November 10, 2024

शीघ्र आ रहा है

मित्रो प्रणाम 🙏🙏 

 आपको यह बताते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है कि अंजुमन प्रकाशन गृह प्रयागराज द्वारा प्रेषित सूचना के अनुसार मेरा नया ग़ज़ल-संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' शीघ्र ही प्रकाशित होकर आ रहा है।
उचित समय पर इसके लोकार्पण आदि की प्रक्रिया पूर्ण करके विस्तृत ख़बर आप सभी शुभचिंतकों के साथ साझा करूंगा।

आज अपनी अलग-अलग ग़ज़लों के कुछ शेर आपकी अदालत में पेश कर रहा हूं :

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जब से मुजरिम पकड़के लाए हैं,
फ़ोन   थाने    के   घनघनाए  हैं।
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शिकायत  कुछ नहीं  है  ज़िंदगी से,
मिला जितना मुझे हूं ख़ुश उसी से।
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हौसले  जिनके  जगमगाते हैं,
ग़म कहाँ उनको तोड़ पाते हैं।

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हो अगर साहस तो संकट हार जाते हैं सभी,
रुक नहीं  पाते हैं  कंकर तेज़ बहती धार में।
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---- ©️ ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक 

November 4, 2024

नई ग़ज़ल

पटना के मशहूर शायर जनाब रमेश कँवल साहब के स्नेह हेतु हार्दिक आभार कि उनके सहयोग के चलते 
जहानाबाद,बिहार के "अरवल टाइम्स" अख़बार में वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ मेरी ग़ज़ल भी प्रकाशित हुई।मैं ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए श्री संतोष श्रीवास्तव,संपादक महोदय का हृदय आभार व्यक्त करता हूं 🌹🌹🙏🙏



November 2, 2024

रौशनी के नाम

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏


सम्मानित अख़बार "सदीनामा" में छपी मेरी नई ग़ज़ल का आनंद लीजिए। मैं धन्य समझता हूं स्वयं को कि मेरी ग़ज़ल मशहूर ग़ज़लकार श्री हरीश दरवेश साहब के साथ छपी है। श्री दरवेश साहब को भी उनकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद 🌷🌷
मैं एक बार फिर शुक्रगुज़ार हूं टीम "सदीनामा" का 🙏🙏

-----  ओंकार सिंह विवेक 


October 31, 2024

🪔🪔प्यार के दीप जलाएँ कि अब दिवाली है🪔🪔

सभी साथियों तथा शुभचिंतकों को दीपोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं एवं बधाई 🎁🎁🌹🌹🙏🙏

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दीपावली का पर्व सबके जीवन में सुख-समृद्धि और प्रकाश लेकर आए।हम सब दीप से दीप जलाने की मुहिम को आगे बढ़ाएं।जो साधन संपन्न नहीं हैं उनकी त्योहार मनाने में जो भी बन पड़े, मदद करें। यही मानवता का सच्चा सन्देश होगा।
मुझे गत वर्ष दीपावली पर कही गई अपनी ग़ज़ल का मतला' याद आ रहा है :
    तम को नफ़रत के मिटाएँ कि अब दिवाली है,
    प्यार  के  दीप  जलाएँ  कि  अब  दिवाली  है।
                                ©️ ओंकार सिंह विवेक 
आज ही मुकम्मल हुई ताज़ा ग़ज़ल भी आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं :

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जो   मुखौटा    कहीं    उतर    जाए,
आज  का  शख़्स ख़ुद  से डर जाए।

उसका  जीना  भी   कोई  जीना  है,
जिस  बशर  का  ज़मीर  मर  जाए।

पाए   मोहन    भी    रोज़गार   यहाँ,
और  अहमद  भी  काम  पर  जाए।

ये  जो  मुझ पर  है शा'इरी का नशा,
कोई     सूरत     नहीं, उतर    जाए।

सब   में   कमियाँ   निकालने   वाले,
तेरी  ख़ुद  पर  भी   तो  नज़र जाए।

है ये कितनों की आज भी ख़्वाहिश,
तीरगी     से     चराग़    डर    जाए।

भीड़    हर    सू   है  चालबाज़ों  की,
साफ़-दिल   आदमी   किधर  जाए।
              ©️ ओंकार सिंह विवेक 

