December 15, 2025

सर्दी वाले दोहे 🪨🪨

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ लोग बर्फबारी का आनंद लेने के लिए पहाड़ी स्थानों की ओर रुख़ कर रहे हैं। पूरे NCR को प्रदूषण ने अपनी चपेट में ले रखा है। कुल मिलाकर शीत ऋतु का प्रभाव अलग-अलग ढंग से सबको प्रभावित कर रहा है।ठंड में अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए आइए सर्दी वाले कुछ दोहों का आनंद लिया जाए 👇👇
दोहे सर्दी वाले 
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माह  दिसंबर  आ   गया,ठंड  हुई    विकराल।
ऊपर   से   करने  लगा,सूरज  भी   हड़ताल।।

हाड़   कँपाती   ठंड   से,करके   दो-दो   हाथ।
स्वार्थ  बिना   देती  रही,नित्य  रजाई   साथ।।

चौराहे    के   मोड़   पर,जलता  हुआ  अलाव।
नित्य विफल  करता रहा,सर्दी  का  हर  दाव।।

खाँसी और  ज़ुकाम  का,करके   काम  तमाम।
अदरक  वाली  चाय   ने, ख़ूब  कमाया  नाम।।

कल  कुहरे  का देखकर,दिन-भर घातक  रूप।
कुछ पल ही छत पर टिकी,सहमी-सहमी धूप।।
                          @ओंकार सिंह विवेक


December 10, 2025

भारत विकास परिषद मुख्य शाखा रामपुर का रजत जयंती वर्ष समारोह


भारत विकास परिषद एक ग़ैर-राजनीतिक,सामाजिक-सांस्कृतिक स्वयंसेवी संस्था है जिसकी स्थापना 1963 में हुई थी। परिषद का उद्देश्य "स्वस्थ, समर्थ, संस्कृत भारत" का निर्माण करना है।यह स्वामी विवेकानंद के आदर्शों से प्रेरित होकर सेवा और संस्कार के माध्यम से भारत के सर्वांगीण विकास के लिए काम करती है।संस्था शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, विकलांगजनों का पुनर्वास तथा राष्ट्रीय एकता जैसे विभिन्न सामाजिक कार्यों में निरंतर अपना सार्थक योगदान देती आ रही है।
भारत विकास परिषद की मुख्य शाखा रामपुर (उत्तर प्रदेश) की स्थापना को पच्चीस वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।इस उपलक्ष्य में शाखा का रजत जयंती वर्ष समारोह इसके युवा एवं उत्साही अध्यक्ष विकास पांडे के नेतृत्व में उत्सव पैलेस रामपुर में धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम बहुत संतुलित तथा व्यवस्थित ढंग से भारतीय संस्कारों की झलक प्रदर्शित करते हुए प्रारंभ हुआ।सभा हॉल में पधारने वाले सम्माननीय जनों का तिलक तथा बैज लगाकर स्वागत किया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रमों की श्रृंखला में स्कूली बच्चों द्वारा देश भक्ति से ओतप्रोत कई प्रभावशाली सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।बच्चों की जीवंत प्रस्तुतियाँ देखकर आमंत्रित अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित सम्मानित जनों ने बार-बार करतल ध्वनि से छात्रों का उत्साहवर्धन किया।
समारोह में बाहर से आए मेहमानों सहित समाज के प्रतिष्ठित नागरिक, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, चिकित्सक,शिक्षाविद् तथा परिषद परिवार के सदस्य सपरिवार मौजूद रहे।
शाखा की स्थापना के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शाखा द्वारा 'रजत किरण' के नाम से एक स्मारिका भी प्रकाशित की गई है।मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा स्मारिका का भव्य विमोचन हुआ।
परिषद के उद्देश्यों एवं उसके द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों को समाहित करते हुए मैंने भी एक गीत की रचना की थी।मुझे ख़ुशी है कि परिषद पदाधिकारियों द्वारा उसे सम्मानित स्मारिका में प्रकाशित किया गया।मैं इसके लिए संस्था का आभार ज्ञापित करता हूँ।
भारत विकास परिषद की सेवा यात्रा को इस समारोह में एक वीडियो प्रस्तुति द्वारा विस्तार से दर्शाया गया जो बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली रही।पदाधिकारियों/दायित्वधारियों ने परिषद की भविष्य की गतिविधियों तथा योजनाओं की भी जानकारी सदन को दी।कार्यक्रम में भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक गजेंद्र सिंह संधू जी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि किसी संगठन की शक्ति उसके सक्रिय, समर्पित तथा अनुशासित कार्यकर्ताओं में निहित होती है और परिषद के सदस्य इन मानकों पर सदैव ही खरे उतरते हैं।
कार्यक्रम में रज़ा लाइब्रेरी एवं संग्रहालय के निदेशक डॉक्टर पुष्कर मिश्र जी मुख्य अतिथि के रूप में विद्यमान रहे। मिश्र जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में धर्म की विस्तृत व्याख्या करते हुए सभी से धर्म परायण होने आग्रह किया।उन्होंने सेवा,संस्कार और राष्ट्रीयता की भावना के प्रचार-प्रसार हेतु भारत विकास परिषद रामपुर द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
मुख्य शाखा रामपुर के अध्यक्ष विकास पांडे ने कहा कि रामपुर शाखा गत पच्चीस वर्षों से अपने प्रयासों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में प्रयासरत है और काफ़ी हद तक इसमें सफल भी हो रही है।
कार्यक्रम के अंत में मुख्य संयोजक माधव गुप्ता द्वारा सभी का आभार प्रकट किया गया।कार्यक्रम का सफल संचालन रविन्द्र गुप्ता, विनोद कुमार तथा शालिनी चावला पांडे द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
             ---- ओंकार सिंह विवेक 
स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा इस भव्य कार्यक्रम की भरपूर कवरेज की गई। बानगी प्रस्तुत है👇
           Click below👇



