कई दिन बाद आपकी अदालत में पेश है मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल---
नई ग़ज़ल
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शिकारे को ख़ुशी क्या फ़ील होगी?
जमी जब ठंड से डल झील होगी।
तभी तो होगी शेरों की भी आमद,
जली जब फ़िक्र की क़िंदील होगी।
अभी संगीन है हालत नगर की,
अभी कर्फ़्यू में कैसे ढील होगी।
हमेशा बस वही नफ़रत उगलना,
तुम्हारी फ़िक्र कब तब्दील होगी।
करेगा माल में कोई मिलावट,
दुकाँ लेकिन किसी की सील होगी।
घटेगी जुर्म की रफ़्तार कैसे,
सिपाही-चोर की जब डील होगी।
सभी फॉलो करेंगे फेसबुक पर,
हमारी वायरल जब रील होगी।
©️ ओंकार सिंह विवेक
Bahut sundar
ReplyDeleteआभार
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