भोले शंकर के पावन श्रावण मास के सभी तीज-त्योहारों की आप सबको हार्दिक बधाई।अतिव्यस्तता के कारण कई दिन बाद आपसे रूबरू होने का अवसर मिल रहा है।
दोस्तो हम सब भली भांति परिचित हैं कि कुछ भी सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है।इसी के मद्देनज़र मैं कई बार अपनी पुरानी ग़ज़लों और अन्य रचनाओं में सुधार करके अथवा उनका विस्तार करके पुन: समय - समय पर प्रस्तुत करता रहता हूं।इसी क्रम में अपनी एक काफ़ी पहले कही गई ग़ज़ल को कुछ नए अशआर जोड़ने तथा कुछ में संशोधन करने के उपरांत आपकी अदालत में फिर से प्रस्तुत कर रहा हूं।अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य ही अवगत कराइएगा:
फ़ाइलातुन मुफाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
©️
माँ का आशीष फल गया होगा,
गिर के बेटा सँभल गया होगा।
ख़्वाब में भी न था गुमां हमको,
दोस्त इतना बदल गया होगा।
छत से दीदार कर लिया जाए,
चाँद कब का निकल गया होगा।
©️
सच बताऊँ तो जीत से मेरी,
कितनों का दिल ही जल गया होगा।
रख दिया था जो आइना आगे,
बस यही उसको खल गया होगा।
लूट ली होगी उसने तो महफ़िल,
जब सुनाकर ग़ज़ल गया होगा।
जीतकर सबका एतबार 'विवेक',
चाल कोई वो चल गया होगा।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
कवि सम्मेलन रुद्रपुर - उत्तराखंड
सहज शब्दों में दिल में उतरने वाली गजल अपनी एक अलग ही छाप छोड़ती है। सटीक हिंदी शब्दों का प्रयोग कर आपने उन लोगों के कथन को झूठला दिया जो कहते हैं कि उर्दू शब्दों के बिना गजल अधूरी रहती हैं। सच में ऐसी ही गजल लिखने का मेरा बहुत मन करता है।
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका। शुरूवात कीजिए लिखने की
Deleteबहुत सुंदर आदरणीय
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका 🌹🌹🙏🙏
DeleteBRILLIANT ONKAR SINGH JI
ReplyDeleteThanks a lot 🙏🙏🌹🌹!!!!
Deleteबहुत खूब आदरणीय
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteआपकी लेखनी सतत चलती रहे।
बेहद आभारी हूं आपका 🌹🌹🙏🙏
Delete