पुस्तक परिचय
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पुस्तक : संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक
लेखक : डॉo गीता मिश्रा 'गीत'
प्रकाशक : इथोस सर्विसेज,कपिल कॉम्प्लेक्स,कालाढूंगी रोड हल्द्वानी,जनपद नैनीताल
प्रकाशन वर्ष : 2025 पृष्ठ संख्या : 384 मूल्य रुo 300/-
मैं जब भी आज की महिला शक्ति के बारे में कुछ सोचता हूँ या किसी मंच से उनकी उपलब्धियों के बारे में कुछ कहने का अवसर पाता हूँ तो मुझे महिलाओं के सम्मान में कहा गया अपना ही यह दोहा याद आ जाता है--
दफ़्तर में भी धाक है,घर में भी है राज।
नारी नर से कम नहीं,किसी बात में आज।।
आईए पुस्तक परिचय के बहाने महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती आज एक ऐसी ही महिला साहित्यकार के रचनाकर्म से अवगत होते हैं जिन्होंने घर तथा दफ़्तर दोनों ही मोर्चों पर अच्छा संतुलन रखते हुए देर से ही सही परंतु साहित्य के छेत्र में अपनी पहचान बनाई है।
जी हाँ ,मैं बात कर रहा हूँ हल्द्वानी, उत्तराखंड निवासी डॉo गीता मिश्रा गीत जी की जो केंद्रीय विद्यालय से अवकाश प्राप्त शिक्षिका हैं और वर्तमान में पूरी तरह से साहित्य साधना में रत हैं।डॉटर गीता मिश्रा गीत जी की पुस्तक 'संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक' इस समय मेरे हाथ में है जिससे आज आपका परिचय कराना चाहता हूँ।बताते चलें की डॉo गीता मिश्रा गीत जी ने वर्ष 1984 में हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक सम्मानीय बालकृष्ण भट्ट जी के पर पोते डॉ मधुकर भट्ट जी के निर्देशन में 'आधुनिक हिंदी साहित्य में रामायण के कथानक' विषय पर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की थी।उसी शोध प्रबंध में कुछ परिवर्तन के साथ गीत जी ने 'संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में रामायण के कथानक' नाम से एक ग्रंथ की सर्जना की है। यह पुस्तक उनके शोध प्रबंध लेखन के मध्य किए गए गहन अध्ययन का परिणाम है। डाo गीता मिश्रा गीत जी ने यह पुस्तक अपने पिताश्री स्मृतिशेष मथुरा प्रसाद कोठारी जी को समर्पित की है। यह भाव उनके उच्च पारिवारिक परिवेश एवं संस्कारों को प्रतिबिंबित करता है।
आमतौर पर यह देखने में आता है कि शोधार्थियों द्वारा विषय विशेष पर किए गए शोध कार्य की जानकारी शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों तथा उन क्षेत्रों में रुचि रखने वालों तक ही सीमित होकर रह जाती है। वह आम जन तक नहीं पहुँच पाती। डॉ गीता मिश्रा गीत जी ने अपने शोध प्रबंध लेखन के आधार पर यह पुस्तक सृजित करके श्री राम के जीवनचरित्र का रसपान करने के अभिलाषी जनों के लिए एक महान कार्य किया है। प्रस्तुत पुस्तक को मैंने अच्छी तरह पढ़ा है और इसकी महत्ता को समझा है।
पुस्तक को पढ़ने से हमें पता चलता है कि रामायण के कथानकों के मूल स्रोत हिंदू धर्म के प्राचीनतम वेद ग्रंथों में विद्यमान हैं। पुस्तक में ऋग्वेद के एक मंत्र का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कैसे उसमें श्री राम कथा के निम्न प्रसंगों का उल्लेख मिलता है :
सीता जी के साथ श्री राम का वन गमन/सीता हरण/ हनुमान जी द्वारा स्वर्णमयी लंका का दहन करना/ रावण द्वारा अपनी हिंसक सेनाओं के साथ श्री राम के सम्मुख पहुंचना आदि।
इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि वेदों के अतिरिक्त कहाँ-कहाँ उपनिषद एवं पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में रामायण के कथानकों के प्रसंगों का वर्णन मिलता है। चूंकि यह शोध पर आधारित पुस्तक है अतः विस्तार से श्लोकों/मंत्रों आदि को प्रमाण सहित उद्धरित करते हुए बहुत ही आसान भाषा में यह बताया गया है कि किन-किन प्राचीन ग्रंथो में कहाँ-कहाँ रामायण के कथानकों का उल्लेख मिलता है। पुस्तक को जैसे-जैसे पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे ही यह जानने की इच्छा प्रबल होती जाती है कि साहित्य की और किन-किन पुस्तकों में रामायण के कथानकों के प्रसंग मिलते हैं।
