सम्मानित सदीनामा पत्रिका में प्रकाशित हुई मेरी ग़ज़ल का आनंद लीजिए। इस बीच हिंदी देवनागरी में ग़ज़ल कहने वाले अपने साथियों के साथ कुछ जानकारी भी साझा करता हूं।
सब साथी को तो नहीं परंतु कुछ को मैंने ग़ज़ल में आज तुकांत या क़ाफिये के साथ राज़ तुकांत भी प्रयोग करते हुए देखा है।उच्चारण की दृष्टि से यह प्रयोग बिल्कुल उचित नहीं हैं। अत: हमें ऐसे प्रयोगों से हर संभव बचना चाहिए।
हिंदी वर्णमाला में ज ध्वनि के लिए एक अक्षर ज ही है। ज़ अर्थात ज के नीचे बिंदु/नुक्ता लगाकर जो उच्चारण किया जाता है उसके लिए अलग से कोई अक्षर नहीं है।जबकि उर्दू वर्णमाला में ज ध्वनि के लिए ج (जीम) अक्षर होता है तथा ज़ ध्वनि के लिए पांच अक्षर होते हैं।जिनमें उच्चारण की दृष्टि से थोड़ी-थोड़ी भिन्नता होती है। इसके बारे में विस्तार से फिर कभी चर्चा करेंगे।
आजकल जो नई ग़ज़ल मुकम्मल हो रही है चलते-चलते उसका मतला' और एक शेर देखिए :
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लोग जब सादगी से मिलते हैं,
हम भी फिर ख़ुश-दिली से मिलते हैं।
राम जाने सियाह दिल लेकर,
लोग कैसे किसी से मिलते हैं।
@ ओंकार सिंह विवेक
(यह ग़ज़ल मेरे शीघ्र प्रकाश्य ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" में प्रकाशित होने वाली है)
बहुत अच्छी और सुंदर गज़ल
ReplyDeleteबधाई
अतिशय आभार आपका।
Deleteबहुत अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteआदरणीय बेहद शुक्रिया आपका।
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