September 15, 2025

हिंदी दिवस पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी

हिंदी भाषा के सर्वत्र प्रभाव और इसके अधिकांश भारतीय प्रांतों में बोले जाने के कारण १४ सितंबर,१९४९ को स्वतंत्र भारत की संविधान सभा ने हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा अर्थात राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था।तभी से प्रत्येक १४ सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

इसी कड़ी में १४ सितंबर ,२०२५ को हिंदी दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की एक काव्य गोष्ठी सभा के सदस्य पतराम सिंह के गंगापुर आवास विकास रामपुर स्थित आवास पर आयोजित की गई।गोष्ठी की अध्यक्षता सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक द्वारा की गई तथा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में क्रमशः सभा के संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी तथा सह सचिव सुमित सिंह मीत ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

सरस्वती वंदना के  पश्चात मंच पर काव्य पाठ के लिए आए सुधाकर सिंह परिहार ने हिंदी की महत्ता बताए हुए कहा 


  अ अनपढ़ से शुरू होकर ख़त्म होती है ज्ञ से ज्ञान पर,

  हमें गर्व है अपनी मातृभाषा हिंदी महान पर।

आतिथेय पतराम सिंह ने मातृ भाषा हिंदी का वंदन कुछ इस प्रकार किया 



          मातृभाषा माँ भारती को कोटि कोटि प्रणाम करें,

          संस्कृति की धरोहर का आज नया निर्माण करें।

सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने राजभाषा हिन्दी के सम्मान में अपने गीत का मुखड़ा पढ़ा 


      दुनिया में भारत के गौरव मान और सम्मान की,

      आओ बात करें हम अपनी हिंदी के यशगान की।

           जय अपनी हिंदी ! जय प्यारी हिंदी !

संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपना जदीद शेर पढ़ते हुए कहा 


कुल्हाड़ी में अगर लकड़ी का ये हत्था नहीं होता,

शजर की पीठ पर जो घाव है गहरा नहीं होता।

सचिव राजवीर सिंह राज़ ने भारत की बहुरंगी संस्कृति की प्रशंसा करते हुए कहा 

      है यह विविध रंग से रंगा हमारा देश,

      भिन्न भिन्न भाषाएँ भिन्न भिन्न परिवेश।

उपाध्यक्ष प्रदीप राजपूत माहिर ने  अपनी ग़ज़ल का मतला पढ़ते हुए कहा 

         फ़ैसले जब कभी कड़े होंगे,

         सब मुक़ाबिल मेरे खड़े होंगे।

गौरव नायक ने अपना शानदार शेर पढ़ा

          ख़ाक करके बदन उड़ाती है,

          मौत करतब अजब दिखाती है।

सह सचिव सुमित सिंह मीत ने पढ़ा 

  घर का आँगन है छोटा मगर रहने वालों के दिल हैं बड़े,

      खुशबुएं प्यार की हैं यहां नफ़रतों का बसेरा नहीं।

सोहन लाल भारती ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यों दी 

    फ़ुर्सत से तू आ जाना हम तेरी राह में खड़े,

    भटक न जाए मन मेरा नैना बिछाएं यहीं बैठे खड़े।

अशफ़ाक़ ज़ैदी ने तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा 

        रास आता नहीं है ज़माना मुझे,

         क्यों तबीयत मिली बाग़ियाना मुझे। 

सभा के संरक्षक प्रसिद्ध शायर ताहिर फ़राज़ साहब ने हिंदी की विशाल हृदयता को प्रणाम करते हुए कहा 

      अपने अपने रंग हैं सबके अपनी अपनी बोली,

      हर बोली को अपने रंग में रँग ले एक अकेली,

       हिंदी सरल सरस अलबेली।

राजभाषा हिन्दी तथा समसामयिक विषयों पर कवियों ने अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियों से देर रात तक आमंत्रित अतिथियों को बांधे रखा।उपरोक्त के अतिरिक्त सरिता सिंह, प्रज्ञा सिंह तथा अभिनव सिंह आदि भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

अंत में सभी का आभार व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने बताया कि अपने गठन के बाद से सभा द्वारा यह आठवीं सफल काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।उन्होंने बताया कि भविष्य में स्थानीय इकाई द्वारा शीघ्र ही कोई बड़ा साहित्यिक आयोजन करने पर भी विचार किया जा रहा है।गोष्ठी का संचालन सभा के सचिव राजवीर सिंह राज़ ने किया।

द्वारा 
ओंकार सिंह विवेक 

प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्रों द्वारा कार्यक्रम की शानदार कवरेज करने के लिए हम उनका ह्रदय तल से आभार प्रकट करते हैं 🙏







September 12, 2025

पुस्तक परिचय : पुस्तक का नाम-- संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक


                  पुस्तक परिचय 

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   पुस्तक : संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के  कथानक 

   लेखक : डॉo गीता मिश्रा 'गीत' 

प्रकाशक : इथोस सर्विसेज,कपिल कॉम्प्लेक्स,कालाढूंगी रोड हल्द्वानी,जनपद नैनीताल 

प्रकाशन वर्ष : 2025 पृष्ठ संख्या : 384 मूल्य रुo 300/-


मैं जब भी आज की महिला शक्ति के बारे में कुछ सोचता हूँ या किसी मंच से उनकी उपलब्धियों के बारे में कुछ कहने का अवसर पाता हूँ तो मुझे महिलाओं के सम्मान में कहा गया अपना ही यह दोहा याद आ जाता है-- 

          दफ़्तर   में  भी धाक है,घर  में भी  है राज। 

          नारी नर से कम नहीं,किसी बात में आज।। 

आईए पुस्तक परिचय के बहाने महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती आज एक ऐसी ही महिला साहित्यकार के रचनाकर्म से अवगत होते हैं जिन्होंने घर तथा दफ़्तर दोनों ही मोर्चों पर अच्छा संतुलन रखते हुए देर से ही सही परंतु साहित्य के छेत्र में अपनी पहचान बनाई है।


जी हाँ ,मैं बात कर रहा हूँ  हल्द्वानी, उत्तराखंड निवासी डॉo गीता मिश्रा गीत जी की जो केंद्रीय विद्यालय से अवकाश प्राप्त शिक्षिका हैं और वर्तमान में पूरी तरह से साहित्य साधना में रत हैं।डॉटर गीता मिश्रा गीत जी की पुस्तक 'संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक' इस समय मेरे हाथ में है जिससे आज आपका परिचय कराना चाहता हूँ।बताते चलें की डॉo गीता मिश्रा गीत जी ने वर्ष 1984 में हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक सम्मानीय बालकृष्ण भट्ट जी के पर पोते डॉ मधुकर भट्ट जी के निर्देशन में 'आधुनिक हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक' विषय पर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की थी।उसी  शोध प्रबंध में कुछ परिवर्तन के साथ गीत जी ने 'संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक' नाम से एक ग्रंथ की सर्जना की है। यह पुस्तक उनके शोध प्रबंध लेखन के मध्य किए गए गहन अध्ययन का परिणाम है। डाo गीता मिश्रा गीत जी ने यह पुस्तक अपने पिताश्री स्मृतिशेष मथुरा प्रसाद कोठारी जी को समर्पित की है। यह भाव उनके उच्च पारिवारिक परिवेश एवं संस्कारों को  प्रतिबिंबित करता है। 


