कुहरे -धुंध के रोब में आना पड़ता है,
सूरज को भी तेज गँवाना पड़ता है।
इच्छाओं के भरमाने में मत आना,
इस मन को अक्सर समझाना पड़ता है।
चमकी है यूँ ही तक़दीर भला किसकी,
महनत से उसको चमकाना पड़ता है।
बज़्मे- सुख़न में रंग जमाने की ख़ातिर,
'आम नहीं कुछ ख़ास सुनाना पड़ता है।
हैराँ हैं हम देखके, आज सियासत में,
मन्दिर-मस्जिद को लड़वाना पड़ता है।
हाल भले ही ठीक न हो अपने दिल का,
दुनिया को पर ठीक बताना पड़ता है।
ये सुनकर खिलनी ही थीं उनकी बाँछें,
आगे रस्ते में मयख़ाना पड़ता है।
©️ ओंकार सिंह विवेक
हाल भले ही ठीक न हो अपने दिल का,
ReplyDeleteदुनिया को पर ठीक बताना पड़ता है।
वाह ! बहुत खूब
आभार आदरणीया।
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