December 9, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की दसवीं काव्य गोष्ठी संपन्न


              कोठियों को ज़ुल्म ढाना आ गया 

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साहित्यकारों का दायित्व होता है कि वे अपने सृजन से समाज को सार्थक संदेश देते रहें।साहित्यकार किसी आम बात को भी अपने कौशल से इस तरह कहने की सामर्थ्य रखता है कि वह आम बात भी ख़ास बनकर सुनने वालों के दिलों पर गहरा असर छोड़ जाती है।काव्य सृजन के माध्यम से अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करती आ रही साहित्यिक संस्था उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई द्वारा अपनी नियमित काव्य गोष्ठियों की श्रृंखला में उपाध्यक्ष प्रदीप राजपूत माहिर के आवास पर दसवीं काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। काव्य गोष्ठी/निशस्त की अध्यक्षता सोहन लाल भारती जी ने की तथा मुख्य अतिथि जावेद रहीम साहब रहे। 

स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक द्वारा प्रस्तुत की गई सरस्वती वंदना के पश्चात गोष्ठी में अपनी शानदार ग़ज़ल पढ़ते हुए नौजवान ग़ज़लकार गौरव नायक ने कहा-- 


         पहले हम  सारी फनकारी समझेंगे,

          उसके बाद ही दुनियादारी समझेंगे।

काव्य पाठ करते हुए पतराम सिंह जी ने  कहा 


     दिलों  में  ख़ामोशी  उतरती  चली  गई,

     निगाह से एक रौशनी गुज़रती चली गई।

 ओंकार सिंह विवेक ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी ग़ज़ल के इस शेर पर ख़ूब दाद पाई 


   झुग्गियों का हक़ दबाना आ गया,

    कोठियों को ज़ुल्म ढाना आ गया।

गोष्ठी के मेज़बान प्रदीप राजपूत माहिर जी की ग़ज़ल का यह शेर भी श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसंद किया गया 