आमतौर पर यह देखने में आता है कि शोधार्थियों द्वारा विषय विशेष पर किए गए शोध कार्य की जानकारी शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों तथा उन क्षेत्रों में रुचि रखने वालों तक ही सीमित होकर रह जाती है। वह आम जन तक नहीं पहुँच पाती। डॉ गीता मिश्रा गीत जी ने अपने शोध प्रबंध लेखन के आधार पर यह पुस्तक सृजित करके श्री राम के जीवनचरित्र का रसपान करने के अभिलाषी जनों के लिए एक महान कार्य किया है।  प्रस्तुत पुस्तक को मैंने अच्छी तरह पढ़ा है और इसकी महत्ता को समझा है।

पुस्तक को पढ़ने से हमें पता चलता है कि रामायण के कथानकों के मूल स्रोत हिंदू धर्म के प्राचीनतम वेद ग्रंथों में विद्यमान हैं। पुस्तक में ऋग्वेद के एक मंत्र का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कैसे उसमें श्री राम कथा के निम्न प्रसंगों का उल्लेख मिलता है :

 सीता जी के साथ श्री राम का वन गमन/सीता हरण/ हनुमान जी द्वारा  स्वर्णमयी लंका का दहन करना/ रावण द्वारा अपनी हिंसक सेनाओं के साथ श्री राम के सम्मुख पहुंचना आदि।

 

इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि वेदों के अतिरिक्त  कहाँ-कहाँ उपनिषद एवं पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में रामायण के कथानकों के प्रसंगों का वर्णन मिलता है। चूंकि यह शोध पर आधारित पुस्तक है अतः विस्तार से श्लोकों/मंत्रों आदि को प्रमाण सहित उद्धरित करते हुए बहुत ही आसान भाषा में यह बताया गया है कि किन-किन प्राचीन ग्रंथो में कहाँ-कहाँ रामायण के कथानकों का उल्लेख मिलता है। पुस्तक को जैसे-जैसे पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे ही यह जानने की इच्छा प्रबल होती जाती है कि साहित्य की और किन-किन पुस्तकों में रामायण के कथानकों के प्रसंग मिलते हैं।


 पुस्तक में बताया गया है कि रामायण के कथानकों का प्रयोग संस्कृत साहित्य तथा हिन्दी साहित्य के आदिकाल,भक्तिकाल एवं रीतिकाल में भी खुलकर हुआ है। भक्तिकाल में यदि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का सृजन किया तो सूरदास जी ने भी रामायण के कथानको को अपनी पुस्तक 'सूरसागर' में पर्याप्त स्थान दिया है।रीतिकाल की बात करें तो केशव की 'रामचंद्रिका' को भला कौन साहित्यकार नहीं जानता होगा? रामायण की राम कथा के व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक पक्षों को आधुनिक हिन्दी  साहित्य में किस प्रकार निरूपित किया गया है तथा समाज उसके विभिन्न पहलुओं से किस प्रकार प्रेरणा लेता है,यह भी इस पुस्तक में संदर्भित ग्रंथों एवं साहित्यकारों के नामों को उद्धरित करते हुए विस्तार से बताया गया है। कृतिकार ने अंत के पृष्ठों में यह भी बताया है की आधुनिक युग के साहित्यकारों में से अधिकांश ने रामायण के कथानकों को ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए अपने सृजन में निरूपित किया है जबकि कुछ साहित्यकारों ने अपने जीवन दर्शन तथा समसामयिक परिस्थितियों के आधार पर उन्हें परिवर्तित भी किया है, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि समाज तथा साहित्य समसामयिक परिस्थितियों से प्रभावित न हो यह कैसे संभव है ?


लेखक ने बताया है कि रामायण के कथानक आधुनिक साहित्य की कृतियों में भरे पड़े हैं। मैथिलीशरण गुप्त कृत 'साकेत', 'पंचवटी' निराला कृत 'राम की शक्ति पूजा' हरिऔध कृत 'वैदेही वनवास' दिनकर कृत 'उर्वशी' भारतेंदु कृत 'सत्य हरिश्चंद्र' नाटक आदि साहित्यिक कृतियों में स्वच्छंद रूप से यत्र-तत्र रामायण के कथानकों की झांकियां मिलती हैं। पुस्तक में उपसंहार के पश्चात परिशिष्ट में रामायण-परवर्ती साहित्य जिन रामायणी कथानकों को आधार मानकर सर्जित हुआ है उनका भी उल्लेख किया गया है। 


शोध प्रबंध एवं इस पुस्तक की सर्जना में जिन मूल ग्रंथों से संदर्भ ग्रहण किए  गए हैं उनका पुस्तक के अंत  में संपूर्ण विवरण दिया गया है। पुस्तक के कवर पृष्ठों के भीतर की ओर  डॉ गीता मिश्रा गीत जी की  साहित्यिक उपलब्धियों के छायाचित्र भी दिए गए हैं जिन्होंने पुस्तक की सुंदरता को और भी बढ़ा  दिया है। पुस्तक की भाषा बहुत सहज और सरल है। मैं पुस्तक को पढ़ने के बाद कह सकता हूँ कि यह पुस्तक पढ़ने एवं सहेजने योग्य है। अतः इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। मैं डॉo गीता मिश्रा गीत जी के उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी पारिवारिक जीवन की कामना करता हूँ ताकि भविष्य में हमें उनकी और श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों का रसास्वादन करने का अवसर प्राप्त हो सके। 

 किताबों के बारे में अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने कहा था :

There is no friend as loyal as a book.

