November 9, 2025

वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र कुमार सैनी जी द्वारा मेरे ग़ज़ल-संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' की समीक्षा



                ऊॅं 
         " पुस्तक परिचय "
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पुस्तक का नाम:- कुछ मीठा कुछ खारा (ग़ज़ल संग्रह)
शायर का नाम:- ओंकार सिंह "विवेक"
प्रकाशक :- अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज 
पृष्ठ संख्या:- 108
मूल्य:- 250 रुपए 

  साथियो!
श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी से मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से हुआ था और उनसे मेरी प्रथम रूबरू मुलाक़ात हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के दिल्ली में हुए एक आयोजन में हुई थी। इस पहली मुलाक़ात में मेरी उनसे औपचारिक बातचीत हुई जो फिर मोबाइल के माध्यम से जारी रही। उस संक्षिप्त भेंट के दौरान मैंने यह महसूस किया कि श्री ओंकार सिंह 'विवेक' बहुत ही सरल,निश्छल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं जिनमें अहंकार नाम की कोई चीज़ दूर-दूर तक भी नहीं है। दिल्ली में उस आयोजन के दौरान ही उन्होंने मुझे अपना यह ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' उदारतापूर्वक पढ़ने के लिए भेंट किया था।
आजकल काफ़ी लोग हिंदी में ग़ज़लें कह रहे हैं और हिंदी की ग़ज़लें काफी लोकप्रिय भी हो रही हैं क्योंकि उन्होंने  हिन्दी पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग  तैयार कर लिया है। मूलतः ग़ज़ल उर्दू भाषा की देन समझी जाती है जिसमें अरबी तथा फ़ारसी के शब्दों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है लेकिन समय के प्रवाह के साथ-साथ ग़ज़लों ने अपने उर्दू ,अरबी और फ़ारसी के दायरे में एक झरोखा हिंदी के लिए बनाया और हिंदी भाषा को भी ग़ज़लों ने बहुत सम्मान और प्यार के साथ अपने गले से लगाया है। हिंदी में पदार्पण करने के बाद ग़ज़लें जाम, मयख़ाना, पैमाना,साक़ी,लबो-रुख़सार,ज़ुल्फ़ें, आशिक़- ओ-माशूक़ की पगडंडियों को पार करते हुए उस खुले मैदान तक पहुॅंची जहाॅं उसके सामने भावनाओं, संवेदनाओं और कल्पनाओं का एक विशाल कैनवास है। बदलते वक़्त के साथ ग़ज़ल ने भी अपने आप को बदला है तथा उसने अपने आप को परंपरागत सीमित दायरे से निकाल कर समाज में व्याप्त चिंताओं,कुंठाओं और संघर्षों के साथ जोड़ा है। उसने भिन्न-भिन्न मानवीय संवेदनाओं को अपने अंदर समाविष्ट किया है। आज भिन्न-भिन्न विषयों पर बहुत अच्छी-अच्छी ग़ज़लें शायरों के द्वारा कही जा रही हैं ।सामाजिक, राजनीतिक अथवा धार्मिक ,कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक समसामयिक विषय पर आजकल बहुत अच्छे-अच्छे अश्आर कहे जा रहे हैं जो काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। ग़ज़ल के शेर में भावनाओं के संप्रेषण की इतनी अद्भुत और प्रभावी क्षमता होती है कि दो मिसरों से बना एक शेर सीधे दिल पर असर करता है। यही कारण है कि सड़क से लेकर संसद तक आज ग़ज़लों के शेर कोट किये जा रहे हैं। ग़ज़लों को आज भावनाओं का विराट एवं विस्तृत आयाम मिल गया है। हमारे शहर रुड़की के एक बहुत ही संवेदनशील शायर पंकज त्यागी 'असीम' का यह शेर ग़ज़ल के बदलते स्वरूप को व्याख्यायित  करने के लिए शायद पर्याप्त होगा:-
बड़ी तादाद में शायर लबो-रुख़सार तक पहुॅंचे 
मगर मज़लूम के सब ग़म मेरे अश्आर तक पहुॅंचे।
         मैंने श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी के ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' में प्रकाशित सभी 87 ग़ज़लों को बहुत गम्भीरता  के साथ पढ़ा है। इन ग़ज़लों को पढ़कर बहुत आनंद आया और समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। ग़ज़लों में एक ख़ास बात यह भी होती है कि एक ग़ज़ल में अगर 5 या 6 शेर हैं तो प्रत्येक शेर की भाव भूमि और विषय पृथक-पृथक हो सकते हैं। इस प्रकार शायर को अपनी एक ही ग़ज़ल में भिन्न-भिन्न विषयों पर केंद्रित 5 या 6 भावों को शेरों में पिरोने की आज़ादी रहती है। श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी की कल्पनाओं, भावनाओं और विषयों के चयन का कैनवास बहुत विस्तृत है। उनकी पैनी दृष्टि से सामाजिक आर्थिक ,धार्मिक क्षेत्र से संबंधित कोई भी पहलू बच नहीं सका है। उनकी ग़ज़लों में किसानों का दर्द है तो पर्यावरण की चिंता भी है, गिरते सामाजिक मूल्यों की कसमसाहट है तो राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा बढ़ती अनैतिकता पर आक्रोश भी है, मानवीय संवेदनाओं के क्षरण पर शायर को अफ़सोस है तो विखंडित होते रिश्ते- नातों से व्यथित भी है । श्री ओंकार सिंह विवेक की सभी ग़ज़लें यथार्थ परक तथा समाज को आईना दिखाने वाली हैं।उनके कटाक्ष पूर्ण अश्आर सीधे दिल को प्रभावित करते हैं तथा बहुत कुछ सोचने पर विवश भी करते हैं। उनकी ग़ज़लों की विशेषता यह है कि उन्होंने सरल, सहज, और आम बोलचाल की भाषा में अपनी ग़ज़लों को कहा है जो पाठकों तक सुगमता से अपना कथ्य पहुॅंचाने में सक्षम हैं और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती हैं ।कठिन शब्दों के प्रयोग से उन्होंने परहेज़ किया है। उनके लगभग सभी अश्आर किसी ना किसी विषय पर केंद्रित हैं तथा प्रेरणादायक हैं ।वैसे तो उनके सभी शेर  बेहतरीन एवं उत्कृष्ट हैं लेकिन यहाॅं सभी का उल्लेख किया जाना तो संभव नहीं है फिर भी मैं उनके कुछ अश्आर यहाॅं आपके अवलोकनार्थ उद्धृत कर रहा हूॅं ताकि आपको यह आभास हो सके कि यह गजल संग्रह पाठकों  के लिए कितना उपयोगी है:-

