डॉक्टर मधुकर भट्ट : एक अद्भुत व्यक्तित्व
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--ओंकार सिंह विवेक
फोटो में आप हल्के हरे रंग के कुर्ते और धोती में सफ़ेद दाढ़ी वाले जिन सज्जन को देख रहे हैं वह कोई आम व्यक्तित्व नहीं है। अपने आभामंडल पर एक अलग प्रकार का तेज लिए बयासी वर्ष की आयु में भी ग़ज़ब की ऊर्जा लिए यह हैं महान शिक्षाविद और कवि डॉक्टर मधुकर भट्ट जी।
अपनी पिछली ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपसे इनका थोड़ा सा ज़िक्र भी किया था कि इनके बारे में अगली पोस्ट में आपको अवश्य बताऊंगा सो आज वादा पूरा कर रहा हूं।
दिनाँक ९अगस्त ,२०२२ को अपने काव्य पाठ की रिकॉर्डिंग के लिए जब आकाशवाणी रामपुर -उ०प्र० जाना हुआ तो डॉक्टर मधुकर भट्ट जी से मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त हुआ।आप भी अपने कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के लिए आकाशवाणी स्टूडियो में पधारे हुए थे।कार्यालय के वेटिंग रूम में मैं भी रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री शिवकुमार शर्मा चंदन जी और युवा कवि श्री बलवीर सिंह जी के साथ बैठा हुआ था।डॉक्टर भट्ट जी भी अपने शिष्य के साथ वहीं बैठे थे।उनके मुख पर जो तेज था वह मुझे प्रभावित कर रहा था। मैं उनके विराट व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनसे परिचय जानने के लिए संवाद करने ही वाला था कि उन्होंने स्वयं ही पहल करते हुए हमारे बारे में जानना प्रारंभ कर दिया।हमने उन्हें अपना - अपना परिचय देते हुए बताया कि हम लोग कवि हैं और यहां एक काव्य गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के लिए आए हुए हैं।यह जानकर मधुकर जी बहुत प्रसन्न हुए और स्वयं विस्तार से अपना परिचय देने लगे।
चित्र में बाएं से दाएं: युवा कवि बलवीर सिंह, मैं ओंकार सिंह विवेक, डॉक्टर मधुकर भट्ट जी तथा रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिव कुमार शर्मा चंदन जी
डॉक्टर भट्ट ने बताया कि वह मूलत: बनारस के रहने वाले हैं और उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में शिक्षा विभाग में उच्च पदों पर रहने के बाद अब जनपद रुद्रपुर (ऊधमसिंह नगर)- उत्तराखंड में स्थाई रूप से बस गए हैं।डॉक्टर मधुकर भट्ट साहब ने बताया की इस समय उनकी आयु ८२वर्ष है। उन्हें हिंदी साहित्य जगत की महान हस्तियों श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्री सुमित्रा नंदन पंत तथा आदरणीया महादेवी वर्मा आदि के सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त हो चुका है। उनमें से कई के साथ उन्होंने राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में मंच भी साझा किए हैं। श्री सुमित्रानंदन पंत के अंतिम दिनों की याद करते हुए उनकी आँखें भर आईं।उन्होंने बताया "पंत जी के भावों ,विचारों और लेखन में जितनी कोमलता थी शरीर से भी वे उतने ही कोमल थे।एक बार मैंने उनकी सेवा के दौरान जुराबों से उनके पांव निकाल कर मालिश की तो उनके शरीर की नाज़ुकी और नरमी का एहसास हुआ।" उन्होंने सभी साहित्य पुरोधाओं का स्मरण करते हुए बताया की वे सभी अपने क्षेत्र के प्रकांड विद्वान और नए लोगों को प्रोत्साहित करने और सिखाने वाले लोग थे। अभिमान से कोसों दूर वे लोग अनवरत साहित्य साधना में लीन रहते थे। डॉक्टर भट्ट को इस बात का बेहद दुःख है कि अब न ऐसे गुरु ही हैं जो हिंदी साहित्य की समृद्ध विरासत और परंपरा को आगे बढ़ा सकें और न ही गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने वाले वे शिष्य ही हैं जो गुरुओं के चरणों में बैठकर सीखने की ललक रखते हों। हां, कुछ अपवाद ज़रूर मिल सकते हैं इसके,जिसे आदरणीय भट्ट जी ने भी स्वीकार किया।
हम मंत्रमुग्ध होकर डॉक्टर साहब की बातें सुन रहे थे।इस उम्र में भी उनकी स्मरण शक्ति ,चेहरे का तेज और ऊर्जा हमें बहुत प्रभावित कर रही थी।उनके अदभुत वाककौशल के सम्मोहन में बंधे हम जीवन और दुनिया को लेकर उनके अनुभव सुन रहे थे।मालूम हुआ कि साहित्य के साथ साथ उन्हें ज्योतिष विद्या का भी ज्ञान है।किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोलने में उन्हें महारत हासिल है यह बात उनके साथ थोड़ा-सा समय बिताने पर हमें भली प्रकार मालूम हो गई।उन्होंने बताया कि वह सदैव ही अपने खानपान और दिनचर्या को लेकर बहुत सजग रहते हैं।यही कारण है की इस आयु में भी उनके चेहरे का तेज देखते ही बनता है।मधुकर जी ने बताया की वे अब कवि सम्मेलनों आदि में नहीं जाते हैं।बस आत्म संतुष्टि के लिए साहित्य साधना और आध्यात्मिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं।किसी विषय विशेष पर व्याख्यान आदि देने के लिए महाविद्यालयों और बड़े संस्थानों आदि में चले जाते हैं और कभी-कभार रेडियो स्टेशन रामपुर आ जाते हैं अपनी कविताओं और वार्ताओं की रिकॉर्डिंग करवाने के लिए।डॉक्टर साहब ने बताया कि वे अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हैं। उन्होंने हम सबको अपने व्यक्तिगत ,सामाजिक और साहित्यिक जीवन को निखारने के लिए अपने अनुभव के आधार पर कई व्यवहारिक सुझाव दिए।
हम सभी साहित्यकारों ने अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण संस्मरण सुनाने तथा हमारा मार्गदर्शन करने के लिए ह्रदय से डाक्टर मधुकर भट्ट जी आभार व्यक्त करते हुए उनसे विदा ली।
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
विवेक जी यह विद्वान् क्या बालकृष्ण भट्ट जी के परपोते हैं रुप्रपुर आवास विकास में रहते हैं।
ReplyDeleteकाली के उपासक
नैनीताल विश्वाविघालय और रुद्रपुर डिग्री कॉलेज में कार्य करचुके स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हुए।
यदि वही हैं तो मैंने इनके संरक्षण में ही अपना शोध ग्रन्थ पूरा किया
मेरे शोध प्रबन्ध करवाने वाले साहित्यिक गुरु भी डॉ० मधुकर भट्ट जी ही रहे हैं।
1980 - ।985
जी आदरणीया वही हैं यह। हार्दिक आभार आपका 🙏🙏
Deleteवास्तव में ही अदभुत् व्यक्तित्व
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏🙏 शत शत नमन्
जी आदरणीया 🙏🙏
Delete'उन्होंने हम सबको अपने व्यक्तिगत ,सामाजिक और साहित्यिक जीवन को निखारने के लिए अपने अनुभव के आधार पर कई व्यवहारिक सुझाव दिए'। कृपया इसे भी किसी पोस्ट में शामिल करें
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
Deleteजी अच्छा सुझाव है, ज़रूर करूंगा।
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteदुर्लभ अनुभव अभिभूत करने बाले पल
ReplyDeleteजी आभार आपका।
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