        ग़म है तो फिर ग़म में ख़ुश हैं,

         हम चश्मे-पुरनम में ख़ुश हैं।

जनसरोकारों के प्रति सचेत रहने वाले सुधाकर सिंह परिहार ने काव्य पाठ करते हुए कहा 


        नेता कब नेता से हारा, दल भी दल से नहीं हारते।

        कोई हारा कहीं अगर तो, समझो जनता ही हारी है।     

संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपने इस शेर पर दाद वसूली 


      हौले से ज़मीं को हिला के कह रहा है वो,

      आमाल करो नेक वरना मिट ही जाओगे।

जावेद रहीम जी ने अपने ख़यालात का इज़हार करते हुए कहा 


       कभी फुर्सत से लिखूंगा वो गुज़रे पल,

       जिन्हें जी नहीं पाया रह गए वो अधूरे पल।

युवा ग़ज़लकार सुमित सिंह मीत का यह शेर भी ख़ूब सराहा गया 


     ग़लती करने से बेहतर है देखके औरों को सीखें,

     कुछ मौक़ों पर पास हमारे एक ही मौक़ा होता है।

सोहन लाल भारती जी ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा 


        बना अपने को मोमबत्ती के समान,

         जो ख़ुद जले उजाले से भर दे कमरे को।        

आमंत्रित श्रोताओं ने कवि/शायरों की धारदार रचनाएं सुनकर बार-बार करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया।देर रात तक चली कवि गोष्ठी में उपरोक्त के अतिरिक्त विनोद कुमार शर्मा,सलोनी राजपूत आदि भी ख़ास तौर पर मौजूद रहे। गोष्ठी का संचालन ओंकार सिंह विवेक द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

गोष्ठी की कवरेज के लिए हम सम्मानित समाचार पत्रों का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं 🙏









December 5, 2025

अपनी बात ग़ज़ल के साथ

सभी स्नेही जनों को असीम सुप्रभात 🌹🌹🙏🙏
साथियो सोचा कि अपनी लोकप्रिय विधा ग़ज़ल में आज फिर अपने दिल के एहसासात आपके साथ साझा करूँ।तो लीजिए हाज़िर है मेरी एक ग़ज़ल।यदि ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो आभारी रहूँगा 🙏

            ग़ज़ल 
             ****

'आजिज़ी  तो   है  नहीं   गुफ़्तार में,
कौन    पूछेगा    हमें     दरबार   में।

नफ़सियाती   नुक़्स   है  दो-चार  में,
वर्ना  है   सबका ‘अक़ीदा  प्यार  में।

संग  रखता  है  उसे  जो   ये  गुलाब,
कुछ तो देखा होगा आख़िर ख़ार में।

बारहा   रोता   है   दिल  ये  सोचकर,
वन  कटेगा  शहर   के   विस्तार   में।

पूछने    आए     थे     मेरी   ख़ैरियत,
दे   गए   ग़म   और   वो  उपहार  में।

'मीर' 'ग़ालिब' 'ज़ौक़' सबका शुक्रिया,
रंग क्या-क्या  भर  गए  अश'आर में।

बैठा  है  परदेस  में   लख़्त-ए-जिगर,
क्या  ख़ुशी  माँ  को मिले त्यौहार में।
                     -- ओंकार सिंह विवेक

'आजिज़ी -- लाचारी/दीनता 
गुफ़्तार -- बातचीत
नफ़सियाती नुक़्स - मानसिक विकार
'अक़ीदा-- श्रद्धा 
बारहा -- - बार-बार 
अशआर -- शे'र का बहुवचन 
लख़्त-ए-जिगर-- जिगर का टुकड़ा


November 24, 2025

नई ग़ज़ल 🌹🌹🪔🪔

दोस्तो अपरिहार्य पारिवारिक कारणों से काफ़ी दिन से कोई नई ब्लॉग पोस्ट नहीं लिख पाया था।आज एक ग़ज़ल पेश है आप लोगों की ख़िदमत में। यदि पसंद आए तो अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य अवगत कराइए 🙏🙏

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वीडियो  रील  ही  घटना  की  बनाने आई,