अर्थात किताब से अधिक वफ़ादार कोई दोस्त नहीं होता। 

इसी तरह Edward Gibbon ने कहा था :

 'पुस्तकें वे विश्वसनीय दर्पण हैं जो संतो और महान पुरुषों के मानसों को हमारे मानसों में प्रतिबिंबित करती हैं।'

अतः हम सब अच्छे साहित्य तथा अच्छी किताबों को अपना दोस्त बनाएं।

     द्वारा :

ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


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September 5, 2025

पुस्तक परिचय - "नदी की प्यास" (ग़ज़ल-संग्रह)

   

                           पुस्तक समीक्षा 

                            ************

                 कृति : 'नदी की प्यास' (ग़ज़ल-संग्रह) 

                 कृतिकार : डॉo उषा झा रेणु 

                 प्रकाशक : हंस प्रकाशन, नई दिल्ली  

                 प्रकाशन वर्ष : 2024 मूल्य : 395 रुपए 

पुस्तक परिचय प्रदाता/समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 


काव्यकार अपने हृदय की कोमल अनुभूतियों को विभिन्न काव्य विधाओं यथा गीत, नवगीत, दोहा, मुक्तक, कुंडलिया, घनाक्षरी तथा ग़ज़ल आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं।जहां तक ग़ज़ल की बात है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज ग़ज़ल का जादू काव्यकारों के सिर चढ़कर बोल रहा है। यही कारण है कि मूलतय: अरबी और फ़ारसी भाषाओं में कही गई ग़ज़ल आज उर्दू, हिन्दी ही नहीं अपितु विश्व की अनेक भाषाओं में कहीं जा रही है। ग़ज़ल के दो मिसरों में ही एक बड़े कथ्य को चुस्ती के साथ इस प्रकार पिरो दिया जाता है कि  सुनने वाला वाह वाह करने के लिए मजबूर हो जाता है। ग़ज़ल की मारक क्षमता को लेकर स्वर्गीय कृष्ण बिहारी नूर साहब का यह शेर याद आ रहा है मुझे 

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा,

सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए। 

ग़ज़ल की सार्थकता इसी में है कि उसका एक-एक शेर ऐसा हो कि उसकी गहराई में उतरकर पढ़ने और सुनने वाला विचार मग्न हो जाए।

कुछ समय पूर्व प्रसिद्ध ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी जी द्वारा आयोजित ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार के कार्यक्रम में जाना हुआ था। वहां देहरादून, उत्तराखंड निवासी साहित्यकार डॉ उषा झा रेणु जी ने मुझे अपने ग़ज़ल संग्रह 'नदी की प्यास'  की एक प्रति भेंट की थी।पुस्तक को तन्मयता के साथ पढ़कर मन में विचार आया कि इसके बारे में आप सब के साथ अपने विचार साझा करूं।

ग़ज़ल कहने का जहां तक प्रश्न है प्राय: यह देखने में आता है कि ग़ज़ल की बहर /मापनी और रदीफ़- क़ाफ़ियों आदि का मिलान करना तो जल्दी आ जाता है लोगों को परंतु ग़ज़ल की कहन को पुख़्ता करने में समय लगता है। लेकिन अच्छे शायरों के कलाम को पढ़कर और निरंतर अभ्यास से ग़ज़ल में तग़ज़्ज़ुल एवं कहन का चमत्कार पैदा करना कोई इतना मुश्किल काम भी नहीं है। यह व्यक्ति की व्यक्तिगत क्षमताओं एवं सलाहियतों पर निर्भर करता है की कितनी जल्दी वह अपनी ग़ज़लों  में आकर्षण पैदा कर पाता है। 

रेणु जी के ग़ज़ल संग्रह 'नदी की प्यास' की ग़ज़लों की जहां तक बात है उनमें रिवायती ग़ज़लें भी हैं और सामाजिक सरोकारों पर भी रचनाकार की दृष्टि पड़ी है। रेणु जी की पुस्तक में भाषा के स्तर पर साफ़ सुथरे काफी अशआर हैं जो ध्यान खींचते हैं। उनमें से कुछ आपके साथ साझा करना मैं ज़रूरी समझता हूं 

           ग़म  दिए  जिसे   ज़माने  भर  के, 

           उसकी ख़ातिर भी दुआ है अब तो। 

ग़म देने वाले और सताने वाले की भी भलाई की बात सोचने वाले व्यक्ति की संवेदनशीलता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

जोड़कर दौलत उषा फिर क्या मिला इंसान को, 

एक दिन आख़िर सभी कुछ छोड़ कर जाना पड़ा।

   शख्स वह नफ़रत करे करता रहे पर, 

    मुस्कुरा कर क्यों न उससे प्यार कर लूं। 

पहले शेर में रचनाकार ने कहा है कि जब अंत समय में कुछ साथ ही नहीं जाना तो फिर धन दौलत को ज़िंदगी भर जोड़ने  का क्या लाभ है भला? यह बात बार-बार कुछ सोचने को विवश करती है।इसी प्रकार दूसरे शेर में बांधा गया भाव इंसानियत की कितनी बड़ी सीख देता है कि नफ़रत करने वाले आदमी से प्यार करने का जज़्बा हमें अपने दिल के अंदर पैदा करना चाहिए। 

रखना है भारती का हमें मान तब तलक,

जब तक हमारे जिस्म में बाक़ी लहू रहे। 

इस शेर में देश प्रेम का क्या जज़्बा दिखाई पड़ता है।

रचनाकार की ग़ज़ल के प्रति दीवानगी दर्शाता यह शेर भी देखें 

धुन ग़ज़ल की मुझे लगी ऐसी,

बहर से क़ाफ़िया मिलाया था।

रेणु जी के सादा ज़बान में कह गए कुछ और शेर देखिए जो उनकी संवेदनशीलता को दर्शाते हैं 