गुज़र आराम से अब करने लायक़ 
कहाॅं खेती - किसानी दे रही है 
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फलें - फूलें न क्यों नफ़रत की बेलें 
सियासत खाद -पानी दे रही है 
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शिकवे भी उनसे ही होंगे 
जिनसे थोड़ा अपना -पन है 
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सदा करते रहते हो तनक़ीद सब पर 
कभी आप अपना भी किरदार पढ़ना 
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दे जो सबको अन्न उगाकर 
उसकी ही रीती थाली है 
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मिल जाते हैं सुख-दुख दोनों ही उसमें 
जब यादों का बक्सा खोला जाता है 
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दूधिया ख़ुश है कि बेटे को भी अब 
दूध में पानी मिलाना आ गया 
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कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते 
भरा ऐसी ही ख़बरों से सदा अख़बार होता है 
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लुत्फ़ क्या आएगा शराफ़त में 
आप अब आ गए सियासत में 
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चिंता ऐसे है मन के तहख़ाने में 
जैसे कोई घुन गेहूॅं के दाने में 
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घर की ज़रूरतों ने बड़ा कर दिया उसे 
बचपन के दौर में भी वो बच्चा नहीं रहा 
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मुसलसल वक़्त के सांचे में ढलकर 
बला का रंग निखरा ज़िन्दगी का 
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भूखे पेट जो सोते हैं फुटपाथों पर 
हमने उनका दर्द ग़ज़ल में ढाला है 
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आदमी के ज़ुल्म धरती पर भला कब तक सहूॅं 
गंग कहती है,बचा लो आज शिव आकर मुझे 
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क्या पता था हिंदू- ओ- मुस्लिम की बढ़ती भीड़ में 
एक दिन इंसान ऐसे लापता हो जाएगा 
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राज़ खुलेगा घोटालों का क्या उम्मीद करें 
वो भी सब दाग़ी हैं जिनसे जाॅंच करानी है 
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मिलेंगे नहीं फ़स्ल के दाम वाजिब 
किसानों पे मौसम की भी मार होगी 
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मुजरिमों को नहीं है डर कोई 
ख़ौफ़ में अब फ़क़त अदालत है 
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कितनी ख़बरों में मिलावट हो गई 
सच पता चलता नहीं अख़बार से 
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आरी थामे जंगल की जानिब जाते देखे 
जो कहते थे हरियाली की शान बचानी है 
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जुमले और नारे ही सिर्फ़ उछाले हैं 
मुद्दे तो हर बार उन्होंने टाले हैं 
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सच ये है,कुछ भी हालात नहीं बदले 
जनता तो बेचारी थी,बेचारी है 
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मेह बरसा के  ख़ुश्क फसलों पर 
मोतियों -सा बिखर गया मौसम 
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ऊॅंट के मुॅंह में रख दिया ज़ीरा 
ख़ाक राहत किसान तक पहुॅंची
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झूठा दावा है आपका साहिब 
रौशनी हर मकान तक  पहुॅंची
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साॅंस लेते ही मैं निढाल हुआ 
हाय!कैसा हवा का हाल हुआ 
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अच्छी तक़रीर कर गए हज़रत 
शहर में हर तरफ़ वबाल हुआ 
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गुज़र कैसे करें तनख़्वाह में फिर 
उन्हें रिश्वत की जो लत हो गई है 
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भा गई है नगर की रंगीनी 
अब कहाॅं उनको गाॅंव आना है 
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          इस प्रकार हम देख सकते हैं कि श्री ओंकार सिंह विवेक जी की ग़ज़लों में मानवीय संघर्षों और उसकी विवशताओं की अनुभूति व्यापक रूप से झलकती है। उनकी ग़ज़लों का शब्द संयोजन तथा बिम्ब संयोजन बेहतरीन है। यह ग़ज़लें भाव पक्ष एवं कला पक्ष की दृष्टि से उत्तम हैं। सभी अश्आर संदेशात्मक तथा प्रेरणादायक हैं।यह ग़ज़ल संग्रह पाठकों के लिए पठनीय भी है और संग्रहणीय भी है। शानदार ग़ज़लों से लबरेज़ एक उत्कृष्ट ग़ज़ल संग्रह को प्रकाशित कराने के लिए मैं आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं प्रेषित करता हूॅं और आशा करता हूॅं कि भविष्य में भी हमें उनकी और अच्छी-अच्छी ग़ज़लें पढ़ने को मिलती रहेंगी।
           शुभकामनाओं के साथ 
सुरेन्द्र कुमार सैनी, रुड़की 
मो.न.7906191781

(प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक) 

November 4, 2025

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की नौवीं काव्य गोष्ठी संपन्न



              अपने सोने को फिर गंगू टूटी खाट बिछाता है 

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दिनांक 2/11/2025 को उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की नौवीं काव्य गोष्ठी/निशस्त सभा के सदस्य जावेद रहीम जी के आवास पुराना गंज, घेर बाज़ ख़ां पर आयोजित की गई।गोष्ठी की अध्यक्षता मेज़बान जावेद रहीम जी ने की एवं मुख्य अतिथि सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक जी रहे।सचिव राजवीर सिंह राज़ विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।यह काव्य गोष्ठी दुबई में मुशायरा पढ़कर लौटे राजवीर सिंह राज़ के सम्मान में आयोजित की गई।

राजवीर सिंह राज़ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के पश्चात अपने ख़ूबसूरत तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते हुए अशफ़ाक़ ज़ैदी ने कहा 


     किसी को याद दुआओं में कौन रखता है,

    यक़ीन  आज वफ़ाओं में  कौन  रखता है।

सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी ग़ज़ल का मार्मिक शेर पढ़ते हुए कहा 


    पांव दबाकर पहले लाला जी को रोज़ सुलाता है,

    अपने  सोने  को  फिर गंगू टूटी खाट बिछाता है।

जनसरोकारों के प्रति सचेत रहने वाले सुधाकर सिंह परिहार ने काव्य पाठ करते हुए कहा 


      गर हम दीवार हटा पाते,जो कहा सुनी थी आपस की,

      उसका सब रंज मिटा पाते,ये दूरी अगर घटा पाते।

संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपने इस शेर पर दाद वसूली 


      फ़लक सबके नसीबों में कहाँ है,

      सितारे रोज़  गिरते हैं ज़मीं पर।

सचिव राजवीर सिंह राज़ के इस शेर को भी ख़ूब पसंद किया गया 


       पाप मन से गया और तुम रो दिए,

       आंसुओं की झड़ी गंगजल बन गई।

गोष्ठी के मेज़बान जावेद रहीम साहब ने अपने ख़यालात का इज़हार करते हुए कहा 


        संगे मरमर से तराशी रूह जैसे बदन में है,

        नूरे-ख़ुदा की झलक जैसे तेरे हुस्न में है।

आमंत्रित श्रोताओं ने कवि/शायरों की धारदार रचनाएं सुनकर बार-बार करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया।देर रात तक चली कवि गोष्ठी में उपरोक्त के अतिरिक्त अनसब रहीम,इमरान आफताब तथा शाहिद अहमद आदि भी ख़ास तौर पर मौजूद रहे। गोष्ठी का संचालन सुरेन्द्र अश्क रामपुरी द्वारा किया गया।कार्यक्रम के अंत में सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने सभी का आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर गोष्ठी के मेज़बान जावेद रहीम साहब ने दुबई से मुशायरा पढ़कर लौटे राजवीर सिंह राज़ का शाल ओढ़ाकर स्वागत किया तथा सभी ने उन्हें बधाई दी।


इस तरह की अनौपचारिक काव्य गोष्ठियों का उद्देश्य केवल कविता पाठ करना ही नहीं होता है।ऐसी गोष्ठियों में पारिवारिक माहौल होता है जहाँ कविगण आपस में हालचाल जानकर एक दूसरे के सुख-दुख में शरीक होने के अवसर भी पा जाते हैं।

        --- ओंकार सिंह विवेक 


उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी 🌹🌹🙏🙏


दिनांक 4/11/2025 को गोष्ठी की ख़बर को प्रकाशित करने के लिए हम सम्मानित दैनिक समाचार पत्रों अमृत विचार,अमर उजाला तथा हिन्दुस्तान के प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हैं 🙏


October 29, 2025

पुस्तक परिचय/समीक्षा ('पयाम-ए-इश्क़' -- ग़ज़ल संग्रह)



बरेली के रस सिद्ध कवि/शायर स्मृतिशेष पं. देवी प्रसाद गौड़ 'मस्त' जी की 112वीं जयंती पर उनके सुपुत्र प्रसिद्ध कवि/शायर रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की नौवीं कृति 'पयाम -ए- इश्क़' का लोकार्पण 26/10/2025 को संपन्न हुआ।
उस समारोह में मुझे भी विशिष्ट अतिथि की हैसियत से पुस्तक के संबंध में अपने विचार रखने का अवसर प्राप्त हुआ।श्री धीर साहब की विमोचित कृति का सूक्ष्म परिचय आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

      पुस्तक : पयाम-ए-इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) 
      शायर : रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' 
      प्रकाशक: ओम प्रकाशन बरेली 
      प्रकाशन वर्ष - 2025 मूल्य रुo 250/-

बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं पर समान अधिकार रखते हैं। कविता/शायरी का फ़न उन्हें अपने पिता स्मृतिशेष पंडित देवी प्रसाद गोद मस्त जी से विरासत में मिला है।अब तक आपकी अनेक काव्य कृतियां मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं। धीर साहब का हाल ही में प्रकाशित हुआ ग़ज़ल संग्रह 'पयाम-ए-इश्क़' पढ़कर  फिर से उनकी फ़िक्र की बुलंद परवाज़ से रूबरू होने का मौका मिला। इससे पहले मुझे उनके ग़ज़ल संग्रह 'सलामे-इश्क़' तथा 'लावनी गीत' काव्य संग्रह पर भी अपने विचार साझा करने का अवसर प्राप्त हो चुका है। सलामे-इश्क़ में उनकी रिवायती और सूफियाना शायरी के तमाम दिलकश रंग बिखरे पड़े हैं। इसी तरह उनके लावणी गीतों में लोक साहित्य और संगीत को संरक्षित और संवर्धित करने की ललक साफ़ दिखाई देती है। आईए अब उनके नवीनतम दीवान ए ग़ज़ल 

'पयाम ए इश्क़' पर कुछ बात की जाए। यूं तो धीर साहब की अधिकांश ग़ज़लों में हमें ग़ज़ल का रिवायती रंग ही देखने को मिलता है परंतु उन्होंने सामाजिक सरोकारों, धर्म तथा अध्यात्म आदि महत्वपूर्ण विषयों को भी अपनी शायरी मौज़ू बनाया है। 


ग़ज़ल के रिवायती रंग को किस ख़ूबसूरती से ग़ज़ल में भरा जा सकता है, आप धीर जी के इन अशआर से बख़ूबी समझ सकते हैं :

    शर्म कैसी हिजाब फिर कैसा, 

    आप हैं मैं हूं और  ख़ल्वत है। 

     यूं तो होने को ज़माने में हसीं हैं लाखों, 

     मेरी नज़रों में मगर कोई परीज़ाद  नहीं। 

इस संग्रह का एक और शेर देखें जो उनकी फ़िक्र  के जदीद रंग को दर्शाता है :

      अहद ए हाज़िर में कुछ किया ही नहीं, 

      ख़्वाब   अगली  सदी  के  देखते   हैं। 

शायर के दिल में देशप्रेम/ वतन परस्ती का समुद्र कैसे हिलोरें मार रहा है, यह शेर देखें :

    'धीर' चाहत है वतन के नाम पर, 

    परचम ए हिंदोस्तां ऊंचा करूं।

हिंदी या उर्दू काव्य की ऐसी कोई  सिन्फ़  नहीं है जिसमें धीर साहब ने तबा'-आज़माई न की हो। गीत, मुक्तक, दोहे , ग़ज़ल, नात,रुबाई, ख़म्साअ आदि सभी में उन्होंने शानदार सृजन किया है। वह अपने एक मतले में कहते भी हैं :

