May 3, 2025

पुस्तक समीक्षा "लावनी गीत"


                     पुस्तक समीक्षा 
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              कृति : लावनी गीत
              कृतिकार : रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर'
              प्रकाशक :ओम प्रकाशन  448,साहूकारा, 
                              बरेली,उत्तर प्रदेश 
                              मोo 9456078597
              प्रकाशन वर्ष : 2024 
              पृष्ठ संख्या :82 मूल्य : रुपए 250/-

रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी जनपद बरेली,उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार हैं।धीर साहब को कविता/शायरी का शौक़ अपने पिता स्वर्गीय देवी प्रसाद गौड़ मस्त जी से विरासत में मिला जो स्वयं बरेली के बड़े कवि/शायर थे।अब तक 'धीर' साहब की अनेक पुस्तकें यथा - कल्याण काव्य कौमुदी,बज़्म-ए-इश्क़,जब आती है याद तुम्हारी,सलाम-ए-इश्क़ आदि मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं।उसी कड़ी में उनकी प्राचीन भारतीय काव्य/गायन विधा लावनी की हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक 'लावनी गीत' की सूक्ष्म समीक्षा आपके सम्मुख प्रस्तुत है।
जहाँ तक लावनी गीत की बात है यह शास्त्रीय या लोकनृत्य के साथ गीत संयोजन है जो राग तत्व पर आधारित कविता होती है। इसे एक ही वाद्य यंत्र तबला/ढोलक या ढोलकी पर गाने की परंपरा रही है। छंदशास्त्र में लावनी एक छंद भी है जिसकी मापनी 16+14 अर्थात 30 मात्राएं प्रत्येक पंक्ति हेतु निर्धारित होती हैं।
धीर जी ने इस पुस्तक में लावनी गीत, लावनी छंद, ख़म्स: और ख़याल की तमाम बंदिशों को निभाते हुए शानदार सृजन किया है।इस विधा में ख़याल, ख़म्स:, ग़ज़ल, दोहा तथा चौपाई आदि छंदों में गायन होता है।इसमें दो दल आमने सामने बैठकर जवाबी मुक़ाबला करते हैं जिसका रसिक लोग ख़ूब आनंद लेते हैं।गायन के विषय नायक-नायिका का शृंगार भाव तथा विरह/मिलन आदि होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में प्राणी दुखदाई नर्क न हो/वह नर पाता है स्वर्ग का पथ/उस तरफ़ को का'बा घूम गया/श्री कृष्ण चंद्र के मुख चंदा दरसे/राम कलेवा/डोली जाना तुझे पति के द्वार/यह ज़रूरी है हर आदमी के लिए--- आदि जैसे ध्यान खींचने वाले शीर्षकों के अंतर्गत लावनी गीत सृजित किए गए हैं जो सुधी पाठकों/श्रोताओं को आकर्षित करते हैं।
राम कलेबा शीर्षक से लावनी गीत की कुछ 
पंक्तियाँ देखें :
    ख़बर जनमासे पहुँचाई-करने कलेवा सुखदाई,
    राम लक्ष्मण सब भाई - आवें जनक भवन।
    शोभा अंग की अपार - होके घोड़ों पर सवार,
    सजे चारों राजकुमार - चले कलेवा करन।
     घोड़े राह में कुदाते - बाँके तिरछे बने जाते,
     चारों भाई मुस्काते - ख़ूब चित्त मगन।
हम सब जानते हैं कि जनमासा  दुल्हन पक्ष की ओर का वह स्थान होता है जहाँ दूल्हे तथा बारात को ठहराया जाता है।ऊपर की पंक्तियों में राम तथा उनके भाईयों के कलेवा रस्म के लिए जाने का क्या ही सुंदर चित्र धीर साहब ने उकेरा है।कलेवा रस्म दुल्हन की विदाई रस्म से पहले निभाई जाती है। इस रस्म में दूल्हे को भोजन कराया जाता है और उपहार आदि दिए जाते हैं ताकि विदाई के बाद रास्ते में भूख न लगे।
पुस्तक में एक और लावनी गीत 'यह ज़रूरी है हर आदमी के लिए' शीर्षक से संकलित है। उसकी भी कुछ मार्मिक पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं :
याद से उसकी ग़फ़िल न हो उम्र भर-यह ज़रूरी है हर आदमी के लिए,
तोड़ दे सारी दुनिया के रिश्ते सभी- इक सुई चाहिए बंदगी के लिए।
अल्प भोजन करे और सोये भी कम -योग साधन बना है उसी के लिए,
मांस मदिरा का सेवन न हरगिज़ करे-योग साधन नहीं तामसी के लिए।
है यक़ीं कामयाबी मिलेगी तुझे - त्याग दे रंजो ग़म हर ख़ुशी के लिए,
सिद्ध आसन लगा प्राण को साध ले- तीसरा तल जगा रौशनी के लिए।
इन पंक्तियों में कवि ने जैसे पूरा योग दर्शन ही समेट लिया है। जीवन को सफल बनाने के लिए सदैव ईश के नाम का स्मरण करने की बात कही गई है।योग साधना के लिए किस प्रकार का जीवन अपेक्षित है उसका सुंदर काव्यात्मक चित्रण किया गया है।
आदरणीय रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी के सभी लावनी गीत बहुत ही चुस्त तथा प्रभावशाली बन पड़े हैं। इनमें भाषा की सहजता के साथ कथ्य और शिल्प का उचित समन्वय है तथा इनकी बुनावट में कलात्मकता झलकती है।
वर्तमान में लावनी गायन की परंपरा लुप्त होती सी प्रतीत होती है ऐसे में धीर साहब के लावनी गीतों को पढ़कर हम यह कह सकते हैं कि यह हमारी प्राचीन विद्या को बचाने का एक सफल प्रयास है। अत: इन गीतों की जितनी भी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी।
पुस्तक की भाषा बहुत सरल तथा सहज है। थोड़ी बहुत टंकण त्रुटियों को नज़र अंदाज़ किया जाना चाहिए।
सभी लावनी गीत दिल में उतरते चले जाते हैं। पुस्तक के अंत में धीर साहब ने अपनी साहित्यिक गतिविधियों के छाया चित्र भी समाहित किए हैं जो किताब की सुंदरता को बढ़ाते प्रतीत होते हैं। 
मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि भारतीय काव्य/गायन की लावनी जैसी प्राचीन परंपरा को सुरक्षित करती हुई पुस्तक 'लावनी गीत' को साहित्य जगत में भरपूर स्नेह प्राप्त होगा। मैं श्री धीर साहब के उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु होने की कामना करता हूँ ताकि भविष्य में आप अपने धारदार सृजन से और अच्छी कृतियां रचकर समाज को दिशा प्रदान कर सकें।
आप फ़ोन नंबर 9456078597 पर संपर्क करके इस महत्वपूर्ण पुस्तक को मंगवाकर पढ़ सकते हैं।

   --- ओंकार सिंह विवेक 
साहित्यकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/टैक्स ब्लॉगर 

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