September 3, 2025

ग़ज़ल-संग्रह समीक्षा : 'धूप के क़तरे'





                     पुस्तक परिचय 

                      ************

               कृति : 'धूप के क़तरे' ग़ज़ल-संग्रह 

          कृतिकार : डॉo घनश्याम परिश्रमी,नेपाल

प्रकाशक : शब्दार्थ प्रकाशन,चाबेल,काठमांडू (नेपाल) 

        प्रकाशन वर्ष : 2023

      परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह विवेक 

आज ग़ज़ल साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधाओं में से एक है। मूलतय: अरबी और फारसी भाषाओं से होते हुए ग़ज़ल उर्दू तथा हिंदी भाषाओं में आई। एक समय था जब इश्क़/मोहब्बत के तमाम पहलुओं को ही ग़ज़ल का कथ्य बनाया जाता था। लेकिन आज की ग़ज़ल जीवन और समाज से जुड़े हर पहलू को अपने में समेटे हुए है। ग़ज़ल अब किसी एक भाषा की न रहकर अपनी भाषा ख़ुद गढ़ रही है। कल्चर के रूप में ग़ज़ल अपने आप में एक इतिहास,रिवायत और संस्कार को समाहित किए हुए है। ग़ज़ल की मक़बूलियत का आलम यह है कि आज यह हिंदी और उर्दू में ही नहीं वरन दुनिया की तमाम भाषाओं और बोलियों में कहीं जा रही है।वर्तमान में ग़ज़ल नेपाली भाषा में भी उतनी ही मक़बूल है जितनी कि हिन्दी भाषा में।इस समय मेरे हाथ में नेपाली भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जी का हिंदी भाषा में प्रकाशित पहला ग़ज़ल-संग्रह 'धूप के क़तरे' है। 


आइए इस ग़ज़ल संग्रह पर गुफ्तगू करने से पहले डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी के बारे में थोड़ी सी जानकारी किए लेते हैं। डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू,नेपाल से अध्यापन कार्य के बाद अवकाश ग्रहण किया है और वर्तमान में पूरी तरह साहित्य साधना में निमग्न हैं।आपका नेपाली भाषा के साथ-साथ संस्कृत तथा हिंदी भाषाओं पर भी अच्छा अधिकार है। नेपाली भाषा में आपके कई ग़ज़ल संग्रह तथा अन्य साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।


 हिंदी भाषा में 'धूप के क़तरे' परिश्रमी जी का पहला ग़ज़ल संग्रह है। ज़ाहिर है कि हिन्दी ग़ज़ल के सफ़र में यह उनकी शुरुआत भर है,आगे यह सफ़र और भी सुहावना होता जाएगा,हम ऐसी आशा करते हैं। अब इस ग़ज़ल संग्रह के पन्ने पलटते हैं। इस संकलन की शीर्षक ग़ज़ल का यह शेर देखें 

 ठिकाना ढूंढते हैं कुछ उजाले रूह के अंदर, 

बदन पर जम रहे हैं मुद्दतों से धूप के क़तरे ।

एक और शेर देखें 

निहाँ एक मुद्दत तेरे दिल के अंदर,

मेरी  ज़िंदगी की  कहानी  रही है। 

इन अशआर से ही आपको परिश्रमी जी के तेवर और उनकी फ़िक्र का अंदाज़ा हो गया होगा।

ख़ुशख़बर आज  तेरी  आई है, 

तुझको दिल से बहुत बधाई है। 

सादा ज़बान में कहा गया यह शेर ग़ज़लकार की संवेदनाओं का परिचय देता है।आर्थिक और सामाजिक भेदभाव प्राचीन काल से ही हर समाज का हिस्सा रहे हैं।इस व्यवस्था को दर्शाता हुआ यह मार्मिक शेर देखिए 

आप कुर्सी पर बैठिए मलिक, 

ख़ैर ,मेरे   लिए    चटाई   है। 

कवि को एक तरफ सामाजिक परिस्थितियाँ,राजनैतिक परिदृश्य,प्राकृतिक घटनाक्रम जैसी चीज़ें सृजन के लिए प्रेरित करती हैं तो दूसरी तरफ स्वयं उसकी विचारधारा और स्वाभाविक रुचियाँ भी उसके काव्य सृजन का विषय बन जाती हैं। रचनाकार ने ग़ज़ल के प्रति अपने लगाव को कितनी ख़ूबसूरती से इस शेर में कह दिया है 

दिल ख़ुश  रहता है मेरा, 

यार ग़ज़ल की महफ़िल में। 

कविता वही प्रभावशाली मानी जाती है जो कोई सार्थक संदेश दे और जिसकी भाषा आम आदमी की भी आसानी से समझ में आ जाए। परिश्रमी जी के इस संदर्भ में ये दो शेर देखिए 

होठों  पर  मुस्कान  रखो  तुम, 

ख़ुद  अपनी पहचान रखो तुम। 

मैंने कह दी  अपनी ख़्वाहिश, 

अब अपना अरमान रखो तुम। 

दुनिया में जब तमाम दोस्त अपने-अपने स्वार्थ के चलते आदमी से दूरी बना लेते हैं तो ग़ज़लकार परिश्रमी जी के क़लम से यह शेर निकलता है 

साथ नहीं अब मेरे कोई, 

दूर  गए  हैं  यार पुराने। 

आज हर आदमी अपनी उलझनों, परेशानियों और ग़मों में मुब्तिला है। किसी के पास वक्त ही कहां है जो दूसरे के ग़मों को समझे और हमदर्दी दिखाए।रचनाकार का यह शेर 

मुसीबत में तुम थे मुसीबत में हम थे, 

तुम्हारे भी ग़म  थे हमारे  भी  ग़म थे। 

डॉ घनश्याम परिश्रमी जी ने यदि रिवायती अशआर कहे हैं तो सामाजिक विसंगतियों तथा आम आदमी के मसाइल को भी उन्होंने अपने अशआर में बांधा है अर्थात उनके चिंतन का  फ़लक काफी व्यापक है। किसी ग़ज़ल में यदि कुछ मुश्किल शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है रचनाकार ने तो उस ग़ज़ल के नीचे मुश्किल शब्दों के अर्थ लिख दिए गए हैं जो एक अच्छी बात लगी मुझे इस संकलन की। इतना ही नहीं हर ग़ज़ल के नीचे उसकी बहर/मापनी भी लिखी है और ग़ज़लकार ने मापनी के निर्वहन का भरसक प्रयास भी किया है। जहां तक ग़ज़ल की कहन और शेरों में तग़ज़्ज़ुल पैदा करने की बात है यह निरंतर अभ्यास से ही संभव हो पाता है। परिश्रमी जी ने पुस्तक में अपनी बात कहते हुए इसका चर्चा भी किया है कि हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में उनका यह पहला प्रयास है अतः त्रुटियां होना स्वाभाविक है। ग़ज़लकार  की इस साफ़गोई की हमें तारीफ़ करनी चाहिए। वैसे भी अपने सृजन को बेहतर करने की संभावनाएं रचनाकार में हमेशा बनी रहनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है। पुस्तक में  टंकण,वाक्य विन्यास या व्याकरण आदि की त्रुटियों को लेकर कुछ और सजग हुआ जा सकता था ऐसा मुझे महसूस होता है। 


