October 15, 2024

हाय यह कैसा मानव !

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

यों तो अक्सर मैं ब्लॉग पर अपनी पसंदीदा विधा ग़ज़ल के बारे में अक्सर कुछ संगत बातें करते हुए अपनी ग़ज़लें ही आप सुधी जनों के साथ साझा करता हूं। परंतु आज थोड़ा रस परिवर्तन करते हुए अपना एक कुंडलिया छंद आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु पोस्ट कर रहा हूं।

         ©️ एक कुंडलिया छंद
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        मानव  ही  करने   लगा,अब  मानव  का  ख़ून।

        बस्ती   में   लागू   हुआ,जंगल   का    क़ानून।।

        जंगल   का   क़ानून,मनुजता   है   नित   रोती।

        फिर भी चिंता हाय,किसी को तनिक न होती।।

        कर्मों    से   जो   आज,हुए   जाते   हैं    दानव।

        कैसे  बोलो   मित्र, उन्हें  हम  कह   दें  मानव।।

                                       ©️ ओंकार सिंह विवेक 


सभी के ज़ख्मों पर रखना है मरहम 🌹🌹👈👈

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