February 28, 2024

रौशनी 'इल्म की

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

आजकल एक तरही मिसरे पर ग़ज़ल कहने की काविशें चल रही हैं।संयोग से अभी मतला' तो नहीं हो पाया है ग़ज़ल का। हाँ,दो शेर(अशआर) हो गए हैं जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं।ग़ज़ल कहते वक्त अक्सर ऐसा होता है कि कभी मतला' पहले हो जाता है और फिर कई-कई दिन तक कोई शेर नहीं होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अचानक कई अच्छे शेर हो जाते हैं ग़ज़ल के परंतु मतला' नहीं सूझता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मां शारदे की कृपा से चिन्तन की उड़ान अपने चरम पर होती है और एक सिटिंग में ही ग़ज़ल मुकम्मल हो जाती है। आप सम्मानित साहित्यकारों के साथ भी कभी न कभी ऐसा ज़रूर हुआ होगा।काव्य सृजन के दौरान हुए अपने अनुभवों को यदि आप भी साझा करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी।
फ़िलहाल आप नई ग़ज़ल के दो शेर मुलाहिज़ा करें,जल्द ही पूरी ग़ज़ल आपकी ख़िदमत में हाज़िर करूंगा :

@
आदमी   को   क़रीने   जीने   के,
'इल्म की  रौशनी  से  मिलते  हैं।

ख़ैरियत लेने  की  ग़रज़ से  नहीं,  
दोस्त अब काम ही से मिलते हैं।
       @ओंकार सिंह विवेक






2 comments:

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...