ी  काटनी सूर्य  को , कई-कई दिन जेल।
  💥
                          ------ओंकार सिंह विवेक
                                  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
  

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    गुरु नानक देव जयन्ती
    और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. Sundar aur samayik

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