    गीत कहूं या ग़ज़ल कहूं या ख़म्सा कोई सुनाऊं,

    जो  पसंद हो  मुझे  बता दो  वही राग में गाऊं।

कविता और शायरी वही कामयाब कही जाती है जो सीधे पाठक/ श्रोता के दिल में उतर जाए, जिसे सुनते ही सामने वाला आह या वाह कह उठे। उसे लगने लगे कि शायर ने तो उसके ही दिल की बात बयां कर दी है। धीर साहब की शायरी इन सब बातों पर खरी उतरती है। उनकी  ग़ज़लों के सभी शेर भाव और कथ्य के स्तर पर ध्यान खींचते हैं। इस ग़ज़ल संग्रह के कुछ और अशआर देखिए :

       आसमां  पर  हैं  घटाएं  और  रंगीं  शाम  है ,

       मौसम ए बरसात हर लम्हा छलकता जाम है। 

गौड़ साहब की शायरी में यदि हसीन मंज़र नुमायां हैं तो लोगों की बेरुखी और बेवफ़ाई के चलते स्वाभाविक उदासी की झलक भी है : 

   हमदर्द कोई आज हमारा नहीं रहा, 

   अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा।

ख़ुशियों के साथ ग़म भी आदमी की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होते हैं अतः उन्हें स्वीकारने का जज़्बा भी होना चाहिए, धीर साहब का यह शेर देखें :

     मुआले ग़म से बग़ावत न की कभी मैंने,

      ग़म ए हयात को समझा है ज़िंदगी मैंने।

जला के दिल को मिटाई है तीरगी मैंने, 

रहे-वफ़ा को अता  की  है रौशनी मैंने। 

समय की पाबंदी के चलते धीर साहब के और अशआर मैं आपके साथ साझा नहीं कर पा रहा हूं परंतु संग्रह की सभी ग़ज़लों के शेरों में वह रवानी और तग़ज़्ज़ुल है कि किताब को एक बार पढ़ना शुरू कर दिया जाए तो उसे पूरी पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता। अस्सी शानदार ग़ज़लों से सजा यह ग़ज़ल संग्रह पढनीय और संग्रहणीय है। हर ग़ज़ल के नीचे कठिन शब्दों के अर्थ लिखे गए हैं जो आम पाठक के लिए बहुत अच्छी बात है। अच्छी ग़ज़लों में दिलचस्पी रखने वाले साथियों से अनुरोध है कि इस ग़ज़ल संग्रह को मंगाकर अवश्य ही पढ़ें।

मैं ईश्वर से कामना करता हूं की आदरणीय रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब को दीर्घायु करें ताकि भविष्य में हमें उनके और भी अच्छे ग़ज़ल संग्रह पढ़ने को मिलें। मैं उनके  लिए दुआ में शायर रईस अंसारी साहब का यह शेर पढ़ते हुए अपनी बात ख़त्म करता हूं :

        कोई दरख़्त कोई  साएबाँ रहे न रहे, 

        बुज़ुर्ग ज़िंदाँ रहें आसमाँ रहे न रहे। 

                      -- रईस अंसारी 

(द्वारा : ओंकार सिंह विवेक) 





       

October 20, 2025

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🪔🪔


सभी स्नेही जनों को दीपोत्सव की 
हार्दिक शुभकामनाएं ! 
🌹🌹🙏🙏

दोहे--शुभ दीपावली : धनवर्षा : अमृत वर्षा

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      -- ©️ ओंकार सिंह विवेक


बना लिया  जिनको  यहाँ,निर्धनता ने  दास।

धनतेरस  पर हो भला,उनमें  क्या उल्लास।।


खील-बताशे-फुलझड़ी,दीपों  सजी   क़तार।

ले   आई   दीपावली,कितने   ही   उपहार।।


हो   जाये   संसार   में,निर्धन  भी   धनवान।

लक्ष्मी  माता   दीजिए,कुछ  ऐसा   वरदान।।  


हो   जाये    संसार   में,अँधियारे   की   हार।

भर  दे  यह  दीपावली,हर मन  में उजियार।। 


निर्धन  को  देें वस्त्र-धन,खील  और  मिष्ठान।  

उसके मुख  पर भी सजे,दीपों  सी मुस्कान।।   


दीवाली   के    दीप   हों,या   होली  के   रंग।

इनका आकर्षण  तभी,जब हों प्रियतम संग।। 

                    ©️ ----ओंकार सिंह विवेक


शुभ दीपावली 🪔🪔Happy Deepawali 🪔🪔

                             


October 19, 2025

किसी त्योहार के आने का मतलब


किसी त्योहार के आने का मतलब

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              ---ओंकार सिंह विवेक

त्योहारों का सीजन चल रहा है।कुछ त्योहार निकल चुके हैं कुछ प्रमुख त्योहार जैसे दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा(गंगा स्नान ) आदि नज़दीक हैं।त्योहारी मौसम में एक तरफ तमाम तरह की व्यवसायिक गतिविधियाँ/हलचलें बढ़ती हैं तो दूसरी ओर मानव और प्रकृति के स्वभाव  में भी परिवर्तन देखने को मिलता है जिसे अस्वभाविक भी नहीं कहा जा सकता।समाज के अलग-अलग वर्गों के लिए त्योहारों के  अलग-अलग महत्व और उपयोग दिखाई देते हैं।


त्योहारों की दस्तक होते ही धनी वर्ग के घरों में कुछ अलग ही तरह की रौनक़ देखने को मिलती है।हफ़्तों पहले से ही धनी वर्ग के बच्चे और अन्य परिजन योजना बनाना शुरू कर देते हैं कि उन्हें क्या पहनना है,घर में कौन -कौन से व्यंजन बनने हैं ,किन -किन मेहमानों और दोस्तों को आमंत्रित करना है वगैरह वगैरह--।ऐसे घरों में चूँकि कोई आर्थिक विपन्नता नहीं होती  अतः वहाँ एक छुट्टी और मौज मस्ती  का माहौल त्योहारों के अवसर पर बन जाता है।दूसरी और निर्धन वर्ग की चिंता इस अवसर पर बढ़ जाती है।अभाव के कारण उस वर्ग के पास त्योहार पर नए कपड़ों या पकवानों के लिए इतने संसाधन नहीं होते  कि वे त्योहारों का आनंद उठा सकें।त्योहारों के दौरान उन्हें और ज़्यादा महनत करनी पड़ती है ताकि त्योहार मनाने हेतु कुछ ज़्यादा संसाधन जुटा सकें।