भीड़ कब  घायलों  की  जान बचाने आई।


सोचिए  कैसे  हिरासाँ न  हों प्यासी  फ़सलें,

मर  गई  प्यास  तो   बरसात  बुझाने  आई।


पेट की आग  जो  करवा  ले  वही  थोड़ा है,

नाच  लड़की  कोई  रस्सी  पे  दिखाने आई।


'आदतन बाप ने तो दी न तवज्जोह हरगिज़,

 लाल  रूठा  तो  उसे  माँ  ही  मनाने  आई।


हौसला देखके  मेरा  न   टिकी   इक   लम्हा,

मुझपे मुश्किल कोई  जब रो'ब जमाने  आई।


यूँ  तो  कितनी   ही  यहाँ  आईं-गईं  सरकारें,

मुश्किलें  कोई  न  जनता  की  घटाने  आई। 


जब  नज़र आया  तभी  वार  उजाले ने किए,

'अक़्ल फिर भी न अँधेरे  की  ठिकाने  आई।

                        -- ओंकार सिंह विवेक 

           (सर्वाधिकार सुरक्षित)


एक वरिष्ठ साहित्यकार का शानदार काव्य पाठ सुनिए 🌹🌹 👈👈


November 9, 2025

वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र कुमार सैनी जी द्वारा मेरे ग़ज़ल-संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' की समीक्षा



                ऊॅं 
         " पुस्तक परिचय "
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पुस्तक का नाम:- कुछ मीठा कुछ खारा (ग़ज़ल संग्रह)
शायर का नाम:- ओंकार सिंह "विवेक"
प्रकाशक :- अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज 
पृष्ठ संख्या:- 108
मूल्य:- 250 रुपए 