ज़िंदगी में जो इल्म पाना है, 

संग उस्ताद की दुआ रखिए।



जिसे माना उषा हमने मसीहा, 

वही ख़ुशियों का क़ातिल हो रहा है। 

भले ही दूर वो मुझसे गया पर, 

मोहब्बत आज तक दिल में न कम है। 

जो जान देकर वफ़ा निभाई तभी तो रिश्ते में जान आई,

युगों-युगों से यह सारी दुनिया हमारा क़िस्सा सुना रही है। 

कभी ज़ीस्त में वक्त प्यारा भी होगा,

ग़मों के भंवर का किनारा भी होगा।

नित चुनौती से घिरी है ज़िंदगी, 

हौसलों से पर सजी है ज़िंदगी।

सँवारा है सृजन पथ को मेरे जिन मित्र वृंदों ने,

मिला आशीष जिनसे वो सुख़नवर याद आते हैं। 

जो मिला है उषा को जीवन में,

वह ख़ुदा की ही तो इनायत है। 

किसान की व्यस्तता और उसकी कठोर मेहनत को चित्रित करता हुआ यह शेर भी देखें 

रोज़ निकला किसान हल लेकर,

सूर्य जब आसमान से निकला। 

सच्ची मोहब्बत की बात करता उनका यह मतला भी ग़ौर करने योग्य है 

उनसे बिछड़ के उनको भुलाया नहीं गया, 

मायूस दिल कहीं पे लगाया नहीं गया। 

सबके भले की कामना करता यह शेर भी देखें 

सुकूं से सफ़र ज़िंदगी का कटे,

सभी के लिए हम दुआ कर चले। 


इश्क़ - मोहब्बत,सामाजिक विसंगतियाँ,सद्भावना, मानवीय संवेदनाएं, प्रकृति प्रेम आदि सभी महत्वपूर्ण विषयों पर रचनाकार ने लेखनी चलाई है जिससे उनकी संवेदनशीलता का पता चलता है। ग़ज़ल संग्रह की भाषा बहुत सरल है जिसके कारण पाठक- श्रोता का सीधे रचनाकार से संवाद स्थापित हो जाता है। थोड़ी- बहुत टंकण त्रुटियां संकलन में छूट गई हैं जैसा अक्सर होता भी है। रेणु जी की बोलचाल की भाषा में आंचलिकता का पुट होने के कारण खड़ी बोली हिंदी में कहीं-कहीं वाक्य में व्याकरण का दोष उत्पन्न हो गया है जिसे नज़र अंदाज़ भी किया जा सकता है।


रेणु जी के बारे में इतना ही कहना चाहूंगा  कि अगर वे इसी प्रकार मन से अभ्यास और मेहनत करती रहीं तो निश्चित ही एक दिन अपनी कहन में निखार के साथ धारदार ग़ज़लें कहने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज करने में सफल होंगी।मैं डॉक्टर उषा झा रेणु जी के सुखी एवं समृद्ध जीवन की कामना करता हूं तथा उन्हें अपना यह दोहा समर्पित करते हुए बात समाप्त करता हूं :

        दफ़्तर में भी धाक है, घर में भी है राज। 

        नारी नर से कम नहीं, किसी बात में आज।।

---- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


        'नदी की प्यास' ग़ज़ल-संग्रह की समीक्षा🌷🌷👈👈






 



September 3, 2025

ग़ज़ल-संग्रह समीक्षा : 'धूप के क़तरे'





                     पुस्तक परिचय 

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               कृति : 'धूप के क़तरे' ग़ज़ल-संग्रह 

          कृतिकार : डॉo घनश्याम परिश्रमी,नेपाल

प्रकाशक : शब्दार्थ प्रकाशन,चाबेल,काठमांडू (नेपाल) 

        प्रकाशन वर्ष : 2023

      परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह विवेक 

आज ग़ज़ल साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधाओं में से एक है। मूलतय: अरबी और फारसी भाषाओं से होते हुए ग़ज़ल उर्दू तथा हिंदी भाषाओं में आई। एक समय था जब इश्क़/मोहब्बत के तमाम पहलुओं को ही ग़ज़ल का कथ्य बनाया जाता था। लेकिन आज की ग़ज़ल जीवन और समाज से जुड़े हर पहलू को अपने में समेटे हुए है। ग़ज़ल अब किसी एक भाषा की न रहकर अपनी भाषा ख़ुद गढ़ रही है। कल्चर के रूप में ग़ज़ल अपने आप में एक इतिहास,रिवायत और संस्कार को समाहित किए हुए है। ग़ज़ल की मक़बूलियत का आलम यह है कि आज यह हिंदी और उर्दू में ही नहीं वरन दुनिया की तमाम भाषाओं और बोलियों में कहीं जा रही है।वर्तमान में ग़ज़ल नेपाली भाषा में भी उतनी ही मक़बूल है जितनी कि हिन्दी भाषा में।इस समय मेरे हाथ में नेपाली भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जी का हिंदी भाषा में प्रकाशित पहला ग़ज़ल-संग्रह 'धूप के क़तरे' है। 


आइए इस ग़ज़ल संग्रह पर गुफ्तगू करने से पहले डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी के बारे में थोड़ी सी जानकारी किए लेते हैं। डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू,नेपाल से अध्यापन कार्य के बाद अवकाश ग्रहण किया है और वर्तमान में पूरी तरह साहित्य साधना में निमग्न हैं।आपका नेपाली भाषा के साथ-साथ संस्कृत तथा हिंदी भाषाओं पर भी अच्छा अधिकार है। नेपाली भाषा में आपके कई ग़ज़ल संग्रह तथा अन्य साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।


 हिंदी भाषा में 'धूप के क़तरे' परिश्रमी जी का पहला ग़ज़ल संग्रह है। ज़ाहिर है कि हिन्दी ग़ज़ल के सफ़र में यह उनकी शुरुआत भर है,आगे यह सफ़र और भी सुहावना होता जाएगा,हम ऐसी आशा करते हैं। अब इस ग़ज़ल संग्रह के पन्ने पलटते हैं। इस संकलन की शीर्षक ग़ज़ल का यह शेर देखें 

 ठिकाना ढूंढते हैं कुछ उजाले रूह के अंदर, 

बदन पर जम रहे हैं मुद्दतों से धूप के क़तरे ।

एक और शेर देखें 

निहाँ एक मुद्दत तेरे दिल के अंदर,

मेरी  ज़िंदगी की  कहानी  रही है। 

इन अशआर से ही आपको परिश्रमी जी के तेवर और उनकी फ़िक्र का अंदाज़ा हो गया होगा।

ख़ुशख़बर आज  तेरी  आई है, 

तुझको दिल से बहुत बधाई है। 

सादा ज़बान में कहा गया यह शेर ग़ज़लकार की संवेदनाओं का परिचय देता है।आर्थिक और सामाजिक भेदभाव प्राचीन काल से ही हर समाज का हिस्सा रहे हैं।इस व्यवस्था को दर्शाता हुआ यह मार्मिक शेर देखिए 

आप कुर्सी पर बैठिए मलिक, 

ख़ैर ,मेरे   लिए    चटाई   है। 

कवि को एक तरफ सामाजिक परिस्थितियाँ,राजनैतिक परिदृश्य,प्राकृतिक घटनाक्रम जैसी चीज़ें सृजन के लिए प्रेरित करती हैं तो दूसरी तरफ स्वयं उसकी विचारधारा और स्वाभाविक रुचियाँ भी उसके काव्य सृजन का विषय बन जाती हैं। रचनाकार ने ग़ज़ल के प्रति अपने लगाव को कितनी ख़ूबसूरती से इस शेर में कह दिया है 

दिल ख़ुश  रहता है मेरा, 

यार ग़ज़ल की महफ़िल में। 

कविता वही प्रभावशाली मानी जाती है जो कोई सार्थक संदेश दे और जिसकी भाषा आम आदमी की भी आसानी से समझ में आ जाए। परिश्रमी जी के इस संदर्भ में ये दो शेर देखिए 