मैं डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी के दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि भविष्य में हमें उनकी और भी बेहतर काव्य कृतियां पढ़ने को मिलें। श्री परिश्रमी जी के जोश,जज़्बे और ग़ज़ल के प्रति जुनून को देखते हुए मुझे जलील आली साहब का यह शेर याद आ रहा है :

        रास्ता  सोचते  रहने  से  किधर बनता है, 

        सर में सौदा हो तो दीवार में दर बनता है। 

                             -- जलील आली 

डॉ घनश्याम परिश्रमी जी का ग़ज़ल के प्रति यह जुनून यूं ही क़ायम रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं। 

ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर 


          'धूप के क़तरे' ग़ज़ल-संग्रह की समीक्षा🌹🙏👈👈

        

September 1, 2025

पुस्तक परिचय - "अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का"

      

                           पुस्तक समीक्षा 

                            ***********

                 पुस्तक : 'अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का'

                 लेखक : दिनेश चंद्र शर्मा 

                 प्रकाशक : ग्रामोदय महाविद्यालय एवं शोध    संस्थान अमरपुर काशी जनपद मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

              प्रकाशन वर्ष : 2024 मूल्य :450/ रुपए 

        पुस्तक परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह विवेक 



यह पुस्तक ग्रामोदय महाविद्यालय एवं शोध संस्थान अमरपुर काशी ज़िला मुरादाबाद के संस्थापक श्री मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा एवं उसके साथ अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा पर आधारित है। इस पुस्तक के लेखक श्री दिनेश चंद्र शर्मा जी ने  पुस्तक में उल्लेख किया है कि यह पुस्तक का प्रथम खंड है अर्थात भविष्य में इस पुस्तक का अगला खंड भी आने की संभावना है।


'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' पुस्तक की भूमिका 

डॉo सत्येंद्र कुमार सिंह, निदेशक वॉलंटरी इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिटी अप्लाइड साइंस-डेवलपमेंट प्रयागराज ने लिखी है। पुस्तक का परिचय देने से पहले मैं आपको आदरणीय मुकट सिंह जी के बारे में थोड़ी सी जानकारी प्रदान कर दूं। इस पुस्तक में उपलब्ध जानकारी के अनुसार श्री मुकट सिंह जी ग्रामोदय संस्थान ग्राम अमरपुर काशी जनपद मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश के संस्थापक हैं। आदर से सब लोग उन्हें बाबू जी कहकर पुकारते हैं। आपने 1959 में आगरा विश्वविद्यालय से एमएससी पास किया।उसके बाद लंदन यूनिवर्सिटी से 1969 में एमएससी स्टैटिसटिक्स किया तथा रॉयल स्टैटिसटिक्स सोसाइटी ऑफ लंदन के चयनित फैलो  भी रहे। आपने भारत तथा इंग्लैंड में अनेक शिक्षण संस्थानों में अध्यापन कार्य किया है। 

श्री मुकट सिंह जी वर्ष,1969 में अपनी माता जी की मृत्यु के पश्चात इंग्लैंड से अपने गांव लौट आए। तभी से उन्होंने  गांव अमरपुर काशी में अमरपुर काशी ग्रामीण पॉलिटेक्निक की स्थापना करके ग्रामीण विकास संबंधी अपनी गतिविधियां आरम्भ कर दी थीं। एक दशक बाद जब संस्थान के सामने  आर्थिक समस्याएं आईं तो वर्ष 1980 में पुनः इंग्लैंड गए, धनोपार्जन किया और वर्ष 1984 में फिर से इंग्लैंड  की नौकरी छोड़कर गांव आ गए।


मुझे श्री मुकट सिंह जी का परिचय देते हुए मजरूह सुल्तानपुरी साहब का यह शेर याद आ रहा है: 

      मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, 

      लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। 

ग्रामीण विकास के सपने को साकार करने वाले जीवट के धनी मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा को पढ़कर मैं नि:संदेह यह कह सकता हूं की मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने यह शेर ऐसे व्यक्तियों के लिए ही कहा होगा। बाबू जी ने अकेले ही ग्रामीण विकास के लिए कुछ अलग करने का बीड़ा उठाया था और धीरे-धीरे उनके साथ उनकी विकास यात्रा में तमाम लोग जुड़ते चले गए जिसके परिणामस्वरुप मुरादाबाद जनपद का अमरपुर काशी गांव आज राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान रखता है।श्री मुकट सिंह जी की मातृभाषा हिंदी है लेकिन वे धारा प्रवाह उर्दू भी बोल सकते हैं। आपने इंग्लैंड में भी शिक्षा ग्रहण की है अतः अंग्रेजी में भी धारा प्रवाह बोलने में आपका कोई सानी नहीं है। इन भाषाओं के अतिरिक्त बाबू जी गुजराती, पंजाबी एवं बंगाली भी भली भांति समझ लेते है। मुकट सिंह जी 91 वर्ष की आयु में आज भी अपने द्वारा स्थापित की गई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा अपने पैतृक गांव अमरपुर काशी में सक्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

इतना शोध एवं इतनी सूचनाओं का संकलन करने के बाद श्री मुकट सिंह जी एवं अमरपुर काशी की विकास यात्रा पर 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाले श्री दिनेश चंद शर्मा जी के बारे में कुछ न कहा जाए तो इस पुस्तक का परिचय देना अधूरा ही कहा जाएगा। 


श्री दिनेश चंद शर्मा तत्कालीन प्रथमा बैंक से अवकाश प्राप्त प्रबंधक हैं। मैंने भी इसी बैंक से अवकाश ग्रहण किया है अतः शर्मा जी से मेरा निकट संबंध रहा है। मैं उन्हें एक बैंकर के रूप में जानने के साथ- साथ उनके Extra curricular Talent से भी अच्छी तरह परिचित हूं। दिनेश चंद्र शर्मा जी  सृजनात्मक लेखन में रुचि के कारण अनेक पत्र पत्रिकाओं से भी जुड़ाव रखते हैं। राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस से नैशनल लेवल तक जुड़ाव रहा है। आप राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस तथा अन्य संस्थाओं/संगठनों द्वारा अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। दिनेश चंद्र शर्मा जी की काव्य तथा योग आदि पर कई पुस्तकें आ चुकी हैं। आपने प्रस्तुत पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से अपनी बात रखते हुए बताया है कि वह ग्रामीण स्तर पर पिछड़ेपन और सुविधाओं की न्यूनता आदि को लेकर विद्यार्थी जीवन से ही चिंतित रहे हैं।अतः श्री मुकट सिंह जी के मिशन और विज़न से बहुत प्रभावित हैं।इसी प्रभाव और प्रेरणा ने उन्हें श्री मुकट सिंह जी के जीवन पर यह किताब लिखने के लिए प्रेरित किया। 