  साथियो!
श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी से मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से हुआ था और उनसे मेरी प्रथम रूबरू मुलाक़ात हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के दिल्ली में हुए एक आयोजन में हुई थी। इस पहली मुलाक़ात में मेरी उनसे औपचारिक बातचीत हुई जो फिर मोबाइल के माध्यम से जारी रही। उस संक्षिप्त भेंट के दौरान मैंने यह महसूस किया कि श्री ओंकार सिंह 'विवेक' बहुत ही सरल,निश्छल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं जिनमें अहंकार नाम की कोई चीज़ दूर-दूर तक भी नहीं है। दिल्ली में उस आयोजन के दौरान ही उन्होंने मुझे अपना यह ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' उदारतापूर्वक पढ़ने के लिए भेंट किया था।
आजकल काफ़ी लोग हिंदी में ग़ज़लें कह रहे हैं और हिंदी की ग़ज़लें काफी लोकप्रिय भी हो रही हैं क्योंकि उन्होंने  हिन्दी पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग  तैयार कर लिया है। मूलतः ग़ज़ल उर्दू भाषा की देन समझी जाती है जिसमें अरबी तथा फ़ारसी के शब्दों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है लेकिन समय के प्रवाह के साथ-साथ ग़ज़लों ने अपने उर्दू ,अरबी और फ़ारसी के दायरे में एक झरोखा हिंदी के लिए बनाया और हिंदी भाषा को भी ग़ज़लों ने बहुत सम्मान और प्यार के साथ अपने गले से लगाया है। हिंदी में पदार्पण करने के बाद ग़ज़लें जाम, मयख़ाना, पैमाना,साक़ी,लबो-रुख़सार,ज़ुल्फ़ें, आशिक़- ओ-माशूक़ की पगडंडियों को पार करते हुए उस खुले मैदान तक पहुॅंची जहाॅं उसके सामने भावनाओं, संवेदनाओं और कल्पनाओं का एक विशाल कैनवास है। बदलते वक़्त के साथ ग़ज़ल ने भी अपने आप को बदला है तथा उसने अपने आप को परंपरागत सीमित दायरे से निकाल कर समाज में व्याप्त चिंताओं,कुंठाओं और संघर्षों के साथ जोड़ा है। उसने भिन्न-भिन्न मानवीय संवेदनाओं को अपने अंदर समाविष्ट किया है। आज भिन्न-भिन्न विषयों पर बहुत अच्छी-अच्छी ग़ज़लें शायरों के द्वारा कही जा रही हैं ।सामाजिक, राजनीतिक अथवा धार्मिक ,कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक समसामयिक विषय पर आजकल बहुत अच्छे-अच्छे अश्आर कहे जा रहे हैं जो काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। ग़ज़ल के शेर में भावनाओं के संप्रेषण की इतनी अद्भुत और प्रभावी क्षमता होती है कि दो मिसरों से बना एक शेर सीधे दिल पर असर करता है। यही कारण है कि सड़क से लेकर संसद तक आज ग़ज़लों के शेर कोट किये जा रहे हैं। ग़ज़लों को आज भावनाओं का विराट एवं विस्तृत आयाम मिल गया है। हमारे शहर रुड़की के एक बहुत ही संवेदनशील शायर पंकज त्यागी 'असीम' का यह शेर ग़ज़ल के बदलते स्वरूप को व्याख्यायित  करने के लिए शायद पर्याप्त होगा:-
बड़ी तादाद में शायर लबो-रुख़सार तक पहुॅंचे 
मगर मज़लूम के सब ग़म मेरे अश्आर तक पहुॅंचे।
         मैंने श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी के ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' में प्रकाशित सभी 87 ग़ज़लों को बहुत गम्भीरता  के साथ पढ़ा है। इन ग़ज़लों को पढ़कर बहुत आनंद आया और समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। ग़ज़लों में एक ख़ास बात यह भी होती है कि एक ग़ज़ल में अगर 5 या 6 शेर हैं तो प्रत्येक शेर की भाव भूमि और विषय पृथक-पृथक हो सकते हैं। इस प्रकार शायर को अपनी एक ही ग़ज़ल में भिन्न-भिन्न विषयों पर केंद्रित 5 या 6 भावों को शेरों में पिरोने की आज़ादी रहती है। श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी की कल्पनाओं, भावनाओं और विषयों के चयन का कैनवास बहुत विस्तृत है। उनकी पैनी दृष्टि से सामाजिक आर्थिक ,धार्मिक क्षेत्र से संबंधित कोई भी पहलू बच नहीं सका है। उनकी ग़ज़लों में किसानों का दर्द है तो पर्यावरण की चिंता भी है, गिरते सामाजिक मूल्यों की कसमसाहट है तो राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा बढ़ती अनैतिकता पर आक्रोश भी है, मानवीय संवेदनाओं के क्षरण पर शायर को अफ़सोस है तो विखंडित होते रिश्ते- नातों से व्यथित भी है । श्री ओंकार सिंह विवेक की सभी ग़ज़लें यथार्थ परक तथा समाज को आईना दिखाने वाली हैं।उनके कटाक्ष पूर्ण अश्आर सीधे दिल को प्रभावित करते हैं तथा बहुत कुछ सोचने पर विवश भी करते हैं। उनकी ग़ज़लों की विशेषता यह है कि उन्होंने सरल, सहज, और आम बोलचाल की भाषा में अपनी ग़ज़लों को कहा है जो पाठकों तक सुगमता से अपना कथ्य पहुॅंचाने में सक्षम हैं और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती हैं ।कठिन शब्दों के प्रयोग से उन्होंने परहेज़ किया है। उनके लगभग सभी अश्आर किसी ना किसी विषय पर केंद्रित हैं तथा प्रेरणादायक हैं ।वैसे तो उनके सभी शेर  बेहतरीन एवं उत्कृष्ट हैं लेकिन यहाॅं सभी का उल्लेख किया जाना तो संभव नहीं है फिर भी मैं उनके कुछ अश्आर यहाॅं आपके अवलोकनार्थ उद्धृत कर रहा हूॅं ताकि आपको यह आभास हो सके कि यह गजल संग्रह पाठकों  के लिए कितना उपयोगी है:-