होठों  पर  मुस्कान  रखो  तुम, 

ख़ुद  अपनी पहचान रखो तुम। 

मैंने कह दी  अपनी ख़्वाहिश, 

अब अपना अरमान रखो तुम। 

दुनिया में जब तमाम दोस्त अपने-अपने स्वार्थ के चलते आदमी से दूरी बना लेते हैं तो ग़ज़लकार परिश्रमी जी के क़लम से यह शेर निकलता है 

साथ नहीं अब मेरे कोई, 

दूर  गए  हैं  यार पुराने। 

आज हर आदमी अपनी उलझनों, परेशानियों और ग़मों में मुब्तिला है। किसी के पास वक्त ही कहां है जो दूसरे के ग़मों को समझे और हमदर्दी दिखाए।रचनाकार का यह शेर 

मुसीबत में तुम थे मुसीबत में हम थे, 

तुम्हारे भी ग़म  थे हमारे  भी  ग़म थे। 

डॉ घनश्याम परिश्रमी जी ने यदि रिवायती अशआर कहे हैं तो सामाजिक विसंगतियों तथा आम आदमी के मसाइल को भी उन्होंने अपने अशआर में बांधा है अर्थात उनके चिंतन का  फ़लक काफी व्यापक है। किसी ग़ज़ल में यदि कुछ मुश्किल शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है रचनाकार ने तो उस ग़ज़ल के नीचे मुश्किल शब्दों के अर्थ लिख दिए गए हैं जो एक अच्छी बात लगी मुझे इस संकलन की। इतना ही नहीं हर ग़ज़ल के नीचे उसकी बहर/मापनी भी लिखी है और ग़ज़लकार ने मापनी के निर्वहन का भरसक प्रयास भी किया है। जहां तक ग़ज़ल की कहन और शेरों में तग़ज़्ज़ुल पैदा करने की बात है यह निरंतर अभ्यास से ही संभव हो पाता है। परिश्रमी जी ने पुस्तक में अपनी बात कहते हुए इसका चर्चा भी किया है कि हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में उनका यह पहला प्रयास है अतः त्रुटियां होना स्वाभाविक है। ग़ज़लकार  की इस साफ़गोई की हमें तारीफ़ करनी चाहिए। वैसे भी अपने सृजन को बेहतर करने की संभावनाएं रचनाकार में हमेशा बनी रहनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है। पुस्तक में  टंकण,वाक्य विन्यास या व्याकरण आदि की त्रुटियों को लेकर कुछ और सजग हुआ जा सकता था ऐसा मुझे महसूस होता है। 


मैं डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी के दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि भविष्य में हमें उनकी और भी बेहतर काव्य कृतियां पढ़ने को मिलें। श्री परिश्रमी जी के जोश,जज़्बे और ग़ज़ल के प्रति जुनून को देखते हुए मुझे जलील आली साहब का यह शेर याद आ रहा है :

        रास्ता  सोचते  रहने  से  किधर बनता है, 

        सर में सौदा हो तो दीवार में दर बनता है। 

                             -- जलील आली 

डॉ घनश्याम परिश्रमी जी का ग़ज़ल के प्रति यह जुनून यूं ही क़ायम रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं। 

ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर 


          'धूप के क़तरे' ग़ज़ल-संग्रह की समीक्षा🌹🙏👈👈

        

September 1, 2025

पुस्तक परिचय - "अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का"

      

                           पुस्तक समीक्षा 

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                 पुस्तक : 'अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का'

                 लेखक : दिनेश चंद्र शर्मा 

                 प्रकाशक : ग्रामोदय महाविद्यालय एवं शोध    संस्थान अमरपुर काशी जनपद मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

              प्रकाशन वर्ष : 2024 मूल्य :450/ रुपए 

        पुस्तक परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह विवेक 



यह पुस्तक ग्रामोदय महाविद्यालय एवं शोध संस्थान अमरपुर काशी ज़िला मुरादाबाद के संस्थापक श्री मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा एवं उसके साथ अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा पर आधारित है। इस पुस्तक के लेखक श्री दिनेश चंद्र शर्मा जी ने  पुस्तक में उल्लेख किया है कि यह पुस्तक का प्रथम खंड है अर्थात भविष्य में इस पुस्तक का अगला खंड भी आने की संभावना है।


'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' पुस्तक की भूमिका 

डॉo सत्येंद्र कुमार सिंह, निदेशक वॉलंटरी इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिटी अप्लाइड साइंस-डेवलपमेंट प्रयागराज ने लिखी है। पुस्तक का परिचय देने से पहले मैं आपको आदरणीय मुकट सिंह जी के बारे में थोड़ी सी जानकारी प्रदान कर दूं। इस पुस्तक में उपलब्ध जानकारी के अनुसार श्री मुकट सिंह जी ग्रामोदय संस्थान ग्राम अमरपुर काशी जनपद मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश के संस्थापक हैं। आदर से सब लोग उन्हें बाबू जी कहकर पुकारते हैं। आपने 1959 में आगरा विश्वविद्यालय से एमएससी पास किया।उसके बाद लंदन यूनिवर्सिटी से 1969 में एमएससी स्टैटिसटिक्स किया तथा रॉयल स्टैटिसटिक्स सोसाइटी ऑफ लंदन के चयनित फैलो  भी रहे। आपने भारत तथा इंग्लैंड में अनेक शिक्षण संस्थानों में अध्यापन कार्य किया है। 

श्री मुकट सिंह जी वर्ष,1969 में अपनी माता जी की मृत्यु के पश्चात इंग्लैंड से अपने गांव लौट आए। तभी से उन्होंने  गांव अमरपुर काशी में अमरपुर काशी ग्रामीण पॉलिटेक्निक की स्थापना करके ग्रामीण विकास संबंधी अपनी गतिविधियां आरम्भ कर दी थीं। एक दशक बाद जब संस्थान के सामने  आर्थिक समस्याएं आईं तो वर्ष 1980 में पुनः इंग्लैंड गए, धनोपार्जन किया और वर्ष 1984 में फिर से इंग्लैंड  की नौकरी छोड़कर गांव आ गए।


मुझे श्री मुकट सिंह जी का परिचय देते हुए मजरूह सुल्तानपुरी साहब का यह शेर याद आ रहा है: 

      मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, 

      लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। 

ग्रामीण विकास के सपने को साकार करने वाले जीवट के धनी मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा को पढ़कर मैं नि:संदेह यह कह सकता हूं की मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने यह शेर ऐसे व्यक्तियों के लिए ही कहा होगा। बाबू जी ने अकेले ही ग्रामीण विकास के लिए कुछ अलग करने का बीड़ा उठाया था और धीरे-धीरे उनके साथ उनकी विकास यात्रा में तमाम लोग जुड़ते चले गए जिसके परिणामस्वरुप मुरादाबाद जनपद का अमरपुर काशी गांव आज राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान रखता है।श्री मुकट सिंह जी की मातृभाषा हिंदी है लेकिन वे धारा प्रवाह उर्दू भी बोल सकते हैं। आपने इंग्लैंड में भी शिक्षा ग्रहण की है अतः अंग्रेजी में भी धारा प्रवाह बोलने में आपका कोई सानी नहीं है। इन भाषाओं के अतिरिक्त बाबू जी गुजराती, पंजाबी एवं बंगाली भी भली भांति समझ लेते है। मुकट सिंह जी 91 वर्ष की आयु में आज भी अपने द्वारा स्थापित की गई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा अपने पैतृक गांव अमरपुर काशी में सक्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