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October 25, 2024

साहित्यकार महेश राही जयंती समारोह



महफ़िलों का नूर थे शृंगार थे

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साहित्यकार महेश राही जी की 90 वीं जयंती पर हुआ भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह

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    बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई,
     इक शख़्स  सारे  शहर  को  वीरान  कर गया।
किसी मशहूर शायर का यह शेर स्मृतिशेष साहित्यकार महेश राही जी के व्यक्तित्व पर बिल्कुल सटीक बैठता है। राही जी के चले जाने से सचमुच रामपुर की साहित्यिक बैठकें और अदबी महफ़िलें जैसे वीरान सी हो गई हैं। रामपुर के साहित्यकारों को उनकी कमी बहुत खलती है।
उल्लेखनीय है कि स्मृतिशेष महेश राही जी के कथा संग्रह 'धुंध और धूल', 'कारगिल के फूल' तथा 'आख़िरी जवाब' बहुत चर्चित रहे थे।इसी प्रकार उनका उपन्यास 'तपस' भी ख़ासा चर्चित रहा। अपने जीवन काल में आप तमाम साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे और लघु पत्रिका आंदोलनों में राष्ट्रीय स्तर तक सहभागिता करते रहे।
राही जी की 90 वीं जयंती पर उनकी स्मृतियों को ताज़ा रखने के लिए ज्ञान मंदिर पुस्तकालय रामपुर में परिजनों द्वारा भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन कराया गया।कार्यक्रम में देर रात तक कवियों ने राही जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए रचना पाठ किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के पूजन तथा स्मृति शेष राही जी की छवि के समक्ष पुष्प अर्पित करने के उपरांत डॉo प्रीति अग्रवाल की सरस्वती वंदना से हुआ।

कवि ओंकार सिंह विवेक ने राही जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा--


        महफ़िलों   का   नूर  थे, शृंगार  थे,

        सबकी चाहत थे सभी का प्यार थे।

        जानते  हैं  जिनको 'राही' नाम  से,

         वो अदब के इक बड़े फ़नकार थे।

प्रदीप माहिर ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति कुछ इस तरह दी--

धूप में दिन भर जली है,

तब कहीं कोशिश फली है।

भेड़िए सब एकजुट हैं, 

सामने एक लाडली है।

राजवीर सिंह राज़ ने कहा --

 साथ में चल रही है दुआ आपकी,

 मुस्तक़िल फल रही है दुआ आपकी।

डॉo निलय सक्सैना ने अपनी भाव अभिव्यक्ति कुछ यों दी --

      बह चलूंगी बांसुरी की तान बनकर,

      तुम कभी जो सांस का आधार दोगे।

 सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने कहा :

कज़ा अब हर किसी की सेज पर है,

ये दुनिया आख़िरी स्टेज पर है।

 सचिन सार्थक ने कहा :

    अभी एकांत एकाकी कहां है, 

   अभी तो देह मेरा स्वर यहीं हैं।

   प्रवासी था पखेरू उड़ गया है, 

     मगर टूटे हुए कुछ पर यहीं हैं।

कवि शिवकुमार चन्दन ने कहा 

अंजनी दुलारे लाल करैं नित्य प्रतिपाल,

राम नाम के रसिक आनंद लुटाते हैं ।

 इनके अतिरिक्त अनमोल रागिनी चुनमुन, सुधाकर सिंह, डॉo प्रीति अग्रवाल, पतराम सिंह, सुमित सिंह, पूनम दीक्षित, रवि प्रकाश, रामकिशोर वर्मा, धीरेन्द्र सक्सैना, जितेन्द्र नंदा तथा विनोद शर्मा आदि कवियों ने भी अपनी सुंदर और सामयिक रचनाओं के माध्यम से देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।