गुज़र आराम से अब करने लायक़ 
कहाॅं खेती - किसानी दे रही है 
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फलें - फूलें न क्यों नफ़रत की बेलें 
सियासत खाद -पानी दे रही है 
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शिकवे भी उनसे ही होंगे 
जिनसे थोड़ा अपना -पन है 
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सदा करते रहते हो तनक़ीद सब पर 
कभी आप अपना भी किरदार पढ़ना 
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दे जो सबको अन्न उगाकर 
उसकी ही रीती थाली है 
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मिल जाते हैं सुख-दुख दोनों ही उसमें 
जब यादों का बक्सा खोला जाता है 
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दूधिया ख़ुश है कि बेटे को भी अब 
दूध में पानी मिलाना आ गया 
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कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते 
भरा ऐसी ही ख़बरों से सदा अख़बार होता है 
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लुत्फ़ क्या आएगा शराफ़त में 
आप अब आ गए सियासत में 
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चिंता ऐसे है मन के तहख़ाने में 
जैसे कोई घुन गेहूॅं के दाने में 
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घर की ज़रूरतों ने बड़ा कर दिया उसे 
बचपन के दौर में भी वो बच्चा नहीं रहा 
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मुसलसल वक़्त के सांचे में ढलकर 
बला का रंग निखरा ज़िन्दगी का 
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भूखे पेट जो सोते हैं फुटपाथों पर 
हमने उनका दर्द ग़ज़ल में ढाला है 
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आदमी के ज़ुल्म धरती पर भला कब तक सहूॅं 
गंग कहती है,बचा लो आज शिव आकर मुझे 
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क्या पता था हिंदू- ओ- मुस्लिम की बढ़ती भीड़ में 
एक दिन इंसान ऐसे लापता हो जाएगा 
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राज़ खुलेगा घोटालों का क्या उम्मीद करें 
वो भी सब दाग़ी हैं जिनसे जाॅंच करानी है 
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मिलेंगे नहीं फ़स्ल के दाम वाजिब 
किसानों पे मौसम की भी मार होगी 
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मुजरिमों को नहीं है डर कोई 
ख़ौफ़ में अब फ़क़त अदालत है 
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कितनी ख़बरों में मिलावट हो गई 
सच पता चलता नहीं अख़बार से 
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आरी थामे जंगल की जानिब जाते देखे 
जो कहते थे हरियाली की शान बचानी है 
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जुमले और नारे ही सिर्फ़ उछाले हैं 
मुद्दे तो हर बार उन्होंने टाले हैं 
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सच ये है,कुछ भी हालात नहीं बदले 
जनता तो बेचारी थी,बेचारी है 
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मेह बरसा के  ख़ुश्क फसलों पर 
मोतियों -सा बिखर गया मौसम 
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ऊॅंट के मुॅंह में रख दिया ज़ीरा 
ख़ाक राहत किसान तक पहुॅंची
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झूठा दावा है आपका साहिब 
रौशनी हर मकान तक  पहुॅंची
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साॅंस लेते ही मैं निढाल हुआ 
हाय!कैसा हवा का हाल हुआ 
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अच्छी तक़रीर कर गए हज़रत 
शहर में हर तरफ़ वबाल हुआ 
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गुज़र कैसे करें तनख़्वाह में फिर 
उन्हें रिश्वत की जो लत हो गई है 
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भा गई है नगर की रंगीनी 
अब कहाॅं उनको गाॅंव आना है 
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          इस प्रकार हम देख सकते हैं कि श्री ओंकार सिंह विवेक जी की ग़ज़लों में मानवीय संघर्षों और उसकी विवशताओं की अनुभूति व्यापक रूप से झलकती है। उनकी ग़ज़लों का शब्द संयोजन तथा बिम्ब संयोजन बेहतरीन है। यह ग़ज़लें भाव पक्ष एवं कला पक्ष की दृष्टि से उत्तम हैं। सभी अश्आर संदेशात्मक तथा प्रेरणादायक हैं।यह ग़ज़ल संग्रह पाठकों के लिए पठनीय भी है और संग्रहणीय भी है। शानदार ग़ज़लों से लबरेज़ एक उत्कृष्ट ग़ज़ल संग्रह को प्रकाशित कराने के लिए मैं आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं प्रेषित करता हूॅं और आशा करता हूॅं कि भविष्य में भी हमें उनकी और अच्छी-अच्छी ग़ज़लें पढ़ने को मिलती रहेंगी।
           शुभकामनाओं के साथ 
सुरेन्द्र कुमार सैनी, रुड़की 
मो.न.7906191781