मुझे श्री दिनेश चंद शर्मा जी की प्रतिभा, लगन और समर्पण को देखते हुए नफ़स अम्बालवी साहब का यह शेर याद आ रहा है: 

  उसे ग़ुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है, 

  मुझे यकीं है कि यह आसमान कुछ कम है। 

आईए अब इस महत्वपूर्ण और एक दस्तावेज़ी किताब के, जिसका शीर्षक है 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का'  कुछ पन्ने पलटते हैं। यह पुस्तक कुल पांच अध्यायों में विभक्त है। 

पहले अध्याय में श्री मुकट सिंह जी का बाल्यकाल, शिक्षा- दीक्षा तथा अमरपुर काशी गांव की तत्कालीन दशा के बारे में विस्तार से बताया गया है। 

दूसरे अध्याय में मुकट सिंह जी के देश में शिक्षण कार्य एवं सामाजिक कार्य करके प्राप्त किए गए उपयोगी अनुभवों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

तीसरे अध्याय में श्री मुकट सिंह जी के इंग्लैंड में जाकर शिक्षा प्राप्त करने तथा विकास के क्षेत्र में उनके गहन अनुभव एवं ज्ञान प्राप्त करने के बारे में चर्चा की गई है।उस दौरान जो आर्थिक अभाव बाबू जी ने झेले उनका  मार्मिक चित्रण इस अध्याय में मिलता है। विपरीत परिस्थितियों में कैसे श्री मुकट सिंह जी के मित्र श्री सुरेश अत्री जी ने उनकी मदद की, वह प्रसंग पढ़कर हृदय द्रवित हो जाता है। उस घटना को पढ़कर हमारे इस विश्वास को भी बल मिलता है कि यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति और कुछ कर गुज़रने  की ललक हो तो रास्ते निकलते चले जाते हैं। 

अध्याय 4 में बताया गया है की मुकट सिंह जी द्वारा इंग्लैंड से लौटकर कैसे अपने छोटे से पिछड़े गांव में शिक्षा और विकास की ज्योति जलाई गई।

अमरपुर काशी गांव में बाबू जी के द्वारा किए गए विकास कार्यों पर ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन द्वारा बनाई गई फिल्म के बारे में भी इस अध्याय में चर्चा की गई है। 

प्रथमा बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए आयोजित किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जानकारी भी इसी अध्याय में दी गई है। 


अध्याय 4 में ही श्री मुकट सिंह जी के मिशन में सहयोगी रहे उनके साथियों श्री रोहतास सिंह रघुवंशी, उपाध्यक्ष वॉलंटरी इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिटी अप्लाइड साइंसेज - डेवलपमेंट प्रयागराज तथा श्री इंदल सिंह भदोरिया, रिटायर्ड उपनिदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश के बारे में बताया गया है। ये दोनों श्री मुकट सिंह जी के ग्रामीण विकास के मिशन को मूर्त रूप देने में क़दम- क़दम पर उनके साथ रहे। यह हम सबको प्रेरणा देने वाली बात है। 

अध्याय 5 में बताया गया है कि श्री मुकट सिंह जी ने अपने मिशन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को पार करते हुए कैसे अमरपुर काशी गांव को एक आदर्श गांव बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अपने विकास कार्यक्रमों को गति देते हुए कैसे मुकुट सिंह जी ने अनेक देशों की यात्राएं की।

इसी अध्याय में हमें मुकट सिंह जी के निर्देशन में ग्राम अमरपुर काशी में समय-समय पर आयोजित हुई अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, सेमिनारों तथा कार्यशालाओं के बारे में भी जानकारी मिलती है जो अमरपुर काशी गांव के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं।

श्री मुकट सिंह जी की जीवन यात्रा तथा अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा में यदि उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति सिंह के योगदान की चर्चा न की जाए तो बात अधूरी ही रहेगी। 


लेखक ने बाबू जी की ऑस्ट्रेलिया में जन्मी पत्नी जिनका मूल नाम जीनियस ई मायर्स  है तथा शादी के बाद जिनका नाम ज्योति सिंह हुआ, के बारे में भी पुस्तक में विस्तार से बताया है। उनका इंग्लैंड में कैसे श्री मुकट सिंह जी से संपर्क हुआ, वह कैसे उनके विचारों से प्रभावित होकर सारी सुख-सुविधा छोड़कर भारत के छोटे से पिछड़े गांव अमरपुर काशी में रहने के लिए चली आईं? इसका बड़ा ही हृदय द्रवित कर देने वाला विवरण पुस्तक में मिलता है।


पुस्तक के अंत के भाग में बताया गया है कि कैसे मुकट सिंह जी के अथक प्रयासों के चलते अमरपुर काशी गांव में शिक्षा और विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ, कैसे कई बार पर उन्हें कुछ लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। उस दौरान उन्हें कोर्ट- कचहरी के भी चक्कर लगाने पड़े।पुस्तक में  दिनेश चंद्र शर्मा जी ने श्री मुकट सिंह जी के व्यक्तित्व और दृढ़ संकल्प को उकेरती हुई अपनी कविता के माध्यम से उनके प्रति अपना सम्मान भी प्रकट किया है। 


पुस्तक के अंतिम भाग में ही संस्था से संबद्ध रहे विशेषज्ञों के ग्रामीण विकास और समस्याओं पर महत्वपूर्ण आलेख तथा समय-समय पर आयोजित की गई राष्ट्रीय /अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों के बारे में सचित्र जानकारी भी दी की गई है। 


लेखक ने पुस्तक हेतु जहां-जहां से सूचनाएं,जानकारियां एकत्र की हैं उन सभी माध्यमों का संदर्भ भी अंत में दिया है जो पुस्तक तथा लेखक की विश्वसनीयता को बढ़ाता है। 

पुस्तक को पढ़कर श्री मुकट सिंह जी की दृढ़ इच्छा शक्ति, समर्पण और संकल्प को देखकर मन उनके प्रति श्रद्धा से भर उठता है। अपनी सफलता के शिखर पर लंदन जैसे शहर से अच्छी भली नौकरी छोड़कर एक छोटे से अभावग्रस्त गांव अमरपुर काशी में उसके विकास के लिए कुछ कर गुज़रने का फैसला लेना कितना कठिन रहा होगा उस समय बाबू जी के लिए, यह बात हम सबके लिए बहुत प्रेरणादाई है। गांव के एक साधारण किसान परिवार का लड़का उस ज़माने में पढ़ने विलायत तक जाए और उसे फिर भी शहरी जीवन की शान- शौक़त तथा चमक-दमक से बिल्कुल मोह न हो,यह बात बहुत प्रभावित करती है। विलायत से आकर मुकट सिंह जी अमरपुर काशी गांव में अपने मिशन में ऐसे रमे कि अमरपुर काशी गांव की विकास यात्रा और बाबूजी की जीवन यात्रा एक दूसरे के पर्याय बन गए।


