June 23, 2024

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ 
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आज काफ़ी दिनों के बाद अपने गृह जनपद रामपुर (उत्तर प्रदेश) के रामपुर-बाज़पुर रोड से गुज़रना हुआ।इस रोड पर रामपुर से लगभग 15 किलोमीटर चलकर खेमपुर अड्डे पर बाईं ओर को उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खेमपुर का बोर्ड देखकर मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा।मैं नीचे उतरा और स्कूल के आसपास काफ़ी देर तक निहारता रहा।भावुक होकर बच्चों को बताया कि मैंने 1975 से 1977 कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा इसी विद्यालय में ग्रहण की थी।यह सुनकर बच्चों में उत्सुकता जागी और उन्होंने उस समय की शिक्षा व्यवस्था तथा विद्यालयों आदि के बारे में मुझसे कई सवाल किए।मुझे उस समय की शिक्षा व्यवस्था और आज की शिक्षा व्यवस्था तथा अध्ययन-अध्यापन कार्य आदि में जो कुछ अंतर महसूस होता है उसका तुलनात्मक विश्लेषण उन्हें बताया। मेरे विश्लेषण पर कुछ स्वाभाविक तर्क भी उनके द्वारा दिए गए। परंतु अन्तत: बच्चे उस समय की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षण कार्य आदि की जानकारी पाकर बहुत  प्रभावित हुए। बच्चों ने वहां विद्यालय के सामने मेरी और अपनी कुछ तस्वीरें भी उतारीं।
आजकल तो बच्चे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में प्रारंभ से ही अंग्रेजी भाषा पढ़ते है।परंतु उस समय हमारा कक्षा 6 में पहली पहली बार अंग्रेज़ी विषय से परिचय हुआ था। खेमपुर ग्राम के इस विद्यालय में श्री इमाम बख़्श साहब अंग्रेजी के अध्यापक हुआ करते थे।बहुत कड़क मिज़ाज और अपने विषय में पारंगत मास्टर थे श्री इमाम बख़्श साहब।बहुत मेहनत से पढ़ाते थे और अपने शिष्यों से भी वैसे ही परिणाम की अपेक्षा रखते थे। उस समय इंग्लिश ग्रैमर की "न्यू लाइट इन जनरल इंग्लिश" पुस्तक को लगन से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को tenses आदि की पूरी जानकारी हो जाती थी और वे अंग्रेज़ी में कभी मात नहीं खाते थे।मुझे अपनी मातृ भाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा से भी ख़ासा लगाव था।मेरी लगन को देखकर आदरणीय इमाम बख़्श साहब भी मुझसे बहुत प्रभावित रहते थे।जब कभी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल या अन्य निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आते थे तो श्री इमाम बख़्श जी अंग्रेज़ी में कुछ पूछे जाने पर उत्तर देने के लिए मुझे ही आगे कर दिया करते थे।मुझे गर्व है कि मैं उनकी अपेक्षाओं पर सदा खरा उतरता था। ऐसे कर्मठ शिक्षकों को याद करके उनके प्रति मन श्रद्धा से भर उठता है।आज प्रसंगवश स्मृति पटल पर खेमपुर विद्यालय के शिक्षकों श्री सी पी सिंह जी,श्री अमर सिंह जी तथा श्री इमाम बख़्श साहब आदि की कितनी ही यादें उभर आती हैं। उन जैसे तमाम योग्य शिक्षकों ने मेरी प्रारंभिक शिक्षा की नीव को जिस तरह मज़बूत किया उसकी सुदृढ़ता मैं आज भी महसूस करता हूं। मैं बार-बार अपने उन गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करता हूं। उस समय की पढ़ाई का जो स्तर था उसकी जितनी भी तारीफ़ करूं वह कम है।जो समर्पण और कर्मठता का भाव शिक्षकों के पढ़ाने में होता था उसी तरह सीखने और शिक्षकों का सम्मान करने का भाव विद्यार्थियों में हुआ करता था। उस समय कक्षा 8 में जो अंग्रेज़ी ग्रैमर का ज्ञान "न्यू लाइट इन जनरल इंग्लिश" पुस्तक से हमने प्राप्त किया उसका आज भी कोई सानी नहीं है।मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि उसी पढ़ाई के बल पर हमने अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े कितने ही साथियों को अंग्रेज़ी पढ़ने और लिखने में मात दी।
 उस समय की अनेक मधुर स्मृतियों को मन में संजोए मुहतरम इसहाक़ विरदग साहब के इस शे'र के साथ वाणी को विराम देता हूं :
         असातिज़ा*  ने   मेरा  हाथ  थाम  रक्खा  है,
          इसीलिए तो मैं पहुँचा हूँ अपनी मंज़िल पर।
                                       ---इसहाक़ विरदग
असातिज़ा* -- शिक्षकगण, गुरुजन, पढ़ाने वाले
©️ ओंकार सिंह विवेक 



June 15, 2024

कितने हसीन लोग हैं

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते आज काफ़ी दिनों के बाद यह ब्लॉग पोस्ट लिखने बैठा हूं। आठ-दस साल के बाद बैंक के अपने पुराने घनिष्ठ साथियों से मिलने पर जो ख़ुशी हुई उसका वृतांत आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।लीजिए हाज़िर है 👇👇
आज प्रसंगवश किसी मशहूर शाइर का यह शे'र याद आ रहा है :
         कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
         आंखों में  जज़्ब  हो  गए दिल में समा गए।
                      -- अज्ञात
यह शे'र प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के इन दो अधिकारियों पर बिल्कुल फिट बैठता है जिनके छायाचित्र आप नीचे देख रहे हैं। इन लोगों से आज बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर में काफ़ी समय बाद मेरी मुलाक़ात हुई।बताता चलूं कि मैंने तत्कालीन प्रथमा बैंक(अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक) से 26 मार्च,2019 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर ली थी।उस समय मेरी नियुक्ति अधिकारी के रूप में बैंक के मुख्यालय मुरादाबाद में ट्रेनिंग सेंटर में थी। तब ये दोनों प्रतिभाशाली तथा ऊर्जावान अधिकारी भी मुख्यालय में ही कार्यरत थे जिनसे बैंक कार्यों को लेकर अक्सर वार्तालाप होता रहता था।उस समय मुख्य कार्यालय में कार्य करने वाले जिन अधिकारियों से में बहुत अधिक प्रभावित हुआ उनमें इन दोनों के नाम भी प्रमुख हैं।बहुत हंसमुख स्वभाव,विनम्रता और अपने काम के प्रति पूरी निष्ठा-समर्पण का भाव इन दोनों अधिकारियों में मुझे देखने को मिला।अपनी मेहनत ,लगन और कार्यकुशलता के बल पर आज ये दोनों अधिकारी पदोन्नति पाकर उप क्षेत्रीय प्रबंधक(स्काई ब्लू टी शर्ट में दिखाई दे रहे श्री हरनंदन प्रसाद गंगवार जी) तथा क्षेत्रीय प्रबंधक(एक चित्र में लाइट कलर की शर्ट में तथा दूसरे चित्र में ब्लैक कलर की शर्ट में श्री विनय मिश्रा जी) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच चुके हैं।इन दोनों को इतनी जल्दी बैंक में सीनियर पोजीशन पर देखकर बहुत ख़ुशी महसूस हुई।
आज जब इन दोनों अधिकारियों से इनके कार्यालय में मिलना हुआ तो दोनों में वही आठ-दस साल पहले वाली गर्मजोशी, विनम्रता और आत्मीयता का भाव पाकर दिल गदगद हो गया। काफ़ी देर तक बातचीत करके पुरानी यादों को ताज़ा किया। मैंने दोनों को अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की प्रतियां भी भेंट कीं। मैं इन दोनों के दीर्घायु होने की कामना के साथ आशा करता हूं कि ये अपने कैरियर में यों ही नित नई बुलंदियों को छूते रहेंगे।
अपनी ही ग़ज़ल का यह  शे'र इन दोनों को समर्पित करते हुए बात को समाप्त करता हूं :
         छुड़ा  देते   हैं   छक्के   मुश्किलों   के,
         यक़ीं हो  जिनको अपने  हौसले  पर।
                           ©️ ओंकार सिंह विवेक
 (यह आठ-दस साल पुराना छाया चित्र एल्बम से मिला जो श्री विनय मिश्रा जी के साथ जुड़ी यादों को ताज़ा करता है)


June 6, 2024

आपकी मुहब्बतों के हवाले

सादर प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आपकी मुहब्बतों और आशीष के चलते निरंतर सार्थक जन सरोकारों से जुड़े सृजन की प्रेरणा मिल रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा"आप सम्मानित जनों के समक्ष होगा।पांडुलिपि को अंतिम रूप देकर जल्द ही प्रकाशक को भेजने पर निरंतर काम कर रहा हूं।
फिलहाल ------
चंद अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ :
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ये दिल जो इस तरह ज़ख़्मी हुआ है,
किसी के  तंज़  का  नश्तर चुभा  है।

कहा  है  ख़ार   के   जैसा  किसी  ने,
किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।

किसे   लानत-मलामत   भेजते   हो,
 मियाँ!वो आदमी  चिकना घड़ा  है।

नज़र   आते   हैं    संजीदा   बड़ों-से,
कहाँ  बच्चों  में  अब  वो बचपना है।

कहाँ  तुमको  नगर  में   वो  मिलेगी,
जो मेरे  गाँव  की  आब-ओ-हवा है।
          ---©️ओंकार सिंह विवेक 


June 3, 2024

मां का आशीष फल गया होगा

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों को उकेरती हुई मेरी एक ग़ज़ल प्रस्तुत है आपकी अदालत में। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :

ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक

©️

माँ  का  आशीष   फल  गया   होगा,

गिर  के   बेटा   सँभल  गया   होगा।


ख़्वाब  में   भी  न  था  गुमां  हमको,

दोस्त   इतना    बदल   गया  होगा।


छत  से    दीदार   कर   लिया  जाए,

चाँद  कब  का   निकल  गया  होगा।


सच   बताऊँ   तो   जीत   से    मेरी,

कितनों का  दिल ही जल गया होगा।


रख   दिया    था  जो  आईना आगे,

बस  वही  उनको  खल  गया होगा।   


लूट  ली  होगी  उसने   तो  महफ़िल,

जब   सुनाकर   ग़ज़ल   गया  होगा।


जीतकर    सबका   एतबार  'विवेक',

चाल   कोई   वो   चल    गया  होगा।    

            -- ©️ओंकार सिंह विवेक

               (सर्वाधिकार सुरक्षित)



जिनसे रक्खी आस कहां वो लोग भरोसे वाले थे👈👈






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