साहित्यकार रवि प्रकाश ने 'सहकारी युग' समाचार पत्र में छपे उनके उपन्यास 'डोलती नैया' के बारे में विस्तार से बताया।नीलम गुप्ता ने कहा कि राही जी एक साहित्यकार होने के साथ ही सबके सुख-दुःख में काम आने वाले नेक इंसान थे। महर्षि विद्या मंदिर इंटर कॉलेज की रिटायर्ड प्रिंसिपल जय हिंद आर्य ने कहा कि राही जी उनके संरक्षक और एक सच्चे मार्गदर्शक थे।


श्री दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि जब मैंने ज़िला बाल विज्ञान कांग्रेस समन्वयक के तौर पर रामपुर में कार्य शुरू किया था तो राही जी ने ही उस काम को आगे बढ़ाने में मेरी मदद की थी।


राही जी के सुपुत्रों अक्षय रस्तौगी तथा संजय रस्तौगी ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि पिताजी ने हमें सदैव ईमानदारी के पथ पर चलते हुए जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। संजय रस्तौगी ने अपने पिता श्री की पुस्तक के एक अंश का पाठ भी किया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्ञान मंदिर पुस्तकालय के अध्यक्ष सुरेश चंद्र अग्रवाल ने की तथा मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार शिव कुमार चन्दन जी रहे। प्रवेश रस्तौगी जी तथा भारत विकास परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र गुप्ता जी कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।मंचासीन सभी अतिथियों ने राही जी का स्मरण करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। कार्यक्रम के अंत में मंचासीन अतिथियों द्वारा साहित्यकारों तथा अन्य मेहमानों को स्मृति चिह्न तथा उपहार आदि देकर सम्मानित किया गया।



अंत में कार्यक्रम के आयोजक संजय रस्तौगी ने सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। 



कार्यक्रम में भारत विकास परिषद के जगन्नाथ चावला,माधव गुप्ता ,विकास पांडे, सतीश भटिया, प्रशांत गुप्ता आदि के साथ परिजनों सहित राजीव कुमार अग्रवाल, मुकेश आर्य ,नवीन पाण्डे, दिनेश रस्तौगी , दिलीप रस्तौगी, सुरेश रस्तौगी तथा अनमोल कुमार अनुज आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।


कार्यक्रम का सफल संचालन साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक द्वारा किया गया।

इस कार्यक्रम की प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज की गई जिसके लिए उनका हार्दिक साधुवाद एवं आभार 🌹🌹🙏🙏



प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

ग़ज़लकार/साहित्य समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/टेक्स्ट ब्लॉगर


October 23, 2024

कथाकार/उपन्यासकार स्मृतिशेष महेश राही जी

कथाकार/उपन्यासकार स्मृतिशेष महेश 'राही' जी 

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बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई,

 इक  शख़्स  सारे शहर  को   वीरान  कर गया।

प्रसिद्ध शायर ख़ालिद शरीफ़ साहब का ऊपर कोट किया हुआ शेर स्मृतिशेष साहित्यकार महेश राही जी की शख़्सियत को बख़ूबी बयान करता है। रामपुर की साहित्यिक सभाएँ,अदब की तमाम महफ़िलें तथा प्रसिद्द ज्ञान मंदिर पुस्तकालय आदि सभी में राही जी के न होने से आज एक ख़ालीपन-सा महसूस होता है।उन दिनों रामपुर में होने वाले लगभग सभी साहित्यिक आयोजनों में राही जी की सक्रिय सहभागिता होती थी।नए लोगों को प्रोत्साहित करना, हर एक से आत्मीयता से मिलना और सबको साथ लेकर चलना राही जी की विशेषता थी। यही कारण है कि वे साहित्य जगत में सबके प्रिय रहे।


महेश चंद्र रस्तौगी उर्फ़ महेश राही जी एक सिद्धहस्त कहानीकार तथा उपन्यासकार थे।आपका जन्म 24 अक्टूबर,1934 को जनपद बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।आप जनपद रामपुर के कलेक्ट्रेट से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पद से वर्ष 1994 में सेवा निवृत्त हुए तथा 14 नवंबर,2015 को आपने इस नश्वर संसार से विदा ली।

