दोस्तो हाल ही में मुकम्मल हुई एक ग़ज़ल आपकी अदालत में पेश है :
ग़ज़ल
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कहीं उम्मीद से कम हो रही है,
कहीं बारिश झमाझम हो रही है।
नहीं है मुद्द'आ जो बह्स लाइक़,
उसी पर बह्स हरदम हो रही है।
ग़ज़ल पूरी नहीं होने में आती,
ये कैसी फ़िक्र बरहम हो रही है।
नहीं है ग़म सबब इन आँसुओं का,
ख़ुशी में आँख ये नम हो रही है।
किसी वी आई पी का केस होगा,
अगर सुनवाई इक-दम हो रही है।
बनेगी ज़िंदगी कल सुख की सरगम,
भले अब दुख की सरगम हो रही है।
है कुछ तनख़्वाह भी हज़रत की मोटी,
फिर ऊपर की भी इनकम हो रही है।
©️ ओंकार सिंह विवेक
Vah, sundar ghazal
ReplyDeleteAabhar
Deleteबेहतरी शायरी
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका 🙏
Deleteउम्दा!
ReplyDeleteThanks a lot
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