यह पुस्तक बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है, जिसे सामान्य पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से पढ़कर इससे प्रेरणा ले सकते हैं।पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में हैडिंग के माध्यम से छोटे-छोटे पैराग्राफ में बहुत सहज ढंग से सारगर्भित जानकारी प्रदान की गई है।पुस्तक में कंटेंट को इस तरह सिलसिलेवार  प्रस्तुत किया गया है कि एक स्वाभाविक तारतम्य और प्रवाह अंत तक बना रहता है। जैसे-जैसे पुस्तक को पढ़ते हैं उसे आगे पढ़ने की उत्सुकता बढ़ती जाती है। 


यदि किसी व्यक्ति ने किसी क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया हो तो उसके व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेकर हमने कितने ही लोगों को अपने जीवन को बदलते हुए देखा है। श्री मुकुट सिंह बाबू जी की जीवन यात्रा पर लिखी गई 'अनोखा स्वप्न द्रष्टा गांव का लड़का' एक ऐसी ही पुस्तक है जिसे पढ़कर और उससे प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी अपने जीवन में सार्थक लक्ष्यों का निर्धारण करके विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकती है। अतः मेरा अनुरोध है कि आप इस महत्वपूर्ण पुस्तक को मंगाकर अवश्य पढ़ें।

 पुस्तक मंगवाने का पता:

Shri Mukat Singh 

The Society for Agro Industrial Education in India 

Village Amarpur Kashi 

Tehsil Bilari 

District Moradabad (Uttar Pradesh) India 

इस बहुमूल्य पुस्तक के बारे में दी गई जानकारी आपको कैसी लगी हमारे ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराइए तथा ब्लॉग को फॉलो भी कीजिए।

हार्दिक धन्यवाद आभार नमस्कार🌹🌹🙏🙏

---- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


 अनोखा स्वप्नद्रष्टा गाँव का लड़का'🌹🌹👈👈






 



August 31, 2025

पुस्तक समीक्षा -'गीत सागर' (काव्य-संग्रह)


                           पुस्तक समीक्षा 

                             **********

                 कृति : 'गीत सागर ' (काव्य-संग्रह) 

                 कृतिकार : राम रतन यादव रतन 

   प्रकाशक :विधा प्रकाशन,उधम सिंह नगर, उत्तराखंड 

                 प्रकाशन वर्ष : 2023 मूल्य : 175 रुपए 

 पुस्तक परिचय प्रदाता/समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 


साहित्यकार केवल स्वांत: सुखाय  ही सृजन नहीं करता है अपितु उसका मौलिक चिंतन एवं सृजन समाज को दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। काव्य की अनेक विधाओं जैसे गीत, मुक्तक, दोहा,कुंडलिया, घनाक्षरी तथा सवैया आदि में काव्यकार अपने भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। गीत की जहां तक बात है उसमें मुखड़े के साथ तीन या चार तक अंतरे होते हैं। गीत प्रारंभ से अंत तक एक ही विषय को विस्तार देते हुए रचा जाता है। शब्द सामंजस्य, शब्द चयन एवं यति-गति के साथ लयात्मकता गीत  की पहली शर्त है। यदि गीतों में प्रतीक, बिंब और अलंकार, मुहावरे आदि भी प्रयोग किए जाएं तो गीत  की ख़ूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। 

कुछ वर्ष पहले रामरतन यादव रतन  का पहला काव्य संग्रह 'काव्य ज्योति' के नाम से आया था जिसे पढ़ने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ था। 'काव्य ज्योति' में विभिन्न विषयों पर रतन जी की भावना प्रधान संभावनाएं जगाती अच्छी रचनाएं पढ़ने में आई थीं ।अब 'गीत सागर' के नाम से रतन जी की दूसरी कृति मेरे सामने है।इसमें रतन जी की 55 रचनाएं संकलित हैं 'गीत सागर' को उन्होंने अपने स्वर्गीय माता एवं पिता के श्री चरणों में समर्पित किया है । श्री रतन जी के माता-पिता आज देवलोक से अपने पुत्र की यह उपलब्धियां देखकर निश्चित ही प्रसन्नता का अनुभव कर रहे होंगे। 


कवि ने 'गुणों का उत्तम प्रसार दो मां,हमारे अवगुण निवार दो मां' कहते हुए सरस्वती की आराधना से अपने गीत संग्रह का  शुभारंभ किया है। सरस्वती वंदना के अंत में एक रचनाकार के लिए क़लम की महत्ता को प्रतिपादित करता हुआ एक सुंदर मुक्तक भी हमें पढ़ने को मिलता है-- 


क़लम हथियार है अपना, क़लम अधिकार है अपना, 

क़लम ही सार  है अपना, क़लम आधार है अपना।

क़लम से ही जगत में हम सभी सम्मान पाते हैं,

क़लम श्रृंगार है अपना, क़लम संसार है अपना।

व्यक्ति की धार्मिक एवं आध्यात्मिक आस्थाएं नि:संदेह उसे मानसिक शांति प्रदान करती हैं। कवि की मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति गहरी श्रद्धा ने उनसे एक सुंदर भजन सृजित कराया है जिसकी कुछ पंक्तियों का आनंद लीजिए 


कृपा प्रभु राम की जिस पर सफलता खूब पता है, 

भजे प्रभु राम को मन से भंवर से पार जाता है। 

पुस्तक में संकलित एक सुंदर बाल गीत की कुछ पंक्तियां देखिए 

चंदा छुपा डूब गए तारे, लाल हमारे अब उठ जा रे ।

पूरब में छाई है लाली, उठकर निरख नज़ारे सारे। 

वातावरण सुखद है प्यारे, लाल हमारे अब उठ जा रे। 

इन पंक्तियों को पढ़कर हमें प्रसिद्ध कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की कविता 'उठो लाल अब आंखें खोलो, पानी लाई हूं मुंह धो लो ' का सहसा ही स्मरण हो उठता है। 


गीतों के साथ-साथ पुस्तक में बीच-बीच में महत्वपूर्ण विषयों पर मुक्तकों के माध्यम से भी कवि ने अपनी बात कही है। इस प्रयोग ने पुस्तक को और निखार दे दिया है। प्यार और समर्पण की भावना को बल देता हुआ एक सुंदर मुक्तक  देखिए इस पुस्तक से 

मोहब्बत का मधुर एहसास यदि इंसान पा जाए, 

अंधेरी रात में भी वह मिलन के गीत गा जाए। 

मधुर रिश्ता समर्पण का चले यदि भावना के सँग ,

दिलों के बाग़ में फ़स्ले- बहाराँ गुल खिला  जाए। 

जिन्होंने हमें यह अनमोल जीवन दिया, परवरिश की, पढ़ा- लिखा कर किसी किसी योग्य बनाया, उन मां-बाप का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता। इसी भावना को लेकर कवि ने माता-पिता को समर्पित सुंदर गीत सृजित किया है 