इतना शोध एवं इतनी सूचनाओं का संकलन करने के बाद श्री मुकट सिंह जी एवं अमरपुर काशी की विकास यात्रा पर 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाले श्री दिनेश चंद शर्मा जी के बारे में कुछ न कहा जाए तो इस पुस्तक का परिचय देना अधूरा ही कहा जाएगा। 


श्री दिनेश चंद शर्मा तत्कालीन प्रथमा बैंक से अवकाश प्राप्त प्रबंधक हैं। मैंने भी इसी बैंक से अवकाश ग्रहण किया है अतः शर्मा जी से मेरा निकट संबंध रहा है। मैं उन्हें एक बैंकर के रूप में जानने के साथ- साथ उनके Extra curricular Talent से भी अच्छी तरह परिचित हूं। दिनेश चंद्र शर्मा जी  सृजनात्मक लेखन में रुचि के कारण अनेक पत्र पत्रिकाओं से भी जुड़ाव रखते हैं। राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस से नैशनल लेवल तक जुड़ाव रहा है। आप राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस तथा अन्य संस्थाओं/संगठनों द्वारा अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। दिनेश चंद्र शर्मा जी की काव्य तथा योग आदि पर कई पुस्तकें आ चुकी हैं। आपने प्रस्तुत पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से अपनी बात रखते हुए बताया है कि वह ग्रामीण स्तर पर पिछड़ेपन और सुविधाओं की न्यूनता आदि को लेकर विद्यार्थी जीवन से ही चिंतित रहे हैं।अतः श्री मुकट सिंह जी के मिशन और विज़न से बहुत प्रभावित हैं।इसी प्रभाव और प्रेरणा ने उन्हें श्री मुकट सिंह जी के जीवन पर यह किताब लिखने के लिए प्रेरित किया। 

मुझे श्री दिनेश चंद शर्मा जी की प्रतिभा, लगन और समर्पण को देखते हुए नफ़स अम्बालवी साहब का यह शेर याद आ रहा है: 

  उसे ग़ुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है, 

  मुझे यकीं है कि यह आसमान कुछ कम है। 

आईए अब इस महत्वपूर्ण और एक दस्तावेज़ी किताब के, जिसका शीर्षक है 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का'  कुछ पन्ने पलटते हैं। यह पुस्तक कुल पांच अध्यायों में विभक्त है। 

पहले अध्याय में श्री मुकट सिंह जी का बाल्यकाल, शिक्षा- दीक्षा तथा अमरपुर काशी गांव की तत्कालीन दशा के बारे में विस्तार से बताया गया है। 

दूसरे अध्याय में मुकट सिंह जी के देश में शिक्षण कार्य एवं सामाजिक कार्य करके प्राप्त किए गए उपयोगी अनुभवों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

तीसरे अध्याय में श्री मुकट सिंह जी के इंग्लैंड में जाकर शिक्षा प्राप्त करने तथा विकास के क्षेत्र में उनके गहन अनुभव एवं ज्ञान प्राप्त करने के बारे में चर्चा की गई है।उस दौरान जो आर्थिक अभाव बाबू जी ने झेले उनका  मार्मिक चित्रण इस अध्याय में मिलता है। विपरीत परिस्थितियों में कैसे श्री मुकट सिंह जी के मित्र श्री सुरेश अत्री जी ने उनकी मदद की, वह प्रसंग पढ़कर हृदय द्रवित हो जाता है। उस घटना को पढ़कर हमारे इस विश्वास को भी बल मिलता है कि यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति और कुछ कर गुज़रने  की ललक हो तो रास्ते निकलते चले जाते हैं। 

अध्याय 4 में बताया गया है की मुकट सिंह जी द्वारा इंग्लैंड से लौटकर कैसे अपने छोटे से पिछड़े गांव में शिक्षा और विकास की ज्योति जलाई गई।

अमरपुर काशी गांव में बाबू जी के द्वारा किए गए विकास कार्यों पर ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन द्वारा बनाई गई फिल्म के बारे में भी इस अध्याय में चर्चा की गई है। 

प्रथमा बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए आयोजित किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जानकारी भी इसी अध्याय में दी गई है। 


अध्याय 4 में ही श्री मुकट सिंह जी के मिशन में सहयोगी रहे उनके साथियों श्री रोहतास सिंह रघुवंशी, उपाध्यक्ष वॉलंटरी इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिटी अप्लाइड साइंसेज - डेवलपमेंट प्रयागराज तथा श्री इंदल सिंह भदोरिया, रिटायर्ड उपनिदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश के बारे में बताया गया है। ये दोनों श्री मुकट सिंह जी के ग्रामीण विकास के मिशन को मूर्त रूप देने में क़दम- क़दम पर उनके साथ रहे। यह हम सबको प्रेरणा देने वाली बात है। 

अध्याय 5 में बताया गया है कि श्री मुकट सिंह जी ने अपने मिशन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को पार करते हुए कैसे अमरपुर काशी गांव को एक आदर्श गांव बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अपने विकास कार्यक्रमों को गति देते हुए कैसे मुकुट सिंह जी ने अनेक देशों की यात्राएं की।

इसी अध्याय में हमें मुकट सिंह जी के निर्देशन में ग्राम अमरपुर काशी में समय-समय पर आयोजित हुई अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, सेमिनारों तथा कार्यशालाओं के बारे में भी जानकारी मिलती है जो अमरपुर काशी गांव के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं।

श्री मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा तथा अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा में यदि उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति सिंह के योगदान की चर्चा न की जाए तो बात अधूरी ही रहेगी। 


लेखक ने बाबू जी की ऑस्ट्रेलिया में जन्मी पत्नी जिनका मूल नाम जीनियस ई मायर्स  है तथा शादी के बाद जिनका नाम ज्योति सिंह हुआ, के बारे में भी पुस्तक में विस्तार से बताया है। उनका इंग्लैंड में कैसे श्री मुकट सिंह जी से संपर्क हुआ, वह कैसे उनके विचारों से प्रभावित होकर सारी सुख-सुविधा छोड़कर भारत के छोटे से पिछड़े गांव अमरपुर काशी में रहने के लिए चली आईं? इसका बड़ा ही हृदय द्रवित कर देने वाला विवरण पुस्तक में मिलता है।