(प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक) 

November 4, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की नौवीं काव्य गोष्ठी संपन्न



              अपने सोने को फिर गंगू टूटी खाट बिछाता है 

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दिनांक 2/11/2025 को उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की नौवीं काव्य गोष्ठी/निशस्त सभा के सदस्य जावेद रहीम जी के आवास पुराना गंज, घेर बाज़ ख़ां पर आयोजित की गई।गोष्ठी की अध्यक्षता मेज़बान जावेद रहीम जी ने की एवं मुख्य अतिथि सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक जी रहे।सचिव राजवीर सिंह राज़ विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।यह काव्य गोष्ठी दुबई में मुशायरा पढ़कर लौटे राजवीर सिंह राज़ के सम्मान में आयोजित की गई।

राजवीर सिंह राज़ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के पश्चात अपने ख़ूबसूरत तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते हुए अशफ़ाक़ ज़ैदी ने कहा 


     किसी को याद दुआओं में कौन रखता है,

    यक़ीन  आज वफ़ाओं में  कौन  रखता है।

सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी ग़ज़ल का मार्मिक शेर पढ़ते हुए कहा 


    पांव दबाकर पहले लाला जी को रोज़ सुलाता है,

    अपने  सोने  को  फिर गंगू टूटी खाट बिछाता है।

जनसरोकारों के प्रति सचेत रहने वाले सुधाकर सिंह परिहार ने काव्य पाठ करते हुए कहा 


      गर हम दीवार हटा पाते,जो कहा सुनी थी आपस की,

      उसका सब रंज मिटा पाते,ये दूरी अगर घटा पाते।

संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपने इस शेर पर दाद वसूली 


      फ़लक सबके नसीबों में कहाँ है,

      सितारे रोज़  गिरते हैं ज़मीं पर।

सचिव राजवीर सिंह राज़ के इस शेर को भी ख़ूब पसंद किया गया 


       पाप मन से गया और तुम रो दिए,

       आंसुओं की झड़ी गंगजल बन गई।

गोष्ठी के मेज़बान जावेद रहीम साहब ने अपने ख़यालात का इज़हार करते हुए कहा 


        संगे मरमर से तराशी रूह जैसे बदन में है,

        नूरे-ख़ुदा की झलक जैसे तेरे हुस्न में है।

आमंत्रित श्रोताओं ने कवि/शायरों की धारदार रचनाएं सुनकर बार-बार करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया।देर रात तक चली कवि गोष्ठी में उपरोक्त के अतिरिक्त अनसब रहीम,इमरान आफताब तथा शाहिद अहमद आदि भी ख़ास तौर पर मौजूद रहे। गोष्ठी का संचालन सुरेन्द्र अश्क रामपुरी द्वारा किया गया।कार्यक्रम के अंत में सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने सभी का आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर गोष्ठी के मेज़बान जावेद रहीम साहब ने दुबई से मुशायरा पढ़कर लौटे राजवीर सिंह राज़ का शाल ओढ़ाकर स्वागत किया तथा सभी ने उन्हें बधाई दी।


इस तरह की अनौपचारिक काव्य गोष्ठियों का उद्देश्य केवल कविता पाठ करना ही नहीं होता है।ऐसी गोष्ठियों में पारिवारिक माहौल होता है जहाँ कविगण आपस में हालचाल जानकर एक दूसरे के सुख-दुख में शरीक होने के अवसर भी पा जाते हैं।

        --- ओंकार सिंह विवेक 


उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी 🌹🌹🙏🙏


दिनांक 4/11/2025 को गोष्ठी की ख़बर को प्रकाशित करने के लिए हम सम्मानित दैनिक समाचार पत्रों अमृत विचार,अमर उजाला तथा हिन्दुस्तान के प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हैं 🙏


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सर्दी वाले दोहे 🪨🪨

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏 आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ...