सादर प्रणाम मित्रो 🌷🌷🙏🙏
कोलकता,पश्चिमी बंगाल से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार "सदीनामा" के बारे में पहले भी कई बार मैं अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।इस अख़बार में देश और दुनिया की ख़बरों के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों की फ़िक्र करती हुई स्तरीय साहित्यिक रचनाएँ भी प्रकाशित होती हैं।मेरी जदीद ग़ज़लें भी समय-समय पर इस सम्मानित अख़बार में छपती रहती हैं।इसके लिए मैं "सदीनामा" के संपादक मंडल, ख़ास तौर पर बेहतरीन शा'इर श्री ओमप्रकाश नूर साहब, का दिल की गहराईयों से आभार प्रकट करता हूं। इस बार मेरी ग़ज़ल के साथ ही अख़बार में आदरणीय हरीश दरवेश साहब की भी बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल छपी है। मैं उन्हें भी हार्दिक बधाई देता हूं।
काफ़ी दिन पहले यह ग़ज़ल हुई थी जिसमें प्रारंभ में केवल पाँच ही अशआर कहे थे।बाद में कुछ संशोधन के साथ इसमें सात शे'र पूरे किए। मैं वह पूरी ग़ज़ल और इसके चंद शेर जो अख़बार में छपे हैं आपकी 'अदालत में पेश कर रहा हूं।
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी 🙏🙏
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ये दिल यूँ ही नहीं ज़ख़्मी हुआ है,
किसी के तंज़ का नश्तर चुभा है।
किसे ला'नत-मलामत भेजते हो,
अरे! वो आदमी चिकना घड़ा है।
वो नादाँ ही है जो दरिया के आगे,
समुंदर प्यास का लेकर खड़ा है।
कहा है ख़ार के जैसा किसी ने,
किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।
उसे धमका रहा है रोज़ कोहरा,
ये कैसा वक़्त सूरज पर पड़ा है।
समझ में आ तो जाती बात मेरी,
मगर वो चापलूसों से घिरा है।
कहाँ तुमको नगर में वो मिलेगी,
मियाँ!जो गाँव की आब-ओ-हवा है।
©️ ओंकार सिंह विवेक
वाह, एक से बढ़कर एक अश्यार
ReplyDeleteआभार आदरणीया।
DeleteKhoobsoorat ghazal
ReplyDeleteधन्यवाद
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