त्योहार के अवसर पर जब धनी वर्ग की मौज -मस्ती बढ़ती है तो मज़दूर और छोटा तबक़ा इस बात से ख़ुश होता है कि इस दौरान अमीरों की ख़रीदारी बढ़ने के कारण उन्हें और अधिक काम करने का मौक़ा मिलेगा जिससे कुछ अतिरिक्त आमदनी का जुगाड़ हो सकेगा।आम आदमी और मज़दूर तबक़ा त्योहारों के अवसर पर मज़दूरी और काम के अवसर तलाशता है जबकि अमीर तबक़ा मस्ती और आनंद के अवसर के रूप में त्योहार को देखता है।

हैं न कैसी विडंबना कि एक ही ईवेंट या घटना का समाज के अलग- अलग  तबक़ों पर अलग -अलग असर देखने को मिलता है।

                  --ओंकार सिंह विवेक


October 18, 2025

🪔🪔 शुभ दीपावली 🪔🪔



सभी साथियों को सपरिवार ज्योति पर्व सह पंच पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएँ🌹🌹

दीपावली स्पेशल

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तम को नफ़रत के मिटाएँ कि अब दिवाली है, 

प्यार  के  दीप  जलाएँ  कि  अब  दिवाली है।


सख़्त  राहों  के  सफ़र  से  हैं जो भी घबराते,

हौसला  उनका  बढ़ाएँ  कि  अब  दिवाली है।


वक्त  गुज़रा  तो  कभी  लौटकर  न  आएगा,

वक्त  को  यूँ न   गँवाएँ  कि अब  दिवाली है।


पेड़-पौधे    ही   तो    पर्यावरण   बचाते   हैं,

इनको  हर  और लगाएँ कि अब दिवाली है।


आपसी  मेल-मुहब्बत   का   भाईचारे   का,

सब में  एहसास जगाएँ कि अब दिवाली है।

                             @ओंकार सिंह विवेक

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October 11, 2025

पुस्तक परिचय : गद्य पुस्तक 'उड़ती पतंग'


              गद्य पुस्तक : 'उड़ती पतंग'

             कृतिकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग़' 

             प्रकाशक : डायमंड बुक्स, नई दिल्ली 

         प्रकाशन वर्ष : 2025  मूल्य : रुo 150/

       परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह 'विवेक' 

साहित्यकार और शिक्षक दीपक गोस्वामी चिराग़ ने काव्य के साथ-साथ गद्य विधा में भी अपनी ऊँची उड़ान का परिचय देते हुए 'उड़ती पतंग' पुस्तक का  सृजन किया है।पुस्तक को पढ़कर इसके सार को जितना में समझ पाया वह आपके साथ साझा करना चाहता हूँ ताकि इस उपयोगी पुस्तक को पढ़ने के प्रति आपकी रुचि जागृत हो।

'उड़ती पतंग' जैसे रोचक शीर्षक वाली यह पुस्तक पाठक को धीरे-धीरे चिंतन की गहराई में उतार देती है।जब हम पतंग को आसमान में उड़ते हुए देखते हैं तो एक ओर वह अपने उन्मुक्त रूप से उड़ने का एहसास कराती है वहीं दूसरी ओर पतंग में बँधी हुई डोर पतंग को अनुशासन में रखने का कार्य करती है।यदि पतंग के उड़ने की स्वतंत्रता को डोर अनुशासन में न रखे तो पतंग आसमान में कदापि इतनी ऊँची न उड़ पाए।यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है- व्यक्ति की जीवन रूपी पतंग भी यदि सामाजिक अनुशासन की सीमाओं में रहकर उड़ान भरे तभी उसकी उड़ान को सफल और सार्थक कहा जाएगा।लेखक ने 'उड़ती पतंग' के माध्यम से जीवन में स्वतंत्रता और अनुशासन के महत्व और उनके सामंजस्य को बड़े ही सहज और सुंदर ढंग से समझाया है। स्वतंत्रता क्या है और कब यह स्वछंदता का रूप ले लेती है, अनुशासन क्या है और अनुशासनहीनता की समस्या कैसे उत्पन्न होती है, इन सब बातों पर लेखक ने अपने अध्ययन और व्यवहारिक अनुभव के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला है।जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्वतंत्रता और अनुशासन जैसे विषयों का विश्लेषण करते हुए पुस्तक में एक ओर तमाम पाश्चात्य दार्शनिकों जैसे एडम,रूसो और प्लेटो आदि को उद्धृत किया गया है तो दूसरी ओर भारतीय सभ्यता, संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के गौरव पतंजलि योग दर्शन,जैन दर्शन,बौद्ध दर्शन,श्रीमद्भागवत गीता तथा रामचरितमानस को उद्धृत करते हुए लेखक ने जीवन में स्वतंत्रता एवं अनुशासन के समन्वय पर बल दिया है। बीच-बीच में प्रेरक कथाओं तथा कविताओं के माध्यम से भी स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच सामंजस्य की महत्ता को बड़े ही रोचक ढंग से समझाने का सार्थक प्रयास किया गया है। लेखक ने उदाहरण द्वारा बताया है की स्वतंत्रता प्राप्त करना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है परंतु स्वतंत्रता की इस प्रवृत्ति को स्वच्छंदता में परिवर्तित होने से रोकने के लिए किस तरह अनुशासन की भावना का विकास किया जाना चाहिए इस पर भी प्रकाश डाला है। पुस्तक के लेखक दीपक गोस्वामी स्वयं एक शिक्षक हैं अतः वह भली भांति जानते हैं कि आज के विद्यार्थी ही कल के सजग राष्ट्रप्रहरी बनने वाले हैं अतः यह पुस्तक उन्होंने विद्यार्थी वर्ग में किस प्रकार स्वतंत्रता और अनुशासन की भावना का विकास हो, किस तरह इन दोनों में समन्वय स्थापित हो, इन विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ही लिखी है। पुस्तक के बाहरी पृष्ठ पर बने चित्रों तथा इसके शीर्षक 'उड़ती पतंग' से इसे विशुद्ध बाल साहित्य की पुस्तक समझने की भूल न की जाए। यह पुस्तक पढ़ना अध्यापकों एवं अभिभावकों के लिए भी बहुत आवश्यक है ताकि पहले वे स्वयं स्वतंत्रता,अनुशासन एवं इन दोनों के बीच समन्वय के सिद्धांतों को आत्मसात करके बच्चों को उसकी शिक्षा दे सकें।