गहरी हों कितनी भी नदियां, हम कश्ती पतवार बनेंगे,

मात- पिता की सेवा को हम सहज- सुलभ हर बार बनेंगे। 

जब भी जो कुछ उनसे मांगा सब हमको उपलब्ध कराया, 

श्रम- सीकर से सींच - सींचकर हमें जगत में योग्य बनाया। 

है कर्तव्य हमारा उनके सपनों का संसार बनेंगे, 

मात-पिता की सेवा को हम सहज- सुलभ हर बार बनेंगे। 


आज की स्वार्थी दुनिया में नाते - रिश्तों में वह अपनापन कहां बचा है। अब तो लोग सिर्फ़  मतलब के लिए संबंध बनाते हैं और उन्हें बढ़ाते हैं। ऐसी बातों से जब कवि  रतन का मन व्यथित होता है तो वह कह उठते हैं 

जीवन की आपाधापी में जीना अब दुश्वार हो गया, 

संबंधों में प्रेम कहां है स्वारथ का संसार हो गया।

चूंकि कवि राम रतन यादव रतन उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जनपद से संबंध रखते हैं जहां की आंचलिक भाषा भोजपुरी है, सो प्रस्तुत पुस्तक में कई रचनाएं हमें भोजपुरी में भी देखने को मिलती है। गांव के बदले हुए हालात पर चिंता प्रकट करते हुए भोजपुरी में कवि कहता है 

खेतन- खेतन प्लाट कट गइल, मनई सब हलकान भइल,

भाग- भाग सब शहर जात बा, गंउबा अब वीरान भइल। 

जैने खेतवा में है  भइया सरसों अरहर लहरात रहल, 

आज समझ में ना हीआवत ऊंहवा उठ गइल बड़ा महल। 


कवि की लेखनी किसी एक विषय तक सीमित नहीं रहती। उसकी दृष्टि हर दृश्य, परिदृश्य और विषय पर पड़ती है और वह भी एक ख़ास अंदाज़ में। कवि  रतन ने प्रकृति चित्रण, देश प्रेम, बाल जीवन तथा सामाजिक परिवेश जैसे जीवन से जुड़े सभी पहलुओं को अपने काव्य सृजन का माध्यम बनाया है। पुस्तक की भाषा बहुत सरल है।भाषा के क्लिष्ट बंधनों में न बंधते हुए कवि ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है जो एक अच्छी बात है। इतना ही नहीं कवि ने अन्य भाषा के शब्द,जो आम बोलचाल में प्रयुक्त किए जाते हैं का भी खुले दिल से प्रयोग किया है। कवि की बाल कविताओं में जो प्रवाह दिखाई देता है वह भविष्य में उनके एक अच्छे बाल कवि होने की तरफ़  इशारा करता है। 


'गीत सागर' काव्य संग्रह में भावनाओं का सैलाब दिखाई पड़ता है, जिसमें सहज हृदय कवि ने शिल्प को साधने का सफल प्रयास किया है। कवि की पहली कृति 'काव्य ज्योति' भी मेरी नज़र से गुज़री थी। उससे 'गीत सागर'  की तुलना करके मैं  कह सकता हूं कि कवि का सृजन उत्तरोत्तर उत्तमता की ओर अग्रसर है। थोड़ी- बहुत टंकण त्रुटियां जो आमतौर पर अक्सर पुस्तकों में रह जाती हैं वह इस काव्य संकलन में भी मौजूद हैं। हिंदी छंदों में मात्रा पतन तथा तुकांत श्रेष्ठता, शब्द चयन आदि की जहां तक बात है, मानक हिंदी काव्य के पक्षधर विद्धजन कवि रतन जी से  भविष्य में और बेहतर की उम्मीद कर सकते हैं। 


मुझे आशा है की संभावनाओं से भरे प्रिय कवि राम रतन यादव रतन जी की यह काव्य कृति 'गीत सागर' काव्य जगत में भरपूर स्नेह पाएगी।मैं उनके सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करते हुए स्वर्गीय दुष्यंत कुमार जी के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं :

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, 

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।

काव्य सृजन की यह आग कवि रतन के सीने में यूं ही जलती रहे इसी कामना के साथ।

---- ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


      'गीत सागर' (काव्य-संग्रह) समीक्षा 🌹🌹👈👈










 



August 29, 2025

पुस्तक परिचय/समीक्षा- 'बीत गया है जैसे युग' (ग़ज़ल-संग्रह)

          

                           पुस्तक समीक्षा 

                             **********

       कृति : 'बीत गया है जैसे युग' ग़ज़ल-संग्रह 

       कृतिकार :सुरेंद्र कुमार सैनी 

       प्रकाशक :अमृत प्रकाशन शाहदरा दिल्ली 

        प्रकाशन वर्ष : 2021 मूल्य : 275 रुपए 

 पुस्तक परिचय प्रदाता/समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार के सृजन के पीछे कोई न कोई प्रेरणा अवश्य रही होती है। वह प्रेरणा प्रेमी/प्रेमिका, घर- परिवार,समाज या देश की स्थिति, कहीं से भी प्राप्त हो सकती है। इस प्रेरणा को आधार बनाकर अपने गहन चिंतन की उड़ान से लेखक /कवि बड़े-बड़े गद्य और काव्य ग्रंथों की रचना कर देते हैं। आज हम ऐसे ही एक वरिष्ठ कवि के रचनाकर्म से आपको रूबरू कराना चाहते हैं जिन्होंने अपनी धर्मपत्नी के असामयिक निधन से उपजी पीड़ा को आधार बनाकर विरह भावनाओं पर 'बीत गया है जैसे युग' शीर्षक से एक बहुत मार्मिक ग़ज़ल संग्रह का सृजन किया है। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूं रुड़की ,उत्तराखंड निवासी वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र कुमार सैनी साहब की। 


कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक साहित्यिक समारोह में सैनी जी से मुलाक़ात  हुई थी।बातचीत करने पर मैंने उनको बहुत संवेदनशील, भावुक  तथा निश्छल पाया। सैनी साहब का दूसरा ग़ज़ल संग्रह 'बीत गया है जैसे युग' इस समय मेरे हाथ में है।


 ग़ज़ल संग्रह को आधोपांत पढ़कर मैं रचनाकार की विरह वेदना को अच्छी तरह समझ पा रहा हूं। अपनी विरह वेदना को शेर दर शेर, ग़ज़ल दर ग़ज़ल सैनी जी ने जो मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति दी है उसको आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

अपने प्रिय की स्मृतियों में तड़पते हुए कवि की मनोदशा को सैनी जी के इस शेर से भली भांति बात समझा जा सकता है- 

   जैसे पानी के बिना रेत पे तड़पे मछली, 

  इस तरह बिन तेरे जीवन को बिताया मैंने। 


यह ग़ज़ल संग्रह ऐसे तमाम शेर समेटे हुए है जो उपजे तो रचनाकार की व्यक्तिगत पीड़ा से हैं परंतु पढ़ते-पढ़ते पाठक को अपने हृदय की पीड़ा से जुड़े हुए लगने लगते हैं। शेरों /ग़ज़लों  में छुपे हुए मर्म को महसूस करके पाठक अनायास ही रचनाकार से निजता का संबंध बना लेता है। इसी पृष्ठभूमि में कुछ शेर देखें- 

