होली की ख़ुमारी अपने शबाब पर है। रंग,गुलाल और पकवानों की बहार है। मौसम में भी एक अजब सा नशा है। ऐसे माहौल में मेरे कुछ दोहों का आनंद लीजिए --
होली पर कुछ दोहे
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सैयाँ जी ने घेरकर, डारो ऐसो रंग।
नस नस में सिहरन हुई,भीज गयो हर अंग।।
कर में पिचकारी लिए,पीकर थोड़ी भंग।
देवर जी डारन चले,भौजाई पर रंग।।
भाये फिर कैसे उसे,होली का त्योहार।
गोरी के साजन गए,सात समुंदर पार।।
महँगाई की मार से,टूट गई हर आस।
निर्धन की इस बार भी, होली रही उदास।।
होली पर समझें तनिक,उनके भी जज़्बात।
जिन माँओं के लाल हैं,सीमा पर तैनात।।
रही न वह अपनत्व के,रंगों की बौछार।
डिजिटल होकर रह गया,होली का त्योहार।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
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Lajawaab,badhai
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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