 पुस्तक के उपसंहार में लेखक ने निष्कर्षतय: यही कहा है कि स्वतंत्रता तथा अनुशासन छात्र रूपी पतंग के लिए मुक्त आकाश और डोर की तरह हैं जिसमें एक के बिना दूसरा महत्वहीन है।अतः इन दोनों में तारतम्य बहुत आवश्यक  है। अंत में लेखक ने उच्च नैतिक व सामाजिक मूल्यों की सीख देने वाले धर्म ग्रंथ रामचरितमानस को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने की पैरवी की है जो आज के दौर में नितांत आवश्यक भी है।लेखक ने विषय पर पूर्व प्रतिपादित सिद्धांतों को अपने चिंतन के आधार पर बहुत सरल भाषा में उदाहरणों सहित उद्धृत किया है।यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों को अपने जीवन में स्वतंत्रता तथा अनुशासन के प्रति समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाने को प्रेरित करेगी। किसी भाव,विचार या सिद्धांत की मौलिकता अपनी जगह है परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि आज कितने बुद्धिजीवी या साहित्यकार एक पूर्व स्थापित सर्वहितकारी मौलिक सिद्धांत या विचार को आगे बढ़ने का कार्य कर रहे हैं। मेरे विचार से कोई भी राष्ट्रहितकारी/समाजहितकारी बात गद्य या काव्य सर्जन के माध्यम से आगे बढ़ाई जाती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।अतः दीपक जी का यह प्रयास प्रशंसनीय और सराहनीय है। मुझे आशा है उनकी इस पुस्तक को समाज में भरपूर स्नेह प्राप्त होगा। पुस्तक और लेखक को समर्पित अपने इस दोहे के साथ बात समाप्त करता हूँ :   

       स्वतंत्रता के साथ कुछ,अनुशासन के ढंग। 

       सबको  सिखलाने लगी,उड़ती हुई पतंग।।

                          --- ओंकार सिंह विवेक 

September 28, 2025

पुस्तक परिचय - 'नावक के तीर'(साझा दोहा-संग्रह)


                   पुस्तक परिचय/समीक्षा

                   *******************

      पुस्तक  : 'नावक के तीर'(साझा दोहा संग्रह) 

      (हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली द्वारा तृतीय 'हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान' योजना के अंतर्गत चयनित 51 दोहाकारों का साझा दोहा संग्रह)

     संपादक : सुधाकर पाठक 

    प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा 

  प्रकाशन वर्ष : 2025 पृष्ठ 120/ मूल्य रु 250/


       सतसैया के दोहरे,ज्यों नावक के तीर।

       देखन में छोटे  लगें,घाव  करें  गंभीर।।

यह रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी जी की कृति 'बिहारी सतसई' का प्रसिद्ध दोहा है।जिसका अर्थ है कि बिहारी जी की 'बिहारी सतसई' के दोहे देखने में भले ही छोटे हों लेकिन वे किसी नावक के तीर की तरह गंभीर और गहरे भाव रखते हैं अर्थात इन छोटे-छोटे दोहों में बड़ा अर्थ और ज्ञान भरा हुआ है। आज प्रसंगवश मुझे यह दोहा याद आ गया।क्योंकि मेरे हाथ में 'नावक के तीर' नामक ऐसा ही साझा दोहा संग्रह है जिसका एक-एक दोहा अपने आप में गहरे अर्थ और भाव समेटे हुए है। 

इस दोहा संग्रह में संकलित दोहों से परिचय कराने से पहले मैं आपको हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, जिसने यह पुस्तक छपवाई है, के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं। हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली एक स्ववित्तपोषित संस्था है जो हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के संवर्धन हेतु नि:स्वार्थ भाव से निरंतर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती रहती है।अकादमी ने गीत एवं ग़ज़ल पर केंद्रित नि:शुल्क पुस्तकों के प्रकाशन के पश्चात तृतीय नि:शुल्क पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत  'नावक के तीर' पुस्तक में देश भर के चयनित 51 दोहाकारों के दोहे प्रकाशित किए हैं। साहित्य संवर्धन के ऐसे महत्वपूर्ण कार्य सफलतापूर्वक निष्पादित करने पर मैं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष सुधाकर पाठक जी तथा उनकी टीम के निष्ठावान एवं समर्पित साथियों विनोद पाराशर, राजकुमार श्रेष्ठ तथा सुषमा भंडारी जी सहित अन्य सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। 

इस संकलन में 51 दोहाकार सम्मिलित किए गए हैं और सभी ने एक से बढ़कर एक दोहे सर्जित किए हैं। जी तो चाहता है कि सभी के कुछ न कुछ दोहे आपके साथ साझा करूं परंतु पुस्तक के इस संक्षिप्त परिचय या समीक्षा आलेख में ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं है। अतः कुछ साथियों के दोहे आपके साथ साझा करूंगा, उन्हीं से आपको इस दोहा संग्रह में संकलित दोहों के भाव तथा कथ्य की गहराई का अनुमान हो जाएगा।

 दो पंक्तियों में बड़ी सी बड़ी बात कहने का जो जादू ग़ज़ल के एक शेर में होता है वही दोहे की दो पंक्तियों में भी होता है।यही कारण है कि अनेक प्रख्यात शायरों ने भी उत्कृष्ट दोहे कहे हैं। हिंदी के अनेक कवियों के दोहों के स्वतंत्र संग्रह प्रकाशित हुए हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है। यह देखकर हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं की दोहा विधा का भविष्य उज्ज्वल है।आईए इस संकलन के कुछ दोहों पर नज़र डालते हैं :

          चाहे तुम मेरा कहो, या अपनों का स्वार्थ। 

          मैं  अंदर  से  बुद्ध  हूं, ऊपर से सिद्धार्थ।।

संकलन में प्रारंभिक पृष्ठ पर छपने वाले तथा अकादमी की ओर से सम्मानित हुए युवा साहित्यकार राहुल शिवाय के इस दोहे में छिपे गहन अर्थ और भाव को समझ कर आप इस रचनाकार के चिंतन की गहराई का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं। 'मैं अंदर से बुद्ध हूँ ' कहते ही दोहे में कैसा चमत्कार उत्पन्न हो गया है मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