स्मृतिशेष महेश राही जी के कहानी संग्रहों 'धुंध और धूल', 'आख़िरी जवाब' तथा 'कारगिल के फूल' ने साहित्य जगत में उनकी ख़ूब पहचान बनाई। उनके कहानी संग्रह 'कारगिल के फूल' को पढ़कर राष्ट्र प्रेम की भावना हृदय में बलवती होती है। राही जी के कहानी संग्रह 'आख़िरी जवाब' ने उन्हें रातों-रात साहित्य जगत में चर्चित कर दिया था। आपातकाल के दौरान उनका यह कहानी संग्रह काफ़ी विवादों में रहा।उनके उपन्यास 'तपस' में राष्ट्रीय सरोकार और सामाजिक चेतना की झलक देखने को मिलती है।यों तो राही जी मूल रूप से एक कहानीकार/उपन्यासकार थे परंतु उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखीं जो 'स्वर' काव्य संकलन के रूप में प्रकाशित हुईं।राही जी देश भर में चले लघु पत्रिका आंदोलनों में बहुत सक्रिय रहे।

रामपुर के प्रतिष्ठित पत्रकार स्मृति शेष महेंद्र प्रसाद गुप्त जी के समाचार पत्र 'सहकारी युग' में आपका उपन्यास "डोलती नैया" सिलसिलेवार प्रकाशित हुआ।आपकी कहानियां राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका 'सारिका' तथा 'अमर उजाला' एवं 'दैनिक जागरण' आदि समाचार पत्रों में अक्सर छपती रहती थीं।स्वर्गीय महेश राही जी ने स्क्रीन प्ले राइटिंग में भी हाथ आज़माया। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री मूल चंद गौतम जी द्वारा निकाली जाने वाली प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका  "परिवेश" का सह संपादन भी राही जी ने किया। राही जी रामपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार स्मृतिशेष डॉक्टर छोटे लाल शर्मा नागेंद्र जी द्वारा निकाली जाने वाली साहित्यिक पत्रिका "विश्वास" के संरक्षक भी रहे। 


निःसंदेह राही जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। साहित्यकार/अदीब कभी मरता नहीं है।वह अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव समाज में ज़िंदा रहता है। राही जी अपनी श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के माध्यम से आज भी हम सबके बीच विद्यमान हैं।

मेरा 1990 के दशक में स्मृतिशेष राही जी से काफ़ी संपर्क रहा।कई बार गोष्ठियों/साहित्यिक कार्यक्रमों में उनके साथ सहभागिता की। काफ़ी समय तक मैं परिवार सहित रामपुर सिविल लाइंस की एकता विहार कॉलोनी में रहा जहां राही जी अपने छोटे पुत्र अक्षय रस्तौगी के साथ रहा करते थे।उनके साथ कई बार मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए साहित्यिक परिचर्चा होती रहती थी।वहां उन्होंने अपने घर कवि गोष्ठी भी आयोजित की थी जिसकी स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में आज भी ताज़ा हैं।


राही जी की 90 वीं जयंती पर उनकी स्मृतियों को ताज़ा करने के लिए उनके सुपुत्र श्री संजय रस्तौगी तथा अक्षय रस्तौगी एक साहित्यिक परिचर्चा तथा कवि गोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं जो गौरव और हर्ष का विषय है। मैं इस अवसर पर स्मृतिशेष राही जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🌹 🌹 🙏🙏अर्पित करते हुए एक मशहूर शायर के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं :

    मौत उसकी है ज़माना करे जिसका अफ़सोस,

     यूँ  तो  दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।

प्रस्तुतकर्ता :  ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/टैक्स्ट ब्लॉगर 

राही जी की स्मृति में उनके सुपुत्र श्री संजय रस्तौगी जी द्वारा कराए गए भव्य साहित्यिक कार्यक्रम की सम्मानित समाचार पत्रों द्वारा व्यापक कवरेज की गई।हम सम्मानित अख़बारों का दिल से आभार प्रकट करते हैं।


महेश राही जयंती समारोह 🥀🥀👈👈

बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल का आनंद लें 🌹🌹👈👈

October 16, 2024

किसी के तंज़ का नश्तर चुभा है

सादर प्रणाम मित्रो 🌷🌷🙏🙏


कोलकता,पश्चिमी बंगाल से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार "सदीनामा" के बारे में पहले भी कई बार मैं अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।इस अख़बार में देश और दुनिया की ख़बरों के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों की फ़िक्र करती हुई स्तरीय साहित्यिक रचनाएँ भी प्रकाशित होती हैं।मेरी जदीद ग़ज़लें भी समय-समय पर इस सम्मानित अख़बार में छपती रहती हैं।इसके लिए मैं "सदीनामा" के संपादक मंडल, ख़ास तौर पर बेहतरीन शा'इर श्री ओमप्रकाश नूर साहब, का दिल की गहराईयों से आभार प्रकट करता हूं। इस बार मेरी ग़ज़ल के साथ ही अख़बार में आदरणीय हरीश दरवेश साहब की भी बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल छपी है। मैं उन्हें भी हार्दिक बधाई देता हूं।
काफ़ी दिन पहले यह ग़ज़ल हुई थी जिसमें प्रारंभ में केवल पाँच ही अशआर कहे थे।बाद में कुछ संशोधन के साथ इसमें सात शे'र पूरे किए। मैं वह पूरी ग़ज़ल और इसके चंद शेर जो अख़बार में छपे हैं आपकी 'अदालत में पेश कर रहा हूं।
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी 🙏🙏 
        ©️ 

        ये दिल यूँ  ही नहीं  ज़ख़्मी  हुआ है,

        किसी  के  तंज़ का  नश्तर चुभा है।


        किसे  ला'नत-मलामत  भेजते   हो,

        अरे! वो  आदमी  चिकना  घड़ा  है।


        वो  नादाँ ही  है जो  दरिया  के आगे,

        समुंदर  प्यास  का  लेकर  खड़ा  है।  


         कहा  है  ख़ार  के   जैसा  किसी  ने,

         किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।


          उसे  धमका  रहा   है  रोज़  कोहरा,

          ये  कैसा  वक़्त सूरज  पर  पड़ा  है।


           समझ  में आ  तो जाती  बात मेरी,

           मगर  वो  चापलूसों  से  घिरा   है।


           कहाँ तुमको  नगर  में   वो  मिलेगी,

           मियाँ!जो गाँव की आब-ओ-हवा है।

                         ©️ ओंकार सिंह विवेक 



October 15, 2024

हाय यह कैसा मानव !

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

यों तो अक्सर मैं ब्लॉग पर अपनी पसंदीदा विधा ग़ज़ल के बारे में अक्सर कुछ संगत बातें करते हुए अपनी ग़ज़लें ही आप सुधी जनों के साथ साझा करता हूं। परंतु आज थोड़ा रस परिवर्तन करते हुए अपना एक कुंडलिया छंद आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु पोस्ट कर रहा हूं।

         ©️ एक कुंडलिया छंद
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        मानव  ही  करने   लगा,अब  मानव  का  ख़ून।