 कभी इन आंसुओं को नीर की धारा नहीं कहना, 

किसी के प्यार की सौग़ात को झूठा नहीं कहना।


निश्छल प्रेम की एक और बानगी देखिए - 

मैं तेरा नाम आज तक पुकारता रहा, 

वो लौ जो बुझ गई उसे निहारता रहा। 

ये शेर और देखें जिनमें कामना और विवशता का अद्भुत सामंजस्य दिखाई देता है - 

घर मेरा काश! एक पल को फिर, 

तेरी मुस्कान से बहल जाता।

दिल को मेरे ख़ुशी बड़ी मिलती,

 यम का जो एक वार टल जाता ।

जीवन की सच्चाई और दर्शनिकता भरा  यह शेर भी देखें - 

हम दोनों के बीच यह दूरी तब तक है, 

माटी का घट जब तक टूट नहीं जाता ।

विरह वेदना से दिल में उभरा दर्द और उस दर्द में कही गई ग़ज़लें, यही अब जैसे कवि सुरेंद्र कुमार सैनी जी का जीवन संसार हो गया है। यह मार्मिक पंक्तियां भी देखिए - 

बिन तुम्हारे हैं ज़िंदगी ऐसे ,

फूल से ख़ुशबू हो जुदा जैसे।

इस जहां में है हर ख़ुशी ऐसे,

फूल कांटों में हो खिला जैसे ।


सैनी जी की ग़ज़ल का यह मार्मिक शेर पढ़कर किसकी पलकें न भीग जाएंगी भला - 

उसके कपड़ों वाला बक्सा जब-जब भी खोला है मैंने, 

माज़ी की यादों का सागर मेरे दिल में लहराया है।


हर व्यक्ति के मन में सुनहरे भविष्य और नई आशाओं के न जाने कितने सपने पल रहे होते हैं परंतु विधि के विधान के आगे आदमी कैसे विवश हो जाता है,रचनाकार के इस शेर से भली भांति समझा जा सकता है - 

कौन भला जीतेगा अपनी क़िस्मत से ,

अपनी क़िस्मत से जब जीत न पाए राम ।

'बीत गया है जैसे युग' की अधिकांश ग़ज़लों में विरह के प्रणय भाव की जो सहज और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति की गई है वह नि:संदेह ही ग़ज़ल प्रेमियों को अभिभूत करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। एक और शेर दृष्टव्य है :

अब न वो आएंगे वापस यह तो सच है लेकिन, 

उनका साया - सा बुलाता है तो हंस देता हूं।

इस शेर में 'साया - सा बुलाता है' में जो मर्मभेदी भाव छुपा है वह पाठक के दिल में उतर जाता है।जो अपना कभी न लौटकर आने के लिए अनंत की यात्रा पर चला गया उसकी याद भला कैसे न आएगी इस शेर को पढ़कर। इसी ग़ज़ल  का एक और शेर भी देखें - 

सबकी सांसों पे यहां रहता है यम का पहरा,

दंभ फिर कोई दिखाता है तो  हँस देता हूं।

कितने शेर कोट किए जाएं इस ग़ज़ल संग्रह के,हर शेर अपने आप में विरह वेदना और प्रणय भाव का जैसे एक समुंदर ही समेटे हुए है। सैनी जी की इन ग़ज़लों  की ख़ूबी यह है कि यह अपनी सरल भाषा और रवानी के चलते हर किसी के दिल में उतरने की क़ूवत रखती हैं। ग़ज़लों में कहीं कोई बनावट दिखाई नहीं देती। सैनी जी आम बोलचाल की भाषा में अपने शेरों के माध्यम से पाठक से सीधे संवाद करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

मेरा सौभाग्य है कि वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय सुरेंद्र कुमार सैनी जी की ग़ज़लों को पढ़ने और उन पर अपने विचार साझा करने का अवसर मिला।मैं सैनी जी को इतनी सहज और शाश्वत प्रणय भावना और अपनी विरह वेदना को ग़ज़लों में ढालकर हमें सौंपने के लिए हार्दिक बधाई देता हूं और ईश्वर से कामना करता हूं कि वह उन्हें दीर्घायु प्रदान करें ताकि भविष्य में हमें सैनी जी की और भी सुंदर काव्य कृतियां पढ़ने को मिलें। अंत में किसी अज्ञात शायर का यह शेर सैनी जी को समर्पित करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं :

अजब लहजा है उसकी गुफ़्तगू का, 

ग़ज़ल  जैसी  ज़बाँ वो  बोलता  है। 

---- ओंकार सिंह विवेक 

ग़ज़लकार /समीक्षक/ कंटेंट राइटर 


पुस्तक समीक्षा 🌹🌹





 



August 16, 2025

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹





मित्रो श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 🌹🌹🙏🙏
    आ जाओ हे नंदलला तुम आ जाओ,
    आज  भी  राधा  टेरे  है  बरसाने  में।
                 -- ओंकार सिंह विवेक 
आज ही के दिन योगेश्वर श्री कृष्ण जी ने अधर्म के समूल नाश हेतु धरा पर अवतार लिया था। योगीराज की लीलाएं जीवन जीने की कला सिखाती हैं। श्री कृष्ण के 'गीता' में दिए गए उपदेश हमें सुख-दुःख में समभाव रखते हुए कर्म किए जाने की प्रेरणा देते हैं। जब युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर अर्जुन ने युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया था तो वह 'गीता' का ज्ञान ही था जिसने उन्हें अपने वास्तविक कर्तव्य का बोध कराया और वह धर्मयुद्ध के लिए तैयार हुए।
आइए श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्तव्य पथ पर अग्रसर होने हेतु दिए गए उपदेशों को आत्मसात करते हुए हर्षोल्लास के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाएं।

जय श्री कृष्ण 🌹🌹🙏🙏

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कहे गए मेरे कुछ दोहों का आनंद लीजिए :
दोहे : श्री कृष्ण जन्माष्टमी 
*********************
         -- @ओंकार सिंह विवेक 
लिया   द्वारकाधीश  ने,जब   पावन   अवतार।
स्वत: खुल  गया  कंस  के,बंदीगृह  का  द्वार।।

काम न आई  कंस  की, कुटिल एक भी  चाल।
हुए कृष्ण जी अवतरित,बनकर उसका काल।।

बाल  रूप  में   आ   गए, उनके   घर  भगवान।
नंद-यशोदा   गा   रहे,मिलकर   मंगल    गान।।

जिसको  सुनकर  मुग्ध थे,गाय-गोपियाँ-ग्वाल।
छेड़ो वह  धुन आज  फिर ,हे गिरिधर गोपाल।।
  
दुष्टों   का   कलिकाल  के, करने    को   संहार।
चक्र सुदर्शन  कृष्ण   जी, पुन: लीजिए   धार।।