पुस्तक के अंत के भाग में बताया गया है कि कैसे मुकट सिंह जी के अथक प्रयासों के चलते अमरपुर काशी गांव में शिक्षा और विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ, कैसे कई बार पर उन्हें कुछ लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। उस दौरान उन्हें कोर्ट- कचहरी के भी चक्कर लगाने पड़े।पुस्तक में  दिनेश चंद्र शर्मा जी ने श्री मुकट सिंह जी के व्यक्तित्व और दृढ़ संकल्प को उकेरती हुई अपनी कविता के माध्यम से उनके प्रति अपना सम्मान भी प्रकट किया है। 


पुस्तक के अंतिम भाग में ही संस्था से संबद्ध रहे विशेषज्ञों के ग्रामीण विकास और समस्याओं पर महत्वपूर्ण आलेख तथा समय-समय पर आयोजित की गई राष्ट्रीय /अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों के बारे में सचित्र जानकारी भी दी की गई है। 


लेखक ने पुस्तक हेतु जहां-जहां से सूचनाएं,जानकारियां एकत्र की हैं उन सभी माध्यमों का संदर्भ भी अंत में दिया है जो पुस्तक तथा लेखक की विश्वसनीयता को बढ़ाता है। 

पुस्तक को पढ़कर श्री मुकट सिंह जी की दृढ़ इच्छा शक्ति, समर्पण और संकल्प को देखकर मन उनके प्रति श्रद्धा से भर उठता है। अपनी सफलता के शिखर पर लंदन जैसे शहर से अच्छी भली नौकरी छोड़कर एक छोटे से अभावग्रस्त गांव अमरपुर काशी में उसके विकास के लिए कुछ कर गुज़रने का फैसला लेना कितना कठिन रहा होगा उस समय बाबू जी के लिए, यह बात हम सबके लिए बहुत प्रेरणादाई है। गांव के एक साधारण किसान परिवार का लड़का उस ज़माने में पढ़ने विलायत तक जाए और उसे फिर भी शहरी जीवन की शान- शौक़त तथा चमक-दमक से बिल्कुल मोह न हो,यह बात बहुत प्रभावित करती है। विलायत से आकर मुकट सिंह जी अमरपुर काशी गांव में अपने मिशन में ऐसे रमे कि अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा और बाबूजी की जीवन यात्रा एक दूसरे के पर्याय बन गए।


यह पुस्तक बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है, जिसे सामान्य पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से पढ़कर इससे प्रेरणा ले सकते हैं।पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में हैडिंग के माध्यम से छोटे-छोटे पैराग्राफ में बहुत सहज ढंग से सारगर्भित जानकारी प्रदान की गई है।पुस्तक में कंटेंट को इस तरह सिलसिलेवार  प्रस्तुत किया गया है कि एक स्वाभाविक तारतम्य और प्रवाह अंत तक बना रहता है। जैसे-जैसे पुस्तक को पढ़ते हैं उसे आगे पढ़ने की उत्सुकता बढ़ती जाती है। 


यदि किसी व्यक्ति ने किसी क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया हो तो उसके व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेकर हमने कितने ही लोगों को अपने जीवन को बदलते हुए देखा है। श्री मुकुट सिंह बाबू जी की जीवन यात्रा पर लिखी गई 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' एक ऐसी ही पुस्तक है जिसे पढ़कर और उससे प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी अपने जीवन में सार्थक लक्ष्यों का निर्धारण करके विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकती है। अतः मेरा अनुरोध है कि आप इस महत्वपूर्ण पुस्तक को मंगाकर अवश्य पढ़ें।

 पुस्तक मंगवाने का पता:

Shri Mukat Singh 

The Society for Agro Industrial Education in India 

Village Amarpur Kashi 

Tehsil Bilari 

District Moradabad (Uttar Pradesh) India 

इस बहुमूल्य पुस्तक के बारे में दी गई जानकारी आपको कैसी लगी हमारे ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराइए तथा ब्लॉग को फॉलो भी कीजिए।

हार्दिक धन्यवाद आभार नमस्कार🌹🌹🙏🙏

---- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


 अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का'🌹🌹👈👈






 



August 31, 2025

पुस्तक समीक्षा -'गीत सागर' (काव्य-संग्रह)


                           पुस्तक समीक्षा 

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                 कृति : 'गीत सागर ' (काव्य-संग्रह) 

                 कृतिकार : राम रतन यादव रतन 

   प्रकाशक :विधा प्रकाशन,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड 

                 प्रकाशन वर्ष : 2023 मूल्य : 175 रुपए 

 पुस्तक परिचय प्रदाता/समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 


साहित्यकार केवल स्वांत: सुखाय  ही सृजन नहीं करता है अपितु उसका मौलिक चिंतन एवं सृजन समाज को दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। काव्य की अनेक विधाओं जैसे गीत, मुक्तक, दोहा,कुंडलिया, घनाक्षरी तथा सवैया आदि में काव्यकार अपने भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। गीत की जहां तक बात है उसमें मुखड़े के साथ तीन या चार तक अंतरे होते हैं। गीत प्रारंभ से अंत तक एक ही विषय को विस्तार देते हुए रचा जाता है। शब्द सामंजस्य, शब्द चयन एवं यति-गति के साथ लयात्मकता गीत  की पहली शर्त है। यदि गीतों में प्रतीक, बिंब और अलंकार, मुहावरे आदि भी प्रयोग किए जाएं तो गीत  की ख़ूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। 

कुछ वर्ष पहले रामरतन यादव रतन  का पहला काव्य संग्रह 'काव्य ज्योति' के नाम से आया था जिसे पढ़ने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ था। 'काव्य ज्योति' में विभिन्न विषयों पर रतन जी की भावना प्रधान संभावनाएं जगाती अच्छी रचनाएं पढ़ने में आई थीं ।अब 'गीत सागर' के नाम से रतन जी की दूसरी कृति मेरे सामने है।इसमें रतन जी की 55 रचनाएं संकलित हैं 'गीत सागर' को उन्होंने अपने स्वर्गीय माता एवं पिता के श्री चरणों में समर्पित किया है । श्री रतन जी के माता-पिता आज देवलोक से अपने पुत्र की यह उपलब्धियां देखकर निश्चित ही प्रसन्नता का अनुभव कर रहे होंगे। 


कवि ने 'गुणों का उत्तम प्रसार दो मां,हमारे अवगुण निवार दो मां' कहते हुए सरस्वती की आराधना से अपने गीत संग्रह का  शुभारंभ किया है। सरस्वती वंदना के अंत में एक रचनाकार के लिए क़लम की महत्ता को प्रतिपादित करता हुआ एक सुंदर मुक्तक भी हमें पढ़ने को मिलता है-- 