पुस्तक में बताया गया है कि रामायण के कथानकों का प्रयोग संस्कृत साहित्य तथा हिन्दी साहित्य के आदिकाल,भक्तिकाल एवं रीतिकाल में भी खुलकर हुआ है। भक्तिकाल में यदि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का सृजन किया तो सूरदास जी ने भी रामायण के कथानको को अपनी पुस्तक 'सूरसागर' में पर्याप्त स्थान दिया है।रीतिकाल की बात करें तो केशव की 'रामचंद्रिका' को भला कौन साहित्यकार नहीं जानता होगा? रामायण की राम कथा के व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक पक्षों को आधुनिक हिन्दी साहित्य में किस प्रकार निरूपित किया गया है तथा समाज उसके विभिन्न पहलुओं से किस प्रकार प्रेरणा लेता है,यह भी इस पुस्तक में संदर्भित ग्रंथों एवं साहित्यकारों के नामों को उद्धरित करते हुए विस्तार से बताया गया है। कृतिकार ने अंत के पृष्ठों में यह भी बताया है की आधुनिक युग के साहित्यकारों में से अधिकांश ने रामायण के कथानकों को ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए अपने सृजन में निरूपित किया है जबकि कुछ साहित्यकारों ने अपने जीवन दर्शन तथा समसामयिक परिस्थितियों के आधार पर उन्हें परिवर्तित भी किया है, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि समाज तथा साहित्य समसामयिक परिस्थितियों से प्रभावित न हो यह कैसे संभव है ?
लेखक ने बताया है कि रामायण के कथानक आधुनिक साहित्य की कृतियों में भरे पड़े हैं। मैथिलीशरण गुप्त कृत 'साकेत', 'पंचवटी' निराला कृत 'राम की शक्ति पूजा' हरिऔध कृत 'वैदेही वनवास' दिनकर कृत 'उर्वशी' भारतेंदु कृत 'सत्य हरिश्चंद्र' नाटक आदि साहित्यिक कृतियों में स्वच्छंद रूप से यत्र-तत्र रामायण के कथानकों की झांकियां मिलती हैं। पुस्तक में उपसंहार के पश्चात परिशिष्ट में रामायण-परवर्ती साहित्य जिन रामायणी कथानकों को आधार मानकर सर्जित हुआ है उनका भी उल्लेख किया गया है।
शोध प्रबंध एवं इस पुस्तक की सर्जना में जिन मूल ग्रंथों से संदर्भ ग्रहण किए गए हैं उनका पुस्तक के अंत में संपूर्ण विवरण दिया गया है। पुस्तक के कवर पृष्ठों के भीतर की ओर डॉ गीता मिश्रा गीत जी की साहित्यिक उपलब्धियों के छायाचित्र भी दिए गए हैं जिन्होंने पुस्तक की सुंदरता को और भी बढ़ा दिया है। पुस्तक की भाषा बहुत सहज और सरल है। मैं पुस्तक को पढ़ने के बाद कह सकता हूँ कि यह पुस्तक पढ़ने एवं सहेजने योग्य है। अतः इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। मैं डॉo गीता मिश्रा गीत जी के उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी पारिवारिक जीवन की कामना करता हूँ ताकि भविष्य में हमें उनकी और श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों का रसास्वादन करने का अवसर प्राप्त हो सके।
किताबों के बारे में अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने कहा था :
There is no friend as loyal as a book.
अर्थात किताब से अधिक वफ़ादार कोई दोस्त नहीं होता।
इसी तरह Edward Gibbon ने कहा था :
'पुस्तकें वे विश्वसनीय दर्पण हैं जो संतो और महान पुरुषों के मानसों को हमारे मानसों में प्रतिबिंबित करती हैं।'
अतः हम सब अच्छे साहित्य तथा अच्छी किताबों को अपना दोस्त बनाएं।
द्वारा :
ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/ कंटेंट राइटर