        बस्ती   में   लागू   हुआ,जंगल   का    क़ानून।।

        जंगल   का   क़ानून,मनुजता   है   नित   रोती।

        फिर भी चिंता हाय,किसी को तनिक न होती।।

        कर्मों    से   जो   आज,हुए   जाते   हैं    दानव।

        कैसे  बोलो   मित्र, उन्हें  हम  कह   दें  मानव।।

                                       ©️ ओंकार सिंह विवेक 


सभी के ज़ख्मों पर रखना है मरहम 🌹🌹👈👈

October 7, 2024

कुओं-तालों में अब पानी नहीं है

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏
दोस्तो पसंदीदा विधा ग़ज़ल को लेकर पहले भी मैं ब्लॉग पर कई पोस्ट्स लिख चुका हूं। उन पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुई हैं। ग़ज़ल विद्या में यह आसानी तो होती ही है कि आप एक ही ग़ज़ल में तमाम कथ्यों/पहलुओं को पिरो सकते हैं। जीवन, समाज तथा प्रकृति आदि के विविध रूपों को ग़ज़ल के शिल्प का पालन करते हुए एक ही ग़ज़ल के विभिन्न शे'रों में बांध सकते हैं।
आपकी प्रतिक्रिया हेतु अपनी एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूं जो शीघ्र ही आपको मेरे नए ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" में भी दिखाई देगी।इस ग़ज़ल के अशआर में घटते जल संसाधनों की चिंता है,इंसानियत के जज़्बे की अक्कासी है,परिवार में पिता की सहनशीलता की बानगी है,आदमी के घमंड पर चोट है,उसूलों की खिल्ली उड़ाते वर्तमान दौर की विदाई की कामना है तथा चुनावों के समय किए जाने वाले हवा-हवाई वा'दों का भी ज़िक्र है।
                 ©️ 

             कुओं-तालों में  अब पानी   नहीं  है,

             नदी  में  भी  वो  तुग़्यानी  नहीं है।


            सभी के ज़ख्मों पर रखना है मरहम,

            किसी  को  चोट  पहुँचानी  नहीं  है।


            दुखों  में भी  ये  कहते थे पिता जी,

            मुझे  कुछ   दुख-परेशानी  नहीं  है।   


            करे जो ज्ञान  पर  अभिमान  अपने,

            वो कुछ भी हो  मगर ज्ञानी  नहीं है।


            ख़ुदा-रा  ख़त्म  हो   ये  दौर   इसमें,

            उसूलों  की   निगहबानी   नहीं   है।


            चुनावी   घोषणा    ठहरी     चुनावी,

            'अमल में  वो  कभी  आनी  नहीं है।


            अलग  हों शे'र में  मिसरों  की बहरें, 

            ग़ज़ल  में इतनी  आसानी  नहीं  है।

                            ©️ ओंकार सिंह विवेक 
(शीघ्र प्रकाश्य "कुछ मीठा कुछ खारा" से)




October 1, 2024

जय अपनी हिन्दी, जय प्यारी हिन्दी

सादर प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏
हाल ही में भारत विकास परिषद मुख्य शाखा रामपुर की सितंबर माह की पारिवारिक बैठक चंपा कुंवरि न्यास धर्मशाला रामपुर (उत्तर प्रदेश) में संपन्न हुई। परिषद की गतिविधियों के बारे में पहले भी मैं अपने ब्लॉग पर कई पोस्ट्स लिख चुका हूं। परिषद के सभी कार्यक्रम बहुत ही उल्लासपूर्ण वातावरण में अनुशासन के साथ संपन्न होते हैं।
इस बार बैठक के एजेंडे में अन्य बिंदुओं के साथ हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत राजभाषा हिन्दी को लेकर भी परिचर्चा का एक बिंदु रखा गया था।
परिषद के अध्यक्ष श्री रविन्द्र कुमार गुप्ता द्वारा इस अवसर पर मुझे भी हिन्दी भाषा के बारे में अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया गया। राजभाषा हिन्दी की दशा और दिशा पर विचार रखते हुए मैंने अपना यह मुक्तक भी कार्यक्रम में प्रस्तुत किया :
     ©️ 
हमारे  देश के  इतिहास  की  पहचान  है  हिन्दी,
नहीं  है  झूठ कुछ  इसमें  हमारी शान  है हिन्दी।
विदेशी  लोग भी  अब गर्व से  यह  बात कहते हैं,
भला हम क्यों नहीं सीखें बहुत आसान है हिन्दी।
                            ©️ ओंकार सिंह विवेक 

अवसर के कुछ छाया चित्र संलग्न हैं 


      (प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक) 



September 27, 2024

प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति की विशाल आम सभा मुरादाबाद में संपन्न