क़लम हथियार है अपना, क़लम अधिकार है अपना, 

क़लम ही सार  है अपना, क़लम आधार है अपना।

क़लम से ही जगत में हम सभी सम्मान पाते हैं,

क़लम श्रृंगार है अपना, क़लम संसार है अपना।

व्यक्ति की धार्मिक एवं आध्यात्मिक आस्थाएं नि:संदेह उसे मानसिक शांति प्रदान करती हैं। कवि की मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति गहरी श्रद्धा ने उनसे एक सुंदर भजन सृजित कराया है जिसकी कुछ पंक्तियों का आनंद लीजिए 


कृपा प्रभु राम की जिस पर सफलता खूब पता है, 

भजे प्रभु राम को मन से भंवर से पार जाता है। 

पुस्तक में संकलित एक सुंदर बाल गीत की कुछ पंक्तियां देखिए 

चंदा छुपा डूब गए तारे, लाल हमारे अब उठ जा रे ।

पूरब में छाई है लाली, उठकर निरख नज़ारे सारे। 

वातावरण सुखद है प्यारे, लाल हमारे अब उठ जा रे। 

इन पंक्तियों को पढ़कर हमें प्रसिद्ध कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की कविता 'उठो लाल अब आंखें खोलो, पानी लाई हूं मुंह धो लो ' का सहसा ही स्मरण हो उठता है। 


गीतों के साथ-साथ पुस्तक में बीच-बीच में महत्वपूर्ण विषयों पर मुक्तकों के माध्यम से भी कवि ने अपनी बात कही है। इस प्रयोग ने पुस्तक को और निखार दे दिया है। प्यार और समर्पण की भावना को बल देता हुआ एक सुंदर मुक्तक  देखिए इस पुस्तक से 

मोहब्बत का मधुर एहसास यदि इंसान पा जाए, 

अंधेरी रात में भी वह मिलन के गीत गा जाए। 

मधुर रिश्ता समर्पण का चले यदि भावना के सँग ,

दिलों के बाग़ में फ़स्ले- बहाराँ गुल खिला  जाए। 

जिन्होंने हमें यह अनमोल जीवन दिया, परवरिश की, पढ़ा- लिखा कर किसी किसी योग्य बनाया, उन मां-बाप का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता। इसी भावना को लेकर कवि ने माता-पिता को समर्पित सुंदर गीत सृजित किया है 

गहरी हों कितनी भी नदियां, हम कश्ती पतवार बनेंगे,

मात- पिता की सेवा को हम सहज- सुलभ हर बार बनेंगे। 

जब भी जो कुछ उनसे मांगा सब हमको उपलब्ध कराया, 

श्रम- सीकर से सींच - सींचकर हमें जगत में योग्य बनाया। 

है कर्तव्य हमारा उनके सपनों का संसार बनेंगे, 

मात-पिता की सेवा को हम सहज- सुलभ हर बार बनेंगे। 


आज की स्वार्थी दुनिया में नाते - रिश्तों में वह अपनापन कहां बचा है। अब तो लोग सिर्फ़  मतलब के लिए संबंध बनाते हैं और उन्हें बढ़ाते हैं। ऐसी बातों से जब कवि  रतन का मन व्यथित होता है तो वह कह उठते हैं 

जीवन की आपाधापी में जीना अब दुश्वार हो गया, 

संबंधों में प्रेम कहां है स्वारथ का संसार हो गया।

चूंकि कवि राम रतन यादव रतन उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जनपद से संबंध रखते हैं जहां की आंचलिक भाषा भोजपुरी है, सो प्रस्तुत पुस्तक में कई रचनाएं हमें भोजपुरी में भी देखने को मिलती है। गांव के बदले हुए हालात पर चिंता प्रकट करते हुए भोजपुरी में कवि कहता है 

खेतन- खेतन प्लाट कट गइल, मनई सब हलकान भइल,

भाग- भाग सब शहर जात बा, गंउबा अब वीरान भइल। 

जैने खेतवा में है  भइया सरसों अरहर लहरात रहल, 

आज समझ में ना हीआवत ऊंहवा उठ गइल बड़ा महल। 


कवि की लेखनी किसी एक विषय तक सीमित नहीं रहती। उसकी दृष्टि हर दृश्य, परिदृश्य और विषय पर पड़ती है और वह भी एक ख़ास अंदाज़ में। कवि  रतन ने प्रकृति चित्रण, देश प्रेम, बाल जीवन तथा सामाजिक परिवेश जैसे जीवन से जुड़े सभी पहलुओं को अपने काव्य सृजन का माध्यम बनाया है। पुस्तक की भाषा बहुत सरल है।भाषा के क्लिष्ट बंधनों में न बंधते हुए कवि ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है जो एक अच्छी बात है। इतना ही नहीं कवि ने अन्य भाषा के शब्द,जो आम बोलचाल में प्रयुक्त किए जाते हैं का भी खुले दिल से प्रयोग किया है। कवि की बाल कविताओं में जो प्रवाह दिखाई देता है वह भविष्य में उनके एक अच्छे बाल कवि होने की तरफ़  इशारा करता है। 


'गीत सागर' काव्य संग्रह में भावनाओं का सैलाब दिखाई पड़ता है, जिसमें सहज हृदय कवि ने शिल्प को साधने का सफल प्रयास किया है। कवि की पहली कृति 'काव्य ज्योति' भी मेरी नज़र से गुज़री थी। उससे 'गीत सागर'  की तुलना करके मैं  कह सकता हूं कि कवि का सृजन उत्तरोत्तर उत्तमता की ओर अग्रसर है। थोड़ी- बहुत टंकण त्रुटियां जो आमतौर पर अक्सर पुस्तकों में रह जाती हैं वह इस काव्य संकलन में भी मौजूद हैं। हिंदी छंदों में मात्रा पतन तथा तुकांत श्रेष्ठता, शब्द चयन आदि की जहां तक बात है, मानक हिंदी काव्य के पक्षधर विद्धजन कवि रतन जी से  भविष्य में और बेहतर की उम्मीद कर सकते हैं। 


मुझे आशा है की संभावनाओं से भरे प्रिय कवि राम रतन यादव रतन जी की यह काव्य कृति 'गीत सागर' काव्य जगत में भरपूर स्नेह पाएगी।मैं उनके सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करते हुए स्वर्गीय दुष्यंत कुमार जी के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं :

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, 

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।

काव्य सृजन की यह आग कवि रतन के सीने में यूं ही जलती रहे इसी कामना के साथ।

---- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


      'गीत सागर' (काव्य-संग्रह) समीक्षा 🌹🌹👈👈










 



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