अक्सर मौसम को लेकर चर्चाओं का दौर जारी रहता है।लोगों को शिकायत रहती है कि मौसम बहुत ज़ियादती कर रहा है आजकल।कभी अधिक गर्मी को लेकर हाहाकार होता है तो कभी अधिक वर्षा के कारण बाढ़ और सैलाब को लेकर।कभी ख़ून जमा देने वाली ठंड जीवन को अस्त व्यस्त कर देती है।बात ठीक भी जान पड़ती है।अधिकता तो किसी भी चीज़ की सही नहीं होती। परंतु यदि मौसम आज इस प्रकार अति कर रहा है तो इसके पीछे के कारणों पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।इन अप्रत्याशित असामान्यताओ में मौसम का ही दोष नहीं है अपितु हम स्वयं भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।सोचिए हम मौसम से तो ठीक से हक़ अदा करने की अपेक्षा रखते हैं परंतु कभी सोचा कि क्या हम पर्यावरण और प्रकृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व ठीक से निभा पा रहे हैं ? अंधाधुंध वनों का कटान, पहाड़ों से छेड़-छाड़,नदियों को प्रदूषित करना,अत्यधिक वायु और ध्वनि प्रदूषण करना,आसमान में निरंतर हानिकारक गैसें छोड़ना।यह सब करके मानव निरंतर पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है।उसे ओज़ोन परत की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है।फिर भला प्रकृति और पर्यावरण क्रोधित क्यों न हों हमसे। ज़रूरी है कि पहले हम इन बातों पर गंभीरता से विचार करें और प्रकृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझें उसके बाद ही प्रकृति और मौसम से कोई शिकायत करें।
इन दिनों ये ही बातें ज़ेहन में चलती रहीं सो एक ग़ज़ल हो गई।आप इस ग़ज़ल का आनंद लें :
ग़ज़ल
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ख़ूब देकर ख़बर गया मौसम,
ख़ौफ़ ज़हनों में भर गया मौसम।
लोग मिलते थे जब ग़रज़ के बिना,
वो तो कब का गुज़र गया मौसम।
मेह बरसाके ख़ुश्क फ़सलों पर,
मोतियों-सा बिखर गया मौसम।
आह निकली है अन्नदाता की,
हाय ! क्या ज़ुल्म कर गया मौसम।
की गई छेड़-छाड़ क़ुदरत से,
यूँ ही थोड़ी बिफर गया मौसम।
©️ ओंकार सिंह विवेक
हर गली सूरज का फेरा हो गया 👈👈
वाह !! बेहद उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteअतिशय आभार आदरणीया।
DeleteKya kahne
ReplyDeleteआभार
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