कर्मयोग   से    ही   बने, मानव   सदा   महान।
यही   बताता   है   हमें, गीता   का   सद्ज्ञान।।

लेते   रहिए   नित्य प्रति, वंशीधर   का    नाम।
बन   जाएंगे    आपके, सारे    बिगड़े    काम।।
                              @ओंकार सिंह विवेक


August 15, 2025

देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹


            (चित्र गूगल से साभार)

          🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
समस्त देश वासियों को राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹 
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक एक आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में हमने जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं उसके लिए सबको बधाई। निःसंदेह हम दुनिया को अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए आगे भी तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहेंगे।
जय हिन्द!जय भारत!🇧🇮🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

इस अवसर पर तिरंगे की शान में सृजित एक मुक्तक आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ :

वीर   शहीदों  की   गाथा   का  गान   तिरंगा  है।

हर  भारतवासी    का    गौरव-मान   तिरंगा   है,

गर्व न हो क्यों आख़िर हमको इस पर बतलाओ,

सारे  जग   में  भारत   की  पहचान   तिरंगा  है।

                          --- ओंकार सिंह विवेक 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


     हर घर तिरंगा 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🌹🌹🙏🙏👈

August 12, 2025

कविता में ढालकर

🌹🌷🌱🌺🥀🌴🌿💐💥🪷🍀🌷🌺🌱🥀🌴🌿💐🍀🌾💥🪷🌺🌱🥀🌴🌿💐🌷🌹🍀🌾💥🪷
कुछ घटनाओं और परिस्थितियों को देकर जैसा चिंतन किया उसे दोहों में ढालकर आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ, प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए 🙏

जो  सूरज  प्रतिदिन  यहाँ, उगल  रहा  था  आग।

उमड़े    बादल   देखकर,गया  अचानक   भाग।।

क्या  दिन  थे  जब  गाँव  में,बरगद पीपल नीम।

होते   थे   सबके  लिए,घर   के    वैद्य-हकीम।।

                         ©️ ओंकार सिंह विवेक


🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉

          

     अब तो बस पिंजरा है उसमें ------🌹🌹👈👈


August 7, 2025

काव्य में सामयिक संदर्भ

कवि/रचनाकार आम आदमी से भिन्न दृष्टि से चीज़ों/घटनाओं को देखता है और उसे अपनी रचनाओं में ऐसे नज़रिए से पेश करता है कि सामने वाला आह या वाह करने को विवश हो जाता है।मानवीय संवेदनाओं के गिरते स्तर और प्रकृति के साथ मानव के अतिरेकी व्यवहार को लेकर दो दोहे हुए जो आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर प्रस्तुत हैं।
आज के दोहे 
**********

जंगल  नदी  पहाड़  को, करता   रहा  निढाल।
ले  अब  तू  भी  देख  ले,मानव  अपना हाल।।

रोने   की   हो  बात   तो,हँस   पड़ते  हैं  लोग।
किस सीमा तक बढ़ गए,आज मानसिक रोग।। 
           ©️ओंकार सिंह विवेक

August 4, 2025

महिमा सावन की



दोस्तो नमस्कार 🌷🌷🙏🙏

आज श्रावण मास का आख़िरी सोमवार है।श्रद्धालु भोले बाबा को कांवर चढ़ाने को लेकर अति उत्साहित हैं। हाइवेज़ पर कांवड़ियों की भारी भीड़ चल रही है।जगह- जगह उनके सम्मान में भंडारे चल रहे हैं। पूरा वातावरण श्रद्धा तथा उल्लास से भरा हुआ है।
सावन मास में रिमझिम वर्षा से यों तो हर और हरियाली की निराली छटा दिखाई दे रही है परंतु सावन की वर्षा का एक दूसरा रूप भी दिखाई दे रहा है।कहीं बारिश अनुकूल है तो कहीं अति जलवृष्टि से भयानक तबाही भी मची है। कहने को तो यह बारिश का मौसम है परंतु कुछ जगह सूखे के हालत भी बने हैं।इन्हीं सब विरोधाभासों को लेकर एक मुक्तक कहा है।
अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य ही अवगत कराएं 🙏

            मुक्तक 

            *******

वर्षा का दिन रात कहीं  पर तांडव जारी है,

और  कहीं खेती-बाड़ी  पर  सूखा भारी है।

संग  धरा  के जो  ऐसा  बर्ताव  करे  है  तू,

श्रावण माह बता किसने तेरी मति मारी है।

          -----ओंकार सिंह विवेक 

   (सर्वाधिकार सुरक्षित) 


         काव्य की धारा 🌹🌹🌷🌷👈


July 17, 2025

मुक्तक संसार

साथियो नमस्कार 💐💐🙏🙏

मुक्तक काव्य की ऐसी विद्या है जिसमें चार पंक्तियों में ही बड़ी मारक बात कह दी जाती है।पहली दो पंक्तियों में किसी विषय को उठाकर अंतिम पंक्तियों में बड़े कौशल के साथ शिल्प का निर्वहन करते हुए विषय को पूर्ण करना ही अच्छे मुक्तककार की पहचान है।
मैंने दो मुक्तकों के सृजन का प्रयास किया है जो आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं 🙏

        मुक्तक 1
        *******

मुरझाए से  हैं सब चेहरे जो रहते थे खिले हुए,

साफ़ दिखाई देते हैं विश्वास परस्पर हिले  हुए।

कैसे क़ाबू  पाया  जाए  बोलो  दहशतगर्दी पर,

अंदर वाले ही जब हों बाहर वालों से मिले हुए।

             मुक्तक 2

            ********

न  ही  भर   पेट  खाता  है   न   पूरी  नींद  सोता  है, 

अधिक  सामर्थ्य  से  अपनी  हमेशा  बोझ   ढोता है।

जिसे श्रम की कभी अपने उचित क़ीमत नहीं मिलती,

वही  मज़दूर   होता   है    वही    मज़दूर   होता    है। 

               ----ओंकार सिंह विवेक 


     सृजन संसार 💐💐👈👈

July 7, 2025

ग़ज़ल के पहलू में

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पेश है नई ग़ज़ल 
*************
      ग़ज़ल 
       ****
कण-कण में  त्रिपुरारी है,
उसकी  महिमा  न्यारी है।

ऊँचे  लाभ   की  सोचेगा,
आख़िर  वो  व्यापारी  है।

दो  पद, दो  सौ  आवेदन,
किस  दर्जा  बे-कारी   है।

स्वाद  बताता  है  इसका,
माँ   ने   दाल  बघारी  है।

काहे   के    वो   संन्यासी, 
मन    पूरा    संसारी    है।

चख लेता है  मीट  कभी,
वैसे      शाकाहारी     है।

उससे कुछ बचकर रहना,
वो   जो    खद्दरधारी   है।
©️ ओंकार सिंह विवेक



June 24, 2025

पल्लव काव्य मंच रामपुर का कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं साहित्यकार सम्मान समारोह