          हिंदी  उर्दू   के   यहां, जो  हैं   पैरोकार। 

          उनके घर की आबरू,अंग्रेजी अख़बार।।

हम भारतीय भाषाओं के विकास और संवर्धन के हिमायती बनते हैं परंतु घर और परिवार में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देते हैं। मनोज कामदेव जी ने अपने इस दोहे में व्यक्ति के इसी दोगलेपन को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ उकेरा है। 

      हेरा  फेरी  ने  किया  यह कैसा विध्वंस। 

      बगुले घुसे क़तार में, मौन खड़े हैं हंस।।


आदरणीया प्रोमिला भारती जी ने इस दोहे में आज के दौर में बिगड़े हुए निज़ाम का क्या ख़ूबसूरत चित्रण किया है। 

        दुनिया भर में फिर रहे, यूं तो लाख फ़क़ीर। 

        मुश्किल है मिलना मगर,उनमें एक कबीर।।



श्री सुरेंद्र कुमार सैनी जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि दुनिया में पीर-फ़क़ीरोंं की भरमार है परंतु उनमें कोई कबीर अर्थात सच्चा फ़क़ीर मिलना बहुत कठिन है। 

           उन हाथों को ही मिलें ,सदा जलन के घाव।

           तेज़ हवा से  दीप का,जो भी  करें बचाव।।



अलका शर्मा जी अपने इस दोहे में कहती हैं कि हवा से दिये की सुरक्षा करने में हाथों का जलना तो स्वाभाविक ही है। 

हरिराम पथिक जी का गांव से शहरों की तरफ तेज़ी से हो रहे पलायन की त्रासदी व्यक्त करता हुआ यह दोहा भी देखिए :

            नगर  पास  होते   रहे, गांव  हो   गए  दूर। 

            नगरों में खोता रहा,'पथिक' गांव का नूर।।


         

मुझ नाचीज़ (ओंकार सिंह विवेक ) के दोहों को भी इस महत्वपूर्ण दोहा संग्रह में स्थान मिला है सो एक दोहा यह भी देखें :

             पत्नी   के   शृंगार   का,ले   आए  सामान। 

             मां के चश्मे का उन्हें,रहा नहीं कुछ ध्यान।।

मैं समझता हूँ कि मेरा यह दोहा भी नि:संदेह आपको कुछ चिंतन के लिए प्रेरित करेगा।

            कविता  ऐसी  चाहिए,  करे मनुज-कल्याण। 

           जो इस गुण से है रहित,वह कविता निष्प्राण।।

श्री बृजराज किशोर राहगीर जी का यह दोहा हमें बताता है कि यदि कविता में कोई सामाजिक या मानवीय पहलू न हो तो कविता भला किस काम की?

             कहा पेट ने पीठ से,खुलकर बारंबार। 

             तेरे  मेरे  बीच  में, रोटी  की  दीवार।।

श्री घमंडी लाल अग्रवाल जी का यह मार्मिक दोहा भी हमें गहन चिंतन के लिए प्रेरित करता है :

               सुनता उसका बालमन,दिन में सौ-सौ बार। 

               ओ छोटू!उस मेज़ पर, जल्दी कपड़ा मार।।

श्री राजपाल सिंह गुलिया जी का यह दोहा एक बाल मज़दूर की  विवशता का कैसा मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।

                 ज़हर उगलने की लगी,इंसानों में होड़ ।

                 शनै-शनै जाने लगे,सांप बस्तियां छोड़।।

श्री धर्मपाल धर्म जी का यह दोहा आज के इंसान के दूषित/ज़हरीले सोच की पराकाष्ठा को बयां करता है।

ऐसे कितने ही मर्म को छूने वाले कथ्य और भाव से परिपूर्ण  दोहों से यह दोहा संग्रह भरा पड़ा है। मैंने समय सीमा की बाध्यता के चलते कुछ ही दोहाकारों के दोहों का उल्लेख यहां किया है परंतु फिर भी यहाँ मैं संकलन के सभी 51 दोहाकारों के नाम का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ। पुस्तक में छपे सभी 51 दोहाकारों के नाम कुछ इस प्रकार हैं राहुल शिवाय/ सुशीला शील स्वयं सिद्धा/ हरिराम पथिक/ संदीप मिश्रा सरस/ त्रिलोक सिंह ठकुरेला/ सत्यम भारती/गरिमा सक्सैना /डॉo रामनिवास मानव/ कमलेश व्यास कमल/ डॉ०तूलिका सेठ/ हलीम आईना/ अलका शर्मा/ ओंकार सिंह विवेक/ सुरेश कुशवाह तन्मय। विभा राज वैभवी/संदीप सृजन /सरिता गुप्ता/सूर्य प्रकाश मिश्रा/ रमा प्रवीण वर्मा/ डॉ० मनोज कामदेव/ संजय तन्हा/ कृष्ण सुकुमार/ शीतल बाजपेई/राघवेंद्र यादव/ नीलम सिंह/ अनंत आलोक/ डॉ० फ़हीम अहमद/ ब्रजराज किशोर राहगीर/ वृंदावन राय सरल/अमरपाल/ डॉ० लक्ष्मीनारायण पांडे/ किरण प्रभा/ विनयशील चतुर्वेदी/ रामकिशोर सौनकिया किशोर/डॉo मानिक विश्वकर्मा नवरंग/ डॉक्टर गीता पांडे अपराजिता/ व्यग्र पांडे/ डॉo मनोज अबोध/ डॉ० घमंडी लाल अग्रवाल/डॉ०नूतन शर्मा नवल/ प्रोमिला भारती/ सुरेंद्र कुमार सैनी/ राजपाल सिंह गुलिया/ डॉ० मधु प्रधान/ योगेंद्र वर्मा व्योम/ कुलदीप कौर दीप/प्रमोद मिश्रा हितैषी/ धर्मपाल धर्म/डॉ० चंद्रपाल सिंह यादव/अजय अज्ञात तथा मोहन द्विवेदी।

इस पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकारों डॉo लक्ष्मी शंकर बाजपेई तथा देवेंद्र मांझी द्वारा लिखी गई है। पुस्तक की संकल्पना को मूर्त रूप देने में इन दोनों श्रेष्ठ साहित्यकारों की महती भूमिका की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। क्योंकि इन साहित्य मनीषियों के लिए लगभग 231 से अधिक रचनाकारों में से 51 दोहाकारों को चुनना कोई आसान कार्य नहीं रहा होगा।