संगठन में ही असली शक्ति निहित होती है। जो लोग अनुशासित ढंग से संगठित रहकर अपनी बात रखते हैं उनकी बात हर जगह सुनी जाती है। यह बात सार्थक हुई जब दिनांक 21/09/2024 को प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक कर्मचारी कल्याण समिति मुरादाबाद ने अपनी आम सभा में ऐसी ही अनुशासित संगठन शक्ति का परिचय दिया। समिति के अध्यक्ष श्री अनिल कुमार तोमर जी तथा महासचिव श्री इरफ़ान आलम जी के कुशल नेतृत्व में समिति के सभी सदस्यों की टीम भावना के चलते मुरादाबाद के मिड टाउन होटल में समिति की एक आम सभा का शानदार आयोजन सफलता के साथ संपन्न हुआ।
समिति की  सामान्य सभा में प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के चेयरमैन श्री संजीव भारद्वाज जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे ।सभा में मंच पर विशिष्ट अतिथियों के तौर पर श्री गणपति हेगड़े जी (राष्ट्रीय महासचिवNFRRRBS-AIRRBEA),श्री महेन्द्र सिंह जी(राष्ट्रीय अध्यक्ष,NFRRRBS-AIRRBEA),श्री सगुण शुक्ला जी(राष्ट्रीय अध्यक्ष,NFRRBO-AIRRBEA),श्री शिव करण द्विवेदी जी (राष्ट्रीय महासचिव,NFRRBE-AIRRBEA),श्री सुनील बालियान जी (कार्यकारीअध्यक्ष-PUPGBSNKKS),श्री डेविड चौधरी जी (अध्यक्ष-UPGBEU) विराजमान रहे।सभा की अध्यक्षता श्री अनिल कुमार तोमर जी (अध्यक्ष प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति) ने की। 
 
मंच का विधिवत गठन करने के बाद समिति के महासचिव इरफ़ान आलम जी ने पिछली सभा की कार्यवाही की पुष्टि हेतु अपनी विस्तृत आख्या पटल पर रखी।
समिति के कोषाध्यक्ष एच पी शर्मा जी ने आय-व्यय का सम्पूर्ण विवरण (वर्ष 2023-24 की बैलेंस शीट)  सदन के समक्ष प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के चेयरमैन श्री संजीव भारद्वाज जी ने तो अपने उद्वोधन से मानो महफ़िल ही लूट ली।उन्होंने कहा " रिटायर्ड साथी मुझे बैंक का चेयरमैन न मानते हुए अपना भाई और संरक्षक समझें। मेरे दरवाज़े रिटायर्ड साथियों के लिए हमेशा खुले हैं।वरिष्ठ साथियों के सभी हित लाभ तथा अन्य लंबित मुद्दे आदि त्वरित रूप से निस्तारित करना सदैव मेरी प्राथमिकता रही है।"
सभा को संबोधित करते हुए श्री महेन्द्र सिंह जी(राष्ट्रीय अध्यक्ष,NFRRRBS-AIRRBEA), ने कहा कि हम ग्रामीण बैंक कर्मियों को आज जो कुछ भी मिल रहा है वह सतत संघर्ष का ही परिणाम है। अत: आगे भी हमें संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे समिति के अध्यक्ष अनिल कुमार तोमर जी ने उन दिनों को याद किया जब ग्रामीण बैंक कर्मियों ने विपरीत परिस्थितियों में काम करते हुए अपने-अपने बैंकों को मज़बूत आधार प्रदान किए। उन्होंने साथियों से अधिक से अधिक संख्या में समिति से जुड़ने की अपील की।
श्री गणपति हेगड़े जी (राष्ट्रीय महासचिवNFRRRBS-AIRRBEA) ने अपने उद्वोधन में बताया कि कैसे अपने अधिकारों को पाने के लिए हम ग्रामीण बैंक कर्मियों को कभी नाबार्ड,कभी वित्त मंत्रालय और कभी न्यायालय के अनगिनत चक्कर काटने पड़े और कई बार बैंक प्रबंध तंत्र की मनमानियों को झेलना पड़ा। उन्होंने देश के प्रथम ग्रामीण बैंक (तत्कालीन प्रथमा बैंक) की स्थापना और उसमें कर्मचारियों द्वारा विगत समय में सहे गए उत्पीड़न की भी चर्चा की।