रामपुर की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था 'पल्लव काव्य मंच' द्वारा दिनांक 22-जून,2025 को माया देवी धर्मशाला रामपुर में मंच-संस्थापक स्मृति शेष डॉo के सी पाठक के जन्म शताब्दी वर्ष में एक भव्य कवि सम्मेलन,पुस्तक विमोचन एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड़ धीर ने की तथा मुख्य अतिथि द्वय बरेली से साहित्यकार आचार्य देवेंद्र देव तथा भरतपुर, राजस्थान से कवि सोमदत्त व्यास जी रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में इगलास, अलीगढ़ से ग़ाफ़िल स्वामी जी मंच पर विराजमान रहे।
कार्यक्रम में स्थानीय साहित्यकारों के अतिरिक्त बरेली, पीलीभीत,हल्द्वानी,बदायूँ,चंदौसी, ग़ाज़ियाबाद, बिसौली, बहजोई, संभल,अलीगढ़,बाग़पत तथा भरतपुर (राजस्थान) आदि सुदूर स्थानों से आए साहित्यकारों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम के पहले चरण में मां शारदे के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन तथा सरस्वती वंदना के पश्चात कवियों ने अपने सशक्त काव्य पाठ द्वारा आमंत्रित अतिथियों को बार-बार तालियाँ बजाने के लिए विवश किया।
काव्य पाठ करते हुए कवि राजवीर सिंह राज़ ने कहा:
      गर्म रखते हो तुम मिज़ाज अपना,
      प्यार  से  हम  हैं  गुफ़्तगू  करते।
पल्लव काव्य मंच के उपाध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने अपना मार्मिक शेर पढ़ते हुए कहा :
      कुछ कसर कब छोड़ते हैं अन्न के अपमान में,
       फेंकते    हैं  रोटियों  को  लोग  कूड़ेदान  में।

ग़ाज़ियाबाद से पधारे कवि मान सिंह बघेल जी ने सस्वर सुंदर काव्य पाठ करते हुए कहा :
  ख़ूब झगड़ा तो बचपन में करते रहे,
  माफ़ करना बहिन माँगता हूँ क्षमा।
भूल जाना नहीं साथ अपना कभी,
याद बचपन दिलाने को कब आओगी।
पीलीभीत से पधारे कवि सत्यपाल सिंह सजग ने पर्यावरण संरक्षण पर अपनी सशक्त काव्य प्रस्तुति में कहा :
      आओ धरा दुल्हन सी सजाएं,
       दो पौधे कम से कम लगाएं।

संचालन कर रहे मंच के महासचिव प्रदीप माहिर ने अपनी काव्य प्रस्तुति कुछ यों दी :
        आँख में कुल जहान भरता है,
        तू भी ऊँची उड़ान भरता है।

पल्लव काव्य मंच के अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन ने कहा :
   हे संगीत स्वरों की देवी उर आनंद जगाती हो,
    राग कला से मधुरस भरतीं वीणा सरस बजाती हो।
अलीगढ़ से पधारे कवि ग़ाफ़िल स्वामी ने अपनी दमदार प्रस्तुति देते हुए कहा :
     कर न किसी की होड़ बावरे,
      कल की चिंता छोड़ बावरे।

हल्द्वानी, उत्तराखंड से पधारीं कवयित्री डॉक्टर गीता मिश्रा गीत ने अपने सुंदर स्वर में काव्य पाठ करते हुए कहा :
 साधु जनों का साथ मिले तो सत संगति कहलाती है,
 दुर्जन संग मिले अति पीड़ा जीवन भर दहलाती है।
उपरोक्त कवियों के अतिरिक्त सोमदत्त व्यास,अतुल कुमार शर्मा, सतीश चंद्र सुधांशु, मुकेश कुमार दीक्षित, पतराम सिंह, गौरव नायक, सुमित मीत, रामप्रकाश सिंह ओज, रामसागर शर्मा, सुखपाल सिंह गौर,रणधीर प्रसाद गौड़ धीर,हिमांशु क्षोत्रिय निष्पक्ष,प्रीति गुप्ता,जावेद रहीम तथा अनमोल रागिनी आदि वरिष्ठ साहित्यकारों  ने भी अपने धारदार काव्य पाठ से उपस्थित अतिथियों को बहुत प्रभावित किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में पहले मंच के अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन जी के मुक्तक-गीत संग्रह 'संगम काव्य लहरी'  का मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा लोकार्पण संपन्न हुआ।

लोकार्पण के पश्चात पुस्तक की समीक्षा करते हुए संभल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा कि साहित्यकार चन्दन की 'संगम काव्य लहरी' ऐसे गीत और मुक्तकों का संग्रह है जिसे एक बार पढ़ना शुरू कर दो तो समाप्त किए बिना आप पुस्तक को बंद नहीं कर सकते।पुस्तक की प्रत्येक रचना दिल में उतरती चली जाती है। सामाजिक तथा पारिवारिक परिवेश तथा भक्ति एवं शृंगार के साथ प्रकृति चित्रण आदि सभी विषयों पर कभी चन्दन ने अपनी सशक्त लेखनी चलाई है। निश्चित ही उनकी यह कृति साहित्य जगत में मान पाएगी।

पुस्तक समीक्षा के बाद पल्लव काव्य मंच द्वारा साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं हेतु सम्मान पत्र,उत्तरी तथा स्मृति चिह्न आदि देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर मंच से जुड़े सशक्त युवा हस्ताक्षर कवि राजवीर सिंह राज़ द्वारा अपनी माताश्री की स्मृति में शुरू किए  गए जगदेवी स्मृति सम्मान से भी चुनिंदा साहित्यकारों को सम्मानित किया। इस अवसर पर राजवीर जी की बहिन श्रीमती सीमा रानी तथा बहनोई श्री देवेन्द्र पाल सिंह जी भी परिवार की ओर से उपस्थित रहे।





कार्यक्रम में साहित्यकार साथियों से मिलने के कई फ़ायदे हुए।एक ओर एक-दूसरे के परिवारों का हालचाल जानने का अवसर मिला तो दूसरी ओर क्षेत्र में चल रही साहित्यिक गतिविधियों पर भी चर्चा हुई।ऐसे अवसर पर एक-दूसरे के साथ फोटो न लिए जाएँ तो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी रह जाती है सो यह काम भी पूरा किया 👇


अंत में मंच के अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभा समापन की घोषणा की गई।
कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ।पहले सत्र का कुशल संचालन प्रदीप माहिर तथा राजवीर सिंह राज़ द्वारा किया गया। मुझे भी दूसरे सत्र का संचालन-दायित्व निर्वहन करने का अवसर प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम की ख़बर को सम्मानित अख़बारों द्वारा पर्याप्त स्पेस दिया गया। इसके लिए समाचार पत्रों के स्थानीय प्रतिनिधियों का हृदय से आभार 🙏🙏
(प्रस्तुति :ओंकार सिंह विवेक )

Featured Post

ग़ज़ल-संग्रह समीक्षा : 'धूप के क़तरे'

                     पुस्तक परिचय                        ************                कृति : 'धूप के ...