May 27, 2022

कुछ अपनी कुछ कविता की

कल का दिन अत्यधिक व्यस्तता भरा रहा।दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में हिस्सेदारी रही।
पहला कार्यक्रम मिगलानी सेलिब्रेशन मुरादाबाद में प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवा निवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति मुरादाबाद द्वारा आयोजित किया गया था।यहाँ समिति के सदस्य के रूप में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ।सभा में संस्था के पदाधिकारियों द्वारा सेवा निवृत्त कर्मचारियों/उनके आश्रितों के कल्याण और उनके लंबित मुद्दों आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला गया तथा समिति द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों से अवगत कराया गया।समिति के सदस्यों की सदस्यता बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया।
यह एक कटु सत्य है कि व्यक्ति जब अपने जीवन का एक बड़ा भाग सरकारी या ग़ैर सरकारी सेवा को समर्पित करके रिटायर होता है तो विभाग द्वारा उसके अवकाश प्राप्ति के परिलाभों या अन्य देय सुविधाओं के निस्तारण में अक्सर उदासीनता बरती जाती है।इस बात के अपवाद भी हो सकते हैं परंतु ऐसा अक्सर देखने में आता है।उस समय रिटायरी की बात को उठाने वाला कोई नहीं होता।ऐसे समय आदमी को संगठन की शक्ति का एहसास होता है।अतः सेवा निवृत्त कर्मचारियों का ऐसे संगठनों से जुड़े रहना ज़रूरी है।रिटायरीज़ के लिए इस दिशा में प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवा निवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति मुरादाबाद द्वारा किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं।

शाम को दूसरा कार्यक्रम ज़ेनिथ होटल रामपुर में भारत विकास परिषद की रामपुर इकाई द्वारा आयोजित किया गया था।मेरे बैंक के ही अवकाश प्राप्त वरिष्ठ साथी श्री अभय शंकर अग्रवाल साहब का बहुत-बहुत आभार कि उन्होंने मुझे राष्ट्रीय एकता और भारतीय संस्कारों के पोषण और संरक्षण में महती भूमिका निभाने वाले संगठन की सदस्यता ग्रहण कराई।उल्लेखनीय है कि भारत विकास परिषद पूरे भारत वर्ष में अपनी इकाइयों के माध्यम से शैक्षणिक और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ-साथ जन सेवा के कार्यों में भी निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है।
इस कार्यक्रम में हमारी(पति और पत्नी की) मेहमान के तौर पर पहली परिचयात्मक उपस्थिति थी।
इस वृतांत के साथ यदि कविता का तड़का न लगे तो फिर पोस्ट का मज़ा ही क्या?
तो लीजिए दोस्तो हाज़िर हैं मेरे कुछ दोहे : 
🌷
मिली  कँगूरों  को  सखे,तभी  बड़ी  पहचान,
दिया नीव  की  ईंट ने,जब  अपना बलिदान।
🌷
कलाकार  पर   जब  रहा,प्रतिबंधों  का  भार,
नहीं कला में आ सका,उसकी तनिक निखार।
🌷
मँहगाई    को    देखकर, जेबें   हुईं    उदास,
पर्वों   का   जाता  रहा,अब  सारा   उल्लास।
🌷
भोजन  करके   सेठ  जी,गए  चैन   से  लेट,
नौकर   धोता   ही   रहा, बर्तन  ख़ाली  पेट।
🌷
चल हिम्मत  को बाँधकर,जल में पाँव उतार,
ऐसे  तट  पर  बैठकर,नदी  न   होगी   पार।
🌷         ---ओंकार सिंह विवेक
                 (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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4 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  2. सच में सराहनीय प्रयास है ये साथ ही सार्थक सृजन।

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    Replies
    1. तन्मय जी शुक्रिया🙏🙏

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