December 5, 2025

अपनी बात ग़ज़ल के साथ

सभी स्नेही जनों को असीम सुप्रभात 🌹🌹🙏🙏
साथियो सोचा कि अपनी लोकप्रिय विधा ग़ज़ल में आज फिर अपने दिल के एहसासात आपके साथ साझा करूँ।तो लीजिए हाज़िर है मेरी एक ग़ज़ल।यदि ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो आभारी रहूँगा 🙏

            ग़ज़ल 
             ****

'आजिज़ी  तो   है  नहीं   गुफ़्तार में,
कौन    पूछेगा    हमें     दरबार   में।

नफ़सियाती   नुक़्स   है  दो-चार  में,
वर्ना  है   सबका ‘अक़ीदा  प्यार  में।

संग  रखता  है  उसे  जो   ये  गुलाब,
कुछ तो देखा होगा आख़िर ख़ार में।

बारहा   रोता   है   दिल  ये  सोचकर,
वन  कटेगा  शहर   के   विस्तार   में।

पूछने    आए     थे     मेरी   ख़ैरियत,
दे   गए   ग़म   और   वो  उपहार  में।

'मीर' 'ग़ालिब' 'ज़ौक़' सबका शुक्रिया,
रंग क्या-क्या  भर  गए  अश'आर में।

बैठा  है  परदेस  में   लख़्त-ए-जिगर,
क्या  ख़ुशी  माँ  को मिले त्यौहार में।
                     -- ओंकार सिंह विवेक

'आजिज़ी -- लाचारी/दीनता 
गुफ़्तार -- बातचीत
नफ़सियाती नुक़्स - मानसिक विकार
'अक़ीदा-- श्रद्धा 
बारहा -- - बार-बार 
अशआर -- शे'र का बहुवचन 
लख़्त-ए-जिगर-- जिगर का टुकड़ा


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