श्री सगुण शुक्ला जी(राष्ट्रीय अध्यक्ष,NFRRBO-AIRRBEA) ने अपने ओजस्वी उद्वोधन से साथियों में जोश भर दिया। उन्होंने कहा कि यह हम सब की एकता और सतत संघर्ष का ही परिणाम है कि आज हम राष्ट्रीयकृत बैंकों जैसी ही सुविधाएं लेने की स्थिति में पहुंच गए हैं।उन्होंने आगे भी इसी तरह डटे रहने का आह्वान किया।
श्री शिव करण द्विवेदी जी (राष्ट्रीय महासचिव ,NFRRBE-AIRRBEA) ने सन्देश वाहकों की नियुक्ति एवं राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक गठन आदि को लेकर हर पहलू पर गंभीर चर्चा की।

समिति के कार्यकारी अध्यक्ष सुनील बालियान जी ने 
संगठन की एकता पर बल देते हुए अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए आगे भी तैयार रहने के लिए कहा।उन्होंने सभी सदस्यों से अपना लंबित वार्षिक सदस्यता शुल्क नियमित करने की भी अपील की।
UPGBEU के ऊर्जावान युवा अध्यक्ष डेविड चौधरी ने समिति के वरिष्ठ साथियों और पदाधिकारियों के कुशल नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुझे अपने इन वरिष्ठ जनों से अभी बहुत कुछ सीखना है। उन्होंने कहा कि मैं अभिभूत हूं कि आपने मुझे मंच पर महान हस्तियों के साथ बैठाकर इतना सम्मान दिया।

कार्यक्रम में समिति की विभिन्न क्षेत्रीय इकाईयों के उन साथियों को सम्मानित किया गया जिन्होंने पौधारोपण जैसे सामाजिक सरोकारों को पूर्ण करने में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। सभा में समिति की सदस्यता ग्रहण करने वाले नए साथियों का माल्यार्पण द्वारा स्वागत भी किया गया।
प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक मुख्य कार्यालय कार्मिक विभाग के पेंशन सेल के अधिकारियों को समिति ने पेंशनर्स के कार्यों के त्वरित निस्तारण पर स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम में सुदूर क्षेत्रों से आए हुए लगभग 400 से अधिक रिटायर्ड साथियों की उपस्थिति देखकर बाहर से पधारे राष्ट्रीय स्तर के बैंक यूनियंस नेताओं ने बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। सभा में सभी विचारणीय बिंदुओं यथा कम्प्यूटर इंक्रीमेंट एरियर भुगतान,पेंशन एरियर भुगतान, अनुकंपा नियुक्ति,सन्देश वाहकों की नियुक्ति एवं राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक गठन आदि को लेकर हर पहलू पर चर्चा हुई और साथियों की शिकायतों और समस्याओं के निराकरण का सार्थक प्रयास किया गया। समिति के पदाधिकारियों द्वारा मंच पर आसीन मेहमानों को स्मृति चिन्ह तथा पुस्तकें भेंट करके सम्मानित किया गया।
सभा के अंत में समिति के उपाध्यक्ष महेन्द्र सिंह जी द्वारा आगंतुकों का आभार व्यक्त किया गया। दिवंगत साथियों की आत्माओं की शांति के लिए दो मिनट मौन धारण करने के उपरांत सभा समाप्ति की घोषणा की गई।
कार्यक्रम का सफल संचालन इरफ़ान आलम तथा ओंकार सिंह 'विवेक' द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
     प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

सम्मानित समाचार पत्रों द्वारा कार्यक्रम की सुंदर कवरेज करने के लिए समिति उनका हृदय से आभार प्रकट करती है।
 ------ ओंकार सिंह विवेक 







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