August 23, 2022

कुंडलिया के बहाने

शुभ प्रभात मित्रो 🙏🙏🌹🌹

सुब्ह के साढ़े पाँच बजे हैं ।आसमान में हल्के काले बादल चहल क़दमी कर रहे हैं।प्राणदायिनी वायु मन को प्रफुल्लित कर रही है।मैं मॉर्निंग वॉक के बाद यह ब्लॉग पोस्ट लिखने बैठ गया हूं।


साहित्यकार के चिंतन का पंछी हमेशा ही उड़ान पर रहता है जो एक अच्छा संकेत भी है।अवसर के अनुकूल भी साहित्यकार की लेखनी कुछ न कुछ सार्थक लिखकर अपने दायित्व का निर्वहन करती रहती है।अभी पिछले दिनों कई महत्पूर्ण त्योहार बीत।हमारे गौरव का प्रतीक स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व जिसे  आज़ादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया, हर भारतवासी के दिल में देश भक्ति का जज़्बा और जुनून जगाकर गया है।आज़ादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में चल रहे कार्यक्रमों का समापन १५अगस्त,२०२३ को होगा।इस बार हर घर तिरंगा मुहिम का बहुत बड़ा असर देखने को मिला।अधिकांश लोगों ने अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज/तिरंगा लगाकर अपने देश प्रेम का परिचय दिया। राष्ट्रीय एकता की भावना से ओतप्रोत परिवेश में तिरंगे के सम्मान में मुझसे एक कुंडलिया छंद का सृजन हो गया जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
    कुंडलिया 
भारत की  नित विश्व में, बढ़ा रहा है शान,
हमें  तिरंगे  पर  बड़ा, होता है  अभिमान।
होता है अभिमान, सभी  यह लक्ष्य बनाएँ,
प्रेम-भाव  के  साथ, इसे  घर-घर फहराएँ।
चलो दिखा दें आज,एकता की हम ताकत,
 कहे सकल  संसार,देश अनुपम  है भारत।
           ---ओंकार सिंह विवेक 
इस दौरान श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भी हर्ष और उल्लास के साथ देश भर में मनाया गया।भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके विराट व्यक्तित्व से हम सभी भली भांति परिचित हैं।श्री कृष्ण द्वारा युद्ध के मैदान में अर्जुन को दिए गए गीता के संदेश आज भी हमें अपने कर्तव्यों का भान कराते हुए प्रासंगिक बने हुए हैं।पवित्र ग्रंथ गीता में संकलित ज्ञान का अगर बहुत थोड़ा सा अंश भी अपने जीवन में उतार सकें तो हमारा जीवन सफल हो जाए। श्री कृष्ण के जन्म के समय जो परिस्थितियां थीं उन्हें हम सब जानते हैं।दुष्ट कंस ने उनके माता-पिता को बंदीगृह में डाल रखा था और जेल तथा मथुरा नगरी के चप्पे-चप्पे पर सख़्त पहरा था। माँ सरस्वती की कृपा से उस दृश्य का चित्रण भी एक कुंडलिया के माध्यम से हो गया उसे भी आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण मैं नहीं कर पा रहा हूं:
कुंडलिया 
कृष्ण कन्हैया ने लिया,जब पावन अवतार,
स्वत: खुल गया कंस के, बंदीगृह का द्वार।
बंदीगृह  का  द्वार, ईश  की  महिमा न्यारी,
सोए   पहरेदार, नींद   की  चढ़ी   ख़ुमारी।
शांत  हुईं  तत्काल, उफनती  यमुना  मैया,                  
पहुँचे  गोकुल  धाम,दुलारे कृष्ण  कन्हैया। 
         ---ओंकार सिंह विवेक 
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
      ओंकार सिंह विवेक 





15 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-08-2022) को "उमड़-घुमड़ कर बादल छाये" (चर्चा अंक 4531) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।ज़रूर हाज़िर रहूंगा।

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  2. सार्थक लेखन

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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    1. जी आभार। अवश्य आऊंगा 🙏🙏

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  4. वाह अनुपम सुन्दरम्👍🙏💐

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    1. अतिशय आभार आदरणीया।

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  5. वाह बहुत ही अनुपम कुडलियाँ सुन्दर रचना के लिए बधाई आदरणीय

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  6. वाह!बहुत सुंदर भावमय सृजन सर।

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