 इस पुस्तक में संकलित सभी दोहों की भाषा अत्यंत सरल तथा सहज है। हां,पुस्तक की प्रूफ रीडिंग को लेकर कुछ और सतर्कता बरती जानी चाहिए थी ऐसा मुझे लगता है। इस पुस्तक में संकलित भिन्न-भिन्न भाव के कलात्मक दोहों को पढ़कर नि:संदेह यह कहा जा सकता है की सभी दोहाकारों की लेखनी अत्यंत जागरूक है और अपने सृजन से समाज को सार्थक संदेश देने का सामर्थ्य रखती है। 

मेरा आपसे आग्रह है कि दोहों की इस दस्तावेज़ी पुस्तक को इंडियानेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा से मंगवा कर अवश्य ही पढ़ें।अंत में हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक जी तथा उनकी टीम को हिंदी काव्य के उन्नयन के उनके इस सार्थक प्रयास के लिए हृदय से साधुवाद देते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।

--- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/ कंटेंट राइटर/ टैक्स्ट ब्लॉगर 














September 25, 2025

श्री हरि सरस्वती शिशु मंदिर जूनियर हाई स्कूल में पल्लव काव्य मंच रामपुर का नवांकुर काव्य प्रतिभा खोज तथा कवि गोष्ठी कार्यक्रम संपन्न *********************************************


नई पीढ़ी में विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रदर्शन करने की असीम संभावनाएँ विद्यमान हैं।आवश्यकता केवल उनकी प्रतिभा को पहचानकर उचित मंच देने की है।इस बात को अनुभव करते हुए बच्चों में छिपी काव्य प्रतिभा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से पल्लव काव्य मंच रामपुर द्वारा श्री हरि सरस्वती शिशु मंदिर जूनियर हाई स्कूल में काव्य प्रतिभा खोज कार्यक्रम का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार शिव कुमार चन्दन द्वारा की गई। विद्यालय के संरक्षक अनिल अग्रवाल तथा पूर्व पत्रकार किशन लाल शर्मा जी क्रमशः मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित रहे।


हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम में विद्यालय के लगभग 45 छात्र-छात्राओं द्वारा हिन्दी भाषा को लेकर सुंदर काव्य तथा गद्य प्रस्तुतियाँ दी गईं।बच्चों का रचना पाठ सुनकर सभी ने उनमें विद्यमान काव्य प्रतिभा की भूरि- भूरि प्रशंसा की। विद्यालय के भैया और बहिनों की प्रस्तुतियों में अपनी मातृ भाषा के प्रति उनके अनुराग को स्पष्ट देखा जा सकता था।बच्चों को प्रोत्साहन प्रतिसाद के रूप में प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में स्थानीय कवि/कवयित्रियों द्वारा भी राजभाषा हिन्दी तथा समसामयिक विषयों पर अपनी सुंदर रचनाओं से समां बांधा गया।

    (कार्यक्रम में मंचासीन कवि तथा अन्य अतिथिगण) 
काव्य पाठ करते हुए पल्लव काव्य मंच के उपाध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने मातृ भाषा हिन्दी के प्रति अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए :
          दुनिया में  भारत  के गौरव मान और सम्मान की,
         आओ बात करें हम अपनी हिन्दी के यशगान की।
              जय अपनी हिन्दी ! जय प्यारी हिन्दी ! 

जिन कवियों ने अपनी रचनाओं से सभा को बार-बार तालियां बजाने के लिए विवश किया उनमें शिव कुमार चन्दन, ओंकार सिंह विवेक, सचिन सार्थक, अनमोल रागिनी, पूनम दीक्षित, डॉo प्रीति अग्रवाल तथा रामकिशोर वर्मा आदि प्रमुख रहे।

पल्लव काव्य मंच के अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन ने बच्चों की प्रतिभा को सराहते हुए कहा कि पल्लव मंच बच्चों की प्रतिभा को निखारने के लिए प्रतिवर्ष ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने का विचार रखता है। शिव कुमार चन्दन जी ने बच्चों के लिए अपनी बाल कविता कुछ यों प्रस्तुत की :

     गुड्डे-गुड़िया के विवाह का जब शुभ दिन आ पाया,

     किरन माधुरी  गीता  नीता  ने  घर  को सजवाया।


इस अवसर पर विद्यालय के संरक्षक तथा उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के जनपद अध्यक्ष श्री अनिल अग्रवाल जी को उनकी सराहनीय सेवाओं हेतु पल्लव काव्य मंच द्वारा सम्मानित भी किया गया। उल्लेखनीय है कि श्री अनिल अग्रवाल जी सदैव ही पल्लव काव्य मंच के कार्यक्रमों में तन-मन और धन से सहयोग करते रहे हैं।

मुख्य अतिथि अनिल अग्रवाल जी ने बच्चों को भविष्य में और अधिक तैयारी से अपनी प्रस्तुतियां देने की सलाह देते हुए कार्यक्रम में उपस्थित हुए कवि/कवयित्रियों का आभार व्यक्त किया।

विशिष्ट अतिथि किशन लाल शर्मा जी ने भविष्य में इस तरह के साहित्यिक आयोजनों को और अधिक गति देने पर बल दिया।उन्होंने बच्चों की सुंदर प्रस्तुतियों की सराहना करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

इस अवसर पर स्कूल के प्रधानाचार्य उमेश कुमार सहित समस्त आचार्यगण व अन्य स्टाफ जन उपस्थित रहे। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री उमेश कुमार जी के आत्मीय व्यवहार तथा कार्यक्रम प्रबंधन कौशल ने सबको बहुत प्रभावित किया।

विद्यालय के तमाम स्टाफ तथा आचार्यगण का कार्यक्रम को सफल बनाने में सराहनीय योगदान रहा।


स्थानीय समाचार पत्रों अमृत विचार,हिंदुस्तान द्वारा कार्यक्रम की शानदार कवरेज करने के लिए हम मीडिया बंधुओं का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं 🙏

प्रस्तुतकर्ता 
ओंकार सिंह विवेक 
साहित्यकार/ समीक्षक/कंटेंट राइटर 


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