January 31, 2024

वाह रे!अवसरवाद

कोई ज़माना था जब लोग अपने घर के किसी सदस्य को जनसेवा करने के उद्देश्य से राजनीति में भेजा करते थे। राजनीति में सत्ता और शासन के नज़दीक रहकर राजनेता जन कल्याण के कामों को नि:स्वार्थ भाव से अंजाम देकर गर्व का अनुभव करते थे।
आज हालात बिल्कुल उल्टे हैं।आज राजनीति एक व्यापार हो गई है।लोग आज माल- ओ- ज़र कमाने के उद्देश्य से सियासत में क़दम रखते हैं।अब लोगों का राजनीति में उसूलों और नीतियों से कोई मतलब नहीं होता।धर्म,ईमान और ज़मीर बेचकर धन अर्जन करना और सिर्फ़ अपने घर-परिवार के लोगों को राजनीति में स्थापित करना ही अब लोगों का जैसे लक्ष्य हो गया है। भ्रष्ट,चापलूस और अवसरवादी लोग जिस तेज़ी से राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं यह गंभीर चिंता की बात है।राजनीति में नैतिक मूल्यों और शुचिता के संवर्धन हेतु अच्छे लोगों का इस क्षेत्र में आना बहुत ज़रूरी है तभी राजनीति का क्षेत्र नए आदर्श स्थापित कर सकता है।
आज के राजनैतिक परिदृश्य पर मेरे एक कुंडलिया छंद का आनंद लीजिए :

कुंडलिया छंद

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जिसकी  बनती  हो  बने, सूबे  में  सरकार,

हर  दल   में  हैं  एक-दो, उनके  रिश्तेदार।

उनके   रिश्तेदार, रोब   है   सचमुच  भारी,

सब   साधन  हैं  पास,नहीं  कोई  लाचारी।

अब उनकी  दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,

बन जाए सरकार,यहाँ  हो  जिसकी बनती।

       @ ओंकार सिंह विवेक 



सूर्यास्त का रोमांचक दृश्य ☀️☀️👈👈

January 28, 2024

ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई की सुनहरी यादें

नमस्कार दोस्तो🙏🌷
        (ग़ज़ल कुंभ मुंबई,2024की सुनहरी यादें)
इस वर्ष का ग़ज़ल कुंभ हमेशा की तरह पूरी आन-बान और शान के साथ विले पार्ले मुंबई में 13 और 14 जनवरी,2024 को प्रख्यात ग़ज़लकार श्री दीक्षित दनकौरी जी के कुशल संयोजन में सम्पन्न हुआ।
यों तो इससे पहले भी दो बार मैं प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस साहित्यिक अनुष्ठान का हिस्सा बन चुका हूं परंतु इस बार की हिस्सेदारी कई कारणों से  अविस्मरणीय हो गई सो इस यात्रा के रोचक संस्मरण आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।
      (कार्यक्रम में ग़ज़ल पाठ करते हुए ख़ाकसार)

श्री दीक्षित दनकौरी और उनकी टीम का प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला यह कार्यक्रम चार सत्रों में दो दिन चलता है।समर्पित टीम की प्रबंधन कुशलता के कारण सब कुछ बहुत ही अनुशासित ढंग से सम्पन्न होता है। दनकौरी जी सारी व्यवस्था पर इस प्रकार पैनी नज़र रखते हैं जैसे यह उनके घर में बेटी की शादी का कार्यक्रम हो।उनका ग़ज़ल के प्रति अनुराग ही है जो उनसे यह सब कुछ करवा लेता है।
इस बार रामपुर से हम चार साथियों का ग़ज़ल कुंभ मुंबई में जाना तय हुआ था। सुरेंद्र अश्क रामपुरी,प्रदीप राजपूत माहिर,राजवीर सिंह राज़ और मैं।अश्क रामपुरी जी अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के चलते साथ नहीं जा पाए उनकी कमी हमें लगातार महसूस होती रही। दनकौरी जी के प्रतिवर्ष के इस शानदार आयोजन की तर्जुमानी उनका यह शानदार शेर करता है :
 ख़ुलूस-ओ-मुहब्बत की ख़ुश्बू से तर है,
 चले  आईए  ये  अदीबों  का   घर   है।
          ---  दीक्षित दनकौरी 
(कार्यक्रम संयोजक दीक्षित दनकौरी जी का संबोधन)
 

उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है फिर भी एक मेहमान नवाज़ अदीब के बुलावे पर बड़ी तादाद में उत्तर भारत से ग़ज़लकार मुंबई पहुंचे जो इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का प्रमाण है।
      (साथी ग़ज़लकारों प्रदीप राजपूत माहिर तथा राजवीर सिंह राज़ के साथ हवाई सफ़र के दौरान)

कार्यक्रम के दूसरे दिन के पहले सत्र में रामपुर (उत्तर प्रदेश)से हम तीनों लोगों ने भी अपना कलाम पेश किया।काफ़ी दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ा गया हम लोगों को।
हम लोगों ने उस महफ़िल में अपनी-अपनी जो ग़ज़लें पेश कीं उनका एक-एक शेर भी सुनते/पढ़ते चलें :

चिंता ऐसे है मन के तहख़ाने में,
जैसे कोई घुन गेहूं के दाने में।
        ओंकार सिंह विवेक
नफ़रतो झूठ का बाज़ार बदलकर देखें,
आओ इस दुनिया की रफ़्तार बदलकर देखें।
              प्रदीप माहिर
क्यों सुकूं की वो आरज़ू करते,
जिनके ख़ंजर लहू-लहू करते।
         राजवीर सिंह राज़ 
ऐसे आयोजनों में सिर्फ़ अपना ही कलाम सुनाना मक़सद नहीं होता है बल्कि तमाम पुराने और नए लोगों को सुनकर उनकी फ़िक्र और मे'यार का भी पता चलता है।इससे अपना आकलन और रचनाधर्मिता में गुणात्मक सुधार करने का अवसर प्राप्त होता है। सो इस अवसर का हम सबने भरपूर लाभ उठाया। कविता/शायरी इतनी भी आसान चीज़ नहीं है। इसके लिए जिगर का ख़ून जलाना पड़ता है।
प्रसंगवश मुझे यह शेर याद आ गया :
     सोच की भट्टी  में  सौ- सौ बार दहता है,
     तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है।
                                 -- सत्य प्रकाश शर्मा
        (कार्यक्रम में आमंत्रित ग़ज़लकार एवम श्रोतागण)

ग़ज़ल कुंभ में ग़ज़ल पाठ के बाद हम लोगों का मुंबई और गोवा का एक छोटा सा भ्रमण कार्यक्रम भी रहा। आईए अब आपको उससे रूबरू करवाते हैं।
मुंबई मैं हम लोग अपने साथी राजवीर सिंह राज़ के आत्मीय संबंधी प्रिय अंकित कुमार जी के मेहमान रहे। अगर मैं अंकित जी की मेहमान नवाज़ी और आत्मीयता का ज़िक्र न करूं तो यह ब्लॉग पोस्ट अधूरी रहेगी।
        ( प्रिय अंकित कुमार को मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह दर्द का एहसास की प्रति भी भेंट की)

अंकित जी को हमने एक बहुत ही हंसमुख और मस्तमौला इंसान पाया।जिस ज़िंदादिली और मुहब्बत से दो दिन उन्होंने हमारी मेज़बानी की उससे लगा ही नहीं कि हम उनसे पहली बार मिल रहे हैं।अंकित जी मुंबई में शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में मैकेनिकल इंजीनियर हैं।अपने व्यस्ततम समय में से समय निकालकर अंकित जी ने हमें मुंबई के महत्वपूर्ण स्थलों का भ्रमण कराया।उनकी आवभगत और आत्मीयता के लिए आभार जैसा शब्द बहुत छोटा पड़ेगा अत: मैं उसे प्रयोग नहीं करना चाहता। हां,किसी मशहूर शायर द्वारा कहा गया यह शेर मैं ज़रूर प्रिय अंकित जी की शान में पढ़ना चाहूंगा:
       कितने हसीन लोग थे जो मिल के एक बार,
       आंखों में  जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
               --- अज्ञात
अंकित जी के यहां रहने के दौरान एक दिलचस्प अनुभव उनकी किचिन में मिलकर खाना बनाने का भी रहा उसका ज़िक्र भी यहां ज़रूरी  लगता है।
स्थानीय भ्रमण के दौरान जब थकान हो गई तो एक दिन हमने आराम करने का निश्चय किया क्योंकि उसी दिन शाम को हमारी गोवा के लिए फ्लाइट थी।अंकित भाई के ऑफिस चले जाने के बाद हम तीनों साथियों ने निश्चय किया कि आज खाना घर पर ही बनाया जाए क्योंकि बाहर का खाते-खाते उकता भी चुके थे सो किसी बड़े शैफ़ की तरह तीनों जुट गए अपने-अपने जौहर दिखाने बावर्चीख़ाने में। किसी ने सब्ज़ी काटी,किसी ने आटा गूंथा और किसी ने बर्तन साफ़ किए। सहकारिता का अद्भुत दृश्य उत्पन्न हुआ किचिन में।एक घंटे में आलू टमाटर, मिक्स वेज,रायता ,सलाद और रोटी आदि सब तैयार थीं।
 

सबने भरपेट भोजन किया और अंकित जी के लिए शाम का खाना उनके फ्रिज में रख दिया।अपने द्वारा बनाया गया छप्पन भोग (भले ही सब्ज़ी में नमक अधिक हो, रोटियां कुछ जली हुई हों पर आदमी को अपने द्धारा तैयार किया हुआ खाना छापन भोग से कम नहीं लगता 😀😀) सबने व्हाट्सएप पर अपने -अपने घर साझा किया तो फटाफट रिप्लाई भी आने लगे -- "हमने तो कभी किचिन में आते देखा नहीं, तुम तो छुपे रुस्तम निकले।घर आकर कम से कम एक दिन अपने हाथ का बना खाना तो खिलाकर दिखाओ। हम भी तो देखें कि कौन शैफ संजीव कपूर है और कौन विकास खन्ना, वगैरहा वगैरहा ---"
हम सब बड़े पछताए व्हाट्सएप पर तस्वीर साझा करके।पर क्या कर सकते थे। भरोसा दिलाया कि  कि चलो भाई कोशिश करेंगे घर आकर । आख़िर मरता क्या न करता।
खाना ख़ज़ाना 👇


इस अद्भुत साहित्यिक यात्रा के अंतिम चरण में एक दिन साउथ गोवा भ्रमण का भी रहा। गोवा ट्रिप भी प्रिय भाई अंकित जी के सौजन्य से ही प्रायोजित रही।गोवा यात्रा में हमारे टूरिस्ट गाइड रहे भाई दामोदर मणि उर्फ़ दीपक जी(उन्होंने हमें अपना नाम दीपक ही बताया था)। दामोदर जी ने हमारी इस शॉर्ट विजिट को अपनी गाइडिंग से यादगार बना दिया। दीपक भाई के बारे में कहूं तो बहुत विनम्र व्यक्ति,हिंदी और अंग्रेज़ी पर अच्छी पकड़,बीच- बीच में उर्दू मिश्रित हिंदी ज़ुबान में बात करना। उनकी इन सब बातों ने बहुत प्रभावित किया।उन्होंने बताया कि वह कई साल दुबई में काम कर चुके हैं और अब गोवा में फुल टाइम टुअर ऑपरेटिंग का काम देखते हैं।बहुत दिलचस्प इंसान लगे हमें दीपक जी उर्फ़ दामोदर जी।देश और गोवा के हालात की बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं।उनकी पर्सनालिटी और पहनावे में हमें फिल्म स्टार कमल हासन की झलक दिखाई पड़ी।इसके लिए उन्हें कॉम्प्लीमेंट दिया तो उनकी मुस्कुराहट देखने लायक़ थी। टूरिस्ट गाइड/ऑपरेटर में जो ख़ूबियां होनी चाहिए हमें दीपक जी में उससे कहीं अधिक दिखाई दीं।
एक फिल्मी गीत की ये पंक्तियां भाई दीपक जी के नाम :
आते-जाते ख़ूबसूरत आवारा सड़कों पे,
कभी-कभी इत्तेफ़ाक़ से,
कितने अंजान लोग मिल जाते हैं।
उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं,
कुछ याद रह जाते हैं।
(यात्रा के अंतिम पड़ाव पर जब दीपक जी ने हमें गोवा एयरपोर्ट पर ड्रॉप किया यह उससे कुछ समय पहले उनके साथ ली गई तस्वीर है)
इस यादगार यात्रा के संस्मरण और प्रसंग तो बहुत हैं आपसे साझा करने के लिए पर पोस्ट लंबी होने के कारण बोझिल न हो जाए इसलिए इस शेर के साथ बात समाप्त करता हूं :
  सैर कर दुनिया की ग़ाफिल ज़िंदगानी फिर कहां,
   ज़िंदगानी गर रही तो ---------
          --- ख़्वाज़ा मीर दर्द 
प्रतुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 












January 12, 2024

(ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई) : प्रस्थान से पहले




दिल्ली निवासी ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी जी अपनी टीम के साथ मिलकर पिछले 18 वर्षों से देश-विदेश के ग़ज़ल प्रेमियों के लिए ग़ज़ल कुंभ के नाम से एक शानदार कार्यक्रम आयोजित करते आ रहे हैं।
इस आयोजन की आयोजक संस्था अंजुमन फरोग़-ए-उर्दू है जिसके अध्यक्ष मोईन अख़्तर अंसारी साहब हैं। ये दोनों साहित्यकार अपनी समर्पित टीम के साथ मिलकर प्रतिवर्ष बहुत ही व्यवस्थित/अनुशासित ढंग से भव्य ग़ज़ल कुंभ का आयोजन कराते हैं।इस कार्यक्रम में बहुत प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों के साथ-साथ ऐसे उभरते हुए रचनाकार भी सहभागिता करते हैं जिन्हें अपने सृजन को निखारने और अच्छा मंच पाने की ललक है।निश्चित तौर पर दीक्षित दनकौरी जी और मोईन अख़्तर अंसारी साहब अदब की बेमिसाल ख़िदमत और अदीबों को प्रोत्साहित करने का काम बड़ी शिद्दत से करते आ रहे हैं।
इस कड़ी में इस बार वर्ष,2024 का ग़ज़ल कुंभ मुंबई में बसंत चौधरी फाउंडेशन, नेपाल के सौजन्य से आयोजित किया जा रहा है।इस बार के कार्यक्रम का उदघाटन माननीय वीरेंद्र याज्ञिक द्वारा किया जाएगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि क्रमश: श्री बसंत चौधरी जी तथा श्री अमरजीत मिश्र जी होंगे। इस बार के ग़ज़ल कुंभ में देशभर से पधारे लगभग 146 ग़ज़लकारों द्वारा ग़ज़ल पाठ किया जाएगा।
मैंने वर्ष 2017 के ग़ज़ल कुंभ दिल्ली में पहली बार शिरकत की थी। इसके बाद पिछले वर्ष ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में भी सहभागिता की।इस बार रामपुर के अपने दो बहुत अच्छे ग़ज़लकार साथियों प्रदीप माहिर और राजवीर सिंह राज़ के साथ ग़ज़ल कुंभ मुंबई में सहभागिता का अवसर प्राप्त हो रहा है। रामपुर के ही एक और अच्छे ग़ज़लकार भाई सुरेंद्र अश्क जी को भी हमारे साथ कार्यक्रम में सहभागिता करनी थी परंतु कुछ पारिवारिक कारणों के चलते वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।हमें इस दौरान उनकी कमी बहुत खलेगी।
श्री दनकौरी जी के पास ऐसे बडे़ साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न कराने का लंबा अनुभव है। उनके पास समर्पित साहित्यकारों और व्यवस्था देखने वालों की एक पूरी टीम होती है जो बहुत मुस्तैदी के साथ अपने काम को अंजाम देती हैं। धन्य हैं वे लोग जो इस साहित्यिक अनुष्ठान में सम्मिलित होते हैं और अनुशासित ढंग से इस दो दिवसीय कार्यक्रम को गरिमा के साथ पूर्ण कराने में अपना सहयोग प्रदान करते हैं।ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ़ रचना पाठ करना ही साहित्यकारों का मक़सद नहीं होता बल्कि ऐसे अवसरों पर दूसरे लोगों से मिलकर उनका 
हालचाल जानना तथा विभिन्न विषयों पर अनौपचारिक परिवेश में वार्तालाप/संवाद करके अपने चिंतन को निखारना भी एक उद्देश्य होता है। 
मैं दीक्षित दनकौरी जी,मोईन अख़्तर अंसारी जी और उनकी टीम को मुझे ग़ज़ल कुंभ में आमंत्रित करने हेतु  धन्यवाद ज्ञापित करता हूं और कामना करता हूं कि वे स्वस्थ्य और मस्त रहते हुए प्रति वर्ष यों ही साहित्यक यज्ञों का आयोजन कराते रहें।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 



January 5, 2024

झुर्री वाले गाल


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। साहचार्य से रहने में ही जीवन की सार्थकता है।मनुष्य समाज में रहकर बहुत कुछ सीखता है और उससे बहुत कुछ लेता भी है। अत: उसका दायित्व बनता है कि वह समाज को कुछ दे भी। स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर समाज की सेवा भी करे।समाज सेवा के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं। साहित्य सृजन के माध्यम से भी समाज की सेवा की जा सकती है। सृजनात्मक साहित्य वही कहलाता है जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करे और उनकी संवेदनाओं को छुए। हम सब साहित्यकारों का यह कर्तव्य बनता है कि अपने श्रेष्ठ साहित्य सर्जन से समाज की दशा और दिशा बदलते रहें।

आज अपने कुछ दोहे आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं  :

आज कुछ दोहे यों भी 

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@

दादा  जी   होते   नहीं, कैसे   भला   निहाल।

नन्हे    पोते   ने    छुए, झुर्री    वाले    गाल।।


क्या  बतलाए गाँव  का,मित्र! तुम्हें  हम  हाल।            

आज न वह पनघट रहा ,और न वह चौपाल।।


क्या  होगा इससे  अधिक,मूल्यों का अवसान।

बेच   रहे   हैं  आजकल, लोग   दीन   ईमान।।


मन  में  जाग्रत हो  गई,लक्ष्य प्राप्ति  की  चाह।

कठिन राह की क्या भला,होगी  अब परवाह।।


याची  कब  तक  हों नहीं,बतलाओ  हलकान।

झिड़क  रहे  हैं  द्वार पर, उनको  ड्योढ़ीवान।।

           @ओंकार सिंह विवेक 

अवसान -- समाप्ति,अंत

याची -- आवेदक, फ़रियादी

हलकान -- परेशान

(चित्र : ३ जनवरी,२०२४ को आकाशवाणी रामपुर में काव्य पाठ की रिकॉर्डिंग के अवसर पर)






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