फेंकते हैं रोटियों को लोग कूड़ेदान में
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यह सर्वविदित है कि सृजनात्मक साहित्य पुरातन काल से समाज को दिशा प्रदान करता आ रहा है।अनेक महान साहित्यकारों के साहित्यिक सृजन का अध्ययन तथा मनन करके लोगों ने अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस किए हैं।आज भी असंख्य साहित्यकार तथा साहित्यिक संस्थाएं साहित्यिक सृजन से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करते हुए अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।इन्हीं में एक प्रमुख साहित्यिक संस्था है उत्तर प्रदेश साहित्य सभा,जिसकी साहित्यिक गतिविधियां आजकल राष्ट्रीय स्तर पर सभी का ध्यान आकृष्ट कर रही हैं।
अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने की श्रृंखला में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई की सातवीं काव्य गोष्ठी सभा के सदस्य सुधाकर सिंह परिहार जी के रामपुर गंगापुर आवास विकास निवास पर संपन्न हुई।
सर्वप्रथम सभा की स्थानीय इकाई के पदाधिकारियों ने सभा की गतिविधियों को विस्तार देने के लिए शैक्षिक संस्थाओं यथा इंटर कॉलेज/डिग्री कॉलेज आदि में सभा की और से साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करने के विषय में मंत्रणा की जिस पर सभी ने सहमति व्यक्त की।सबकी राय थी कि ऐसा करके विद्यालयों/महाविद्यालयों में छिपी साहित्यिक प्रतिभाओं को उभारकर मंच प्रदान किया जा सकता है।
दूसरे चरण में वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र कमल आनंद की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी का शुभारंभ हुआ जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार शिव कुमार चन्दन मुख्य अतिथि तथा सीताराम शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
सरस्वती वंदना से गोष्ठी के शुभारंभ के पश्चात सर्वप्रथम गोष्ठी के मेज़बान सुधाकर सिंह परिहार ने अपनी मार्मिक प्रस्तुति देते हुए कहा :
एक चिड़िया मेरे घर के बरामदे में,
हर वर्ष एक घोंसला बनाती है।
पता नहीं तिनके कहां से लाती है ?
सूखी लकड़ियां वह कैसे ढूंढ पाती है।
सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने अपनी जनसरोकारों से युक्त भावपूर्ण ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए कहा :
कुछ कसर कब छोड़ते हैं अन्न के अपमान में,
फेंकते हैं रोटियों को लोग कूड़ेदान में।
कितना अच्छा था वो अपना घर पुराना गाँव का,
धूप मुस्काती थी आकर सुब्ह ही दालान में।
संयोजक सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने अपना रिवायती शेर पढ़ा :
सूद के साथ ही उतारूंगा,
एक बोसा उधार दे मुझको।
सचिव राजवीर सिंह राज़ ने अपने बा-कमाल तरन्नुम में पढ़ा :
मोरी अँखियन से बहने लगा नीर,
कजरवा तो धुल गयो रे।
उपाध्यक्ष प्रदीप माहिर ने शेर पढ़ते हुए कहा :
रिवायत यूं भी कुछ तब्दील होगी,
चराग़ों की हवा से डील होगी।
जफ़ा के ज़िक्र पर हम चुप रहेंगे,
तुम्हारे हुक्म की तामील होगी।
पतराम सिंह जी ने प्रकृति के सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहा :
नव प्रभात आया सजी धरा, बिछा उजास सुनहरा,
चैत्र हवा में गूंज उठा,वंदन मंत्र पवित्र गहरा।
अशफ़ाक़ रामपुरी ने तरन्नुम में पढ़ा :
फ़ुर्क़त में तेरी दर्द मेरा कम नहीं हुआ,
दुनिया समझ रही है मुझे ग़म नहीं हुआ।
सोहन लाल भारती जी ने पढ़ा :
चिड़िया चहक रही तरुवर पर,
हुई सुबह कह रही महक भर।
आँखें खोलो, निदिया छोड़ो,
जाओ निज कारज पर।
वरिष्ठ कवि शिवकुमार चन्दन ने भावपूर्ण अभिव्यक्ति देते हुए कहा :
गीत स्वर गूंजे मधुर स्वर, अधर पर मृदुहास हो,
नृत्य करते झूमकर तब, मधुमयी उल्लास हो।
सीता राम शर्मा ने कहा :
इंसान, इंसान को क्या देता है -----
वरिष्ठ कवि जितेंद्र कमल आनंद ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति में कहा :
"आ रहे हैं स्वर गवाक्षों से अकल्पित"
देर रात तक चली काव्य गोष्ठी में उपरोक्त के अतिरिक्त जावेद रहीम,सुमन सिंह परिहार, सुधीर यादव तथा नवीन पांडे आदि भी उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन राजवीर सिंह राज़ द्वारा किया गया।
(प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक