December 9, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की दसवीं काव्य गोष्ठी संपन्न


              कोठियों को ज़ुल्म ढाना आ गया 

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साहित्यकारों का दायित्व होता है कि वे अपने सृजन से समाज को सार्थक संदेश देते रहें।साहित्यकार किसी आम बात को भी अपने कौशल से इस तरह कहने की सामर्थ्य रखता है कि वह आम बात भी ख़ास बनकर सुनने वालों के दिलों पर गहरा असर छोड़ जाती है।काव्य सृजन के माध्यम से अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करती आ रही साहित्यिक संस्था उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई द्वारा अपनी नियमित काव्य गोष्ठियों की श्रृंखला में उपाध्यक्ष प्रदीप राजपूत माहिर के आवास पर दसवीं काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। काव्य गोष्ठी/निशस्त की अध्यक्षता सोहन लाल भारती जी ने की तथा मुख्य अतिथि जावेद रहीम साहब रहे। 

स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक द्वारा प्रस्तुत की गई सरस्वती वंदना के पश्चात गोष्ठी में अपनी शानदार ग़ज़ल पढ़ते हुए नौजवान ग़ज़लकार गौरव नायक ने कहा-- 


         पहले हम  सारी फनकारी समझेंगे,

          उसके बाद ही दुनियादारी समझेंगे।

काव्य पाठ करते हुए पतराम सिंह जी ने  कहा 


     दिलों  में  ख़ामोशी  उतरती  चली  गई,

     निगाह से एक रौशनी गुज़रती चली गई।

 ओंकार सिंह विवेक ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी ग़ज़ल के इस शेर पर ख़ूब दाद पाई 


   झुग्गियों का हक़ दबाना आ गया,

    कोठियों को ज़ुल्म ढाना आ गया।

गोष्ठी के मेज़बान प्रदीप राजपूत माहिर जी की ग़ज़ल का यह शेर भी श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसंद किया गया 


        ग़म है तो फिर ग़म में ख़ुश हैं,

         हम चश्मे-पुरनम में ख़ुश हैं।

जनसरोकारों के प्रति सचेत रहने वाले सुधाकर सिंह परिहार ने काव्य पाठ करते हुए कहा 


        नेता कब नेता से हारा, दल भी दल से नहीं हारते।

        कोई हारा कहीं अगर तो, समझो जनता ही हारी है।     

संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपने इस शेर पर दाद वसूली 


      हौले से ज़मीं को हिला के कह रहा है वो,

      आमाल करो नेक वरना मिट ही जाओगे।

जावेद रहीम जी ने अपने ख़यालात का इज़हार करते हुए कहा 


       कभी फुर्सत से लिखूंगा वो गुज़रे पल,

       जिन्हें जी नहीं पाया रह गए वो अधूरे पल।

युवा ग़ज़लकार सुमित सिंह मीत का यह शेर भी ख़ूब सराहा गया 


     ग़लती करने से बेहतर है देखके औरों को सीखें,

     कुछ मौक़ों पर पास हमारे एक ही मौक़ा होता है।

सोहन लाल भारती जी ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा 


        बना अपने को मोमबत्ती के समान,

         जो ख़ुद जले उजाले से भर दे कमरे को।        

आमंत्रित श्रोताओं ने कवि/शायरों की धारदार रचनाएं सुनकर बार-बार करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया।देर रात तक चली कवि गोष्ठी में उपरोक्त के अतिरिक्त विनोद कुमार शर्मा,सलोनी राजपूत आदि भी ख़ास तौर पर मौजूद रहे। गोष्ठी का संचालन ओंकार सिंह विवेक द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

गोष्ठी की कवरेज के लिए हम सम्मानित समाचार पत्रों का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं 🙏









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